संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी): कांग्रेस सरकार का मन का पाप जा नहीं रहा है ...!

- अरविन्द सिसोदिया 

जांच कब से....; के पीछे की असलियत ....
मनमोहन सिंह सरकार कभी जनता के वोट से जीते नहीं , एक बार चुनाव लड़े थे मगर जनता ने उन्हें हरा दिया सो वे अब जनता से बदला लेने का कोई अवसर नहीं चूकते ..! उनके जयादातर कारनामें इसा तरह के हैं की उन्हें देश के इतिहास में अलीबाबा और चालीस चोर की कहावत के दर्जें में दर्ज करेगा!  यह स्पष्ट है की २ जी और ३ जी और एस बैंड स्पेक्ट्रम का कार्यकाल मनमोहन सिंह का है , जांच को इसी समय से करना चाहिए था .., मगर जब तक कांग्रेस में कोई न कोई हल्का पन , टुच्चापन नहीं आये तब तक यह सरकार आगे बडती ही नहीं है ..! २०१० के साल में जो भी घोटाले सामनें आये वे सभी जे पी सी के दायरे की योग्यता रखते हैं .., कारण इन घोटालों में जो राशियाँ हैं और जो लोग सम्मिलित हैं , वे बहुत उंची पहुच वाले हैं ..! देश का धन लूटा गया है ...! मगर कांग्रेस नेत्रत्व नें महज एक राजहठ जो सोनिया जी की बालहठ थी के लिए एक पूरा सत्र  बर्वाद किया..!! अब जब उनकी हठ नहीं चली तो , समय को लेकर हेराफेरी हो रही है ...??? एन डी ए का कोई प्रभावशाली सांसद जे पी सी में न आ पाए इसलिए कभी उसे २००१ से जांच करने को कहते हैं कभी १९९८ से जांच  करने की कहते हैं ...! कांग्रेस सरकार का मन का पाप जा नहीं रहा है ...! 
सरकार 2जी मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कराने को तैयार है। इसकी औपचारिक घोषणा भी बजट सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को हो गई । अत: अब सत्ता पक्ष और विपक्ष जेपीसी का दायरा और अध्यक्ष तय करने की कवायद में लग गए हैं। सूत्रों की मानें तो जेपीसी के दायरे में सिर्फ डी एम् के के ; ए. राजा का कार्यकाल रहे या कांग्रेस के सुखराम के जमाने से जांच हो, इस पर मशक्कत चल रही है। इस मसले पर शिवराज वी. पाटील समिति की अनुशंसा को ध्यान में रखा जाता है तो 2001 से 2010 तक स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया से जुड़े सभी पहलुओं की जांच की जा सकती है। कांग्रेस का एक वर्ग चाहता है कि 1998 से (राजग सरकार के कार्यकाल की शुरुआत से) 2010 तक मामले की जांच जेपीसी के दायरे में होनी चाहिए। भाजपा के नेताओं का कहना है कि उन्हें इस प्रस्ताव पर आपत्ति नहीं होगी। लेकिन अगर जेपीसी का दायरा बढ़ाना ही है तो पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम के कार्यकाल से अब तक (1994-2010) इसकी जांच क्यों नहीं कराई जा सकती।
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हर " जी " के साथ जुड़ा है घोटाला
- संतोष ठाकुर , भास्कर.कॉम 
http://www.bhaskar.com/article/spldb-every-g-is-associated-with-a-scam-1823726.html 
नई दिल्ली. दूरसंचार मंत्रालय और घोटाला एक ही सिक्के के दो पहलू बनते जा रहे हैं। जब भी देश में नई दूरसंचार तकनीक आई या उसका विस्तार हुआ उसके क्रियान्वयन में गड़बड़ी-घपले के आरोप लगते रहे। चाहे फिर वह सुखराम रहे हों, जिनके शासनकाल में 1-जी या लैंडलाइन की उन्नत तकनीक आई या फिर ए राजा जिनके शासनकाल में 2-जी और 3-जी तकनीक आधारित स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ और इस सेवा का विस्तार हुआ। सुखराम 1993 से 1996 तक केंद्र की नरसिंह राव सरकार में दूरसंचार मंत्री थे। उनके समय में देश में लैंडलाइन फोन की उन्नत तकनीक आई। इस तकनीक को उस समय 1-जी के नाम से भी जाना गया था। इसे पहली पीढ़ी की नई तकनीक करार दिया गया।

सुखराम पर आरोप था कि उन्होंने देश में टेलीफोन लाइनों का जाल बिछाने के लिए दिए जाने वाले टेंडर में गड़बड़ी की है। सुखराम को भी सीबीआई ने ही १८ अगस्त 1996 मंे गिरफ्तार किया था। वह तब सांसद थे। जिस समय उन्हें गिरफ्तार किया गया उससे करीब तीन महीने पहले तक (16 मई 1996 तक) वह दूरसंचार मंत्री थे।

सुखराम के बाद देश में मोबाइल फोन तकनीक आई। यह शुरुआती चरण में 1.6 से 1.8 जी तकनीक कहलाई, जबकि उसी दौरान इससे कुछ अधिक उन्नत तकनीक 2-जी आई। इसको लेकर कहा जाता है कि यह असल में 2.5 जी तकनीक है। क्योंकि आधी संख्या की गणना नहीं होती है इसलिए इसे 2-जी तकनीक या दूसरी पीढ़ी की तकनीक कहा गया। बतौर दूरसंचार मंत्री ए राजा को अंतत: इसी 2-जी तकनीक आधारित लाइसेंस व स्पेक्ट्रम आवंटन में धांधली व मनमर्जी के आरोप में न केवल अपना पद गंवाना पड़ा बल्कि उसी सीबीआई के हाथों गिरफ्तार भी होना पड़ा, जो उनसे पहले 1-जी आधारित तकनीक को सर्वसुलभ कराने वाले पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम को गिरफ्तार कर चुकी थी।

घटनाक्रम

22 अक्टूबर 2009 सीबीआई ने केंद्रीय सतर्कता आयोग की ओर से संदर्भ हासिल होने के बाद दूरसंचार मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ स्पेक्ट्रम आवंटन में भूमिका का मामला दर्ज किया

नवंबर 2010 पहला सप्ताह मीडिया में कैग की रपट का हवाला देते हुए खबर आई कि स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी की वजह से सरकार को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

9 नवंबर 2010 संसद का शीतकालीन सत्र शुरू। विपक्षी पार्टियों ने स्पेक्ट्रम घोटाले मंे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग शुरू की

9 नवंबर 2010 राजा ने अपनी इस्तीफा सौंपा

8 दिसंबर 2010 सीबीआई ने राजा के सरकारी निवास के साथ ही पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के निजी सचिव रहे आरके चंदोलिया के घरों पर दबिश दी और कई कागजात जब्त किए।

15 दिसंबर 2010 सीबीआई ने कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया के दफ्तर पर दबिश दी।

24 दिसंबर 2010 सीबीआई ने राजा से नई दिल्ली में पूछताछ की

25 दिसंबर 2010 राजा से लगातार दूसरे दिन भी सीबीआई ने पूछताछ की

31 जनवरी 2011 सीबीआई ने फिर से राजा से पूछताछ की

2 फरवरी 2011 सीबीआई ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के निजी सहायक रहे आरके चंदोलिया को गिरफ्तार किया।
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30 सदस्यीय जेपीसी करेगी 2-जी की जांच 
 
    2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए सरकार द्वारा संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के ऎलान के बाद इसका खाका तैयार हो गया है। सूत्रों के अनुसार समिति में 30 सदस्य होंगे। बताया जा रहा है कि 30 सदस्यीय समिति में लोकसभा से 20 और राज्यसभा से 10 सदस्य होंगे। कुछ देर में इसकी औपचारिक घोषणा होने की संभावना है।
      जेपीसी समिति के अध्यक्ष का नाम तय नहीं हो पाया है। हालांकि, चेयरमैन के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, पीसी चाको और वी किशोर चंद्र देव का नाम सामने आ रहा है। कांग्रेस और भाजपा के सदस्यों के अलावा जेपीसी पैनल में तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा, जदयू, डीएमके पार्टी के भी सदस्य होंगे। उल्लेखनीय है कि मंगलवार को सरकार ने विपक्ष की मांग के आगे झुकते हुए 2-जी घोटाले की जांच जेपीसी से कराने को मंजूरी दे दी थी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद के बजट सत्र के दौरान जेपीसी के गठन का ऎलान किया था। संसद का पूरा शीतकालीन सत्र जेपीसी के चलते हंगामे की भेंट चढ़ गया था। बजट सत्र सुचारू रूप से चल सके, इसलिए सरकार ने अपना रूख बदलते हुए जेपीसी का गठन करने का फैसला किया।

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