धारा ३७० मात्र एक अंतरिम व्यवस्था : अरुणकुमार



धारा ३७० मात्र एक अंतरिम व्यवस्था, कोई विशेष दर्जा या शक्ति नहीं : अरुणकुमार


नागपुर, दि. ३० जून.धारा ३७० द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा या शक्ति प्राप्त है, यह मात्र एक भ्रम है. वास्तव में धारा ३७० उस समय की राज्य की स्थिति को देखते हुए की गई अंतरिम व्यवस्था है, ऐेसा प्रतिपादन जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के निदेशक अरुणकुमार ने किया. वे आर. एस. मुंडले धरमपेठ कला-वाणिज्य महाविद्यालय एवं जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर नागपुर द्वारा महाविद्यालय के वेलणकर सभागृह में ‘जम्मू-कश्मीर : तथ्य और विपर्यास’ इस विषय पर आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे.

अपना मुद्दा स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि, जम्मू-कश्मीर का जब भारत में विलय हुआ, तब वहॉं युद्ध चल रहा था. उस समय की व्यवस्था के अनुसार वहॉं  संविधान सभा बन नहीं सकती थी. १९५१ में वहॉं संविधान सभा का निर्वाचन हुआ और इस संविधान सभा ने ६ फरवरी १९५४ को राज्य के भारत में विलय की पुष्टी की. १४ मई १९५४ को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अस्थायी अनुच्छेद (धारा) ३७० के अंतर्गत संविधान आदेश जारी किया और वहॉं कुछ अपवादों और सुधारों के साथ भारत का संविधान लागू हुआ.

इसके बाद यह धारा समाप्त कर जम्मू-कश्मीर में भी भारत का सामान्य संविधान लागू होना अपेक्षित था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. क्योंकि, धारा ३७० के कुछ प्रावधान अन्य राज्यों के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन करनेवाले है लेकिन जम्मू-कश्मीर के राजनेताओं के राजनितिक लाभ लिए लाभकारी है. अत: उनका धारा ३७० कायम रखने का आग्रह है.

लेकिन इस धारा ३७० के कारण, १९४७ में पाकिस्तान से राज्य में आए हिंदू शरणार्थी तथा भारत के अन्य राज्यों से वहॉं जाकर वर्षों से रहनेवाले लाखों नागरिक राजनितिक, आर्थिक और शिक्षा से संबंधि अधिकारों से वंचित है. वहॉं अनुसूचित जनजाति के नागरिकों को भी राजनितिक आरक्षण नहीं मिलता. आज भी वहॉं भारतीय संविधान की १३५ धाराऐं लागू नहीं है.

जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के सचिव आषुतोष भटनागर ने राज्य के स्थिति की जानकारी देते हुए बताया कि, ८० के दशक के अंत में जम्मू-कश्मीर में शुरु हुआ हिंसाचार अब बहुत कम हुआ है. राज्य का करगिल, लेह, लद्दाख, जम्मू यह बहुत बड़ा क्षेत्र अलगाववाद से दूर और शांत है. श्रीनगर और घाटी के कुछ क्षेत्र में अलगाववादी कुछ सक्रिय है. लेकिन उनकी गतिविधियों को मीडिया में अतिरंजित प्रसिद्धि मिलती है, इस कारण पूरे राज्य में अशांति है, ऐसा गलत चित्र निर्माण होता है, यह वहॉं के वास्तव के विपरित है.

दोनों ही वक्ताओं ने नागरिकों से आवाहन किया है कि, लोग जम्मू-कश्मीर की वास्तविक स्थिति को जाने और वहॉं संपूर्ण सामान्य स्थिति निर्माण करने में सहयोग दे.

धरमपेठ शिक्षण संस्था के उपाध्यक्ष रत्नाकर केकतपुरे की अध्यक्षता में हुई इस कार्यशाला में अतिथियों का स्वागत प्रा. संध्या नायर और मीरा खडक्कार इन्होंने किया, कार्यक्रम का संचालन पत्रकार चारुदत्त कहू ने और आभार प्रदर्शन डॉ. अवतार कृशन रैना ने किया. इस कार्यशाला में शहर के गणमान्य पत्रकार, शिक्षाविध, राज्यशास्त्र के अभ्यासक और विधि शाखा के जानकार उपस्थित थे

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