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हां हम तैयार हैं की भारतीय नीति स्वागत योग्य है,पाकिस्तान को चेतावनी जरूरी थी - अरविन्द सिसौदिया

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    हां हम तैयार हैं की भारतीय नीति स्वागत योग्य है,पाकिस्तान को चेतावनी जरूरी थी  - अरविन्द सिसौदिया 9414180151 अफगानिस्तान से अमरीका अपने तमाम साथियों के साथ जा चुका हे। अफगानिस्तान में नया निजाम अस्थिर है, कमजोर है, अपरिपक्व है। सब कुछ उसके नियंत्रण में भी नहीं हे। अन्य आतंकी गुटों के भी ठिकानें हे। वहीं तालिबान लम्बे समय से कुछ देशों पर आश्रित भी रहा ही है, उनके रहमो करम का कर्जदार भी हे। भारत सरकार और उसके रक्षा मंत्री की चिन्ता भी सही हे, कि अफगानिस्तान का बेचा फायदा उठानें की कोशिशें होंगी, उसकी जमीन का बेजा इस्तेमाल भी हो सकता हे। अफगानिस्तान के नाम पर पाकिस्तान स्वंय की जमीन से भी बदनियत का संचालन कर सकता हे।   इसी क्रम में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कुछ बयानों वक्तव्यों के द्वारा बहुत ही स्पष्टता से कह दिया है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध है। वह किसी दूसरे देश में घुस कर भी शत्रुओं को खत्म करने करनें की ताकत रखता है। यह बदनियत पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश है। वहीं अपरोक्ष रूप से तालिबान शासकों को भी यह चेतावनी है। हलांकी तालिबान ने कई बार कहा है कि वह अफगानिस्

सर्व देवाध्यक्ष श्री गणेश जी का दिन : बुधवार

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   श्री गणपतिजी की कथा - अरविन्द सीसौदिया 9414180151         भारतीय संस्कृति में निहित भक्ति एवं शक्ति का पर्व अनन्त चतुर्दशी महोत्सव, मूलतः दो प्रमुख पर्वों के मध्य मनाया जाता है। यह गणेश जी के जन्मोत्सव ‘गणेश चतुर्थी‘‘ से  प्रारंभ हो कर ‘‘श्री अनन्त चतुर्दशी‘‘  तक के 10-11 दिन की अवधि में मनाया जाता है। इस दौरान गणेश चतुर्थी को घरों में गणेश जी की प्रतिमाओं तथा मोहल्लों में झांकियो की स्थापना होती है। नित्य प्रातः सायं पूजा अर्चना एवं आरती होती है, भक्ति संध्याएं आयोजित की जाती हैं तथा श्री अनन्त चतुर्दशी के दिन इन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। अनेकानेक स्थानों पर यह विसर्जन शोभा यात्रा के रूप में सम्पन्न होता है। श्री गणेश जन्मोत्सव         ऐसा माना जाता है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (चौथ) को आदि शक्ति, पंच देवों में प्रथम पूज्य, गणपति का जन्म शिव-पार्वती की द्वितीय संतान के रूप में हुआ तथा इसी कारण यह दिन धार्मिक रूप से ‘‘गणेश चतुर्थी व्रत‘‘ के रूप में सम्पूर्ण देश में मनाया जाता है। लोक मान्यता यह भी है कि गणेश जी के जन्म के 10 दिन तक उत्सवों का आयोजन हुआ था और इसी कारण प्

भगवान श्रीकृष्ण जैसा पुरूषार्थ पूर्ण जीवन का प्रण लें - अरविन्द सिसौदिया

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      भगवान श्रीकृष्ण जैसा पुरूषार्थ पूर्ण जीवन का संकल्प लें - अरविन्द सिसौदिया   भगवान श्रीकृष्ण की ही तरह पुरूषार्थ पूर्ण जीवन का संकल्प लें - अरविन्द सिसौदिया आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर हम सभी को एक प्रण लेना चाहिये कि “ हम अपने धर्म, संस्कृति, सभ्यता की रक्षा के लिये भगवान श्रीकृष्ण जी की ही तरह पूर्ण पुरूषार्थ करेगें। हमारे लिये देशधर्म की रक्षा ही सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय होगा। हम सभी को अपने जीवन से भी ज्यादा,महत्वपूर्ण हमारी मातृभूमि का अनन्त - अनन्त काल तक चलने वाला जीवन हे। हम अपने कर्म, व्यवहार एवं जीवन शैली से भारत माता को  अक्क्षुण्य बनाये रखने के लिये , मातृभूमि की एक वीर संतान की भांती समस्त कर्त्तव्यों को पूरा करेंगे । हम भगवत गीता को सिर्फ पढ़ेंगे नहीं अपितु अपने जीवन में उतारेंगे। भगवान श्रीकृष्ण के शौर्यपूर्ण जीवन की ही तरह अपना जीवन भी शौर्य से परिपूर्ण बनायेंगे। बिना किसी से डरे, भय मुक्त हो कर मातृभूमि के लिये अपने आप को समर्पित रखेंगे । भक्ति भी करेगे शक्ति के साथ, शास्त्र भी पढ़ंगे शौर्य के साथ । आत्मा अजर अमर अविनाशी है जो सम्भावामी युगे युगे की तरह न

कौन कहता हे भगवान आते नहीं,

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         अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी बल्लभम। कौन कहता हे भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं। कौन कहता है भगवान खाते नहीं, बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं। कौन कहता है भगवान सोते नहीं, माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं। कौन कहता है भगवान नाचते नहीं, गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं। नाम जपते चलो काम करते चलो, हर समय कृष्ण का ध्यान करते चलो। याद आएगी उनको कभी ना कभी, कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी।

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की

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      आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की । हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥ जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की । गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ ॥ आनंद उमंग भयो...॥ आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की । हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥ आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की । हाथी घोडा पालकी, जय कन्हिया लाल की ॥ गौ चरने आये, जय हो पशुपाल की । गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ कोटि ब्रह्माण्ड के, अधिपति लाल की । नन्द के आनंद भयो, जय कन्हिया लाल की ॥ गौ चरने आये, जय हो पश

तेरी माया का ना पाया कोई पार, की लीला तेरी तु ही जाने,

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      तेरी माया का ना पाया कोई पार, की लीला तेरी तु ही जाने, तेरी माया का ना पाया कोई पार, की लीला तेरी तु ही जाने, तु ही जाने ओ, बंदी ग्रह मे जन्म लिया और पल भर वहाँ ना ठहरा, टूट गये सब ताले सो गये देते थे जो पहरा, आया अम्बर से संदेश मानो वासुदेव आदेश, बालक लेके जाओ नंद जी के द्वार, की लीला तेरी तु ही जाने, बरखा प्रबल चँचला चपला कंस समान डरावे, ऐसे मे शिशु को लेकर कोई बाहर केसे जाये, प्रभु का सेवक शेषनाग देखो जागै उसके भाग, उसने फण पे रोका बरखा का भार, की लीला तेरी तु ही जाने, वासुदेव जी हिम्मत हारे देख चढ़ी जमुना को, चरण चूमने की अभिलाषा की हिम्गिरि ललना को, तुने पग सुकुमार दिये पानी मे उतार, छू के रस्ता बन गई यमुना की धार, की लीला तेरी तु ही जाने, नंद के घर पहुँचे यशोदा को भाग्य से सोता पाया, कन्या लेकर शिशु छोड़ा तो हाये रे मन भर आया, कोई हँसे चाहे रोये तु जो चाहे वही होय, सारी बातो पे तुझे है अधिकार, की लीला तेरी तु ही जाने, लौ आगई राक्षसी पूतना माया जाल बिछाने, माँ से बालक छीन के ले गई बिष भरा दुध पिलाने, तेरी शक्ति का अनुमान कर ना पाई वो नादान, जिस को मारा तुने उसको दिया तार, की ल

बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया, सब की आँखों का तारा

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     बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया सब की आँखों का तारा मन ही मन क्यों जले राधिका मोहन तो है सब का प्यारा ॥ बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया..॥ जमना तट पर नन्द का लाला जब जब रास रचाये रे तन मन डोले कान्हा ऐसी बंसी मधुर बजाये रे सुध-बुध भूली खड़ी गोपियाँ जाने कैसा जादू डारा ॥ बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया..॥ रंग सलोना ऐसा जैसे छाई हो घट सावन की ऐ री मैं तो हुई दीवानी मनमोहन मन भावन की तेरे कारण देख बाँवरे छोड़ दिया मैं ने जग सारा बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया सब की आँखों का तारा मन ही मन क्यों जले राधिका मोहन तो है सब का प्यारा

श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

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   सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे, तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ हे नाथ नारायण...॥ पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ हे नाथ नारायण...॥ ॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी...॥ बंदी गृह के, तुम अवतारी कही जन्मे, कही पले मुरारी किसी के जाये, किसी के कहाये है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥ है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥ गोकुल में चमके, मथुरा के तारे हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ अधर पे बंशी, ह्रदय में राधे बट गए दोनों में, आधे आधे हे राधा नागर, हे भक्त वत्सल सदैव भक्तों के, काम साधे ॥ सदैव भक्तों के, काम साधे ॥ वही गए वही, गए वही गए जहाँ गए पुकारे हे नाथ नारायण वासुदेवा॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ पितु मात स्वामी सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥ गीता में उपदेश सुनाया धर्म युद्ध को धर्म बताया कर्म तू कर मत रख फल की इच्छा यह सन्देश तुम्ही से पाया अमर है गीता के बोल सारे हे नाथ नारायण

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं

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  श्री कृष्ण की आरती भजन भगवान  श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं, हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं । आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं, श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो मन मोहे । देख छवि बलिहारी मैं जाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी । मैं उन चरणों के दर्शन पाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ दास अनाथ के नाथ आप हो, दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो । हरी चरणों में शीश झुकाऊं । ॥ श्री बांके बिहारी...॥ श्री हरीदास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो। देख युगल छवि बलि बलि जाऊं। ॥ श्री बांके बिहारी...॥ श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं, हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं। आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं, श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं।

ईश्वर की विराट शक्तियों का दिग्दर्शन श्रीकृष्ण

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  ईश्वर की विराट शक्तियों का दिग्दर्शन श्रीकृष्ण - अरविन्द सिसौदिया 9414180151 किसी को भगवान यूं ही नहीं मान लिया जाता, वह समय समय पर इसको प्रमाणित भी करता रहता हे। तब जाकर भगवान होता है। कंस एक क्रूर शासक था, उसने अपने पिताश्री को तक जेल में डाल दिया था, जो कि पाप और अधर्म की पराकाष्ठा थी । तब श्री हरि भगवान विष्णु अपने साथी शेष नाग जी के साथ , पाप से लडने और उसे परास्त करने का मार्ग दिखाने पृथ्वी पर अवतरित होते है। वे चोरे छुपे पृथ्वी पर नहीं आते बल्कि इसकी आकाशवाणीं करवाते हैं कि “हे कंस तेरी सगी बहन का अठवां पुत्र तेरा वध करेगा। “ ये ईश्वरीय व्यवस्था की पापी कंस को चुनौती थी। बचना हो तो बचले, तेरे पास जो उपाय हैं वह करले ।  देवकी का  आठवां पुत्र तेरा वध करेगा। कंस ने सगी बहन को कारागार में डाल दिया, जब भी संतान उत्पन्न होता, उसे स्वंय मारता था, मगर ईश्वर की अपनी शक्तियों का दिग्दर्शन देखिये कि सातवीं संतान के रूप में शेष नाग माता देवकी के गर्भ में आये | उन्हे योग माया से वासुदेव की पहली पत्नी माता रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया, बलराम एवं बलदाऊ नाम से विख्यात हुये। कोई कल्प