राम नवमी : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म



अथ श्रीराम जन्म स्तुति

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी,
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी।

लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी,
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी।

कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता,
माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता।

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता,
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता।

ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै,
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै।

उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै,
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै।

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा,
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।

सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा,
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा।

बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार।।


 राम नवमी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चैत्र मास की नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। इसीलिए यह त्योहार चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भगवान श्रीराम के जन्म दिन की स्मृति में मनाया जाता है। इस तिथि को रामनवमी कहा जाता है। 

अयोध्या नगरी में इस दिन 'भये प्रकट कृपाला दीन दयाला' चौपाई से गूंजायमान हो जाया करती है। रामनवमी पर हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अयोध्या पहुंचकर प्रात: चार बजे से ही सरयू नदी में स्नान करके मंदिर में पूजा अर्चना शुरु कर देते हैं। दोपहर के समय बारह बजे से पूर्व यह कार्यक्रम कुछ समय के लिए रोक देते हैं और भगवान श्री राम के प्रतीकात्मक जन्म की तैयारी शुरू हो जाती हैं। जैसे ही दोपहर के बारह बजते हैं पूरी अयोध्या नगरी में भगवान श्रीराम की जय जय कार होने लगती है।
अयोध्या के प्रसिद्ध कनक भवन मंदिर में भगवान श्रीराम का जन्म भव्य तरीके से मनाया जाता है। मंदिरों में बधाई गीत और चौपाई शुरू हो जाती है। श्रद्धालु भी इसका भरपूर आनंद लेते हैं। इस रामनवमी के अवसर पर किन्नर भी श्रीराम के जन्म पर सोहर गाते हैं और धूम धड़ाके से नाचते हैं।

अयोध्या रामनवमी त्योहार के महान अनुष्ठान का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। यहां पर भगवान श्रीराम, उनकी धर्मपत्नी सीता, छोटे भाई लक्ष्मण व भक्त हनुमान की रथ यात्राएं बड़ी धूम धाम से मंदिरों से निकाली जाती हैं। हिन्दू घरों में रामनवमी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद घर में जल छिड़का जाता है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि असुरों के राजा रावण को मारने के लिए भगवान ने श्रीराम का अवतार मनुष्य रूप में लिया। उन्होंने आजीवन मर्यादा का पालन किया इसीलिये उनको मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं। भगवान श्रीराम बहुत बड़े पित्रभक्त थे। अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी वह अपने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए संपूर्ण वैभव को त्याग कर 14 वर्षों के लिए अपने छोटे भई लक्ष्मण और अपनी पत्नी सीता के साथ वन चले गये। वन में जाकर रक्षसों के सबसे बड़े राजा रावण का सर्वनास करके लंका का राज्य विभीषण को सौंपकर वापस अयोध्या आ गये। हनुमान जी एवं वानरराज सुग्रीव भगवान श्रीराम के परमभक्त तथा परममित्र थे।

भगवान श्रीराम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण, शांतिपूर्ण शासन के लिए याद किया जाता है। श्रीराम का शासन (राम राज्य) आज भी शांति व समृद्धि के लिए पर्यायवाची बन गया है। परिस्थिति यह है कि भगवान के आदर्श सिर्फ टी.वी. धरावहिकों और किताबों तक सिमटकर रह गये हैं। यदि वास्तव में राम राज्य स्थापित करना है तो ''जय श्री राम'' जपने से काम नहीं चलेगा वल्कि भगवान श्रीराम के आचरण को अपने जीवन में उतारना होगा। यही इस राम नवमीं का उद्देश्य है।
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करुना-सुख-सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिँ स्रुति सन्ता।
सो मम-हित-लागी, जन-अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकन्ता॥

दया व करुणा के सागर, जन-जन पर अपनी प्रीति रखने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम संपूर्ण जगत पर अपनी कृपा-दृष्टि बनाए रखें, यही कामना है।
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राम  सदा राष्ट्र समाज परिवार में सामान्जस्य रखनें तथा उर्जा भरने के लिए प्रतिबद्ध हैं। किसी भी दुर्धर्ष शत्रु का मुकाबला वे मजबूरी में नहीं अपितु मजबूती से अपना कर्तव्य समझकर करते हैं। राम सचमुच अनुदात्ताओं के विरुद्ध उदात्ताओं के संघर्ष द्वारा “सत्यमेव जयते“ की आर्य घोषणा को साकार करने वाले अग्रदूत हैं। उनका अनुशरण निश्चित ही स्वयं व समस्त जगती के लिये कल्याणकारी है।
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राम नाम स्मरण मात्र से ही कष्टों से छुटकारा : डॉ. रामनाथ

नई दिल्ली। कथाकार डॉ. रामनाथ ओझा ने कहा कि श्रीराम कथा कलयुग में कामधेनु के समान है। कलिकाल में राम नाम स्मरण एवं भागवत कथा के श्रवण मात्र से ही मानव कष्टों से छुटकारा पा सकता है।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस के रूप में अमृत प्रदान किया है। आज के विसंगतिपूर्ण वातावरण में अगर श्रीराम के आर्दश को अपना लिया जाए तो मानस का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।

श्रीरामचरितमानस की व्याख्या करते हुए डॉ. ओझा ने कहा कि भक्त सदैव भागवत भाव में रहता है और नाम उसकी चित्त की वृत्ति के अनुसार होता है। उन्होंने कहा कि श्रीराम के चरित्र को भगवान शिव ने अपने मानस में उतार रखा है, इसीलिए तुलसीदास ने अपने पवित्र ग्रंथ का नाम श्रीरामचरितमानस रखा। उन्होंने कहा कि राम के चरित्र को सुनने, समझने और गुनने से व्यक्ति का कल्याण निश्चित है।

डॉ.ओझा ने श्रीराम के चरित्र की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा कि श्रीराम के चरित्र को सुनने मात्र से मन शांत हो जाता है और आनन्द मिलता है। व्यक्ति के तीनों तापों और छहों विकारों से उत्पन्न दुखों का रामनाम नाश कर देता है।
उन्होंने कथा की परंपरा बताते हुए कहा कि सांख्य दर्शन के अनुसार सभी कार्य के पीछे कोई न कोई कारण आवश्य होता है किन्तु परमात्मा की कृपा अकारण होती है। उन्होंने कर्म की शुद्धता पर बल दिया और कहा कि जितनी कर्म की शुद्धता होगी, भगवान उतनी ही व्यक्ति पर कृपा करेंगे। कर्म करना व्यक्ति के वश में है इसलिए व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए और सब कर्मों को राम (परमात्मा) के अधीन छोड़ देना चाहिए।

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