कांग्रेस व थामस , निर्लज्जता की सभी हदें पार ....













- अरविन्द सीसोदिया
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वाह थामस साहब ... क्या बात है ! अरे हुज़ूर, यही तो इस देश की बिडम्बना है. जब हमारे संसद मे ही 30 प्रतिशत दागी बैठे है तो आप जैसो की ही निकल पडेगी ना. जब सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा की थामस साहब के ट्रैक रिकोर्ड मे बाकी दोनो से अलग क्या ख़ासियत थी तो कहना चाहिए था की इनके साथ 30 प्रतिशत सांसदो का बहुमत था. क्योकि अभी के सरकार मे जो जितना बड़ा बेईमान है वो इस सरकार के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है. इसी कारण से इनको वरीयता मिली क्योकि ईमानदार को सीवीसी बनाने पर जल्दी ही दूसरा बनाना पड़ता. जैसा कि अब सभी जान चुके है कि ईमानदार तो अब इस देश मे पैदा ही होते है ज़िंदा जला कर मार डालने के लिए. जय हो ! जय हो ! जय हो ! ईमानदार प्रधानमंत्री जी की जय हो ! Sudhanshusudhanshu.mishra@yahoo.co.inसोमवार, 7 फरवरी 2011 ;पटना
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पी जे थॉमस ने कहा है कि
विवादास्‍पद केंद्रीय सतर्कता आयुक्‍त पी जे थॉमस ने कहा है कि संसद में 28.3 प्रतिशत सांसद दागी हैं. उन्‍होंने कहा कि संसद में जो लोग कानून बनाते हैं उनमें भी बहुत से लोग दागी हैं.थॉमस ने कहा कि संसद में 153 सांसद ऐसे हैं जो दागी हैं और कानून बनाने की प्रक्रिया में वो लोग भी शामिल होते हैं.

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में तो दागी हूँ .....केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद पर अपनी नियुक्ति को सही ठहराने पर आमादा महादागी पीजे थॉमस ने अपने बचाव में जो दलीलें दीं उनसे यही पता चलता है कि वे  न केवल निर्लज्ज हैं बल्कि सही मायनें में इस पद के अयोग्य हैं ...! में चोर तो तू भी चोर वाली युक्ती पर चल रही कांग्रेस की सम्पूर्ण केंद्र सरकार की ; जब जब भी कोई उनकी गलती पकड में आई तब तब ही इसी तरह की निर्लज्जता का परिचय देने में कभी भी संकोच नहीं किया हैं। थामस भी उसी फैक्ट्री से हैं ,,,!! 

      उनके इस तर्क का कोई मूल्य नहीं कि जब दागी सांसद अपने पद पर बने रह सकते हैं तो वह क्यों नहीं? वैसे इस तर्क से यह स्पष्ट हो गया कि वह खुद को दागदार मान रहे हैं। क्या इससे लज्जाजनक और कुछ हो सकता है कि खुद को परोक्ष रूप से दागी मानने के बाद भी थॉमस इस पर अड़े हैं कि उन्हें सीवीसी के पद पर बने रहना चाहिए। बेहतर हो कि कोई उन्हें बताए कि न तो नेताओं एवं नौकरशाहों में तुलना हो सकती है और न ही नौकरशाह जनप्रतिनिधित्व कानून के दायरे में आ सकते हैं। थामस को यह सामान्य जानकारी होनी ही चाहिए कि जनप्रतिनिधित्व कानून चुनाव लड़ने वाले नेताओं के लिए है, नौकरशाहों के लिए नहीं और सीवीसी पर आसीन होने वाले नौकरशाह के लिए तो कदापि नहीं। इस पद पर आसीन होने वाले नौकरशाह से तो यह अपेक्षित है कि वह दागदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन थॉमस अपने दागी होने को अपनी योग्यता की तरह पेश कर रहे हैं। यह अरुचिकर तो है ही, इस बात का परिचायक भी है कि उच्च पदों पर विराजमान होने वाले लोग नैतिक रूप से कितना गिर सकते हैं। थॉमस न केवल दागी सांसदों की ओट में छिप रहे हैं, बल्कि कानून के कुछ अस्पष्ट क्षेत्रों की शरण भी ले रहे हैं। उन्हें न सही केंद्रीय सत्ता को तो इस पर शर्मसार होना ही चाहिए कि उसने जिसे सीवीसी बनाया है वह कितनी ओछी दलीलें देने में लगा हुआ है? ऐसी दलीलें देकर थॉमस एक तरह से इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि वह सीवीसी पद के लिए सर्वथा अयोग्य और अवांछित हैं।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि थॉमस अपने को योग्य बताने के लिए भोंडेतर्क पेश कर रहे हैं और केंद्रीय सत्ता न केवल मौन साधे हुए है, बल्कि जब-तब आम जनता और साथ ही न्यायपालिका को यह समझाने की कोशिश भी करती है कि उसने उन्हें सीवीसी बनाकर कुछ गलत नहीं किया। ऐसा लगता है कि जिस तरह थॉमस को स्वयं की प्रतिष्ठा एवं अपने पद की गरिमा की परवाह नहीं उसी तरह केंद्रीय सत्ता के नीति-नियंता भी लोकलाज का परित्याग कर चुके हैं। केंद्र सरकार के नीति-नियंता यह तो मान रहे हैं कि भ्रष्टाचार के कारण उनकी छवि गिर रही है, लेकिन वे एक भी ऐसे कदम नहीं उठा पा रहे हैं जो छवि निर्माण में सहायक हो सकें। केंद्र सरकार को शर्मिदा करने वाले एक मामले का पटाक्षेप होता नहीं कि उसके पहले दूसरा मामला सामने आ जाता है। केंद्र सरकार एक और स्पेक्ट्रम घोटाले से दो चार होती दिख रही है। हालांकि उसने एस बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता के आरोपों को आधारहीन बताया है, लेकिन इतने मात्र से संदेह भरे सवालों का समाधान नहीं होता। आम जनता के पास इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि केंद्र सरकार न तो भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में समर्थ है और न ही भ्रष्ट एवं दागदार तत्वों पर।

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