भारत के काले कानून : राजीव दीक्षित


भारत के काले कानून
- राजीव दीक्षित

भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था | 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था | लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है | Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में | 1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था | भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था | लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया | धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया | और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं | अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न | बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था | उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया | अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है | आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं |
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27% था | ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार हुई थी, उस बहस में ये तय हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा" | तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा | फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो | फिर एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% मतलब 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो | ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार का टैक्स लगाया अंग्रेजों ने और खूब लुटा इस देश को | 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से | तो भारत की जो गरीबी आयी है वो लुट में से आयी गरीबी है | विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए | इस तरीके से बेरोजगारी पैदा हुई, गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे | तो हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक,अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है |
1857 की क्रांति की बाद अंग्रेजों ने भारत के ही कुछ गद्दार राजाओं के सहयोग से अपनी खोयी सत्ता को पुनर्स्थापित किया और 1 नवम्बर 1858 को भारत में प्रकाशित होने वाले कुछ अंग्रेजो अख़बारों में ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी का ये पत्र छपा जिसमे कहा गया था "आज से भारत में कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) की सरकार नहीं बल्कि कानून की सरकार की स्थापना होगी"| लेकिन वो कानून कौन बनाएगा ? तो वो कानून अंग्रेजों की संसद बनाएगी, ब्रिटिश पार्लियामेंट बनाएगी और उसके हिसाब से भारत को चलाया जायेगा | अब ब्रिटिश पार्लियामेंट में बहस इस बात को लेकर हुई कि "कानून ऐसे बनाये जाने चाहिए कि भारतवासी कभी भी दुबारा खड़े न हो सकें और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सकें" | इस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश में कानून की सरकार बनाई और हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ |  हमेशा की तरह ये लेख भी परम सम्मानीय राजीव दीक्षित भाई के विभिन्न व्याख्यानों में से जोड़ के मैंने बनाया है, उम्मीद है कि आप लोगों के ये पसंद आएगी | 


  •  Licensing of Arms Act -  सबसे पहला कानून जानते हैं क्या आया ? सबसे पहला कानून ? आपको ये जानकार हैरानी होगी | अंग्रेजों के खिलाफ जो बगावत हुई थी वो सशस्त्र बगावत थी, उसमे हथियारों का इस्तेमाल हुआ था तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून यही बनाया कि  "हथियार वही रख सकेगा जिसके पास लाइसेंस होगा, लाइसेंस जिसके पास नहीं होगा वो हथियार रखने का अधिकारी नहीं होगा", तो अंग्रेजों ने क्या किया ? लाइसेंसिंग ऑफ़ आर्म्स एक्ट नामक पहला कानून बनाया और इस कानून के आधार पर क्या किया गया कि घर-घर की तलाशी ली गयी कि किसके घर में बन्दूक है, किसके घर में चाकू है, किसके घर में छुरा है, किसके घर में हसिया है और वो सब अंग्रेजों ने छीन लिया क्योंकि अंग्रेजों को डर था कि इन्ही हथियारों की मदद से भारतवासी फिर से बगावत कर सकते हैं | और इस कानून के आधार पर जब भारतवासियों के हर्थियर छीन लिए गए तब भारतवासी कमजोर हो गए और वो कमजोरी इतनी भारी पड़ी कि अगले 90 साल तक फिर अंग्रेजों की गुलामी हमको सहन करनी पड़ी | और इस देश का दुर्भाग्य ये कि ये कानून आज भी चल रहा है इस देश में | आपको मालूम है कि इस देश में हथियार वही रख सकता है जिसके पास लाइसेंस होगा और हथियार देने का काम पहले गोरे अंग्रेज करते थे आज लाइसेंस देने का काम काले अंग्रेज कर रहे हैं |     


  • Indian Education Act - 1858 में Indian Education Act बनाया गया | इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी | लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी | अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था | 1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है | और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा  के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे, और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है "कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी " | इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को  गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला | 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी | इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं | और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमे वो लिखता है कि "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी " और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है |  और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा | लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है | शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी |  संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है | जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी |
  • Indian Police Act - 10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई और भारतवासियों ने पूरे देश में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला । उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा आदि । लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें । तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को सीधे मारे पीटेंगे नहीं, अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे ।भारतवासी कभी भी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सके इसके लिए भारतवासियों को दबाने-कुचलने के लिए एक ऐसा तंत्र चाहिए जो ये काम बखूबी कर सके तो पुलिस नाम की एक व्यवस्था उन्होंने खड़ी की | क्या आपको मालूम है कि 1858 के पहले इस देश में पुलिस नाम की कोई व्यस्था नहीं हुआ करती थी? भारत के किसी भी राजा ने पुलिस व्यवस्था नहीं रखी थी, सैनिक और सेना था लेकिन पुलिस नहीं होती थी, क्योंकि पुलिस की जरूरत नहीं होती थी, अपने ही लोगों को मारना, पीटना और धमकाना ये कौन करता है ? तो 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया | 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए, उनको डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये, तब अंग्रेजो ने इंडियन पुलिस एक्ट बनाया, और पुलिस बनायी, उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | उसमे एक धारा बनाई गई right to offence की, मतलब पुलिस वाला आप पर जितनी मर्जी लाठियां मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप पर मुकद्दमा चलेगा और इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लाठियां बरसाया करती थी, फ़िर धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में, तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की | जब साईमन कमीशन भारत आने वाला था तो क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय जी उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे । अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांडर्स ने उन पर लाठिया बरसानी शुरु कर दी । एक लाठी मारी, दो मारी, तीन, चार, पांच, करते करते 14 लाठिया मारी । नतीजा ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा, उनको अस्तपताल ले जाया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई । अब सांडर्स को सज़ा मिलनी चाहिए, इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने अदालत में मुकदमा कर दिया, सुनवाई हुई और अदालत ने फैसला दिया कि लाला जी पर जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि सांडर्स अपनी ड्यूटी कर रहा था,  नतीजा सांडर्स को बाइज्जत बरी किया जाता है ।
    तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि " मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस
  • तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि " मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस
  • तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि " मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस
  • तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि " मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस 
  • इंडियन पुलिस एक्ट के कारण लाला जी की जान गई, जिस इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ, इस देश के नौजवान आजादी मिलने से पहले पहले इसको खत्म करवा देगें, यही मेरे दिल की इच्छा है ।"
  • लेकिन ये बहुत शर्म की बात है कि आजादी के 64 साल के बाद आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये । आज भी आप देखिये कि उसी इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर पुलिस देशवासियो पर कितना जूल्म करती है । कभी आन्दोलन करने वाले किसानों को डंडे मारती है,  कभी औरत को डंडे मारती है और सैकड़ों लोग उसमे घायल होते हैं । हम हर साल 23 मार्च को भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं । लाला लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रद्धांजलि अर्पित करे कि "लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये, किस मुँह से हम भगत सिंह को श्रद्धांजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून के आधार पर आपको फाँसी की सज़ा हुई, आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर पर ढो रहे हैं ।" आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस आन्दोलन करने वाले भारतवासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो हम कैसे कहें कि हम आजाद हो गए हैं ?
  • Indian Civil Services Act - 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया | ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं | भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं | अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा | इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा | और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है | और ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था | ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है  | 
  • Indian Income Tax Act - इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि "ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है",  तो दुसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वो हमसे ही संपर्क करें | आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं | और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% यानि 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छुट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके | और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि "हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बरबाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है" | तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें | अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी | और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी, अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो | अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं | महात्मा गाँधी के देश में नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं, आज अगर गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग से ये देखती होगी तो आठ-आठ आंसू रोती होगी कि जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया कि विदेशी कंपनी का नमक न खाया जाये आज उस देश में लोग विदेश कंपनी का नमक खरीद रहे हैं और नमक पर टैक्स लगाया जा रहा है | शायद हमको मालूम नहीं है कि हम कितना बड़ा National Crime कर रहे हैं |  
  • Indian Forest Act - 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में | इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे | अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया | साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल सजा दे सके, उसपर केस करे, उसको मारे-पीटे | लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता |  अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं | हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है | इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते | तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते | और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया | 
  • Indian Penal Code - अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) | ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा"| और वो आगे लिखता है कि " जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा" | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा था कि "भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं मिलेगा" | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 64 साल बाद भी नहीं बदला है और ना कभी कोशिश ही की है |   
  •  Land Acquisition Act - एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी | ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी जमीन है उसे छिनकर अंग्रेजों के हवाले करो | डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी | जो जमीन किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी | डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि " मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था" | और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की जमीन या जायदाद बेटे की हो जाती है, बेटे की जमीन उसके बेटे की हो जाती है | सब जबानी होता था, जबान की कीमत होती थी या आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो शादियाँ होती हैं वो सिर्फ और सिर्फ जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन /तारीख तय हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, शादी हो जाती है | तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली | एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी | परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए | डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी, ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं | डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं | 1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है | हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं, अगर सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी | आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है | पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है और Special Economic Zone उन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये जमीन बहुत बेदर्दी से लिए जा रहे हैं | भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वो कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं | जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, जमीन वाले नहीं | एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इस कानून को ख़त्म करने की कवायद नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है | इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है | जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है | आपको लगता है कि ये देश आजाद हो गया है ? मुझे तो नहीं लगता | 
  • Indian Citizenship Act - अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं | अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें | तो इसलिए इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति  (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) | लेकिन हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया | इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है | ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ? दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है | आप अमेरिका जायेंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा | ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है | दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है | कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है | ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, आजादी के 64 साल बाद भी | आप समझते हैं कि हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ? 
  • Indian Advocates Act - हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वो काला टोपा लगाते थे और उसपर नकली बालों का विग लगाते थे | ये व्यवस्था आजादी के 40-50 साल बाद तक चलता रहा था | हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | काला कोट जो होता है वो आप जानते हैं कि गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता, और इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं ये समझ से बाहर की बात है | हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वो ज्यादा हिम्मत वाले थे | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया |
  • Indian Motor Vehicle Act - उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम | साल डेढ़ साल की सजा हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी या आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि अगर कोई (अंग्रेजों के) मोटर के नीचे दब के मरा तो उसे कठोर और लम्बी सजा ना मिले | ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मौत में किसी को सजा नहीं होती | और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ | 
  • Indian Agricultural Price Commission Act - ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है | पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे | अंग्रेजों ने हमारे कृषि व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये कानून लाया और किसानों को उनके फसल का दाम तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया | अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वो किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा और ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वो तय करते थे | आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया" | ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है | इससे ज्यादा आपके फसल का दाम नहीं होगा | किसानों को अपने उपजाए अनाजों का दाम तय करने का अधिकार आज भी नहीं है इस आजाद भारत में | उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है | और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते |  
  • Indian Patent Act - अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो बना था 1911 | Patent मतलब होता है एक तरह का Legal Right, कोई व्यक्ति, वैज्ञानिक या कंपनी अगर किसी चीज का आविष्कार करती है तो उसे उस आविष्कार पर एक खास अवधि के लिए अधिकार दिया जाता है | ये जा के 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है | अभी विस्तार से नहीं लिखूंगा मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित |
  • Indian Evidence Act - Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है, तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10 साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में conviction rate  पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100 लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है, 95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है, क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं | और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है, उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता हूँ | 26 नवम्बर को जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर मुंबई में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है | भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है |            
ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और ज्यादा बोझिल न हो जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ | इन कानूनों के किताब बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं | अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ |
  • अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकल कर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लाया था | लेकिन आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं | 
  • 1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act , ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना | 
  • 1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी साल द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी | और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था | और अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पोंड का कर्ज लिया था भारत से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने की हिम्मत की पिछले 64 सालों में | 
  • अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी | और भारत के लोग चीनी के बजाय गुड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना चीनी मीलों को नहीं देते थे | तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड बनाना गैरकानूनी घोषित कर दिया था और वो काननों आज भी इस देश में चल रहा है | 
  • पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे | किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन गाँव के उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की | वो PWD आज भी है | NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही शुरू किया था |  
  •  हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था बल्कि चुना और दूध को मिला कर जो लेप तैयार होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था | अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा | हमारे देश के किलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े हुए थे और आज भी कई सौ सालों से खड़े हैं | और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम उम्र होती है 100 साल और चुने से बने घरों की न्यूनतम उम्र होती है 500 साल |  
  • आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार जाती के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सब के सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने | एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी, जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन के गया तो इसने वहां इस जाति को मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, गैरकानूनी घोषित कर दिया | नतीजा क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो ख़त्म हुई ही साथ ही साथ वो सभी कारीगर बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी | वो कानून आज भी है |
  • उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी जरूरत नहीं होती थी और जब जरूरत होती थी यानि गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया जाता था | आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे, जिसमे शामिल हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं | कभी आपने सोचा है कि ये इलाके क्यों पिछड़े हुए हैं ? जब कि भारत के 90% Minerals इसी इलाके में होते हैं | ये सब अंग्रेजों की गलत नीतियों की वजह से है और हमारे केंद्र की सरकार ने कभी ये प्रयास नहीं किया कि ऐसा क्यों है | 
  • एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे तो हत्या | Abhortion हुआ तो कुछ नहीं लेकिन उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा | (भारत स्वाभिमान इस भ्रूण हत्या को धारा 302 के तहत लाना चाहता है |)
  • जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | क्योंकि कपडे उतरवाने के पीछे का मकसद ये था कि आपका (मतलब भारत के लोगों का) कदम-कदम पर अपमान किया जाये, नीचा दिखाया जाये | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है |
  • अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था | इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था | सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintenance के लिए भत्ता मिलता है |   
  • आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों साल से खुले में है लेकिन आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है | ये स्टील बनाने की जो कला थी वो हमारे देश के आदिवासियों के पास थी जो कि आज के झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के इलाकों में रहते थे और वो कच्चा लोहा वहीं के खदानों से निकाल के लाते थे और इस तरीके के उन्नत किस्म का लोहा बनाते थे | आज दुनिया में इतनी उच्च तकनीक होने के बावजूद ऐसा लोहा कोई देश नहीं बना पाया है जिस पर जंग न लगे | तो अंग्रेजों ने इस तकनीक को बर्बाद करने के लिए एक कानून बनाया कि कोई भी आदिवासी खदानों से कच्चे लोहे नहीं निकालेगा, और कोई ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसे 40 कोड़े पड़ेंगे और अगर फिर भी बच गया तो उसको गोली मार दी जाएगी | इस तरह से ये तकनीक इस देश में अंग्रेजों ने ख़त्म की | और वो कानून आज भी चल रहा है और ध्यान दीजियेगा कि इन्ही इलाकों में माओवाद और नक्सलवाद चल रहा है |
अजीब अजीब कानून है इस देश में | आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करना चाहते थे और ख़त्म भी किया था, मैं कहना ये चाहता हूँ कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाये थे वो अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए था और हमें आजादी के बाद इसे ख़त्म कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की एक भी निशानी को हमने 64 सालों में मिटाया नहीं | सब को संभाल के और सहेज के रखा है और हर साल अपने को मुर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं | स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था | ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता ? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है इन 64 सालों में ? सब तो अंग्रेजों का ही है | अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे | स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमे आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आयी थी, वो तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा | गुलामी के कानूनों को ही अगर हमारी संसद आगे बढाती जाये और चलाती जाये इसके लिए संसद नहीं बनाई हमने और इसके लिए चुनाव नहीं होते और करोडो रूपये खर्च नहीं किये जाते | हमने हमारी अपनी व्यवस्थाओं को चलाने के लिए संसद बनाई है | ये जो गुलामी की व्यवस्था आजादी के 64 साल बाद भी चल रही है तो उसे तो ख़त्म करना ही पड़ेगा | आज नहीं तो कल किसी को तो ये सवाल करना ही होगा | भारत की राजनितिक पार्टियाँ ये सवाल नहीं उठाती है, ये मंदिर-मस्जिद के सवाल उठाती हैं और हमको उसी में उलझाये रखती है, इन कानूनों को जो गुलामी की निशानी है उनका सवाल नहीं उठती हैं | समाज को बाँट देने वाले जितने प्रश्न है वो ये उठाती हैं लेकिन गुलामी वाले कानूनों के सवाल नहीं उठाती हैं |
यकीन मानिये हमारे देश की आजादी की लड़ाई के समय जितने भी देशभक्त शहीद हुए, जैसे खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह आदि आदि, ये तो कुछ नाम हैं ऐसे 7 लाख से ऊपर देशभक्त थे, उन सब की आत्मा आज भी भटक रही होगी, और वो आपस में एक दुसरे से यही सवाल कर रहे होंगे कि हम कितने मुर्ख थे जो ऐसे देश के लिए जान दिए | या तो वो मुर्ख थे या फिर हम महामूर्ख हैं जो इन सब व्यवस्थाओं को सहेज के और संभाल के रखे हुए हैं |
हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी | जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमे कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गयी, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए | भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिये और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं |
जय हिंद 

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