सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल : दंगों को नए सिरे से भड़कानें कि साजिस


यह बिल कोंग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का परिचायक हे , सबसे पहले कांग्रेस  बताये उसने हिंदुओं को अपमानित करने और लज्जित करने का साहस  कैसे किया ? वे हिंदुस्तान में हें या पाकिस्तान में …इस तरह की भाषा आपने लिख कैसे दी , ऐशा संविधान विरोधी कानून बनाने कि सोची कैसे ? सबसे पहले इस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए ? असल मानसिकता और असल उद्देश्य सामने लाये जाएँ !


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दंगा बिल पर झुक गई सरकार, बहुसंख्यक नहीं होंगे जिम्मेदार
आईबीएन-7 | Dec 05, 2013

नई दिल्ली। चौतरफा विरोध के बीच सरकार ने विवादित सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल में अहम बदलाव किए हैं। नए प्रावधानों के तहत अब दंगे के लिए बहुसंख्यकों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। साथ ही, राज्य सरकार की सिफारिश के बाद ही केंद्रीय बलों को दंगाग्रस्त इलाकों में भेजा जाएगा। बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दल इस बिल को संघीय ढांचे पर कुठाराघात बताते हुए विरोध में जुटे थे। हालांकि सरकार ने पहले ही कहा था कि वो सबकी राय के बाद ही बिल पेश करेगी। सरकार संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में इस बिल को पेश करना चाहती है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इस बिल के मसौदे में कुछ अहम बदलाव किए हैं। मौजूदा शीतकालीन सत्र में पेश होने की संभावना वाले इस बिल में पहले सांप्रदायिक हिंसा के लिए बहुसंख्यकों को जिम्मेदार ठहराने की बात थी, लेकिन अब इसे समुदाय निरपेक्ष बना दिया गया है। यानी कि सिर्फ बहुसंख्यकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। पहले कहा गया था कि दंगा होने की सूरत में केंद्र सीधे हस्तक्षेप करते हुए सुरक्षा बलों को भेज सकेगा, लेकिन अब डीएम और एसपी के कहने पर ही ऐसा किया जाएगा।

नए प्रावधान के मुताबिक अगर ये बात सामने आती है कि डीएम और एसपी दंगा रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं रोका, तब दोनों के खिलाफ कार्रवाई होगी। जाहिर है, इन बदलावों के जरिये सरकार ने विपक्ष के विरोध को खत्म करने की कोशिश की है। इसका संकेत प्रधानमंत्री ने गुरुवार को खुद दिया था।

प्रधानमंत्री का बयान एक तरह से बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की चिट्ठी का भी जवाब था। मोदी ने गुरुवार को खुद ट्वीट करके पीएम को चिट्ठी लिखने की जानकारी दी थी। मोदी ने इस चिट्ठी में लिखा है कि इस बिल के जरिए वोट की राजनीति की जा रही है। ये बिल भारतीय संघीय व्यवस्था का अतिक्रमण है। जो बिल राज्यों को बनाना चाहिए उसे बनाने में केंद्र जुटा हुआ है। अगर ये बिल लागू हुआ तो इससे समाज बंट जाएगा और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा।

बाहरहाल, इन अहम बदलावों के बावजूद बीजेपी का विरोध कम नहीं हुआ है। वो इसे एक गैरजरूरी बिल बता रही है। लेकिन परिवर्तनों के बाद सीपीएम, और टीएमसी और समाजवादी पार्टी जैसे विरोधियों का सुर बदल सकता है जो राज्यों के अधिकार का सवाल उठाकर बिल का विरोध कर रहे थे।

दरअसल, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी का दावा करते हुए कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में वादा किया था कि अगली सरकार बनी तो सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल पेश किया जाएगा। लेकिन जब मसौदा सामने आया तो विवाद भड़क उठा। इसमें कहा गया था कि दंगा होने की सूरत में बहुसंख्यकों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और केंद्र सरकार दंगाग्रस्त इलाकों में अपनी मर्जी से केंद्रीय बल भेज सकेगी। इस मुद्दे पर संसद की स्थायी समिति ने विचार किया जिसकी सिफारिशों के बाद गृह मंत्रालय नए सिरे से चर्चा कर रहा था।
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जानिए सांप्रदायिक हिंसा निरोधक बिल पर किसने क्या कहा
नई दिल्ली, एजेंसी
First Published:05-12-13

सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निरोधक विधेयक का नरेन्द्र मोदी द्वारा विरोध किये जाने के बीच सरकार और कांग्रेस पार्टी ने आज कहा कि यह विभाजनकारी विधेयक नहीं है और इस विषय पर आमसहमति बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
   
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री क़े रहमान खान ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि इस विधेयक को संसद के वर्तमान सत्र में लाने के लिए विचार विमर्श किया जा रहा है। गृह मंत्रालय इस विषय पर अन्य राज्यों के विचार जानने के लिये उनके साथ बातचीत कर रहा है। मसौदा विधेयक पर अन्य दलों के विचार के बारे में पूछे जाने पर रहमान ने कहा कि इस विधेयक पर असहमति की कोई जरूरत नहीं है। हमारा प्रयास आमसहमति बनाने का है।
  
गुजरात के मुख्यमंत्री के विरोध के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि शायद वह ऐसा कोई कानून नहीं चाहते हैं। गुजरात में अब तक की सबसे बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा हुई और वे इस पर काबू पाने में असफल रहे। केंद्र का दायित्व है कि वह कानून लाये। उन्होंने कहा कि मोदी वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। हम इस विषय पर 2005 से ही राज्यों से विचार विमर्श कर रहे हैं।
  
संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने आरोप लगाया कि मोदी हर चीज को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं, लोकहित की बात नहीं करते है और विवाद पैदा करते हैं। शुक्ला ने कहा कि वह राजनीतिक फायदे के लिए इसका विरोध कर रहे हैं।
  
बहरहाल, नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आज पत्र लिख कर सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक का विरोध किया और कहा कि प्रस्तावित विधेयक तबाही का नुस्खा है। मोदी ने विधेयक को राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण बताते हुए कहा है कि इस संबंध में आगे कोई कदम उठाने से पहले इस पर राज्य सरकारों, राजनीतिक पार्टियों, पुलिस और सुरक्षा एजेंसी जैसे साक्षेदारों से व्यापक विचार विमर्श किया जाना चाहिए। मोदी का यह पत्र आज संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत पर सुबह आया है।
  
विधेयक का विरोध करने पर मोदी पर तीखा प्रहार करते हुए जदयू के नेता के सी त्यागी ने कहा कि मोदी के विधेयक का विरोध करने का कारण स्पष्ट है। गोधरा बाद दंगे के लिए गुजरात सरकार जिम्मेदार थी। मोदी का इसका विरोध करना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि इस पर चर्चा हो सकती है लेकिन हम उन लोगों को राहत प्रदान करने के पक्ष में नहीं हैं जो दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। हमारी पार्टी चाहती है कि इसी सत्र में विधेयक लाया जाए।
   
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने हालांकि साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निरोधक विधेयक पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसे किसी विधेयक को पेश किये जाने की इस बार संभावना नहीं है। इस बार कोई विवादास्पद विधेयक नहीं आयेगा। विधेयक पर रूख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह काल्पिनक सवाल है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। बाबरी मस्जिद विध्वंस को शर्मनाक करार देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कल संसद में इस मुद्दे को उठायेगी और कामकाज नहीं होने देगी।
   
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन आज लोकसभा ने छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र से अपने वर्तमान सदस्य मुराली लाल सिंह को श्रद्धांजलि देने के बाद आज सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई।
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सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के कई प्रावधान हटाने का फैसला
5 Dec 2013
नयी दिल्ली: विपक्ष के कडे विरोध के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के कई प्रावधान हटाने का आज फैसला किया है. सरकार ने सुनिश्चित किया है कि यह विधेयक समूहों या समुदायों के बीच तटस्थ हो.      सरकारी सूत्रों ने कहा कि सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक 2013 के मसौदे में किये गये प्रावधानों को संशोधित करने की ताजा पहल भाजपा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता की आलोचनाओं के परिप्रेक्ष्य में की गयी है.

इससे पहले विधेयक में स्पष्ट रुप से उल्लेख था कि दंगों का दायित्व बहुसंख्यक समुदाय पर होगा. अब मसौदा विधेयक को सभी समूहों या समुदायों के लिए तटस्थ बनाया गया है और केंद्र सरकार कथित रुप से राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन नहीं कर पाएगी. सूत्रों ने कहा कि विधेयक से देश के संघीय ढांचे पर कोई हमला नहीं होगा और केंद्र सरकार की भूमिका आम तौर पर समन्वय की होगी और वह तभी कोई कार्रवाई करेगी, जब राज्य सरकार मदद मांगती है.

नये मसौदे के मुताबिक ‘‘यदि राज्य सरकार की राय है कि सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार की सहायता की जरुरत है तो वह ऐसे उद्देश्य से केंद्र के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिए केंद्र सरकार की सहायता मांग सकती है.’’ इससे पहले विधेयक के मसौदे में केंद्र को सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में राज्य सरकार से सलाह मशविरा किये बिना केंद्रीय अर्धसैनिक बल भेजने का एकतरफा अधिकार था.

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