भारत का बड़ा भू भाग बचाने वाले : डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी

स्वतंत्र भारत में राष्ट्रहित के प्रथम राजनैतिक बलिदानी

देश का बड़ा भू भाग बचाने वाले डा. मुखर्जी की
पुण्यतिथि 23 जून एवं जयन्ति 6 जुलाई पर विशेष
स्वतंत्र भारत में राष्ट्रहित के प्रथम राजनैतिक बलिदानी  
- अरविन्द सीसौदिया
  Dr. Syama Prasad Mukherjee, who saved a large part of the india
 देश की आजादी का दम भरते कांग्रेसी नेता नहीं थकते हैं, जबकि सच यह है कि कांग्रेस की सत्ता लोलुपता ने ही देश को खण्डित किया है। विभाजित किया। जो लोग भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं, वे सीना ठोक कर कह सकते हैं कि भारत का एक बड़ा भूभाग पाकिस्तान में जाने से बचाने वाले महानायक डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे और हमारे आदर्श हैं। उनके ही कारण आज आधा बंगाल, आधा पंजाब और पूरा कश्मीर भारत का अंग है।

 23 जून उनका बलिदान दिवस है एवं 6 जुलाई उनकी जयन्ति हे। हम सभी देशवासी उन्हे श्रृद्धापूर्वक नमन करते हैं।

पाक से बड़े भू भाग को छीन लेने वाले: डा. मुखर्जी

 इन्हीं डा. मुखर्जी के नेतृत्व में कश्मीर को दी गई विशेष अस्थायी धारा 370 को हटाने तथा उस वक्त मौजूद व्यवस्था में कश्मीर से प्रधानमंत्री पद खत्म करने, कश्मीर का अलग झण्डा और अलग विधान समाप्त करने के लिए संघर्ष किया गया, जिसके लिए उन्होंने नारा दिया था ‘एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान, नहीं चलेंगे-नहीं चलेंगे।’ इस आंदोलन में उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया, बाद में शेख अब्दुल्ला को संरक्षण देने वाले पंडित नेहरू और कांग्रेस सरकार को, देश से गद्दारी कर रहे शेख अब्दुल्ला को, डाॅ. मुखर्जी के बलिदान के मात्र कुछ माह बाद ही गिरफ्तार करना पडा। कश्मीर से प्रधानमंत्री पद व अलग झण्डा समाप्त हो गया। डाॅ. मुखर्जी के बलिदान की बदौलत सारे देश का ध्यान कश्मीर पर केन्द्रित हुआ और कांग्रेस कार्यवाहियों को मजबूर हुई और उस बलिदान का सुखद परिणाम यह है कि कश्मीर आज भी भारत का अभिन्न अंग है। मोदी सरकार नें धारा 370 समाप्त कर भारत का पूर्ण अंग जम्मू और कश्मीर को बना दिया है। कुल मिला कर भारत का बडा भू भाग पाक में जाने से बचाने वाले वे महानायक मुखर्जी थे।
 
 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुखर्जी के स्वप्न को पूरा किया

भाजपा के नाते हमें गर्व है कि , डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के अध्यक्ष के नाते जिस जम्मू और कश्मीर प्रांत के भारत में पूर्ण विलय के लिये आन्दोलन प्रारम्भ किया और जम्मू और कश्मीर में ही अपने प्राणों का बलिदान दिया। न केवल उस आन्दोलन को लगातार जारी रखा बल्कि जैसे ही संसद में अनुकूल परिस्थिती बनीं तत्काल भाजपा की नरेन्द्र मोदी नेतृत्व सरकार नें उसे भारत का पूर्ण अंग बना लिया गया है। भाजपा नें अपने नारे और संघर्ष को पूरा करके दिखाया।

जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है।
जो कश्मीर हमारा है वह सारे का सारा है।

हम भाग्यशाली भाजपा कार्यकर्ता हैं कि हमनें जम्मू और कश्मीर को किन्तु परन्तु से मुक्त भारत का पूर्णअंग बनते देखा है। इसके लिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित समस्त भाजपा धन्यवाद की पात्र है और इस सफलता के लिये भाजपा का एक एक कार्यकर्ता गौरवान्वित है।
 
डा. मुखर्जी: जीवन परिचय
 पिता बंगाल के सुप्रसिद्ध न्यायविद् , शिक्षा शास्त्री एवं राजनेता तथा उपकुलपति कलकत्ता विश्वविद्यालय के सर आशुतोष मुखर्जी थे, माता श्रीमती योगमाया देवी की पावन कोख से डा. श्यामाप्रशाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ। उनका विवाह श्रीमती सुधा देवी से हुआ, जिनका 1933 में उनकी पत्नि का देहान्त हो गया। उनके दो पुत्र एक पुत्री थी।
 1921 में बी.ए. अंग्रेजी में किया, 1923 में बंगला में एम.ए. किया और 1941 में बैरिस्टर बन गये थे। उन्होंने बंगवाणी पत्रिका निकाली, वे कई पत्रों में लेख लिखते थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट का चुनाव जीता। विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा परिषद के प्रधान, आर्ट, साइंस फैकल्टी के डीन रहे तथा मात्र 34 वर्ष की आयु में उपकुलपति नियुक्ति हुए।

 न्यायशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैण्ड गये, वहाँ से वे बैरिस्टर बने, उन्होंने परीक्षा व बिना काॅलेज प्रवेश के परीक्षा देने की पद्यति विकसित की, बालिकाओं के लिए तथा सैनिक शिक्षा के लिए अलग से पाठ्यक्रम बनवाये। कलकत्ता एवं काशी विश्व हिन्दू विश्वविद्यालय ने उन्हें डाक्ट्रेट की उपाधी दी। उन्होंने कुछ समय वकालत भी की।
 
राजनीति में पदार्पण
 वे 1929 में बंगाल विधानसभा के लिए कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव जीते, 1930 में कांग्रेस की बहिष्कार योजना के कारण त्यागपत्र दे दिया। 1930 में ही कुछ दिनों बाद में हुए चुनावों में, वे स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़े और जीते। 1937 में कम्यूनल एवार्ड पर आधारित नई विधानसभाओं के चुनाव हुए थे, बंगाल की 250 सीटों में 80 पर हिन्दू जीते थे, कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से हाथ मिलाया था, जिसके चलते हिन्दुओं के आत्मसम्मान पर गहरा कुठाराघात हुआ था।  मुस्लिम गुण्डार्गदी के आगे नतमस्तक कांग्रेस से परेशान मुखर्जी 1939 में हिन्दू महासभा के प्रधान बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर से मिले,उन्हें महासभा का अखिल भारतीय उपाध्यक्ष चुना गया। वे 1940 से 1944 तक  हिन्दू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष व बंगाल के प्रांतीय अध्यक्ष रहे।
 
 1941 में वे बंगाल की प्रांतीय सरकार के फजलूल हक मंत्रीमण्डल में वित्तमंत्री बनाये गये। बाद में 1942 में उन्होने गवर्नर का विरोध करते हुए मंत्रीमण्डल से इस्तीफा दे दिया था। बिहार में हिन्दू महासभा के अधिवेशन पर प्रतिबंध लगा दिया, मुखर्जी ने विरोध करते हुए गिरफ्तारी दी, उन्हे डी आई आर में कैद कर रिहा किया गया। उन्होने क्रिप्स मिशन में भाग लिया।
 
राष्ट्रीय राजनीति प्रमुख भूमिका में
 1946 में वे संविधान सभा के लिये बंगाल से निर्वाचित हुए, बंगाल का हिन्दू बहुल हिस्सा भारत में रहे इस हेतु जनसंर्घष किया, इसी की देखा देख पंजाब में भी हिन्दू बहुल इलाके भारत में रखने के लिए जनसंर्घष भडक उठा और अन्तः पंजाब और बंगाल के हिन्दू बहुल हिस्से भारत के लिए बचा लिए गये। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में उन्हे उद्योग एवं आपूर्ती मंत्री बनाया गया। 1950 में उन्होने पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरूद्ध नेहरू सरकार की गंभीरतम गैर जिम्मेवाराना रवैये से क्षुब्ध हो कर त्यागपत्र दे दिया और बंगाल में पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक सभापतित्व किया तथा अखिल भारतीय अध्यक्ष बनें। 1952 में कलकत्ता दक्षिण से लोकसभा चुनाव लडे व जीते। 1952 में ही संसद में नेशनल डेमोक्रेटिक मोर्चा बनाया गया, जिसके वे प्रमुख बने। 1953 में कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय के पक्ष में आंदोलन का राष्ट्रीय नेतृत्व किया, परमिट व्यवस्था को भंग करते हुये कश्मीर प्रवेश कर गिरफ्तारी दी, 23 जून को उन्हे हाईकोर्ट रिहा कर सकती थी, सो उनकी अर्द्धरात्री में 23 जून के प्रवेश पर ही उनकी आश्चर्य चकित करने वाली मेडीकली हत्या करवा दी गई। क्योंकि वे रिहा होकर दिल्ली पहुंचते तो उनका राजनैतिक कद पं.नेहरू से ऊँचा हो जाता और नेहरू के प्रधापमंत्री पद को खतरा हो जाता।

मुस्लिम लीग के पक्षधरों की हवा निकाली
 भारतीय विधान परिषद की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, सोमवार 1946 में ‘‘कांस्टीट्यूशन हाॅल, नई दिल्ली में प्रातः 11 बजे बैठी। आचार्य जे.बी. कृपलानी ने डाॅ. सच्चिदानन्द सिन्हा को अस्थायी सभापति हेतु आसन ग्रहण करने आमंत्रित किया और सभापति के रूप में सिन्हा ने प्रथम भाषण की समाप्ति के पूर्व इकबाल कें शब्दों से उन्होंने मातृभूमि को नमन, हिंदू सभ्यता को नमन किया था।

 यूनां, मिस्र, रोमां, सब मिट गये जहां से,
 बाकी मगर है फिर भी, नामो निशां हमारा,
 कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
 सदियों रहा है, दुश्मन दौरे जहां हमारा।। 

 इसी संविधान सभा की दिनांक 13 दिसम्बर 1946 की बैठक में पं.जवाहर लाल नेहरू ने आजाद भारत के ‘‘लक्ष्य सम्बन्धी’’ प्रस्ताव रखा था, उसका विरोध डाॅ. एम.आर. जयकर ने एक संशोधन प्रस्ताव के द्वारा यह कहते हुए किया कि ”बहिष्कार कर रहे मुस्लिम लीग सदस्यों और रियासतों के प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति को लेकर परोक्ष स्थगन प्रस्ताव संशोधन के रूप में रखा, जिसका प्रभाव पं. नेहरू के महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर चर्चा को स्थगित कर देना था।“
 
 डाॅ. जयकर के इस राष्ट्र विरोधी संशोधन के विरू( सरदार वल्लभभाई पटेल के स्पष्टीकरण के बावजूद बहस जारी रही, तब डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बहस में भाग लेते हुए, मुस्लिम लीग व रियासतों के प्रतिनिधि की अनुपस्थिति पर डाॅ. जयकर की आपत्ति के विरू( तर्क दिया कि ‘‘कल्पना कीजिये कि डाॅ. जयकर मेजबान है और आप 6 मेहमानों को दावत देते हैं। पांच मेहमान तो आते हैं पर एक अनुपस्थित रहता है। इस हालत में क्या डाॅ जयकर उन पांच मेहमानों को भूखा रखेंगे और यह कहकर घर से बाहर कर देंगे कि ‘लिये एक मेहमान नहीं आये और अब आपको भोजन नहीं दिया जा सकता।’ निश्चित ही वह ऐसा नहीं करेंगे। यहां भी लोग आये हैं, उनकी स्वतंत्रता की भूख तृप्त करनी होगी।’’
 
 उन्होंने बहस में आगे कहा ‘‘पर मुस्लिम लीग को यहां आने से रोका क्यों जाता है? मेरा तो यह अभियोग है कि ब्रिटेन का रूख ही ऐसा है कि उससे बढ़ावा पाकर मुस्लिम लीग यहां नहीं आ रही है। मुस्लिम लीग को इस विश्वास के लिए बढ़ावा मिलता है कि अगर वह विधान परिषद में नहीं शामिल होती है तो वह विधान परिषद के फैसले को रद्द करने में कामयाब हो सकती है। यह विशेषाधिकार किसी न किसी रूप में फिर मुस्लिम लीग के हाथ आ गया है और वही खतरा है जो इस महती परिषद की भावी कार्यवाही पर छाया हुआ है। सभापति जी, मैं विस्तार में नहीं जाऊंगा क्योंकि न तो समय है और न यह अवसर है कि ब्रिटिश मंत्रि प्रतिनिधिमंडल के वक्तव्य की विभिन्न बातों पर मैं बहस करूं। पर मैं इतना अवश्य कहूंगा कि यद्यपि फिलहाल विधान परिषद का निर्माण ब्रिटेन ने किया है पर एक बार अस्तित्व में आ जाने पर इसे इस बात का पूरा अधिकार है कि अगर वह चाहे तो भारत की स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए तथा जाति, धर्म और सम्प्रदाय को भूलकर समूची जनता की भलाई के लिए जो भी आवश्यक और उचित समझती हो, करे।’’ ( हर्षध्वनि )
 
 .........उन्होने इस बहस के दौरान ब्रिटिश कूटनीति और चालबाजी को आडे़ हाथों लेते हुए कहा “अभी कल रात लार्ड साइमन ने यह आश्चर्यप्रद घोषणा की है कि दिल्ली में समवेत होने वाली विधान परिषद (संविधान निर्माण सभा) में तो केवल सवर्ण हिन्दू ही हैं। गत कई दिनों के अन्दर विलायत से इतने झूठे वक्तव्य निकले हैं कि उनकी संख्या बतानी मुश्किल है। आखिर इस सभा में किसके प्रतिनिधि उपस्थित है ? हिन्दुओं के प्रतिनिधि हैं और कुछ मुसलमानों के भी हैं। मुस्लिम प्रधान सीमी प्रांत के प्रतिनिधि भी यहां मौजूद हैं। ये वहां की उस हुकूमत के प्रतिनिधि की हैसियत से आये हैं जो मुस्लिम लीग के बावजूद भी सीमा प्रांत में शासन चला रहीं है। यहां आसाम के भी प्रतिनिधि हैं, जिसे मिस्टर जिन्ना अपने काल्पनिक पाकिस्तान का एक भाग मानते हैं। इस प्रांत के भी बहुत से  प्रतिनिधि यहां मौजूद हैं। इस सभा में हरिजन भी उपस्थित है। इस परिषद के सभी हरीजन प्रतिनिधि यहां मौजूद हैं। डाॅ भीमराव अम्बेडकर भी यहां मौजूद है।” ( हर्ष ध्वनी )
 
 उन्होने आगे इसे जारी रखते हुये कहा “हो सकता है वे हमसे सभी बातों पर सहमत न हों, पर जब उन स्वार्थों एवं हितों पर विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे, जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं तो हमें विश्वास है कि हम उनको भी (डाॅ.अम्बेडकर को) अपने पक्ष में कर लेंगे।” (खूब हर्ष ध्वनी) अन्य हरीजन प्रतिनिधि भी यहां मौजूद र्है। सिखों के सब प्रतिनिधि यहां उपस्थित है। भारतीय ईसाईयों और एंग्लो इण्डियनों के प्रतिनिधि भी यहां मौजूद है। तो फिर लार्ड साईमन ने यह झूठ ...( एक आवाज आई, द्रविड प्रतिनिधि भी है ) आदिवासी प्रतिनिधि हमारे मित्र श्री जयपाल सिंह भी यहां मौजूद है। यथार्थ में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को छोड कर अन्य सभी निर्वाचित प्रतिनिधि यहां उपस्थित हैं।

 उन्होने बेखौफ कहा “मुस्लिम लीग मुसलमानों के केवल एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है और मैं मानता हूं कि मुस्लिम सम्प्रदाय का बहुत बड़ा वर्ग र्है। पर यह कहना सरासर झूठ होगा कि विधान परिषद में केवल सवर्ण हिन्दू शामिल है।” उन्होंने सवर्ण और दलित को बांटने की अंग्रेज कोशिश के खिलाफ कहा ”मानो सवर्ण हिन्दू इसलिए पैदा ही हुए हैं कि दूसरों को सतायें और केवल ऐसा ही काम करें जो हिन्दुस्तान के हितों पर आघात पहुचाये! सभा के सामने एक साहब ने सुझाव दिया है कि देश का कोई वर्ग अगर यहां अनुपस्थित रहना पसंद करता है तो भारत को गुलाम बने रहना चाहिये। (एक आवाज नहीं...) यह जवाब तो उनको दिया जाना चाहिये जो गैर हाजिरी को उभारते हैं।’’

 उन्होंने गरजते हुये कहा ”सभापतिजी मैं तो कहूंगा कि हम लोग अंग्रेजों से यह आखिरी बार कह दें, 
हम आपसे दोस्ताना ताल्लुक रखना चाहते हैं। इस देश में आपने व्यापारियों की तरह पदार्पण किया, एक याचक या प्रार्थी की हैसियत से आप महान मुगल सम्राट के सामने आये। इस देश की अपार सम्पत्ति से आपने अपना वैभव बढ़ाना चाहा। भाग्य ने आपका साथ दिया। इस देश में आपने अपनी हुकूमत कायम की पर यहां के निवासियों के स्वेच्छापूर्ण सहयोग से नहीं वरन धोखेबाजी से, जालसाजी से और जबरदस्ती करके और इतिहास इस बात का गवाह है।’’

 खरी-खरी सुनाते हुए डाॅ मुखर्जी ने कहा “आपने ( अंग्रेज सरकार ने ) यहां प्रथक निर्वाचन पद्यति चलाई, भारतीय राजनीति में आपने धर्म को घुसेड़ा। यह सब काम भारतीयों ने नहीं किया बल्कि आपने किया और इसलिये किया कि इस मुल्क में अपनी हुकूमत स्थायी बना दें। आपने इस देश में विशेष हितों की सृष्टि की और ये विशेष हित आज इतने अमिट हो बैठे हैं कि हम देशवासियों की हर चन्द कोशिशों पर नहीं मिट पाते हैं। इन सब बातों के बावजूद भी अगर सचमुच आप चाहते हैं कि भारत और आपके बीच भविष्य में मित्रता बनी रहे, तो हम आपकी मैत्री के लिये तैयार हैं। पर हमारे घरेलू मामलों में ’मान न मान मैं तेरा महमान’ न बनिये। हर देश में घरेलू समस्यायें हैं, पर इनका निपटारा यहां के निवासी ही कर सकते है।’’

 इसके बाद नेहरू जी के प्रस्ताव पर जमकर विचार हुआ और जो लक्ष्य तय हुए, वे आज भी संविधान 
के अंग हैं। एक राष्ट्रभक्त मुखर्जी ने पूरी दिशा को मोड़ कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को ऐसा जागृत किया कि इस संविधान सभा ने सम्पूर्ण संविधान रचा और लागू करवाया।
 
भारत विभाजन की पोल खोली
 मुखर्जी ने 1940 में महात्मा गांधी से मुलाकात कर लेडी मिन्टों की गुप्त डायरी में भारत विभाजन की योजना से उन्हें अवगत कराया। 1942 में इलाहाबाद में अ.भा. कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक में कहा गया था, कांगेस किसी भी सूरत में भारत का विभाजन स्वीकार नहीं करेगी। मगर कांग्रेस ने सत्ता के स्वार्थ में विभाजन स्वीकार किया।
 
संघ से सम्बंध
 मुखर्जी हिन्दू महासभा के संगठन ढांचे से सन्तुष्ट नहीं थे, वे व्यापक विस्तार वाले दल की चाह में थे। इसके लिये वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डाॅ. केशवराव बलीराम हेडगैवार से मिले। मा.माधव सदाशिव गोवलकर श्रीगुरूजी से अनेकों बार सत्संग किया। 1940 में ही मुखर्जी ने संघ के लाहौर शिविर को अत्यंत निकट से देखा, उन्हें संघ की शक्ति से आशा एवं विश्वास था।
 
आधा पंजाब और आधा बंगाल बचाया
 एक तरफ महात्मा गांधी ने 1944 में जिन्ना के साथ वार्तालाप में और 1946 में पूना में आॅल इण्डिया कांग्रेस कमेटी ने पंजाब और समूचा बंगाल पाकिस्तान को दे दिया था। मगर आधा बंगाल डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और श्री निर्मलचन्द्र चटर्जी ने मिलकर बचा लिया था। इसी जनान्दोलन ने आधा पंजाब भी बचा।
शेख अब्दुल्ला , मि.जिन्ना के छोटे भाई ! 
पंण्डित नेहरू को डा.मुखर्जी का तार !!

 पं.नेहरू द्वारा कश्मीर के प्रधानमंत्री बनाये गये,शेख अब्दुल्ला के संदर्भ में  कई बार बता चुके डाॅ.मुखर्जी ने एक तार भेज कर  आगाह किया कि ,शेख का चाल चलन जिन्ना की तरह देश तोडने वाला है,उनके तार का एक अंश इस प्रकार है कि - शेख अब्दुल्ला द्वारा हाल ही में कहा गया है कि “ भारत का संविधान हिन्दू बहुसंख्यकों के द्वारा बनाया गया है और इसलिय वह कश्मीर पर लागू नहीं हो सकता,इस बात का द्योतक है कि शेख अब्दुल्ला ठीक उसी प्रकार की बातें कर रहे हैं जैसे कि मि.जिन्ना किया करते थे और इस प्रकार अपने आपको मि.जिन्ना का छोटा भाई साबित कर रहे हैं।”
 
कश्मीर पर बलिदान
 आठ मई 1953 को दिल्ली से पंजाब और कश्मीर की यात्रा के लिए रवाना हुये। 11 मई को  लखनपुर पोस्ट पर कठुआ के पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ वैद्य गुरूदत और टेकचंद शर्मा भी गिरफ्तार हुए। इस मामले को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, 22 तारीख को बैरिस्टर त्रिवेदी जी ने अन्तिम बहस की और जज ने निर्णय देने के लिए 23 तारीख निश्चय की, परन्तु दुर्भाग्य यह हुआ कि उस समय से पूर्व ही श्री डाॅक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मेडीकली हत्या कर दी गई।
 
अंतिम यात्रा
 22 जून 1953 की लगभग अर्द्धरात्री, अर्थात 23 जून के प्रारम्भ में वैद्य गुरूदत्त अपने साथियों, श्री टेकचन्द शर्मा तथा पंडित प्रेमनाथ डोगरा के साथ अस्पताल में  पहुंचे और वहां दो घंटा-भर ठहरने के पश्चात् उनको पुनः जेल ले जाया गया। वहां से सामान लेकर पुनः साढ़े आठ बजे अस्पताल लाया गया, उस समय डाॅक्टर साहब का शव अस्पताल की ड्योढ़ी में खडी एम्बुलैंस गाड़ी में रखा जा चुका था। शव के साथ श्री उमाशंकर जी त्रिवेदी, वैद्य गुरूदत्त तथा श्री टेकचन्द शर्मा को भी फौजी हवाई जहाज में बिटाया गया,शव दिल्ली ले जाना था, परन्तु दिल्ली सरकार जन आक्रोष को भंांप गई थी ,शव वाला हवाई जहाज दो बजे तक जालन्धर के ऊपर चक्कर काटता रहा। उतारने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। पश्चात् आदमपुर हवाई अड्डे पर  जहाज उतरा और पूर्व से तैयार खडे एक अन्य आई.एन.ए. के जहाज में शव को रखा गया। पश्चात् कलकत्ता की ओर वह हवाई जहाज  रवाना हुआ, लगभग पांच बजे कानपुर के एक फौजी अड्डे पर  पैट्रोल लिया और पुनः उड़कर रात्री आठ बजकर पचास मिनट पर कलकत्ता डम-डम के अड्डे पर उतरा ।
 हवाई जहाज के भूमि पर उतरते ही आक्रोषित लोगों की भीड़ का सागर उमड़ पड़ा। नेतागण, सम्बन्धी और जन साधारण की इतनी भीड़ थी कि शव को एयरोड्रोम से निकालने में लगभग एक घण्टा लग गया। पूरे नगर में कोलाहल मचा हुआ था। उस मार्ग पर, जिससे डाॅक्टर साहब के शव को उनके पारिवारिक गृह तक ले जाना था मध्यान्ह ढ़ाई बजे से लोगों की भीड़ जमकर बैठी प्रतीक्षा कर रही थी। लगभग दस मील के मार्ग पर तिल रखने को स्थान नहीं था। शव की यात्रा हवाई अड्डे से साढ़े नौ बजे प्रारम्भ हुई थी और वह 77 आशुतोष लेन प्रातः पांच बजे के लगभग पहुच सकी। शोक, विषाद, क्रोध तथा उत्तेजना से भरा हुआ लाखों लोगों का जन समूह रातभर जागता रहा जिससे अपने प्रिय नेता के अन्तिम दर्शन कर सके।
 24, जून को दिन के ग्यारह बजे अन्तिम यात्रा प्रारम्भ हुई और पांच मील लम्बे अर्थी मार्ग के दोनों ओर खड़े अपार जन समूह, मकानों की छतों, खिड़कियांे और छज्जों पर प्रतीक्षा करते हुए असंख्य लोगों को कलकत्ता के प्रिय नेता बंगाल-केसरी डाॅक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के शव को दर्शन देते हुए निकाला गया। तीन बजे मध्यान्होत्तर अर्थी शमशान घाट पर पहुंची और दाह संस्कार हिन्दू पद्धति के अनुसार किया गया।
 
- राधाकृष्ण मंदिर रोड, डडवाडा, कोटा जं.
  9414180151

जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय
सही उत्तर 26 अक्टूबर, 1947 को है। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा निर्धारित विभाजन योजना के अनुसार, जम्मू और कश्मीर भारत की उन 565 रियासतों में से एक था, जिस पर 15 अगस्त, 1947 की आधी रात को ब्रिटिश सर्वोच्चता समाप्त हो गई थी। किन्तु धारा 370 के कारण जम्मू और कश्मीर एक अतिविशिष्ट प्रदेश था, जो लगभग सह राष्ट्र जैसा अस्तित्व रखता था। डॉ श्यामाप्रसाद मुखजी इसी के विरूद्ध थे, अनावश्यक व तुष्टीकरण के लिये जम्मू और कश्मीर को विशेष प्रदेश का दर्जा गलत है। वह भारत का पूर्ण अंग है।  उनकी मांग की पूर्णता भाजपा की मोदी सरकार में केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया व इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भी दो संघ क्षैत्रों में बांट दिया था. अब दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश हैं।

धारा 370 का समापन का प्रभाव - 
जम्मू.कश्मीर में अनुच्छेद .370 और 35ए के प्रावधान 17 नवंबर, 1952 से लागू थे। ये अनुच्छेद जम्मू.कश्मीर और यहां के नागरिकों को कुछ अधिकार और सुविधाएं देते थे । जो देश के अन्य हिस्सों से अलग हैं। जब सरकार अनुच्छेद.370 के अधिकांश प्रावधानों को निरस्त कर दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया तो वहां की राजनीतिक तस्वीर ही बदल गई। साथ ही साथ यहां के नागरिकों को मिलने वाले कुछ विशेष अधिकारों और सुविधाओं में भी कटौती हुई। यहां जानिए, वे कौन सी अहम चीजें हैं जो बदल गईं .......
पहले जम्मू.कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। इस राज्य का अपना झंडा भी था। अनुच्छेद.370 के प्रावधान हटने से ये चीजें खत्म हो गईं।
-पहले जम्मू.कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता था। लेकिन 370 हटने से देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी ये गतिविधियां अपराध की श्रेणी में आ गईं।
-सुप्रीम कोर्ट के आदेश पहले जम्मू.कश्मीर में मान्य नहीं होते। अब वहां के नागरिकों को भी शीर्ष अदालत के आदेश मानने पड़ते हैं।
पहले रक्षाए विदेश, संचार छोड़कर अन्य मामलों में जम्मू.कश्मीर विधानसभा की सहमति लेनी पड़ती थी। अब वहां केंद्र सरकार अपने कानून लागू कर सकती है। 
- पहले जम्मू.कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था। अब अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटने से वहां भी अन्य सभी राज्यों की तरह विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्षों का होगा।
- हालांकि अभी वहां विधानसभा नहीं है। अनुच्छेद.370 के प्रावधान निरस्त करने के साथ जम्मू.कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू.कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था। 
- जम्मू.कश्मीर दिल्ली और पुड्डुचेरी की तर्ज पर विधानसभा युक्त केंद्र शासित प्रदेश है। जबकि लद्दाख चंडीगढ़ की तरह बिना विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है।    
- पहले कश्मीर में हिंदू.सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था। अब अनुच्छेद.370 के प्रावधान निरस्त होने से वहां भी अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लाभ मिल पा रहा है। 
 
- वहीं अनुच्छेद. 35ए  के जरिए जम्मू.कश्मीर के स्थायी नागरिकता के नियम और नागरिकों के अधिकार तय होते थे। जैसे -
इस प्रावधान के अनुसारए 14 मई 1954 या इससे पहले 10 सालों से राज्य में रहने वालों और वहां संपत्ति हासिल करने वालों को ही जम्मू.कश्मीर का स्थायी नागरिक बताया गया था। इन निवासियों को विशेष अधिकार प्राप्त होते थे। 
- स्थायी निवासियों को ही राज्य में जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के अधिकार मिले हुए थे। बाहरी अन्य लोगों को यहां जमीन खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, संस्थानों में दाखिला लेने का अधिकार नहीं था।
- अगर जम्मू.कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती थी, तो उसके अपनी पैतृक संपत्ति पर से अधिकार छिन जाते थे। लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं था। 

लेकिन सरकार द्वारा अनुच्छेद.35ए जम्मू.कश्मीर से हटाए जाने से ये नियम बदल गए ।
- अब देश का कोई भी नागरिक जम्मू.कश्मीर राज्य में जमीन खरीद पा रहे हैं। वे वहां सरकारी नौकरी भी कर सकते हैं।
- देश के किसी भी राज्य के विद्यार्थी वहां उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं।
- जम्मू.कश्मीर में महिला और पुरुषों के बीच अधिकारों को लेकर भेदभाव खत्म हो गया है।
- इतना ही नहीं, अब देश का कोई भी व्यक्ति कश्मीर में जाकर बस सकता है।


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राजपूतों का सबसे ज्यादा बुरा कांग्रेस नें ही किया - अरविन्द सिसोदिया

कांग्रेस सत्ता में आई तो, पूरे देश में छिना झपटी की आराजकता प्रारंभ हो जायेगी - अरविन्द सिसोदिया bjp rajasthan kota

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है

देश बचानें,हिन्दू मतदान अवश्य करें hindu matdan avashy kren

हम भाग्यशाली हैं कि मोदी जी के कार्यकाल को जीवंत देख रहे हैं - कपिल मिश्रा