अम्बेडकर जी पर अडवानी जी के विचार


अम्बेडकर जयन्ती के अवसर पर महू में आयोजित समारोह में श्री आडवाणी जी के भाषण के लिए कुछ बिन्दु

भारतीय जनता पार्टी |  Sunday, 13 April 2008 
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आज अम्बेडकर जयन्ती है। मैं डॉ0 अम्बेडकर की जयन्ती पर उनके जन्म स्थान पर आकर अपने को धन्य मानता हूं।
भारत में किसी महान आत्मा के महानिर्वाण अथवा उनकी जन्मभूमि की एक पवित्र स्थान के रूप में यात्रा करने की हमारी एक प्राचीन और श्रध्दामयी परम्परा रही है।
भारत में तीन स्थान ऐसे हैं जो इस महामानव के जीवन से जुड़कर पवित्र बन गये हैं।
पहला महू है जो डॉ0 अम्बेडकर की जन्मस्थली है। दूसरा नागपुर में दीक्षा भूमि है जहां डॉ0 अम्बेडकर ने अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौध्दधर्म को अपनाया। तीसरा मुम्बई में दादर बीच पर चैत्य भूमि है जहां उनकी समाधि बनाई गई है।
तीन तीर्थ स्थान
मेरे अनुसार, सभी तीनों स्थान-जन्मभूमिदीक्षाभूमि और चैत्यभूमि-तीर्थ स्थानों के रूप में माने जाने के योग्य है।
इन तीनों स्थानों में महू को उतना राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व नहीं मिला है जितना कि अन्य दो स्थानों को। इसलिए मैं मध्य प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को बधाई देता हूं कि उन्होंने डॉ0 अम्बेडकर के जन्म स्थान पर उनकी वपौती मानने के लिए एक भव्य स्मारक तैयार किया है।
डॉ0 अम्बेडकर ने आधुनिक समय में सर्वोत्ताम उदाहरण प्रस्तुत किया है कि कोई भी व्यक्ति अपने जन्म से नहीं बल्कि कर्म से महान बनता है।
उनका व्यक्तित्व अपार विध्दता और उसी तरह, विशाल सामाजिक सक्रियता का एक मिश्रण था। वास्तव में, हरेक जमाने में महान समाज सुधारकों का जीवन किस तरह का रहा है ?
यदि हम महापुरुषों के जीवन का अध्ययन करें तो हम पोयंगे कि वे विभिन्न विचारधाराओं के लोग थे। लेकिन उनमें जो एक बात सामान्य थी, वह थी-उनके मन में मानवता के प्रति गहरा लगाव और परवाह तथा कतिपय सारभौमिक और शाश्वत मूल्यों के लिए उनका समर्थन।
प्रत्येक ऋषि और महात्मा ने समाज का पथ-प्रदर्शन किया।
डॉ0 अम्बेडकर ने भी समाज के सभी लोगों के लिए समानता, सम्मान और न्याय के लिए साहसपूर्वक संघर्ष करके वही कार्य किया।
मैं यहां डॉ0 अम्बेडकर द्वारा व्यक्त किए गये एक प्रारंभिक विचार का उल्लेख करना चाहूंगा :
''एक लोकतांत्रिक स्वरूप की सरकार एक लोकतांत्रिक स्वरूप के समाज की अपेक्षा रखती है। लोकतंत्र के औपचारिक ढांचे का कोई महत्व नहीं है और सामाजिक लोकतंत्र के अभाव में यह वास्तव में ही अनुपयुक्त हो जाएगा।''
डॉ0 अम्बेडकर ने भी ठीक ही कहा था कि सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता के बगैर राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है।
इसलिए, उन्होंने अंग्रेजी शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए भारत के संघर्ष में दलित एवं उपेक्षित वर्गों की सामाजिक आजादी के महत्वपूर्ण आयाम को जोड़ा।
महात्मा गांधी ने भी अपने निजी परिप्रेक्ष्य से वही किया।
जो लोग गांधी जी को डॉ0 अम्बेडकर के मुकाबले खड़े करने की कोशिश करते हैं वे इन दोनों महापुरुषों की स्मृतियों को हानि पहुंचा रहे है।
एक विभिन्न परिप्रक्ष्य से, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी हमारे समाज में अस्पृश्यता और जातीय भेदभाव की बुराई को समाप्त करने की दिशा में इसी प्रयास में योगदान दे रहा है।
स्वर्गीय बाला साहेब देवरस ने एक बार कहा था ''यदि अस्पृश्यता कोई बुराई नहीं है तो संसार में कुछ भी बुरा नहीं है।''
जब तक इस बुराई को समाप्त करने का लक्ष्य पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय का यह मिशन निष्ठा और उत्साह के साथ जारी रहना चाहिए।
आपस में जुड़े तीन आदर्श :
समता, सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता
ऐसा करते समय हमें सामाजिक समरसता की जरूरत को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
भोपाल घोषणापत्र, जिसे मध्य प्रदेश की पूर्व कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2002 में जारी किया था, वास्तव में एक ऐसा दस्तावेज था जिसमें सामाजिक न्याय के नाम पर समाज में विभाजन और असामंजस्य को बढ़ावा दिया है।
वास्तव में, यह एक हिन्दू-विरोधी दस्तावेज था क्योंकि इसमें हिन्दूवाद के खिलाफ पक्षपात का खुलकर प्रचार किया गया।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सम्बन्ध है, हम आपस में जुड़े इन तीनों आदर्शों के प्रति समान रूप से प्रतिबध्द हैं- समता, सामाजिक न्याय और सामाजिक समरसता।
वास्तव में, समतायुक्त और शोषणमुक्त समाज की संरचना भारतीय जनता पार्टी के पांच मूलभूत सिध्दांतों में से एक है।
मित्रों, हमें इस बात को मानना होगा कि इस पवित्र उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु संघर्ष के लिए सतत् और बहुमुखी प्रयासों की जरूरत है।
भारत के संविधान जिसके प्रमुख लेखक डॉ0 अम्बेडकर थे, में अनेक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिध्दान्तों और अनेक उदारवादी उपबंधों का उल्लेख है। इनकी ईमानदारी से अनुपालना की जानी चाहिए।
इसलिए, सकारात्मक कार्रवाई के ऐसे सभी उपायों का स्वागत किया जाना चाहिए जिनका उद्देश्य समाज के उन वर्गों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर अधिकार-सम्पन्न बनाना है, जो ऐतिहासिक कारणों से पिछड़े रह गये हैं।
इसी वजह से, भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत कोटा आरक्षित करने के बारे में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत किया है।
तथापि, यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि ये उपाय केवल आंशिक हैं, लेकिन जरूरी हैं और एक समतावादी और न्यायोचित समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर एक उचित कदम है।
सब जाति समान, सब जाति महान्
सामाजिक, आर्थिक और प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है जिससे उन वंचित तबकों के करोड़ों लोगों को गरीबी और पिछड़ेपन के शाप से मुक्त करा सकें।
समाजिक क्षेत्र में, हमें जाति आधारित भेदभाव से लड़ने के लिए निस्संकोच और अथक संघर्ष करना चाहिए। डॉ0 अम्बेडकर के समाजिक लोकतंत्र के दर्शन को आगे बढ़ाने के लिए हमें यह नारा लोकप्रिय बनाना चाहिए और उसे व्यवहार में भी लाना चाहिए :
'सब जाति समान, सब जाति महान्'।
आर्थिक क्षेत्र में हमें फायदेमंद रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे, कृषि और अन्य परम्परागत धंधों जिन पर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के करोड़ों लोग अभी भी निर्भर हैं में सुधार और नवीनीकरण करना होगा। और साथ ही, भारत के विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों से जुड़ी समृध्दि के नये अवसर खोलने होंगे।
शिक्षा, समाज के सभी वर्गों बल्कि उन लोगों के लिए जो पिछड़ गये हैं की प्रगति के मार्गों को खोलने का एक साधारण सा उपाय है। इसलिए समाज के सभी वर्गों के लिए विशेषकर जो विकास में पिछड़ गये है, उनको वरीयता देते हुए सभी स्तरों पर-प्राथमिक स्तर से लेकर स्नात्कोत्तर स्तर तक-गुणात्मक शिक्षा के अवसरों में भारी वृध्दि करने का समय आ गया है।
मित्रों, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र के इन उद्देश्यों को सुशासन और अच्छी राजनीति के बगैर हासिल नहीं किया जा सकता।
आखिरकार, कांग्रेस पार्टी ने भारत पर पांच दशकों से ज्यादा शासन किया है। इस अवधि में अनुसूचित जाति, जनजातियों और गरीबों की हालत में महत्वपूर्ण सुधार क्यों नहीं हुआ ?
यदि देश का नेतृत्व ईमानदार और निष्ठावान नहीं है; यदि सरकार सही नीतियां और कार्यक्रम नहीं अपनाती है यदि वह मशीनरी जिसका काम इन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने का है, भ्रष्ट और जन-विरोधी है; और यदि लोग सरकार के कामकाज में भागीदारी करने की इच्छा से प्रभावित नहीं है तो हमें गरीबों ओर पिछड़े वर्गों को स्थिति में सुधार की ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
इसलिए, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और समाज के अन्य वर्गों के गरीबों के लिए समय आ गया है कि वे-केन्द्र में और राज्यों में-कांग्रेस को पूरी तरह नकार दें।
मध्य प्रदेश में शीघ्र ही नई विधानसभा के चुनाव होने वाले है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। इन अच्छे कामों को और ज्यादा उत्साह से जारी रखने के लिए इसे दुबारा से सेवा का मौका देने की जरूरत है।
सुशासन और अच्छी राजनीति की जड़ों से निकली एकात्मक सोच
अम्बेडकर जयंती के इस पुण्य अवसर पर मैं फिर से दोहराता हूं कि भारतीय जनता पार्टी के पास भारतीय समाज के विकास की एकात्मक दृष्टि है। वास्तव में, हमारी ही
पार्टी है जिसके पास विकास की एकात्मक दृष्टि है जिसकी जड़ें हमारे राष्ट्रीय मूल्यों तथा प्रगतिशील राष्ट्रीय परम्पराओं में हैं।
आज, अम्बेडकर जयंती के अवसर पर मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि हमारी पार्टी विकास की इस एकात्मक दृष्टि को पूरी निष्ठा तथा प्रतिबध्दता से लागू करेगी। इसके लिए यह कदम उठाएंगे कि :
  • हम, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के अपने बन्धुओं के पास पहले की तुलना में ज्यादा से ज्यादा पहुंचेंगे।
  • हमारी राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकतम लाभ के लिए पहले से अधिक नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों को बनाएगी तथा लागू करेगी।
  • सवर्ण वर्गों और मजहबी अल्पसंख्यकों सहित समाज के अन्य गरीब तथा जरूरतमंद वर्गों की चिंता पहले से और ज्यादा करेगी।
  • कांग्रेस पार्टी के निकम्मे शासन के दु:खद रिकार्ड; धीमे तथा विषमता वाले विकास; और भ्रष्टाचार, अवसरवाद तथा तुष्टीकरण की राजनीति के चलते यह जरूरी हो गया है कि सुशासन और अच्छी राजनीति पर पहले से ज्यादा ध्यान दिया जाए। और भारतीय जनता पार्टी इसे करेगी।
  • धन्यवाद ..! 

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