विदेशी ताकतों से प्रेरित.. हिन्दुओं को समूल समाप्त करने की योजना !!



-चम्पतराय
संयुक्त महामंत्री-विश्व हिन्दू परिषद
1. भारत सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किए गए इस बिल का नाम है ‘‘साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक – 2011’’
2. इस प्रस्तावित विधेयक को बनाने वाली टोली की मुखिया हैं श्रीमती सोनिया गांधी और इस टोली में हैं सैयद शहाबुद्दीन जैसे मुसलमान, जॉंन दयाल जैसे इसाई और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे धर्मनिरपेक्ष, इसके अतिरिक्त अनेक मुसलमान, इसाई और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दू हैं। सोनिया गांधी के अतिरिक्त टोली का कोई और व्यक्ति जनता के द्वारा चुना हुआ जनप्रतिनिधि नहीं है। विधेयक तैयार करने वाली इस टोली का नाम है ‘‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’’।
3. विधेयक का क्या उद्देश्य है, यह प्रस्तावना विधेयक में कहीं लिखी नहीं गयी।
4. विधेयक का खतरनाक पहलू यह है कि इसमें भारत की सम्पूर्ण आबादी को दो भागों में बाँट दिया गया है। एक भाग को ‘‘समूह’’ कहा गया है, तथा दूसरे भाग को ‘‘अन्य’’ कहा गया है। विधेयक के अनुसार ‘‘समूह’’ का अर्थ है धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक (मुसलमान व इसाई) तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति, इसके अतिरिक्त देश की सम्पूर्ण आबादी ‘‘अन्य’’ है। अभी तक समूह का तात्पर्य बहुसंख्यक हिन्दू समाज से लिया जाता रहा है, अब इस बिल में मुस्लिम और ईसाई को समूह बताया जा रहा है, इस सोच से हिन्दू समाज की मौलिकता का हनन होगा।
विधेयक का प्रारूप तैयार करने वाले लोगों के नाम व उनका चरित्र पढ़ने व उनके कार्य देखने से स्पष्ट हो जायेगा कि ‘‘समूह’’ में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को जोड़ने का उद्देश्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति के प्रति आत्मीयता नहीं अपितु हिन्दू समाज में फूट डालना और भारत को कमजोर करना है।
5. यह कानून तभी लागू होता है जब अपराध ‘‘समूह’’ (मुसलमान अथवा इसाई) के प्रति ‘‘अन्य’’ (हिन्दू) के द्वारा किया गया होगा। ठीक वैसा ही अपराध ‘‘अन्य’’ (हिन्दू) के विरूद्ध ‘‘समूह’’ (मुसलमान अथवा इसाई) के द्वारा किये जाने पर इस कानून में कुछ भी लिखा नहीं गया। इसका एक ही अर्थ है कि तब यह कानून उसपर लागू ही नही होगा। इससे स्पष्ट है कि कानून बनाने वाले मानते है कि इस देश में केवल ‘‘अन्य’’ अर्थात हिन्दू ही अपराधी हैं और ‘‘समूह’’ अर्थात मुसलमान व इसाई ही सदैव पीड़ित हैं।
6. कोई अपराध भारत की धरती के बाहर किसी अन्य देश में किया गया, तो भी भारत में इस कानून के अन्तर्गत ठीक उसी प्रकार मुकदमा चलेगा मानो यह अपराध भारत में ही किया गया है। परन्तु मुकदमा तभी चलेगा जब मुसलमान या इसाई शिकायत करेगा। हिन्दू की शिकायत पर यह कानून लागू ही नहीं होगा।
7. विधेयक में जिन अपराधों का वर्णन है उन अपराधों की रोकथाम के लिए यदि अन्य कानून बने होंगे तो उन कानूनों के साथ-साथ इस कानून के अन्तर्गत भी मुकदमा चलेगा, अर्थात एक अपराध के लिए दो मुकदमें चलेंगे और एक ही अपराध के लिए एक ही व्यक्ति को दो अदालतें अलग-अलग सजा सुना सकती हैं।
8. कानून के अनुसार शिकायतकर्ता अथवा गवाह की पहचान गुप्त रखी जायेगी अदालत अपने किसी आदेश में इनके नाम व पते का उल्लेख नहीं करेगा, जिसे अपराधी बनाया गया है उसे भी शिकायतकर्ता की पहचान व नाम जानने का अधिकार नहीं होगा इसके विपरीत मुकदमें की प्रगति से शिकायतकर्ता को अनिवार्य रूप से अवगत कराया जायेगा।
9. मुकदमा चलने के दौरान अपराधी घोषित किए गए हिन्दू की सम्पत्ति को जब्त करने का आदेश मुकदमा सुनने वाली अदालत दे सकती है। यदि हिन्दू के विरूद्ध दोष सिद्ध हो गया तो उसकी सम्पत्ति की बिक्री करके प्राप्त धन से सरकार द्वारा मुकदमें आदि पर किए गए खर्चो की क्षतिपूर्ति की जायेगी।
10. हिन्दू के विरूद्ध किसी अपराध का मुकदमा दर्ज होने पर अपराधी घोषित किए हुए हिन्दू को ही अपने को निर्दोष सिद्ध करना होगा अपराध लगाने वाले मुसलमान, इसाई को अपराध सिद्ध करने का दायित्व इस कानून में नहीं है जब तक हिन्दू अपने को निर्दोष सिद्ध नहीं कर पाता तबतक इस कानून में वह अपराधी ही माना जायेगा और जेल में ही बंद रहेगा।
11. यदि कोई मुसलमान या पुलिस अधिकारी शिकायत करे अथवा किसी अदालत को यह आभास हो कि अमुक हिन्दू इस कानून के अन्तर्गत अपराध कर सकता है तो उसे उस क्षेत्र से निष्कासित (जिला के बाहर) किया जा सकता है।
12. इस कानून के अन्तर्गत सभी अपराध गैर जमानती माने गए है। गवाह अथवा अपराध की सूचना देने वाला व्यक्ति अपना बयान डाक से अधिकृत व्यक्ति को भेज सकता है इतने पर ही वह रिकार्ड का हिस्सा बन जायेगा और एक बार बयान रिकार्ड में आ गया तो फिर किसी भी प्रकार कोई व्यक्ति उसे वापस नहीं ले सकेगा भले ही वह किसी दबाव में लिखाया गया हो।
13. कानून के अनुसार हिन्दूओं पर मुकदमा चलाने के लिए बनाये गए विशेष सरकारी वकीलों के पैनल में एक तिहाई मुस्लिम वा इसाई वकीलों का रखा जाना सरकार स्वयं सुनिश्चित करेगी।
14. कानून के अनुसार सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति लेना आवश्यक नहीं होगा।
15. कानून को लागू कराने के लिए एक ‘‘प्राधिकरण’’ प्रान्तों में व केन्द्र स्तर पर बनेगा जिसमें 7 सदस्य रहेंगे, प्राधिकरण का अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अनिवार्य रूप से मुसलमान या इसाई होगा, प्राधिकरण के कुल 7 सदस्यों में से कम से कम 4 सदस्य मुसलमान या इसाई होंगे। यह प्राधिकरण सिविल अदालत की तरह व्यवहार करेगा, नोटिस भेजने का अधिकार होगा, सरकारों से जानकारी मॉंग सकता है, स्वयं जॉंच करा सकता है, सरकारी कर्मचारियों का स्थानान्तरण करा सकता है तथा समाचार पत्र, टी.वी.चैनल आदि को नियंत्रित करने का अधिकार भी होगा। इसका अर्थ है किसी भी स्तर पर हिन्दू न्याय की अपेक्षा न रखे, अपराधी ठहराया जाना ही उसकी नियति होगी। यदि मुस्लिम/इसाई शिकायतकर्ता को लगता है कि पुलिस न्याय नहीं कर रही है तो वह प्राधिकरण को शिकायत कर सकता है और प्राधिकरण पुनः जॉंच का आदेश दे सकता है।
16. कानून के अनुसार शिकायतकर्ता को तो सब अधिकार होंगे परन्तु जिसके विरूद्ध शिकायत की गई है उसे अपने बचाव का कोई अधिकार नहीं होगा वह तो शिकायतकर्ता का नाम भी जानने का अधिकार नहीं रखता।
17. प्रस्तावित कानून के अनुसार किसी के द्वारा किए गए किसी अपराध के लिए उसके वरिष्ठ (चाहे वह सरकारी अधिकारी हो अथवा किसी संस्था का प्रमुख हो, संस्था चाहे पंजीकृत हो अथवा न हो) अधिकारी या पदाधिकारी को समान रूप से उसी अपराध का दोषी मानकर कानूनी कार्यवाई की जायेगी।
18. पीडित व्यक्ति को आर्थिक मुआवजा 30 दिन के अंदर दिया जायेगा। यदि शिकायतकर्ता कहता है कि उसे मानसिक पीडा हुई है तो भी मुआवजा दिया जायेगा और मुआवजे की राशि दोषी यानी हिन्दू से वसूली जायेगी, भले ही अभी दोष सिद्ध न हुआ हो। वैसे भी दोष सिद्ध करने का दायित्व शिकायतकर्ता का नहीं है। अपने को निर्दोष सिद्ध करने का दायित्व तो स्वयं दोषी का ही है।
19. इस कानून के तहत केन्द्र सरकार किसी भी राज्य सरकार को कभी भी आन्तरिक अशांति का बहाना बनाकर बर्खास्त कर सकती है।
20. अलग-अलग अपराधों के लिए सजाए 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष, 12 वर्ष, 14 वर्ष तथा आजीवन कारावास तक हैं साथ ही साथ मुआवजे की राशि 2 से 15 लाख रूपये तक है। सम्पत्ति की बाजार मुल्य पर कीमत लगाकर मुआवजा दिया जायेगा और यह मुआवजा दोषी यानी हिन्दू से लिया जायेगा।
21. यह कानून जम्मू-कश्मीर सहित कुछ राज्यों पर लागू नहीं होगा परन्तु अंग्रेजी शब्दों को प्रयोग इस ढंग से किया गया है जिससे यह भाव प्रकट होता है मानो जम्मू-कश्मीर भारत का अंग ही नहीं है।
22. यह विधेयक यदि कानून बन गया और कानून बन जाने के बाद इसके क्रियान्वयन में कोई कठिनाई शासन को हुई तो उस कमी को दूर करने के लिए राजाज्ञा जारी की जा सकती है; परन्तु विधेयक की मूल भावना को अक्षुण्ण रखना अनिवार्य है साथ ही साथ संशोधन का यह कार्य भी कानून बन जाने के बाद मात्र दो वर्ष के भीतर ही हो सकता है।
23. कानून के अन्तर्गत माने गए अपराध निम्नलिखित है-
डरावना अथवा शत्रु भाव का वातावरण बनाना, व्यवसाय का बहिष्कार करना, आजीविका उपार्जन में बाधा पैदा करना, सामूहिक अपमान करना, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, निवास आदि सुविधाओं से वंचित करना, महिलाओं के साथ लैंगिक अत्याचार। विरोध में वक्तत्व देना अथवा छपे पत्रक बॉंटने को घृणा फैलाने की श्रेणी में अपराध माना गया है। कानून के अन्तर्गत मानसिक पीडा भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है जिसकी हर व्यक्ति अपनी सुविधानुसार व्याख्या करेगा।
24. इस कानून के अन्तर्गत अपराध तभी माना गया है जब वह ‘‘समूह’’ यानी मुस्लिम/इसाई के विरूद्ध किया गया हो अन्यथा नहीं अर्थात यदि हिन्दुओं को जान-माल का नुकसान मुस्लिमों द्वारा पहुंचाया जाता है तो वह उद्देश्यपूर्ण हिंसा नहीं माना जायेगा, कोई हिन्दू मारा जाता है, घायल होता है, सम्पत्ति नष्ट होती है, अपमानित होता है, उसका बहिष्कार होता है तो यह कानून उसे पीड़ित नही मानेगा। किसी हिन्दू महिला के साथ मुस्लिम दुराचारी द्वारा किया गया बलात्कार लैंगिक अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा।
25. ‘‘समूह’’ में अनुसूचित जाति जनजाति का नाम जोडना तो मात्र एक धोखा है, इसे समझने की आवश्यकता है। यह नाम जोड़कर उन्होंने हिन्दू समाज को कमजोर करने का भी काम किया।
26. यदि शिया और सुन्नी मुस्लिमों में, मुस्लिमों व इसाईयों में अथवा अनुसूचित जाति-जनजाति का मुस्लिमों/इसाईयों से संघर्ष हो गया अथवा किसी मुस्लिम दुराचारी ने किसी मुस्लिम कन्या के साथ बलात्कार किया तब भी यह कानून लागू नहीं होगा।
27. प्रत्येक समझदार व्यक्ति इस बिल को पढे, इसके दुष्परिणामों को समझे, जिन लोगों ने इसका प्रारूप तैयार किया है उनके मन में हिन्दू समाज के विरूद्ध भरे हुए विष को अनुभव करें और लोकतांत्रिक पद्धति के अन्तर्गत वह प्रत्येक कार्य करें ताकि यह बिल संसद में प्रस्तुत ही न हो सके और यदि प्रस्तुत भी हो जाये तो किसी भी प्रकार स्वीकार न हो। इस कानून की भ्रूण हत्या किया जाना ही देशहित में है।
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