अटलजी व भाजपा के साहस से भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न देश - अरविन्द सिसौदिया India Nuclear Power Country


अटलजी व भाजपा के साहस से भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न देश - अरविन्द सिसौदिया
With the courage of Atalji and the BJP, India has become a nuclear power country - Arvind Sisodia
 

 - अरविन्द सीसोदिया
        अटल जी ने ज्यों ही भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली और राष्ट्र की सुरक्षा में जुट गये। उन्होनें भारत को परमाणु शस्त्र सम्पन्न देश के रूप में खडा किया । जो राष्ट्रीय गौरव के महान अभियान की पूर्ती और स्वाभिमान की सफलता की पूर्णता थी। विदेशी ताकतों ने बहुत हो हल्ला किया मगर अडिग अटलजी नें कहा भारत को अपनी सम्प्रभुता की रक्षा का, सुरक्षा का अधिकार है , इसलिये हमनें अपने हितों के लिए जो किया वह सही किया। मगर कांग्रेस की सोनियां गांधी तमाम विदेशी ताकतों के सामनें अटलजी के विरूद्ध नाची नाची फिरीं और कहती रहीं कि कांग्रेस इससे सम्बद्ध नहीं है। कांग्रेस इसके विरूद्ध है। मगर अटलजी जहां से शिक्षित हो कर आये थे उस संघ की शाख (पाठशाला) में राष्ट्र और राष्ट्रहित ही सर्वोपरी है। यह उसी करिश्में का फल है कि हाल ही में साल 2010 में विश्व कि सभी परमाणु शक्तियाँ आपके दरवाजे पर नमस्कार करने आईं ..! भारत को एक महा शक्ति के रूप में स्थापित करने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ अटल जी को जाता है !!! उन्होंने भारत माता के एक एसे सपूत का कर्तव्य पूरा किया जो मातृ भूमी को परम वैभव के सिंहासन पर आरुड़ करने के सपने देखता था ...!  

एक रिपोर्ट के अनुसार माना जाता है कि , दुनिया में आठ देश हैं जो परमाणु हथियारों को सफलतापूर्वक विस्फोट कर चुके हैं। इन में से पाच देश परमाणु अप्रसार संधि के अंतर्गत परमाणु-हथियार सम्पन्न् देश के रूप में जाने जाते है। जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, और चीन। परमाणु अप्रसार संधि मे शामील न होने वाले तीन देश जिन्होंने सफलतापूर्वक परमाणु विस्फोट किया है वो है। उनमें भारत, उत्तर कोरिया, और पाकिस्तान है। उत्तरी कोरिया पहले परमाणु अप्रसार संधि मे शामिल था लेकिन 2003 में वह उससे हट गया । इज़राइल के पास भी परमाणु हथियार होने की व्यापक संभावना जताई जाती है। हालांकि यह इसके बारे में जानबूझकर अस्पष्टता की नीति बनाए रखता है और यह स्वीकार नहीं करता है। और इज़राइल किसी प्रकार के परमाणु परीक्षण आयोजित करने के लिए निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है।  

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 1998 में हुए परमाणु परीक्षण को केवल एक ‘‘परीक्षण’’ के नजरिये से ही नहीं देखना चाहिए बल्कि इसके बाद हुई ‘सघन कूटनीति’ के रूप में देखा जाना चाहिए जिसके फलस्वरूप दो वर्षो में ही भारत दुनिया के प्रमुख देशों को साथ ला सका।
 

 भारतीय परमाणु आयोग ने पोखरण में अपना पहला भूमिगत परिक्षण १८ मई, १९७४ को किया था। हलाकि उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है।
      बाद में ११ और १३ मई, १९९८ को पाँच और भूमिगत परमाणु परीक्षण किये और भारत ने स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इनमें ४५ किलोटन का एक तापीय परमाणु उपकरण शामिल था जिसे प्रायः पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। ११ मई को हुए परमाणु परीक्षण में १५ किलोटन का विखंडन उपकरण और ०.२ किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था। इस परीक्षण के प्रतिक्रिया स्वरुप पाकिस्तान ने भी इसके तुरंत बाद २८ मई, १९९८ को परमाणु परीक्षण किये। पाकिस्तान को स्वयं को परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्र घोषित करने के बाद उस समय निंदा झेलनी पड़ी जब पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान जो पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, पर चोरी छुपे परमाणु तकनीक लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को बेचने का पर्दाफाश हुआ।

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ऑपरेशन शक्ति11 मई 1998 : तीन एटमी डिवाइस का परीक्षण
13 मई 1998 : दो एटमी डिवाइस का परीक्षण
सिर्फ इन्हें मालूम थाः
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, तत्कालीन उपप्रधानमंत्री व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, तत्कालीन विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा, तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र रक्षा मंत्री को 48 घंटे पहले बताया उस समय के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज और वित्त मंत्री जसवंत सिंह तक को 48 घंटे पहले बताया गया था।
छद्म नामों में वैज्ञानिक
* परीक्षण में शामिल 80 से ज्यादा वैज्ञानिक एक साथ पोकरण रवाना नहीं हुए।
* बदले नामों से छोटे समूह में भिन्न शहरों में पहुंचे, जहां से वे जैसलमेर के सैन्य ठिकाने तक गए और फिर सेना उन्हें पोकरण ले गई।
* एक समूह काम करके लौटता, तब दूसरा वहां पहुंचता।
* पत्नियों व परिवार के सदस्यों को सेमिनार व सम्मेलनों का कारण बताकर रवाना हुए।
* नामों में कोड के इस्तेमाल से वैज्ञानिक इतने चकरा गए कि वे कहने लगे कि इससे तो भौतिकी के हमारे जटिल समीकरण आसान लगते हैं!
* सारे टेक्निकल स्टाफ ने सैन्य वर्दी पहन ली ताकि अमेरिकी उपग्रह की छवियों में यही नजर आए कि वे परीक्षण स्थल की निगरानी करने वाले सैनिक हैं।
ऐसे दिया था अमेरिका को चकमाः
1995 में तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने परमाणु परीक्षण का फैसला किया था, लेकिन अमेरिकी उपग्रहों ने परीक्षण स्थल की गतिविधियों को देख लिया और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत सरकार पर दबाव डालकर परीक्षण होने नहीं दिया। इससे सबक लेकर ऑपरेशन शक्ति में सावधानी बरती गई।
* परीक्षण स्थल पर तैयारी का ज्यादातर काम रात में किया गया।
* भारी उपकरण इस्तेमाल के बाद तड़के उसी जगह पर रख दिए जाते ताकि अमेरिकी उपग्रह की छवियों का विश्लेषण करने वाले समझे कि उन उपकरणों को हिलाया ही नहीं गया।
* परमाणु परीक्षण के लिए जमीन में चैंबर तैयार करते समय निकली रेत को रेतीले तूफान में बनने वाले टीलों की शक्ल दी गई।
* परीक्षण स्थल पर पहले ही उपयोग में नहीं लाए जा रहे नौ कुएं ‘नवताल’ मौजूद थे, जिससे खुदाई का काम आसान हो गया।
* चैंबर के लिए खड्ढे खोदने की जगह पर नेट लगाई व उस पर घास-पत्तियां डालकर उसे छिपा दिया गया।
ऐसे रवाना हुए हथियार

* मई : बार्क से कर्नल उमंग कपूर के नेतृत्व में सेना के चार ट्रक इन्हें लेकर सुबह 3:00 बजे मुंबई एअरपोर्ट रवाना हुए।
* पौ फटते ही वायुसेना का एएन-32 परिवहन विमान इन्हें लेकर जैसलमेर के सैन्य ठिकाने की ओर रवाना हुआ।
* जैसलमेर से सेना के चार ट्रक तीन खेपों में परमाणु साधन व अन्य सामग्री पोकरण ले गए।
* सारी चीजें परीक्षण की तैयारी वाली इमारत प्रेयर हॉल में पहुंचाई गईं।
क्या व्हिस्की सर्व करना शुरू किया
जब परमाणु डिवाइस उनके निर्धारित चैंबर में रखे जा रहे थे तो दिल्ली से पूछा गया, क्या सिएरा ने कैंटीन में व्हिस्की सर्व करना शुरू कर दिया है? (क्या परमाणु उपकरण को उसके स्पेशल चैंबर (व्हाइट हाउस, व्हिस्की जिसका कोडनेम था) में रख दिया गया है और क्या वैज्ञानिकों (सिएरा) ने काम शुरू कर दिया है।
थोड़ी देर बाद फिर संदेश आया, क्या चार्ली जू चला गया है और ब्रेवो प्रार्थना में लग गया है?
माइक ऑन। (क्या डीआरडीओ की टीम कंट्रोल रूम (जू) चली गई है और क्या बार्क की टीम प्रेयर हॉल (जहां उपकरणों को असेंबल किया जा रहा था) में चली गई है। सैन्य अभियान के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल वर्मा (माइक) प्रगति जानना चाहते हैं।
ऐसी कूटनीति कि दुनिया को भनक तक न पड़ी
* भारतीय राजनेताओं व कूटनीतिज्ञों ने ऐसे बयान दिए, जिससे लगे कि अपनी एटमी स्थिति को लेकर भारत असमंजस में है और वे भाजपा द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान परमाणु परीक्षण करने के वादे को गंभीरता से न लें।
* रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीज व विदेश सचिव के. रघुनाथ ने अमेरिकी अधिकारियों को बैठकों में बताया कि भारत ने अभी एटमी टेस्ट के बारे में कुछ तय नहीं किया है और इसके लिए 26 मई को राष्ट्रीय सुरक्षा की बैठक बुलाई गई है।
* दोनों ने अमेरिका व विश्व समुदाय को साफ बताया कि भारत अचानक परीक्षण कर चौंकाएगा नहीं।
एटमी साधन पहुंचे अपनी जगह

* ताप नाभिकीय डिवाइस 200 फीट गहराई में एक चैंबर में रखा गया, जिसे व्हाइट हाउस नाम दिया गया था।
* विखंडन अर्थात फिशन आधारित परमाणु बम को 150 फीट गहरे गड्ढे ताज महल में रखा गया।
* एक किलोटन से कम वाले उपकरण को कुंभकरण नामक चैंबर में रखा गया।
* दूसरी सीरीज में टेस्ट किए जाने वाले उपकरणों को जहां रखा गया उन्हें एनटी1 व एनटी2 नाम दिया या।
* 10 मई को परीक्षण के तीनों उपकरण अपने चैंबर में रख दिए गए और इन्हें सील किया गया। अंतिम चैंबर अगले दिन सुबह साढ़े सात बजे सील किया गया। परीक्षण के नियत समय से 90 मिनट पहले सबकुछ तैयार था।
इनका हुआ परीक्षण
शक्ति 1 : यह दो चरण वाला ताप नाभिकीय उपकरण था। 200 किलो टन की ऊर्जा देने में सक्षम इस उपकरण को परीक्षण के लिए 45 टन की क्षमता का बनाया गया था। वास्तव में यह कोई परमाणु हथियार नहीं था। इसे देश की हाइड्रोजन बम क्षमता जांचने और भविष्य में हथियार बनाने के उद्देश्य से आंकड़े इकट्ठे करने के लिए बनाया गया था। 1000 किलो टीएनटी बारूद के विस्फोट जितनी ऊर्जा निकलने की क्षमता को 1 किलोटन कहते हैं।
शक्ति 2 - 15 किलोटन ऊर्जा छोड़ने वाला प्लूटोनियम के विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित यह डिवाइस वाकई एक परमाणु हथियार था। इसे बमवर्षक विमान से गिराया अथवा मिसाइल पर लादकर दागा जा सकता था। यह 1974 के पहले परीक्षण में इस्तेमाल डिवाइस का ही परिष्कृत रूप था। परीक्षण से इसमें लाए गए सुधार की पुष्टि हुई।
शक्ति 3 - 0.3 किलोटन का यह डिवाइस यह पता लगाने के लिए बनाया गया था कि रिएक्टर में इस्तेमाल होने वाले प्लूटोनियम से परमाणु हथियार बनाया जा सकता है या नहीं। इसके जरिए परमाणु विस्फोट को नियंत्रित करने और जरूरत पड़ने पर ऊर्जा निकास की मात्रा कम करने की भारत की महारत को प्रदर्शित करना भी था।
शक्ति 4 - 0.5 किलोटन का यह प्रायोगिक उपकरण था। इसके परीक्षण का उद्देश्य आंकड़े इकट्ठा करना और बम के विभिन्न हिस्सों के प्रदर्शन की जांच करना था।
शक्ति 5 - 0.2 किलोटन के इस प्रायोगिक उपकरण में यूरेनियम 233 का इस्तेमाल किया गया, जो प्रकृति में नहीं पाया जाता और थोरियम से चलने वाले देश के फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों में बनता है। इसके जरिए भी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
शक्ति 6 - एनटी3 नामक शाफ्ट में एक और कम ऊर्जा वाला नाभिकीय उपकरण रखा गया था, लेकिन पांच धमाकों के बाद परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन प्रमुख आर. चिदंबरम ने कहा कि वांछित आंकड़े उपलब्ध हो गए हैं। इसके परीक्षण की जरूरत नहीं है। उनके शब्द थे, इसे क्यों जाया किया जाए।
और फिर हुए धमाके
* चैबरों को अच्छी तरह सील करने के बाद भी परमाणु विकिरण का खतरा रहता है। अमेरिका में परीक्षण के दौरान ऐसा हो चुका था। इसलिए आबादी की तरफ बह रही हवा के रुख बदलने का इंतजार किया गया।
* तापमान 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका था। फिर दोपहर बाद हवा का बहना लगभग बंद हो गया और परीक्षण करने का निर्णय लिया गया।
* परीक्षण स्थल के इंचार्ज डॉ. संथानम ने उल्टी गिनती शुरू करने की प्रणाली की दो चाबियां सुरक्षा के इंचार्ज डॉ. एम. वासुदेव को दीं। उन्होंने एक-एक चाबी बार्क व डीआरडीओ के प्रतिनिधियों को दी। दोनों ने मिलकर उल्टी गिनती की प्रणाली शुरू की।
* दोपहर बाद 3:45 बजे तीन परमाणु उपकरणों में विस्फोट हो गया।
* धमाके होते ही क्रिकेट के मैदान जितना हिस्सा जमीन से कुछ मीटर ऊपर उछल गया। हवा में धूल व रेत का गुबार छा गया।
* मरु भूमि पर तीन बड़े गड्ढे बन गए।
* दो दिन बाद 13 मई को दोपहर 12:21 बजे दो और उपकरणों में विस्फोट किया गया। इनके कंपनों को भूंकपीय शालाओं में रिकॉर्ड नहीं किया जा सका, क्योंकि ये बहुत कम क्षमता के थे।











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पाकिस्तान में सब कुछ पहले से चल रहा था ....
       परमाणु हथियारों के विकास के मामले में केवल भारत को ही पाकिस्तान पर शक नहीं था बल्कि इस्लामाबाद में अमरीकी राजदूत ऑर्थर हुमेल ने तत्कालीन तानाशाह ज़िया उल हक को काहुटा परमाणु लेबोरेटरी की सेटेलाइट तस्वीरें दिखाकर पूछा था कि क्या गतिविधियां चल रही हैं. हुमेल के अनुसार ज़िया ने इन आरोपों को बेबुनियाद करार दिया था और प्रस्ताव रखा था कि अमरीकी जांचकर्ता लेबोरेटरी आएं लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था.
       आगे चलकर 1979 में जब सोवियत संघ ने अफ़गानिस्तान पर हमला किया तो अमरीका और पाकिस्तान के रिश्तों में नाटकीय बदलाव आया. इसी दौरान अमरीका ने पाकिस्तान को चालीस करोड़ डॉलर की सहायता दी थी जिसे ज़िया उल हक ने ख़ारिज कर दिया था. 1981 में कार्टर की हार हुई और नए राष्ट्रपति बने रोनाल्ड रीगन.

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इंडिया टुडे पत्रिका
पोखरण परमाणु परीक्षण पर बीजेपी में उत्साह, विपक्ष ने दिया हैरान कर देने वाला जवाब
बीजेपी उत्साहित है. विपक्ष अभी भी दंग रह गए भ्रम के साथ जवाब दे रहा है।

सबा नकवी भौमिक /  हरीश गुप्ता
अंक दिनांक : जून 1, 1998 | अद्यतन: मार्च 20, 2013


छाती ठोंकनाः परीक्षणों के साथ, भाजपा को राष्ट्रवादी स्थान पर हावी होने की उम्मीद है
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भले ही लाल बहादुर शास्त्री के प्रसिद्ध जय जवान, जय किसान नारे के साथ जय विज्ञान जोड़ दिया हो , लेकिन जय एटम बम ने 11 मई की गहमागहमी के बाद बीजेपी की स्थिति को बेहतर तरीके से पेश किया है. परमाणु भारत के अपने लंबे समय से पोषित लक्ष्य को हासिल करने पर न केवल सत्ताधारी दल हर्षित है, बल्कि पांच बिग बैंग के साथ राजनीतिक समीकरणों को बदलने पर भी खुशी है।

भाजपा खुद को विजय और महिमा में नहाया हुआ, अपने सहयोगियों को दबे हुए और विपक्ष को स्तब्ध देखती है। इसलिए विजयी मनोदशा है कि पार्टी महासचिव एम. वेंकैया नायडू ने सभी विपरीत विचारों को "देशभक्तिहीन" करार दिया।

भाजपा के विचारक परीक्षणों को एक "सांप्रदायिक" टैग के दायित्व के बिना, पहले कांग्रेस द्वारा आयोजित राष्ट्रवादी स्थान पर हावी होने की दिशा में एक और विशाल छलांग के रूप में देखते हैं। इस प्रक्रिया को केवल इस मुद्दे पर कांग्रेस की हिचकिचाहट से मदद मिली है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को परमाणु परीक्षणों के खिलाफ अंतत: सामने आने में 10 दिन लगे और काफी आत्मावलोकन करना पड़ा। उन्होंने पति राजीव की हत्या की सातवीं बरसी पर एक रैली में कहा, "असली ताकत संयम में है, शक्ति के प्रदर्शन में नहीं। "

सोनिया का भ्रम कांग्रेस के भीतर दो अलग-अलग विचारों का परिणाम था। जबकि विपक्ष के नेता शरद पवार "राष्ट्रीय गौरव" के रथ पर चढ़ने से नहीं कतराते हैं, अन्य लोग संदेह से ओत-प्रोत हैं। सोनिया के करीबी माने जाने वाले प्रवक्ता सलमान खुर्शीद, एआईसीसी सचिव मणिशंकर अय्यर और आर्थिक मामलों के सचिव जयराम रमेश ने इसकी कड़ी निंदा करने की सलाह दी। प्रारंभ में, एआईसीसी के विदेश मामलों के अध्यक्ष के. नटवर सिंह की सतर्क प्रशंसा का दृष्टिकोण प्रबल था।

समझा जाता है कि पार्टीजनों के साथ विचार-विमर्श के दौरान सोनिया ने स्वीकार किया कि ''ज्वार भाजपा के पक्ष में है''. आखिरकार, हालांकि, संदेहवादियों ने इस तर्क के बल पर अपना रास्ता बना लिया कि वाजपेयी ने नेहरू-गांधी विदेश नीति की आम सहमति को नष्ट कर दिया था। परीक्षणों पर सीधे हमला करने से कतराते हुए कांग्रेस ने युद्ध उन्माद पैदा करने के लिए सरकार को निशाने पर लेने का फैसला किया है। पवार कहते हैं, ''मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि बीजेपी इन परीक्षणों को चीन से खतरे से क्यों जोड़ रही है.''

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सोनिया का "विदेशी" मूल एक बार फिर विवाद का विषय बनने जा रहा है। वामपंथी पहले ही "बम को देशभक्ति से जोड़ने की कोशिश करने और एक राष्ट्रवादी उत्साह को भड़काने" के लिए वाजपेयी की आलोचना कर चुके हैं, जबकि मुलायम सिंह यादव ने भाजपा पर इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने का आरोप लगाया है।

पूरे संघ परिवार में निर्विवाद रूप से हिंदू राष्ट्रवाद की प्रबल अंतर्धारा उमड़ रही है। महासचिव केएन गोविंदाचार्य कहते हैं, ''अयोध्या से जुड़ी भावना की तरह परमाणु परीक्षण एक भावनात्मक राष्ट्रवादी दावा है.'' फिर भी, भाजपा नेतृत्व परीक्षाओं को धार्मिक रंग देने के प्रलोभन का विरोध कर रहा है।

उदाहरण के लिए, राजस्थान भाजपा की कार्यकारिणी ने वाजपेयी के लिए पोखरण में धार्मिक तीर्थस्थल राम देवड़ा में एक जनसभा आयोजित करने की योजना बनाई थी, जिसके बाद रैलियों को पोखरण की रेत लेकर घर जाना था। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''पोखरण बालू फैलाने के प्रस्ताव के पीछे की भावना राष्ट्रीय आत्म-विश्वास की भावना फैलाना थी.''

इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले राज्य में स्थानीय इकाई को प्रेरित करने का विचार था। इस आंदोलन को नाकाम करने के लिए आखिरकार प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ी। अपने आवास पर भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए वाजपेयी ने स्पष्ट किया कि "कोई भी पार्टी या व्यक्ति परीक्षणों का श्रेय नहीं ले सकता है।" यहां तक ​​कि उन्होंने "बिग बम" पर उन्हें सम्मानित करने के लिए पार्टी द्वारा आयोजित बैंगलोर में एक सार्वजनिक सभा को भी रद्द कर दिया।

इसी तरह, गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान के सुझाव का विरोध करते हुए एक तथाकथित "हिंदू बम" बनाने की सभी अटकलों को खारिज कर दिया है कि भारत के परमाणु परीक्षण द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को प्रमाणित करते हैं। उन्होंने कहा, "तथ्य यह है कि फारूक अब्दुल्ला और डॉ अब्दुल कलाम अपने देश के लिए उसी देशभक्तिपूर्ण समर्पण के साथ काम कर सकते हैं जैसे कोई अन्य भारतीय दो राष्ट्र सिद्धांत के झूठे ढांचे में फिट नहीं बैठता है, जिस पर पाकिस्तान आधारित है।"

फारूक ने वाजपेयी के साथ पोखरण जाकर इशारे का जवाब दिया। एक जनसभा में, उन्होंने यह कहकर कट्टर हिंदुत्व समर्थकों के दिलों को गर्म कर दिया कि "भगवान राम अकेले हिंदुओं के भगवान नहीं हैं। वह पूरी दुनिया के भगवान हैं और इसलिए, फारूक अब्दुल्ला के स्वामी हैं।"

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के साथ ठीक इसी तरह की बयानबाजी, जिसने पोखरण में "शक्तिपीठ" के निर्माण की घोषणा करके भाजपा को एक अजीब स्थिति में डाल दिया। विहिप के महासचिव आचार्य गिरिराज किशोर परमाणु ऊर्जा के लिए इस तीर्थस्थल की योजना के बारे में बताते हुए कहते हैं, ''हमारा भाजपा से सरोकार नहीं है.'' "शक्ति," वे कहते हैं, "शिव और दुर्गा के एक तांडव नृत्य द्वारा चित्रित किया जाएगा ।"

यह बहुतों को अजीब लग सकता है, लेकिन भाजपा अपने खेमे के अनुयायियों की ज्यादतियों का मजाक उड़ाने की कोशिश करती है। एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री के बिदाई शब्द हैं, "यह संदेश हमारे लिए पर्याप्त शक्तिशाली है कि हम प्रत्यक्ष प्रतीकवाद से बच सकें।" फिलहाल यह सच है। सवाल है: कब तक?


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