भारत - चीन युद्ध : पांच दशक पूरे : चुनोतियाँ बरकरार


चीन से रक्षा को तैयार है भारत: एंटनी

नवभारत टाइम्स | Oct 18, 2012, 08.58PM IST
विप्र ।। नई दिल्ली
भारत चीन से अपनी रक्षा के लिए तैयार है। रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के पांच दशक पूरे होने के मौके पर पत्रकारों के सवालों के जवाब में यह बात कही।
एंटनी ने कहा कि हम अब अपने भूभाग के हर इंच की रक्षा में सक्षम हैं। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि चीन के मुकाबले उससे लगे सीमांत इलाकों पर भारत ने समुचित ढांचागत विकास नहीं किया है। लेकिन उन्होंने कहा कि 2012 का भारत 1962 के भारत की तरह नहीं है। किसी भी चुनौती से मुकाबला करने के लिए सेनाओं को तैयार किया जा रहा है।
चुनोतियाँ बरकरार
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हेंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए: BJYM

भाषा Oct 18, 2012,
    गुवाहाटी।। भारतीय जनता युवा मोर्चा ने हेंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है, जिसमें 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में भारत की हार के कारणों की जांच की गई है।
एक माह तक चले इस युद्ध की 50वीं बरसी के मौके पर एक रैली के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए बीजेवाईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने कहा, 'देश 1962 के युद्ध की खामियों को जानना चाहता है। जनता को हेंडरसन ब्रुक्स की रिपोर्ट के नतीजे जानने का अधिकार है। 1962 के युद्ध से जुड़े मसलों पर चर्चा से देश भविष्य की अनिश्चितता के लिए बेहतर तैयारी कर सकेगा।'
उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलतियों को युद्ध में भारत की हार का कारण बताते हुए ठाकुर ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हमेशा शीर्ष पर होना चाहिए। हिमाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद ठाकुर ने कहा, 'देश के लोग अपने सामने मौजूद चुनौतियों को जानना चाहते हैं और वे उन तैयारियों के बारे में भी जानना चाहते हैं, जो इनसे निपटने के लिए की जा रही हैं।'
ठाकुर ने कहा कि भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार होने के बावजूद चीन ने लद्दाख में अक्साई चिन इलाके पर अभी भी कब्जा कर रखा है। उन्होंने कहा, 'हमने यह पाया है कि चीन पर हमारा ध्यान और उसके बारे में सूचना पाकिस्तान के बारे में हमारी जानकारी से काफी कम है। हमें चीन के बारे में ज्यादा जानना होगा।

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भारत - चीन युद्ध

हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक बहाना  

तिब्बत की तरह भारत को हड़पने की योजना 

भारत - चीन युद्ध जो भारत चीन सीमा विवाद के रूप में भी जाना जाता है, चीन और भारत के बीच 1962 में हुआ एक युद्ध था। विवादित हिमालय सीमा युद्ध के लिए एक मुख्य बहाना था। चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं का की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियों रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी। चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किये. चीनी सेना दोनों मोर्चे में भारतीय बलों पर उन्नत साबित हुई और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर कब्ज़ा कर लिया. जब चीनी ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम और साथ ही विवादित क्षेत्र से अपनी वापसी की घोषणा की तब युद्ध खत्म हो गया.
      भारत चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है| इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट)  से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी. इस प्रकार की परिस्थिति ने दोनों पक्षों के लिए रसद और अन्य समस्याएँ प्रस्तुत की. भारत चीन युद्ध चीनी और भारतीय दोनों पक्ष द्वारा नौसेना या वायु सेना का उपयोग नहीं करने के लिए भी विख्यात है.चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के द्वारा तीन अनुभागो में फैला हुआ है. यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो बर्मा एवं तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान तक फैली है. इस सीमा पर कई विवादित क्षेत्रों अवस्थित हैं. पश्चिमी छोर में अक्साई चिन क्षेत्र है| यह क्षेत्र चीनी स्वायत्त क्षेत्र झिंजियांग और तिब्बत (जिसे चीन ने 1965 में एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया) के बीच स्थित है. पूर्वी सीमा पर बर्मा और भूटान के बीच वर्तमान भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश ( पूर्व में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) स्थित है. 1962 के संघर्ष में इन दोनों क्षेत्रों में चीनी सैनिक आ गए थे|
    ज्यादातर लड़ाई ऊंचाई पर जगह हुई थी. अक्साई चिन क्षेत्र लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई (समुद्र तल से) पर साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है और अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है. सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर एक हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की आवश्यकता होती है. पहाड़ी युद्ध में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक रचना दुसरे पक्ष को बचाव में मदद करती है. चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों का कब्जा था. दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लोजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए.
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http://aajtak.intoday.in/story

आखिर क्यों हुआ था 1962 का भारत-चीन युद्ध?

भाषा | बीजिंग, 17 अक्टूबर 2012 |
1962 में भारत पर चीन ने हमला क्यों किया था इसके कारण का खुलासा हो गया है. अब जाकर पता चला है कि इस युद्ध के पीछे चीन की मंशा क्या थी.चीन के दिवंगत कद्दावर नेता माओत्से तुंग ने ‘ग्रेट लीप फॉरवर्ड’ आंदोलन की असफलता के बाद सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी पर अपना फिर से नियंत्रण कायम करने के लिए भारत के साथ वर्ष 1962 का युद्ध छेड़ा था.चीन के एक शीर्ष रणनीतिकार वांग जिसी ने किया है. उन्होंने यह बात गत शनिवार को युद्ध की 50वीं सालगिरह के मौके पर करके युद्ध का एक नया पहलू पेश कर दिया.

चीन की पीकिंग यूनीवर्सिटी के स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन एवं चीन के विदेश मंत्रालय की विदेश नीति सलाहकार समिति के सदस्य वांग जिसी ने कहा, ‘युद्ध एक दुखद घटना थी. वह आवश्यक नहीं था.’ उन्होंने कहा कि उनकी धारणा चीन के कई राजनीतिक एवं रणनीतिक विश्लेषकों से अलग है कि चीन की जीत ने भारत के सीमा पर दावे को समाप्त कर दिया और इससे दीर्घकालिक शांति स्थापित हुई.
भारतीय राजनयिकों के अनुसार चीन नेतृत्व कई बार जिसी से सलाह मशविरा करता था. जिसी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमें कुछ अनुसंधान करना चाहिए. मैंने एक किस्सा सुना है कि यह माओत्से तुंग के चीन में अपनी स्थिति के भय के चलते था कि उन्होंने वर्ष 1962 युद्ध शुरू किया था.’
उन्होंने कहा, ‘साल 1962 में ग्रेट लीप फॉरवर्ड (जीएलएफ) के बाद माओत्से ने सत्ता और प्राधिकार खो दिया. वह अब देश के प्रमुख नहीं थे और वह तथाकथित दूसरी पंक्ति में चले गए. हमें उस समय जो स्पष्टीकरण दिया गया वह यह था कि उनकी क्रांति और अन्य चीजों में अधिक रुचि है.’
ग्रेट लीप फॉरवर्ड (जीएलएफ) एक जनअभियान था जिसकी शुरुआत माओत्से तुंग ने देश को एक कृषि आधारित अर्थव्यस्था से आधुनिक कम्युनिस्ट समाज में तब्दील करने के लिए चीन की विशाल जनसंख्या का इस्तेमाल करने के लिए किया. यह आंदोलन चीन को बर्बाद करने वाला साबित हुआ क्योंकि लाखों लोग हिंसा की भेंट चढ़ गए. इससे माओत्से की देश की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी आफ चाइना (सीपीसी) के सर्वोच्च नेता के तौर पर स्थिति कमजोर हुई.
वांग जिसी ने कहा, ‘स्वाभाविक रूप से उन्होंने (माओत्से) ने कई व्यावहारिक मुद्दों पर से नियंत्रण खो दिया. इसलिए वह यह साबित करना चाहते थे कि वह अभी भी सत्ता में हैं विशेष रूप से सेना का नियंत्रण उनके हाथों में है. इसलिए उन्होंने तिब्बत के कमांडर को बुलाया और झांग से पूछा कि क्या आप इस बात का भरोसा है कि आप भारत के साथ युद्ध जीत सकते हैं.’ झांग गुओहुआ तिब्बत रेजीमेंट के तत्कालीन पीएलए कमांडर थे.
वांग जिसी के अनुसार, ‘कमांडर ने कहा, ‘हां माओत्से, हम युद्ध आसानी से जीत सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘आगे बढ़ो और इसे अंजाम दो.’ इसका उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि सेना पर उनका व्यक्तिगत नियंत्रण है. इसलिए इसका सीमा विवाद से बहुत कम ही लेना देना था (हो सकता है कि तिब्बत से हो लेकिन यह जरूरी नहीं).’

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