भारत को मिल गया है उसका नेता - तरुण विजय



भारत को मिल गया है उसका नेता
तरुण विजय  May 27, 2015

राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता। दोस्ती का नारा देने वाले ही यहां पीठ में छुरा घोंपते हैं। घृणा, जलन और धोखेबाजी यहां सामान्य बातें हैं। सत्ता के गलियारों में ऐसे सुपारी किलर्स और ठेकेदारों की भरमार हो गई है, जो अपने आकाओं के सहारे से विरोधियों के नाम वाली सूची में कांट-छांट करते रहते हैं। राजनीति के इस दौर में या तो आप प्रशंसक पाएंगे या विरोधी, लेकिन दोस्त बिल्कुल नहीं पाएंगे। जो लोग स्वंय को बात-बात पर बहुत बड़ा सहयोगी घोषित करने से नहीं हिचकते, दरअसल वे सत्ता के केन्द्र में अपनी दरबारी छवि को छुपाने का असफल प्रयास करते हैं।

यह बहुत ही जादुई तथ्य है, जैसे किसी व्यक्ति का पुनर्जन्म हुआ हो जिसने पिछले दो दशकों के दौरान इन सभी समस्याओं का सामना किया हो, ना सिर्फ बाहरी रूप से बल्कि आंतरिक तत्वों से भी।

यह संयोग ही है कि नरेन्द्र मोदी और भारत का उद्भव साथ-साथ हुआ है। उन्होंने हर उस चुनौती का सामना किया, जो उनके सामने आयी और अपने प्रदर्शन से विरोधियों को भी चुप कर दिया। साथ ही उन्होंने राजनीति में मित्रहीनता के विचार को भी गलत साबित किया।

मोदी के साथ भारत में यह अच्छी बात हुई है कि यहां उम्मीद और मजबूत नेतृत्व आया है।

एक लम्बे और दर्दभरे सफर के बाद किसी मजबूत भारतीय नेता ने देश की कमान संभाली है।

मोदी की सफलता का मतलब बीजेपी की सफलता नहीं है और मोदी इन सबसे बहुत आगे जा चुके हैं। भारत को उनके सफल नेतृत्व की सख्त जरूरत है ताकि हम अपनी शक्तियों को बढ़ाकर एक मजबूत, सफल और धनी राष्ट्र बन सकें।

प्रस्थान के इस बिन्दु पर आप अपना विश्लेषण शुरू कर सकते हैं। आंकड़ों और संख्याओं के सम्पूर्ण मायाजाल के बीच आप समझ सकते हैं कि इस सरकार ने पिछली सरकारों की तुलना में योजनाओं का क्रियान्वयन कितनी तेज गति से किया है।

भारत अब आसानी से कह सकता है कि हमारे पास शक्तिशाली नेता है जिसके पास विरोधियों को चुप कराने की क्षमता है। उन पुराने दिनों को ज्यादा याद करने की जरूरत नहीं है जब किस तरह एक अरब से भी ज्यादा लोगों के बीच घोटाले आम चर्चा का विषय बन गए, लोगों के बीच सरकार के प्रति निराशा छा गई और एक प्रबल नेतृत्व की मांग उठने लगी। मोदी का चुनावी अभियान एक बड़े बजट की राजनैतिक फिल्म के लिए पर्याप्त मसाला हो सकता था जिसमें ब्लॉकबस्टर होने की पूरी संभावना थी। मोदी की लगातार 440 जनसभाएं यह दिखाती हैं कि यदि उनके पक्ष में पूरा देश खड़ा हो जाता, तो हम में से कई अवाक से रह जाते। यह एक रुचिकर प्रश्न है कि इस तरह के करिश्माई एवं दमदार व्यक्तित्व वाले नेता को अंतिम बार भारतीय जनता ने कब देखा था? और यह वह नेता हैं जिनका नाम 'एम' से शुरू होता है।

यह भी साबित हो चुका है कि ऐसे लोगों की जाति में H2SO4 अर्थात् हाइड्रो सल्फ्यूरिक ऐसिड का बहाव हो रहा है जो कि उन्हें धीरे-धीरे खत्म करके नरपिशाच बना देगा। ये तथाकथित सेक्युलर, मीडिया प्रेमी, खुद ही ओपिनियन बनाने वाले और प्रमाणित तौर पर अति अभिमानी लोग हैं जिन्हें देश के अच्छे या बुरे से कोई मतलब नहीं है। विडंबना यह है कि यह सख्त प्रचारक अपनी धूर्तता के प्रति बहुत ही ईमानदार तरीके से प्रतिबद्ध रहे। मोदी उनकी नफरत भरी मिसाइल्स का पहला टारगेट थे। चैनल्स, मीडिया हाउसेज, चाहे वे लंदन, न्यू यॉर्क के अंग्रेजी अखबार हों या फिर गुजराती, हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के अखबार, भारत से जुड़ाव के लिए मोदी गलत नंबर ही रहे। सांसदों ने पूरी तरह से सांप्रदायिक नफरत से प्रभावित होकर राष्ट्रपति ओबामा को लिखा और मीर जाफर की यादों को पुनर्जीवित किया।

लोगों के एक सामूहिक निर्णय के खिलाफ कभी कुछ काम नहीं करता। 'ऑर्डर ऑफ द डॉलर वॉरियर्स' को एक उचित तरीके से खत्म किया गया था। उनके पसंदीदा 'कॉफी अड्डा' वॉशिंगटन को भी पोखरण-2 के बाद काफी आश्चर्य हुआ था और राजनयिक संबंधों के इतिहास में सबसे कम समय में यू-टर्न लेने को मजबूर हुआ था। जिन दो देशों ने मोदी की वापसी के लिए आशा व्यक्त की, वे चीन और जापान थे।

अब हमारा देश एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में है जो हमारे सवालों के प्रति जवाबदेह है और जब विदेशों में जाता है तो उसका स्वागत इस अंदाज में होता है जैसा न इससे पहले सुना गया, न देखा गया और न ही जिसकी पहले कल्पना की गई।

एक बिना कारण का राजनीतिक विरोध 'एक परिवार के नेता' की सफलता को छोड़कर और कुछ भी बयां नहीं करता है। देश को लेकर उनका विचार 'जनपथ' तक ही सिमट कर रह जाता है। कुछ परिवारों की जागीर जिन्हें हम राजनीतिक दल भी कहते हैं वे अंध आलोचना में इस कदर डूबे हैं कि उन्हें सरकार द्वारा किया गया कोई भी अच्छा काम नजर नहीं आता जो उनके 'मोदी सरकार को जीरो मार्क्स' जैसे बयानों से साफ जाहिर भी होता है।

एक राष्ट्र वहां की लीडरशिप की क्वॉलिटी और उसके द्वारा उत्पन्न किए गए विश्वास पर जीता है। 1962 के पहले का नेहरू युग याद है? या फिर सत्तर के दशक की विद्रोही इंदिरा गांधी? बैंक राष्ट्रीयकरण हो या गरीबी हटाओ या फिर बांग्लादेश और आतंकी संगठनों से टकराव जैसे मुद्दे हों, इन सभी कदमों ने आलोचकों का मुंह बंद किया और वाजपेयी जी के नेतृत्व में एक सभ्य और जिम्मेदार विपक्ष से वाहवाही भी पाई।

अटल जी के दौर में मान और सबको साथ लेकर चलने वाली राजनीति थी। उनकी शख्सियत ऐसी थी कि भरोसा और अपनेपन की गर्माहट महसूस होती थी। पोखरण-2 ने एक मजबूत, निर्णयात्मक, राष्ट्रवादी 'जनसंघ' वाजपेयी को स्थापित किया। करगिल क्लाइमैक्स था और नियंत्रित कीमतें, उदार माहौल, जुड़ाव की राजनीति और आम लोगों के साथ संपर्क पर पकड़, उनकी शख्सियत के मजबूत पहलू थे। उन्होंने वह चुनाव हारा, जो किसी ने नहीं सोचा था, वह भी बिल्कुल अलग कारणों से, जो मेरी अगली किताब का सब्जेक्ट है।

नरेंद्र मोदी ने खुद की भाषा और मुहावरे बनाए हैं। आजादी के बाद भारत में जनता से संवाद के लिए यह नया है। अंधेरे के गर्त में जाते भारत को बाहर निकालने के लिए उनकी निर्णयता, जिद और जुनून काबिले तारीफ हैं। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया है कि यहां एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो काम करना जानता है और नासमझ नहीं है। वह सख्त हैं, बहुत सख्त, अनुशासनात्मक हैं, खुद उदाहरण बनने से शुरुआत करते हैं, बहुत ही महत्वाकांक्षी हैं जैसे अगर किसी चीज से बेहतर नतीजे आ सकते हों तो वह उसे करेंगे ही। देरी या विलंब के लिए कोई संदेह और कोई जगह नहीं है। जिस तरीके से नृपेंद्र मिश्रा को नियुक्त किया गया था और जब उसके लिए एक अध्यादेश की जरूरत थी तो जिस तरीके से यह किया गया, वह एक अफसर के लिए वाकई अद्भुत था। कई मंत्रियों ने संसद के लिए चुने जाने से पहले ही ऑफिस ले लिए। अगर किसी विशेष काम के लिए कोई मुख्यमंत्री सबसे सही व्यक्ति है तो वह उसे एक छोटे से राज्य से केंद्र में लेकर आए और उसे सबसे संवेदनशील और भारी जिम्मेदारी वाले मंत्रालयों में से एक जिम्मेदारी सौंपी। अगर रेलवे को आकर्षक नहीं बल्कि असल में सतही बजट की जरूरत थी, तो उन्होंने रेलवे के विज़न को ऐसे तरीके से पेश किया जिससे अल्पकालिक लक्ष्यों से समझौता किए बिना भी दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

दुनियाभर में उनकी मौजूदगी से विदेशियों की उस सोच में बहुत बड़ा बदलाव आया है, जिससे पहले वे हमें देखते थे। मैडिसन स्क्वेयर का जादू और शंघाई योगा कोई साधारण काम नहीं हैं। इन्होंने वैश्विक नजर रखने वालों पर गहरा प्रभाव डाला है जो उपनिवेशवाद, अधीनता और गरीबी के पिछले दो सौ सालों में गुम था। प्रधानमंत्री बनते ही भूटान यात्रा और शपथ ग्रहण के वक्त ही अपने पड़ोस की बात में उनकी दूर दृष्टि की झलक दिखाई दी। मंगोलिया जाने वाले पहले भारतीय पीएम का दशकों बाद कई देशों के प्रमुखों से हाथ मिलाना उनके ग्लोबल विजन और आज के दौर की बेहतरीन समझ का उदाहरण है। मोदी की यह दृष्टि यह बताने के लिए काफी है कि वह समझते हैं कि यह ऐसा युग है जहां विदेश में रहने वाले भारतीय उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने भारत में रहने वाले।

21 जून का इंतजार कीजिए जब दुनियाभर के 177 देशों में बड़ी संख्या में लोग योगा करेंगे और यह ग्रह भारतीय संस्कृति में रंगा हुआ नजर आएगा। भारत ने जिस अद्भुत निर्णय लेने वाले शख्स को पूरे यकीन और पूर्ण बहुमत के साथ चुना है, उस पर भरोसा करने की हिम्मत रखिए।

एक नेता का उदय हुआ है। उसे थोड़ी जगह और अपना हाथ दीजिए। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी सोच मिले या नहीं, उसकी सफलता सुनिश्चित करने में हर भारतीय भागीदार है।

यह देश के लिए सबसे नाजुक दौर है। हमने ऊंचे लक्ष्य तय किए हैं और देश हर मुश्किल लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है। देश की रफ्तार पर किसी चीज का असर नहीं पड़ना चाहिए। छोटी-मोटी, व्यक्तिगत और किसी तरह की राजनैतिक मुनाफे की बातें आड़े नहीं आनी चाहिए जैसा सैकड़ों वर्षों से हमने बाहरी आक्रमणकारियों, लुटेरों और उपनिवेशवादियों को आमंत्रित कर किया।

एक बार व्यक्तिगत मिशन, विचारधाराओं और पार्टियों के हित से हटकर हमारी नजर में देश को आगे बढ़ने दीजिए। तब जाकर शायद हम देख पाएंगे कि हमारे प्रधानमंत्री को कितना साथ मिल रहा है, भारत को दुनियाभर में कहां से रणनीतिक साझेदारी मिल रही है? उसकी सराहना, उसके गुणगान की जरूरत होगी, यह मायने नहीं रखता कि किस विचारधारा की पार्टी के हाथ में है सत्ता।

प्रधानमंत्री की सफलता इस दौर की जरूरत है, इसका कोई विकल्प नहीं।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

हमें वीर केशव मिले आप जबसे : संघ गीत

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का प्रमाण

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है

भाजपा का संकल्प- मोदी की गारंटी 2024

हम भाग्यशाली हैं कि मोदी जी के कार्यकाल को जीवंत देख रहे हैं - कपिल मिश्रा

रामसेतु (Ram - setu) 17.5 लाख वर्ष पूर्व

नेशन फस्ट के भाव से सभी क्षेत्रों में अपनी अग्रणी भूमिका निभाएं - देवनानी