होली है भई होली है ......

- अरविन्द सिसोदिया 



कुल मिला कर होली के इस त्यौहार पर हम ईर्ष्या रूपी होलिका को जलादें .. 
तभी इस त्यौहार की सार्थकता है ..!
अवध की होली और राम का चरित्र 
होली राग रंग से भरा ऐसा उल्लास पर्व है जिसका धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय महत्व है। इसमें भारतीय जनमानस का स्वाभाविक व्यक्तित्व झलकता है। हालाँकि यह पर्व प्राचीन काल से आज तक अनेक रूपों में विकसित हुआ है फिर भी हर्ष, उल्लास और उत्सवधर्मिता में कभी कोई कमी नहीं आई।
अवध राम की जन्म स्थली और क्रीड़ा स्थली रही है। उनकी यशोगाथा से भरे अवधी लोकगीतों में लोकमानस की भावनाएँ, आशाएँ, आकांक्षाएँ व कामनाएँ परिलक्षित होती है। इस परिप्रेक्ष्य में डाक्टर महेश अवस्थी द्वारा संपादित 'लोकगीत रामायण' में संकलित लोकगीतों में राम से संबंधित होली का सहज चित्रण देखने को मिलता है। होली के मादक रंग में रंगे हुए चारो भाइयों के होली खेलने का यह दृश्य लोकजीवन और लोकप्रेम की सुरम्य झाँकी प्रस्तुत कर रहा है :
अवध माँ होली खेलैं रघुवीरा।
ओ केकरे हाथ ढोलक भल सोहै, केकरे हाथे मंजीरा।
राम के हाथ ढोलक भल सोहै, लछिमन हाथे मंजीरा।
ए केकरे हाथ कनक पिचकारी ए केकरे हाथे अबीरा।
ए भरत के हाथ कनक पिचकारी शत्रुघन हाथे अबीरा।


अवधी लोकगीतो में राम मिथिलापुर में भी होली खेल रहे हैं, मिथिलापुर की एक चतुर स्त्री अपनी सहेलियों से कह रही है कि राम फिर जनकपुर नही आएँगे और न ही हम लोग अवधपुर जाएँगे इसलिए इनसे खूब जमकर होली खेल ली जाय। जब सीता अपनी सहेलियों के साथ हाथ में पिचकारियाँ लेकर चली तो सीता राम का मुख मोड़ कर सिंहासन पर बैठने का निवेदन करते हुए कहती है कि मैं समुद्र को काटकर उसमें से नदी ले आऊँगी और जलयानों में रंग घोलकर पिचकारी भर-भर कर रंग चलाऊँगी, जैसे सावन की बूँदे पड़ती हैं। और केसर, कुसुम तथा अरगजा चंदन से एक ही पल में आपको सराबोर कर दूँगी। सीता के ऐसे उमंगमय भावों को मुखरित करता है होली का यह लोकगीत :
होरी खेलैं राम मिथिलापुर माँ
मिथिलापुर एक नारि सयानी, सीख देइ सब सखियन का,
बहुरि न राम जनकपुर अइहैं, न हम जाब अवधपुर का।।
जब सिय साजि समाज चली, लाखौं पिचकारी लै कर माँ।
मुख मोरि दिहेउ, पग ढील दिहेउ प्रभु बइठौ जाय सिंघासन माँ।।
हम तौ ठहरी जनकनंदिनी, तुम अवधेश कुमारन माँ।
सागर काटि सरित लै अउबे, घोरब रंग जहाजन माँ।।
भरि पिचकारी रंग चलउबै, बूँद परै जस सावन माँ।
केसर कुसुम, अरगजा चंदन, बोरि दिअब यक्कै पल माँ।।
सीता जी के द्विरागमन के उपरांत अयोध्या में पहली होली पड़ी तब राम और सीता ने सरयू तट पर लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न आदि के साथ होली खेलने का निश्चय किया। सरयू तट पर होली के रंगारंग धमाल में राम हाथ में सोने की पिचकारी लिए हुए हैं, लक्ष्मण के हाथ में अबीर की पुटकी तो भरत के हाथ में रंग गुलाल है। एक तरफ़ शत्रुघ्न के साथ मित्र मंडली तो दूसरी ओर सीता के साथ वधुएँ हैं और उर्मिला के साथ सहेलियों का झुंड। प्रस्तुत होली गीत में इसी का उल्लेख है :
सरजू तट राम खेलैं होली, सरजू तट।
केहिके हाथ कनक पिचकारी, केहिके हाथ अबीर झोली, सरजू तट।
राम के हाथ कनक पिचकारी, लछिमन हाथ अबीर झोली, सरजू तट।
केहिके हाथे रंग गुलाली, केहिके साथ सखन टोली, सरजू तट।
केहिके साथे बहुएँ भोली, केहिके साथ सखिन टोली, सरजू तट।
सीता के साथे बहुएँ भोली, उरमिला साथ सखिन टोली, सरजू तट।


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भविष्य पुराण, नारद, पुराण गृह्य सूत्र तथा जैमिनिय पूर्व मीमाँसा सूत्रोँ मेँ "होली -उत्सव" का सर्व प्रथम वर्णन आया है। चलिए , प्राचीन काल में झांकें ...
हिरण्यकश्यपु राक्षस राज, ईश्वर का अस्तित्त्व नकारते हुए, दिन रात, कुकर्म मेँ निमग्न हैँ जबकि उन्हीँ का पुत्र बालक प्रह्लाद अत्यँत पवित्र ह्र्दय का ईश्वर का परम भक्त है ।
पिता द्वारा अनेक अत्याचार और रोष करने पर भी प्रह्लाद की भक्ति,> अडिग रहती है ! तब खीझ कर, पिता हिरण्यकश्यपु, बुआ "होलिका " को आदेश देते हैँ कि , वह प्रह्लाद को गोद मेँ लेकर अग्नि मेँ प्रवेश करे और बैठ जाये ...
जब कि उसे पता था कि होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि , होलिका को जला नहीँ सकती !
राजाज्ञा का पालन हुआ । होलिका अग्नि मेँ जा बैठीँ और गोद मेँ ईश्वर नाम स्मरण करते बालक भी बैठे ! आश्चर्य !
होलिका की बुरी नियत, वरदान को जुठलाती हुई उसे जलाकर भस्म कर गई जब के प्रह्लाद को तो कुछ भी नहीँ हुआ !
नारायण का नाम स्मरण करते हुए भक्त प्रह्लाद ने पाप पर पुण्य के विजय की कथा पुन: दुहराई
भारत मेँ इसी कथा को याद करते हुए, महिलाएँ पूर्ण चन्द्र "राका " की साक्षी मेँ , अपने परिवारोँ की सुरक्षा व खुशहाली के लिये पूजा करतीँ हैँ । ग्राम प्राँत होँ या शहर, अग्नि प्रज्वलित कर, उसमेँ नारियल, खील, बतासे , कुमकुम , अक्षत का भोग लगाकर आहुति दी जाती है और नारियल की गिरी का प्रसाद खाकर असत्य पर सत्य की विजय का उत्सव "होलिका - दहन " मनाया जाता है ।
दूसरे दिन सुबह से अबीर , गुलाल (जो कभी कभार इत्र से मिलाया हुआ भी होता है) भाल पर टीका लगा कर और गालोँ पर गुलाल मल कर, भारतीय लोग, रँगोँ की होली का खेला खेलते हैँ ।
साथ मेँ गर्म मूग़ की दाल के पकौडे, गुझिया , ठडाई, तरह तरह के पकवान और मिठाईयाँ भी हंसी मजाक भरे माहौल में खाई जातीँ हैँ ।
लोग ढोलक पर थाप देते हुए नृत्य गीत से समाँ बाँधते हैँ और होली रँगीन पानी, ओईल कलर और तरह तरह के रँगोँ से मनाई जाती है । रँग छुडाने नदी या समुँदर मेँ स्नान भी किया जाता है पर कई बार रँग चढा रहता है और कुछ दिनोँ बाद ही छूटता है !
ये प्रथा भारतीय मूल के लोग जहाँ भी गये , जैसे, सूरीनाम, मोरेशीयस, जावा, सुमात्रा, फीजी, श्री लँका, इन्डोनेशिया, युरोप और अमरीका , वहाँ भी अब भारतीय लोग इसे मनाने लगे हैँ । इस प्रकार " होली " , अब एक विश्वव्यापी त्योहार बन चुका है ।
बसँत के आगमन के साथ, गुनगुनी धूप और खुशनुमा वातावरण होली के त्योहार को, और भी रँगीन बना देता है ।
हिन्दी फिल्मोँ मेँ, गीतोँ के माध्यम से होली के उत्सव को खूब प्रचार -प्रसार मिला ! होली से जुडे कई फिल्मी गीत आपके जहन मेँ इस वक्त उभर रहे होँगेँ ! चलिये याद करेँ,.....
फिल्म ' नवरँग ' का ये गीत, नायिका उलाहना देती है " अरे जा रे हट नटखट, ना छू रे मेरा घुँघट, पलट के दूँगी, आज तुझे गाली रे, मुझे समझो ना तुम, भोली भाली रे, "
तो नायक खिलँदडे स्वर मेँ पलट कर गाता है,
" आया होली का त्योहार , उडे रँग की बौछार, तू हे नार नखरेदार, मतवाली रे, आज मीठी लगे रे तेरी गाली रे " ।
लोक गीत और लोक द्रश्य यहाँ कितने सजीव हो उठे हैँ !
फिल्म :' मदर इँडिया' के गीत मेँ " होली आई रे कन्हाई, रँग छलके, सुना दे जरा बाँसुरी " हमारे प्रिय कन्हैया को , जन मन के सँग, नृत्यरत पाते हैँ तो फिल्म ' गोदान' का कलावती राग आधारित गीत " बिरज मेँ होरी खेलत नँद लाला " भी बृजभूमि की लठ्ठमार होली की याद दिलाता है ।
फिल्म ' फागुन' मेँ नायिका "पिया सँग खेलूँ होली " की चाहत मेँ , रँगोँ के खेल मेँ निमग्न है तो फिल्म "आखिर क्यूँ " मेँ " सात रँग मेँ खेल रही है, दिलवालोँ की होली रे " का समूह गान दर्शाया गया है ।
फिल्म "कटी पतँग " मेँ, " आज ना छोडेँगेँ बस हमजोली, खेलेँगेँ हम होली " हमजोलियोँ का मस्तीभरा गीत उभरता है ।
अन्य कई गीत हैँ जिनके मुखडे याद आ रहे हैँ, " तन रँग लो जी , आज मन रँग लो, " और " होलिया मेँ उडे रे गुलाल, " और " लाई है हज़ारोँ रँग होली " जो लोक त्योहार होली का एक और रुप "फगवा "याद दिलाते हैँ ।
" जय जय शिव शँकर, काँटा लगे ना कँकर, एक प्याला तेरे नाम का पिया " गीत , होली के सँग जुडी एक और प्रथा ठँडाई और भाँग पीने का द्र्श्य उजागर करते हैँ , जहाँ राजेश खन्ना और मुमताज भँग के रँग मेँ , डोलते, भागते धूम मचाते हैँ । सन्` १८७० मेँ " होली आई रे" नाम से पूरी फिल्म बनी ! जिसका सँगीत कल्याणजी - आनँदजी की जोडी ने दिया था ।
फिल्म निर्माता यश चोपडा ने अपनी कई फिल्मोँ मेँ होली के द्रश्य प्रस्तुत किये हैँ । फिल्म ' मशाल ' - गीत : "होली आई, होली आई, देखो होली आई रे " फिल्म ''डर ' मेँ गीत : " अँग से अँग लगाना सजन, मोहे ऐसे रँग लगाना "
फिल्म ,' मोहब्बतेँ', गीत : "सोहनी सोहनी अँखियोँवाली " गीत दर्शाये थे परँतु, सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म, 'सिलसिला' " गीत : " रँग बरसे, भीगे चुनरवाली रँग बरसे " जिसे डा. हरिवँश राय "बच्चन जी ने लिखा है और उनके सुप्रसिध्ध अभिनेता पुत्र अमिताभ बच्चन जी ने अपनी प्रेयसी बनीँ सिनेतारिका रेखा के साथ होली के उत्सव मेँ, जहाँ हँसी ठठ्ठा, मजाक मस्ती का सँगम निहित है, बखूबी पर्दे पर निभाया जिसे दर्शकोँ ने खूब, सराहा !
आनेवाले समय मेँ , शायद यही सर्वाधिक लोकप्रिय गीत बना रहेगा !
ऐसे भी भारत मेँ २५ साल पहले और आज 'होली' का रुप बदला है फिल्मेँ समाज का दर्पण तो कभी आनेवाले समय का आइना दीखलातीँ हैँ
फिल्म 'गाईड ' मेँ, एक गीत मेँ कुछ पँक्तियाँ होली पर लीँ गईँ " आई होली आई, सब रँग लाई, बिन तेरे होली भी ना भाये, हाये, " गीत लताजी के स्वर मेँ भीगा ,रस विभोर करने मेँ सफल हुआ ।
फिल्म, 'आप बीती ' मेँ , हेमा मालिनी ने गाया " नीला, पीला, हरा, गुलाबी, कच्चा पक्का रँग डाला रे मेरे अँग अँग " तो कई रँग बिखर कर निखर गये !
'फूल और पत्थर' ' मेँ गीत : ' लाई है हज़ारोँ रँग होली, कोई तन के लिये, कोई मन के लिये " का सँदेसा गूँजा !
फिल्म, ' कोहीनूर ' मेँ , गीत " तन रँग लो जी आज मन रँग लो " की गुहार उठी लेकिन सुमधुर गायिका लताजी और स्वप्न सुँदरी कहलानेवालीँ हेमा मालिनी ने मिलकर, 'शोले' फिल्म के गीत, " होली के दिन , दिल खिल जाते हैँ, रँगोँ मेँ रँग मिल जाते हैँ, गिले शिकवे भूल कर के सभी, दुश्मन भी गले मिल जाते हैँ " को बाजी मारने का मौका दिलाया !
असल जिँदगी मेँ नायक धर्मेन्द्र और हेमा का साथ भी इसकी सफलता का एक कोण था जिसे फिल्म 'राजपूत' मेँ दुबारा वही मस्ती उभारने का मौका दिया गया गीत था, " भागी रे भागी रे ब्रिज बाला, कान्हा ने पकडा, रँग डाला " परँतु 'शोले' फिल्म के सामने इसका रँग फीका पड गया !
फिल्म ' बागबान ' निर्माता रवि चोपडा ने अमिताभ और हेमा मालिनी को गीत दिया, " होली खेले रघुबीरा, अवध मेँ होली खेले, रघुबीरा " जो काफी पसँद किया गया ।
फिल्म 'कामचोर' मेँ जया प्रदा ने माँग की, " मल दे गुलाल मोहे के आई होली आई रे " तब फिल्म ' जख्मी' मेँ सुनील दत्त ने उदास स्वरोँ मेँ गाया कि
" दिल मेँ होली जल रही है " .....
फिल्म ' धनवान ' मेँ " मारो भर भर पिचकारी " की पुकार हुई !
फिल्म ' इलाका ' मेँ माधुरी ने ऐलान किया कि ' आई है होली " ।
मँगल पाँडे मेँ, आमीर खान पर फिल्माया गीत भी होली सँबँधित है ।
अमिताभ का एक और गीत " खई के पान बनारसवाला " भी होली के त्योहार की मस्ती का एक अनूठा रँग लिये गीत है !
किँतु आज की युवा पीढी अक्षय और प्रियँका पर फिल्माया , फिल्म 'वक्त' का गीत " डू मी ए फेवर , लेट्ज़ प्ले होली ' होली के उत्सव को २१ वीँ सदी के मुहाने पर ले आया ! 





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