सत्ता हथियाने के लिये विपक्ष की अराजकता लोकतंत्र को बड़ा खतरा - अरविन्द सिसोदिया loktantr vipaksh aarajakta

ठीक है, तो अब मैं इसे पूरा मंचीय भाषण के अंदाज़ में लिख देता हूँ—
तेज़-तर्रार लहजा, तालियों के ठहराव, नारे, और पंचलाइन के साथ।


---

सत्ता के सपने और अराजकता का खेल (मंचीय भाषण संस्करण)

(तेज़ आवाज़, जोश में)
साथियो!
आज मैं आपसे एक सीधी और साफ़ बात कहने आया हूँ…
राहुल गांधी को अब साफ़ समझ आ गया है—
कि भारत की जनता उन्हें लोकतांत्रिक रास्ते से… प्रधानमंत्री… कभी नहीं बनाएगी!
(तालियाँ — ठहराव)

क्यों?
क्योंकि उनकी सोच इस देश की मिट्टी से मेल नहीं खाती…
उनके बयान इस देश की भावना से मेल नहीं खाते…
और उनकी हरकतें?
सीधे-सीधे इस देश की आत्मा के खिलाफ हैं!

(आवाज़ ऊँची)
यह भारत—राम, कृष्ण, शिव, माँ दुर्गा की धरती है!
यहाँ की संस्कृति, यहाँ का स्वाभाविक हिंदू समाज—यही हमारी पहचान है!
और उनसे… उनका न कोई जुड़ाव है… न कोई समझ!
(“सही बात है!” — दर्शकों की आवाज़)

जब जनता का भरोसा नहीं मिलता…
तो ये लोग क्या करते हैं?
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर भारत को बदनाम करते हैं!
भारत की सेना, भारत के लोकतंत्र, भारत की संस्थाओं पर सवाल उठाते हैं!
(भीड़ से हूटिंग)

लेकिन साथियो…
भारत को न झुकाया जा सकता है… न तोड़ा जा सकता है!
हमारा लोकतंत्र—जनता के भरोसे पर चलता है… अराजकता पर नहीं!
(तालियाँ — ठहराव)

मैं आज यहाँ से साफ़ कह देता हूँ—
जो भी इस देश के खिलाफ खड़ा होगा…
वह सत्ता के सपने देख सकता है…
लेकिन वो सपना…
यहीं टूटेगा! इसी धरती पर टूटेगा!
(“भारत माता की जय!” — तीन बार)
---



---------
सत्ता के सपने और अराजकता का खेल

साथियो, आज देश एक सच्चाई देख रहा है—राहुल गांधी समझ चुके हैं कि भारत की जनता उन्हें लोकतांत्रिक रास्ते से प्रधानमंत्री कभी नहीं बनाएगी। क्यों ? क्योंकि उनकी सोच, उनके बयान और उनकी हरकतें इस देश की आत्मा के खिलाफ हैं। वहीं वे स्वयं भी इस देश की बहुसंख्यक हिंदू समाज से नहीं हैँ, यह उनका कमजोर पक्ष है।

यह भारत की भूमि, यहाँ की संस्कृति और स्वाभाविक हिंदू समाज से उनका न कोई जुड़ाव है, न कोई समझ। यही कारण है कि वह जनता के भरोसे की सीढ़ी नहीं चढ़ पा रहे।

जब जनता से मंजूरी नहीं मिलती, तो कुछ लोग नए रास्ते खोजते हैं—और यही यहाँ हो रहा है। भारत के लोकतंत्र को बदनाम करना, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि खराब करना, और यहाँ आकर भ्रम फैलाना—ये सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। इसके लिये वे टूलकिट संस्था के इशारे पर सब कुछ कर रहे हैँ।

लेकिन यह देश भूलने वाला नहीं है। भारत ने सदियों की लड़ाइयाँ लड़ी हैं, और अराजकता फैलाकर सत्ता हथियाने वालों को कभी सफल नहीं होने दिया है। आज हमारा सुरक्षा तंत्र, हमारी सेना, और देश के जागरूक नागरिक एकजुट हैं।

राहुल गांधी और उनके जैसे सोच रखने वालों को यह जान लेना चाहिए—भारत की गद्दी जनता के आशीर्वाद से मिलती है, अराजकता से नहीं। जो देश के खिलाफ खड़ा होगा, वह सत्ता के सपने देख सकता है, लेकिन वह सपना यहीं टूट जाएगा, इसी धरती पर।


---

राहुल गांधी और कांग्रेस की संदिग्ध और देश-विरोधी हरकतें

पिछले एक दशक में कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के आचरण को लेकर कई बार सवाल खड़े हुए हैं। संसद के भीतर और बाहर, उनकी रणनीति अक्सर सरकार के काम में रुकावट डालने, झूठे आरोपों के सहारे माहौल बिगाड़ने और विदेशी मंचों पर भारत की छवि खराब करने के आरोपों के घेरे में रही है।
---

1. झूठे आरोप और ब्लैकमेठीक है, तो मैं इसे तेज़-तर्रार, चुनावी भाषण जैसी भाषा में ढाल देता हूँ—जिसमें जोश, आक्रामकता और साफ़-साफ़ राजनीतिक संदेश हो।

ब्लैक मेलिंग की राजनीति

राफेल सौदा विवाद (2018-19): राहुल गांधी ने संसद और चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राफेल डील में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और बार-बार “चौकीदार चोर है” नारा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 और नवंबर 2019 में स्पष्ट किया कि सौदे में किसी तरह की अनियमितता का सबूत नहीं है। इसके बावजूद राहुल ने चुनावी लाभ के लिए यह मुद्दा उठाते रहे।

अडानी मामला (2023): हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आधार पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री और अडानी समूह के बीच ‘सांठगांठ’ का आरोप लगाया, लेकिन जब संसद में सबूत पेश करने को कहा गया तो ठोस दस्तावेज नहीं दिए। बाद में कांग्रेस नेताओं ने खुद स्वीकार किया कि यह “जांच के लिए मांग” भर थी, प्रमाण उनके पास नहीं थे।

---

2. संसद और नीतिगत पहलों में व्यवधान

संसद सत्र ठप करना (2021, 2023): किसान कानूनों और अडानी विवाद पर कांग्रेस ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर लगातार कई दिनों तक संसद की कार्यवाही बाधित की। 2021 के मानसून सत्र में लगभग 80% समय हंगामे में गया, जिससे 20 से ज्यादा बिल बिना चर्चा के पारित हुए।

जीएसटी और नोटबंदी का विरोध: 2016 में नोटबंदी और 2017 में जीएसटी लागू होने पर कांग्रेस ने सड़क से संसद तक विरोध किया, लेकिन बाद में कांग्रेस शासित राज्यों ने जीएसटी काउंसिल में कई प्रस्तावों को समर्थन दिया।
---

3. विदेशी ताकतों से कथित सहयोग और बयान

लंदन बयान (मार्च 2023): राहुल गांधी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और लंदन में भारतीय लोकतंत्र की स्थिति को “खतरे में” बताया और कहा कि “विदेशी देशों को इसमें दखल देना चाहिए।” इस बयान की आलोचना हुई कि यह भारत के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को आमंत्रण देने जैसा है।

अमेरिका और यूरोप दौरे (2022-2023): कई बार राहुल ने विदेश में भारतीय संस्थाओं, न्यायपालिका और मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए, जिन्हें सरकार और कई विशेषज्ञों ने “देश की छवि धूमिल करने की कोशिश” कहा।

विकीलीक्स संदर्भ (2010): अमेरिकी राजनयिक दस्तावेज़ों में उल्लेख था कि राहुल गांधी ने अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत में “हिंदू आतंकवाद” को पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से बड़ी चिंता बताया। यह बयान उस समय विवादों का कारण बना।
---

4. देशहित से ऊपर राजनीति

आतंकी घटनाओं पर विवादित बयान: पुलवामा हमले (2019) के बाद और बालाकोट स्ट्राइक पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री से “साबित करो” जैसी भाषा में सवाल किए, जिसे कई लोगों ने सेना की कार्रवाई पर अविश्वास माना।

कोविड-19 महामारी (2020-21): सरकार द्वारा वैक्सीन नीति और लॉकडाउन पर उठाए गए कदमों की कांग्रेस ने लगातार आलोचना की, लेकिन जब राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी, उन्होंने लगभग वही नीतियां लागू कीं।

CAA विरोध (2019-20): राहुल गांधी ने CAA को लेकर कई सभाओं में कहा कि यह “नागरिकता छीनने का कानून” है, जबकि यह केवल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए कुछ धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान था।
----------=---------

राहुल गांधी और कांग्रेस की संदिग्ध और देश-विरोधी हरकतें — संक्षेप में

कांग्रेस और राहुल गांधी का हालिया राजनीतिक रुख बार-बार यह साबित करता है कि इनके लिए देशहित से ज़्यादा सत्ता की राजनीति मायने रखती है।

झूठे आरोप: राफेल डील में “चौकीदार चोर है” नारा, सुप्रीम कोर्ट से आरोप ख़ारिज होने के बाद भी दोहराना। अडानी मामले में बड़े दावे, लेकिन संसद में सबूत न देना।

अड़चन की राजनीति: संसद सत्रों में हंगामा, बिलों पर चर्चा रोकना, जीएसटी और नोटबंदी का विरोध — फिर बाद में खुद समर्थन।

विदेशी मंचों पर देश की छवि धूमिल करना: लंदन में लोकतंत्र “खतरे में” बताना और विदेशी हस्तक्षेप की बात; अमेरिका-यूरोप में न्यायपालिका और मीडिया पर हमले।

संवेदनशील मुद्दों पर विवादित बयान: पुलवामा और बालाकोट के बाद सेना से सबूत मांगना; CAA को “नागरिकता छीनने का कानून” बताना, जबकि यह शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून था।

राहुल गांधी के ये कदम न सिर्फ़ भारत की आंतरिक एकता पर चोट करते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की साख पर भी सवाल खड़े करते हैं।
---





टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

विपक्ष का एजेंडा अवैध घुसपैठियों के नाम जुड़वाने के लिये चुनाव आयोग को डराना धमकाना - अरविन्द सिसोदिया

राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ वाले आरोप झूठे, बेबुनियाद और जनता को गुमराह करने वाले हैं। - अरविन्द सिसोदिया

"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।

राहुल गांधी देश के अधिकारों को विदेशियों के हाथों में सौंपना चाहते हैं - धर्मेंद्र प्रधान

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे