सीआईए CIA india

सीआईए (CIA) द्वारा विभिन्न देशों में सरकारों को बदलने के लिए आंदोलनों को खड़ा करने के षड्यंत्रों के आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों में अक्सर सीआईए द्वारा राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने, चुनावों में हस्तक्षेप करने, और लोकप्रिय आंदोलनों को समर्थन देने के दावे शामिल होते हैं।

सीआईए पर आरोप:-

राजनीतिक अस्थिरता:
सीआईए पर आरोप है कि वह विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों और आंदोलनों को समर्थन देकर सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश करती है।

चुनावों में हस्तक्षेप-
सीआईए पर चुनावों में धांधली करने, उम्मीदवारों का समर्थन करने, या मतदाताओं को प्रभावित करने के आरोप भी लगते रहे हैं।

लोकप्रिय आंदोलनों को समर्थन:-
सीआईए पर लोकप्रिय आंदोलनों को बढ़ावा देने और उन्हें सरकार विरोधी प्रदर्शनों में बदलने के आरोप भी लगते हैं।
उदाहरण:
1953 का ईरान तख्तापलट:
सीआईए पर 1953 में ईरान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देग को हटाने के लिए एक तख्तापलट में शामिल होने का आरोप है।
1973 का चिली तख्तापलट:
सीआईए पर 1973 में चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अयेंदो को हटाने के लिए एक तख्तापलट में शामिल होने का आरोप है।
यूक्रेन में 2014 का विरोध प्रदर्शन:
सीआईए पर 2014 में यूक्रेन में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने और उन्हें एक तख्तापलट में बदलने का आरोप है।
सीआईए का खंडन:
सीआईए इन आरोपों से इनकार करती है और कहती है कि वह केवल अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए काम करती है।
भारत के संदर्भ में:
भारत में भी सीआईए पर विभिन्न आंदोलनों को समर्थन देने और सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगते रहे हैं।
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आपके प्रश्न का उत्तर है:


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क्या अमेरिका ने हाल ही में बांग्लादेश, अफगानिस्तान, वियतनाम में राजनीतिक आंदोलन या तख्तापलट में सीधे हस्तक्षेप किया है?


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बांग्लादेश (2024)

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने स्टूडेंट आंदोलन का राजनीतिक रूपांतर कर उन्हें सरकार विरोधी प्रदर्शन के रूप में भुनाया, खासकर क्योंकि उन्होंने अमेरिका को सैन्य आधार (St. Martin’s Island) देने से इनकार कर दिया था ।

कुछ विश्लेषकों ने कहा कि अमेरिका ने National Endowment for Democracy (NED) और National Democratic Institute (NDI) जैसे संस्थानों के माध्यम से विरोधी मीडिया और आंदोलन का समर्थन किया ।

वहीं, WikiLeaks के एक डिप्लोमैटिक सन्देश से पता चलता है कि 2014 में बांग्लादेश में एक पूर्व सेना प्रमुख ने अमेरिका से एक अस्थायी सरकार के लिए समर्थन माँगा था, लेकिन अमेरिकी दूतावास ने साफ़ इनकार कर दिया कि अमेरिका किसी तख्तापलट का समर्थन नहीं करेगा ।


** निष्कर्ष:** वर्तमान में इस बात का कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है कि अमेरिका ने बांग्लादेश में कोई तख्तापलट या आन्दोलन सक्रिय रूप से संचालित किया हो—लेकिन आलोचना और संदेह स्पष्ट रूप से मौजूद हैं।


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अफगानिस्तान (1979–2021)

सोवियत साम्राज्यवाद का विरोध करने के लिए, अमेरिका ने CIA और पाकिस्तान की ISI के माध्यम से मुजाहिदीनों को वित्तीय, सैन्य और गुप्त समर्थन प्रदान किया. यह समर्थन उस सोवियत-समर्थित सरकार को अस्थिर करने का मुख्य माध्यम बना था ।

2001 से 2021 तक अमेरिका ने फ़ौजी-राजनैतिक हस्तक्षेप का श्रम जारी रखा, जिसमें टालिबान का पतन और एक अस्थिर लोकतांत्रिक सरकार का निर्माण शामिल था। अंततः अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने तेजी से सत्ता पुनः प्राप्त की ।

** निष्कर्ष:** अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप स्पष्ट, और व्यापक स्तर पर दस्तावेजीकृत है—जिसने राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा को जन्म दिया।

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वियतनाम (1950–1970 के दशक)

CIA ने दक्षिण वियतनाम में राजनीतिक समर्थन, चुनावों में हस्तक्षेप, और Phoenix Program जैसे गुप्त अभियानों के माध्यम से राजनीतिक स्थिति नियंत्रित करने की कोशिश की ।

वियतनाम युद्ध में अमेरिका का उद्देश्य एक मित्र राष्ट्र (दक्षिण) स्थापित करना था, लेकिन ऑपरेशन अंततः विफल रहा, और 1975 में दक्षिण वियतनाम का पतन हो गया ।

** निष्कर्ष:** वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप पूरी तरह से गुप्त और व्यापक था, जिसका प्रभाव राजनीतिक रूप से और सैन्य रूप से निर्णायक रहा।
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सारांश तालिका

देश अमेरिकी हस्तक्षेप का स्वरूप

बांग्लादेश आरोप, मीडिया/NGO समर्थन, तख्तापलट की मांग पर अस्वीकार
अफगानिस्तान मुजाहिदीन सहयोग, सैन्य-राजनैतिक हस्तक्षेप, अस्थिरता
वियतनाम चुनावों में गुप्त हस्तक्षेप, राजनीतिक प्रोग्रामिंग, असफल युद्ध 
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सीआईए पर आरोपों का ऐतिहासिक और भारत-केंद्रित विश्लेषण

1. राजनीतिक अस्थिरता और चुनावों में हस्तक्षेप

सबसे विशिष्ट आरोप 1950s के केरला और पश्चिम बंगाल की राजनीति से जुड़े हैं।

पूर्व अमेरिकी राजदूत डैनियल पैट्रिक मोयनीहन ने अपनी आत्मकथा A Dangerous Place में लिखा कि CIA ने कांग्रेस पार्टी को दो बार वित्तीय सहायता दी—एक बार केरल में, और दूसरी बार पश्चिम बंगाल में—ताकि कम्युनिस्ट पार्टी को नियंत्रित किया जा सके ।

इसी तरह एल्सवर्थ बंकर्स ने कहा कि अमेरिका ने कम्युनिस्टों से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को आर्थिक मदद दी ।

नरेंद्र मोदी के तत्काल नहीं, बल्कि इंदिरा गांधी समय में इन दावों का उन्होंने स्पष्ट खंडन किया, उन्हें "malicious, motivated and absolutely baseless" बताया ।

2. जासूसी और गुप्त संचालन

1949 में CIA ने भारतीय इंटेलिजेंस के सहयोग से तिब्बती प्रतिरोधकों का समर्थन किया था, और ओडिशा के चारबातिया में गुप्त CIA बेस भी स्थापित था, जिसका उपयोग U-2 विमान द्वारा चीन की निगरानी के लिए हुआ ।

यह भी दावा किया गया है कि CIA ने भारत के परमाणु कार्यक्रमों की जाँच की, और Homi Bhabha की विमान दुर्घटना में CIA की संलिप्तता की संभावना पर अटकलें हैं ।

3. स्वतंत्र भारतीय अधिकारियों के साथ कथित संबंध

M. O. Mathai, जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के निजी सचिव थे, उन पर CIA के साथ संबंध रखने का आरोप है। भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उन्हें 1959 में पद छोड़ना पड़ा था ।

4. असत्य या मिथकीय आरोप (संविधान का दुरुपयोग, षड्यंत्र थ्योरीज़)

कुछ लोगों का मानना है कि ISRO जासूसी मामले में NASA या CIA की भूमिका थी, जो भारत की क्रायोजेनिक तकनीक को रोकना चाहती थी—हालांकि इस मामले को अदालत और CBI ने फोटो फ़्रॉड प्रमाणित किया और वैज्ञानिक नांबी नारायणन को मुआवजा दिया गया ।

और एक प्रसिद्ध घटना, पुरुलिया आर्म्स ड्रॉप (1995) के संदर्भ में आरोपी “Kim Davy” ने दावा किया कि इस ऑपरेशन में भारत सरकार, R&AW और MI5 की मिलीभगत थी—हालांकि इस पर CIA का कोई दस्तावेजी प्रमाण सामने नहीं आया ।

5. सार्वजनिक मंचों और सोशल मीडिया पर बातें

Reddit जैसे मंचों पर अक्सर लोगों ने टिप्पणी की है जैसे:

> “TIL कि CIA ने कांग्रेस को केरल में CPI सरकार को गिराने के लिए पैसा दिया, और पैसे सीधे इंदिरा गांधी को दिए गए” ।
लेकिन ये कथन आमतौर पर चर्चाओं की भाषा में होते हैं, और इन्हें ऐतिहासिक तथ्यों की जगह नहीं मानना चाहिए।

संक्षेप तालिका

प्रकार विवरण

CIA द्वारा कांग्रेस को वित्तीय सहायता मोयनीहन और बंकर्स जैसे स्रोतों से पुष्टि, लेकिन इंदिरा गांधी ने खंडन किया।

गुप्त निगरानी और बेस तिब्बती प्रतिरोधकों और U-2 मिशन से जुड़े CIA ऑपरेशन्स।

नेहरू के निजी सचिव (Mathai) CIA से सहयोग का आरोप, लेकिन प्रमाण सीमित।

अनुसंधान और षड्यंत्र प्रस्ताव ISRO फर्जी मामला, पुरुलिया ड्रॉप जैसे विवाद।

सोशल मीडिया/Reddit कथन चर्चित लेकिन संदिग्ध और अक्सर बिना ठोस प्रमाण के है।

निष्कर्ष

भारत में CIA से जुड़े कई आरोप—जैसे चुनावों में हस्तक्षेप, विरोध आंदोलन समर्थन, जासूसी—दावों-तर्कों पर आधारित हैं। कुछ का स्रोत विश्वसनीय गवाह और दस्तावेजी साक्ष्य (जैसे मोयनीहन, बंकर्स) है, जबकि अन्य सिर्फ संदिग्ध या वक्ता-प्रधान बनाने वाले कथन हैं। इसलिए, प्रत्येक मामले को स्रोत-विशेष के अनुसार सावधानी से जांचना ज़रूरी है।

यदि आप इनमें से किसी विषय, जैसे CIA-Mathai संबंध या ISRO जासूसी मामले, या किसी अन्य घटना की और गहराई से जानकारी चाहते हैं—तो बताइए, मैं और विस्तार से जानकारी साझा कर सकता हूँ।
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