हिन्दुत्व : धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो !



हिन्दुत्व
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो,
प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो !
प्रस्तुतकर्ता सूबेदार जी पटना

http://dirghatama.blogspot.in/2015/03/blog-post_29.html

            भारतीय संस्कृति के प्रखर उपासक महान विद्वान स्वामी करपात्री  जी महराज को कौन नहीं जनता, उनकी लौकिक पढ़ाई बहुत कम थी उन्होने गंगा जी की परिक्रमा की और वे वेद, वेदांग, उपनिषद और पुराणों के महान ज्ञाता बनकर आ गए वे भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं धर्म संघ स्थापना कर धर्म प्रचार मे लग गए, एक बार मध्य प्रदेश के एक गाँव मे प्रवास पर थे प्रवचन के पश्चात वे जो जय घोष लगाते वह संस्कृत मे होता था एक छोटी सी बालिका आई और करपात्री जी से कहा स्वामी जी यदि आप इस जय घोष को हिन्दी मे कहते तो हमारी भी समझ मे आता, करपात्री जी को यह बात ध्यान मे आ गयी और उन्होने उसी उद्घोष को हिन्दी मे कहा ''धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो'' आज यह जय घोष भारतीय संस्कृति का उद्घोष बन गया ।

धर्म की जय हो -----------------!
      भारतीय संस्कृति मे धर्म क्या है नैतिकता, राष्ट्रिय चरित्र, कहते हैं की 'धृति क्षमा दमों अस्तेय ------ दसकम धर्म लक्षणम' इत्यादि दस धर्म के लक्षण हैं जैसे धर्म शाला, धर्म पत्नी यानी जहां -जहां धर्म शब्द लगा है वहाँ समाज का विस्वास, पवित्रता, नैतिकता, सामाजिक बंधन, परिवार, काका-काकी, मामा-मामी  ऐसे रिस्ते जो हमे व समाज को बांधे रखता है उसे भारत मे धर्म कहते हैं, भगवान श्रीराम ने एक आदर्श कायम किया उनकी सादगी, सरलता, भाइयों के प्रति कैसा प्रेम की राज्य नहीं लेना चाहते दोनों, राम का जीवन संस्कृति की ब्याख्या, परिभाषा जीवन मूल्य और सर्वसमावेशी है वे एक दूसरे को गद्दी पर बिठाना चाहते हैं, जहां श्रीक़ृष्ण धर्म स्थापना हेतु महाभारत कराते हैं, वास्तव मे यही हिन्दू धर्म है जो विश्व का सर्व श्रेष्ठ धर्म है जहां केवल मानव मात्र ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी, जीव- जन्तु सबकी चिंता का विधान है जहां प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भाव है वहीं इसके सरक्षण, संबर्द्धन मे पुण्य माना जाता है इसी धर्म की जय हो ।

अधर्म का नाश हो-------!
            अधर्म का नाश हो यानी क्या ? हमे विचार करना है की अधर्म क्या है जिसका नाश हो जो नैतिकता का विरोधी हो, जिसका ब्रंहांड  मे विस्वास नहीं जिसमे पूर्णता मे विस्वास नहीं जहां चरित्र का कोई महत्व नहीं, जहां सम्बन्धों पर विचार नहीं, जहां गोत्र का कोई संबंध नहीं, जिनका प्रकृति का संरक्षण नहीं करते, नहीं जो पीपल, तुलसीआदि औसधियों को नष्ट करना विचार, जिनका नदियों मे मातृत्व का भाव नहीं यानी जल का संरक्षण नहीं जिनका भारत के प्रति माता का भाव नहीं जो गाय को माता नहीं मानते उसे को काटने मे जन्नत महसूस करते हैं जिनका वेद व भारतीय वांगमय मे विस्वास नहीं भारतीय महापुरुषों मे विस्वास नहीं यहाँ के तीरथों मे आस्था नहीं वह अधर्म है मै एक कथा बताता हूँ ''एक बार मुहम्मद साहब अपने घर मे गए अपनी पुत्र वधू स्नान कराते हुए देखा उसके साथ बलात संबंध बना लिया जब उनका लड़का घर पर आया तो उन्होने बताया कि अल्लाह का ''इलहाम'' आया है कि अब ये तुम्हारी माँ है और मेरी पत्नी '' भारत मे कम से कम इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन इस्लाम मे भाई-बहन का बिवाह जायज है, इसायियों मे केवल अगूठी बदलते हैं यह सब भारत मे अधार्मिक माना जाता है  तो इसका नाश (समाप्त) हो ---!

प्राणियों मे सद्भावना हो -----!
      प्राणियों मे सद्भावना माने क्या ? हिन्दू समाज मे केवल मनुष्य का ही चिंतन नहीं किया गया तो प्राणी मात्र का चिंतन है कहा जाता है कि प्रत्येक मानुषे को पाँच पेड़ लगाने चाहिए, पीपल का बृक्ष, तुलसी का पौधा नहीं काटना तो नीम का बृक्ष घर के बाहर लगाना यानी हमने पेड़-पौधों मे भी आत्मा का दर्शन किया, हिन्दू धर्म के अनुसार केवल गाय को गो ग्रास ही नहीं निकालना तो चींटी को भी चारा देना हाथी मे गणेश का दर्शन करना यहाँ तक 'सूकर' भी विष्णु का अवतार माना जाता है इतना ही नहीं सर्प की भी पूजा उसे दूध पिलाने की परंपरा गरुण भगवान विष्णु की सवारी है तो चूहा गणेश जी का हमारे पूर्वजों (ऋषियों-मुनियों ) ने लाखों करोणों वर्षों मे सम्पूर्ण समाज का चिंतन करते हुए सभी की चिंता, सभी मे सदभना बनी रहे ऐसा समाज खड़ा किया ।

 विश्व का कल्याण हो----------!
        विश्व का कल्याण हो यानी क्या यह हमे समझने की अवस्यकता है कल्याण क्या है -? एक वार धरती को भगवान ''सूकर'' ने बचाया था, भगवान श्रीरामचन्द्र ने रावण का बाधकर विश्व कल्याण किया था तो हृणाकश्यप का बध नरसिंघ भगवान ने किया था द्वापर और कलयुग के संधि काल मे भगवान कृष्ण ने कंस ही नहीं तो धर्म स्थापना हेतु महाभारत करवाया था, भगवत गीता मे उन्होने कहा ''यदा -यदाहि धरमस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजामिहम'' जब-जब धर्म की हानी होती है मै आता हूँ बिधर्मियों का संहार करता हूँ, वर्तमान मे विश्व कल्याण करना यानी क्या करना जो मानवता का नुकसान कर रहे हैं जो गोबध कर रहे हैं जो विश्व मे हिंसा यानी धर्म के नाम पर अपने को स्वयं भू खलीफा सिद्ध कर हजारों लाखों की हत्या कर रहे हैं जो यह कहते हैं की मेरी ही बात सत्य है मेरा ही धर्म मानने योग्य है मेरा ही पूजा स्थल साधना योग्य है शेष को न जिंदा रहने का अधिकार है न मठ, न मंदिर बनाने का सभी नष्ट करना, सभी ग्रंथागारों को नष्ट करना अथवा करना चाहते हैं, इन राक्षसों को समाप्त करना यानी इन्हे समाप्त करना, जिस मानवतावादी संस्कृति की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप ने जीवन भर संग्राम किया, क्षत्रपति शिवा जी महराज ने अफजल खान जैसे आतताईयों की बध किया, गुरु गोविंदसिंह ने पिता, पुत्र सहित अपने प्रिय शिष्यों के बलिदान का आवाहन किया, वीर बंदा बैरागी ने अपने बंद-बंद नुचवाया, भाई मतिदास ने आरे से शरीर को चिरवाया, जिस विश्व कल्याण कारी संस्कृति की सुरक्षा हेतु गुरु तेगबहादुर का बलिदान हुआ धर्म वीर संभाजी राजे ने अप्रितम आहुति दी इन महापुरुषों ने जो किया वही विश्व का कल्याण का मार्ग है ।
      अपने मठ, मंदिर और गुरुद्वारों मे पूजा के पश्चात हम केयल यह जय-घोष ही करेगे या विश्व के कल्याण मे कोई भूमिका भी निभाएगे आइए विचार करें।    

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