संतोषी जीवन ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है - अरविन्द सिसोदिया santoshi jeevan

Arvind Sisodia: -
विचार - 
संतोषी जीवन ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है , वर्ना संपत्तियाँ सर्वदुःख का कारण बनती हैं ।

- बिल्कुल! संतोषी जीवन ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है। जब हम संतुष्ट होते हैं, तो हमारा मन शांत और संतुष्ट रहता है, और हम अपने जीवन को अधिक आनंद और संतुष्टि के साथ जीते हैं।

संतोषी जीवन के कई फायदे हैं:

1. _शांति और संतुष्टि_: संतोषी जीवन से हमें शांति और संतुष्टि मिलती है, जो हमारे जीवन को अधिक आनंदमय बनाती है।
2. _मानसिक स्वास्थ्य_: संतोषी जीवन से हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है, क्योंकि हम तनाव और चिंता से मुक्त रहते हैं।
3. _संबंधों में सुधार_: संतोषी जीवन से हमारे संबंधों में भी सुधार होता है, क्योंकि हम अधिक सहानुभूति और समझ के साथ दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं।
4. _आत्म-संतुष्टि_: संतोषी जीवन से हमें आत्म-संतुष्टि मिलती है, जो हमें अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और संतुष्ट बनाती है।

दूसरी ओर, असंतोषी जीवन से हमें कई समस्याएं हो सकती हैं:

1. _तनाव और चिंता_: असंतोषी जीवन से हमें तनाव और चिंता हो सकती है, जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।
2. _संबंधों में तनाव_: असंतोषी जीवन से हमारे संबंधों में भी तनाव हो सकता है, क्योंकि हम अधिक आलोचनात्मक और नकारात्मक हो सकते हैं।
3. _आत्म-संदेह_: असंतोषी जीवन से हमें आत्म-संदेह हो सकता है, जो हमें अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और संतुष्ट बनाने से रोक सकता है।

इस प्रकार, संतोषी जीवन ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है, और हमें अपने जीवन को अधिक आनंदमय और संतुष्ट बनाने के लिए संतोषी जीवन को अपनाना चाहिए।
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संतोषी जीवन और आत्मा की संपत्ति

संतोष का महत्व
संतोष, जिसे संतुष्टि या आत्मार्पण के रूप में भी जाना जाता है, एक मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन से खुशहाल जीवन में मदद करता है। यह केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के समग्र हित में भी योगदान देता है। संतोषी जीवन जीने का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखता है और जो कुछ भी उसके पास है, उसीसे अपनी जरूरतों को पूरी करते हुए खुश रहता है।

भौतिक संपदा का प्रभाव
इसके विपरीत, जब लोग भौतिक संपदा की अधिकता की खोज में रहते हैं, तो वे अक्सर तनाव, चिंता और असंतोष का अनुभव करते हैं। संपत्तियाँ जैसे सुख सुविधाओं के प्रति अति आकर्षण , धन दौलत, विलासितापूर्ण जीवन और अन्य भौतिक वस्तुएँ कभी किसी व्यक्ति को खुश नहीं कर पातीं; इनका अंत नहीं होता ।  इसके बजाय ये दुखों का, तनावों का  कारण बनते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति अधिक धन खोज के लिए काम करता है, तो वह अपना व्यक्तिगत मूल्यांकन और मानसिक स्वास्थ्य को समस्याओं से भर लेता है।

आत्मा की संपत्ति,
आत्मा की संपत्ति, उसकी आंतरिक शांति और संतोष से है जो एक व्यक्ति को उसके भीतर से मिलती है। यह किसी भी बाहरी चीज़ पर अविलंबित नहीं है। आत्मा की संपत्ति तब प्रबल होती है जब व्यक्ति अपने जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और अपने आस-पास के लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाता है।

निष्कर्ष
इस प्रकार, संतोषी जीवन ही आत्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है , क्योंकि यह मानसिक शांति और खुशी प्रदान करती है। जबकि भौतिक संपत्तियां अस्थायी सुख देती हैं, वे खो सकती हैं , अतः दुखों का कारण बन सकती हैं। यदि उनका सही तरीके से प्रबंधन न किया जाए।


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