प्रधानमंत्री मोदी की सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि - अरविन्द सिसौदिया








सरदार पटेल जयंती 31 अक्टूबर पर
भारत रत्न सरदार पटेल का जन्मदिन: “ राष्ट्रीय एकता दिवस ”

प्रधानमंत्री मोदी की सरदार पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि - अरविन्द सिसौदिया


   भारत की स्वतंत्रता में एवं भारत की देशी रियासतों के एकीकरण कर आधुनिक भारत का निर्माण में, स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री तथा  गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को आजादी के बाद लम्बे समय तक वह सम्मान नहीं मिला जिसके हकदार सरदार पटेल का महती कार्य था। भारत पर नेहरूवंश की सत्ता में सरदार पटेल को समुचित सम्मान नहीं मिलना अखरता भी रहा, दुर्भाग्य देखिये कि सरदार पटेल को मृत्यु के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत रत्न दिया गया । जबकि नेहरूजी ने स्वंय के जीवन में ही अपने आपको भारत रत्न देे दिया था।  लगता है यह दर्द गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र भाई मोदी को कचोटता होगा और उन्होने सरदार वल्लभभाई पटेल को पर्याप्त  सम्मान दिलाने के प्रयास किये वे स्वागत योग्य है। और हम सभी को सरदार पटेल से जुडे कार्यक्रमों में बढ़ - चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिये।
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जिन ऐतिहासिक निर्णयों को लिया उनमें , स्वतंत्रता के पश्चात  562 देशी रियासतों का एकीकरण कर आधुनिक भारत का महान निर्माण करने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंति को “ राष्ट्रीय एकता दिवस ” नाम दिया तथा इस दिन सरकार के स्तर पर “ रन फॉर यूनिटी ” के आयोजनों के द्वारा विश्व स्तर पर सरदार पटेल को सम्मान एवं देश की ओर से श्रद्धांजली अर्पित की जानें की व्यवस्था की। जिसके योग्य सरदार पटेल हमेशा ही थे ।
    सरदार पटेल को सम्मान दिलानें का सपना नरेन्द्र मोदी की कार्य योजना में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुये ही था , जिसका परिणाम हम “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” के शिलान्यास के रूप में देख सकते है। जो कि 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुये, नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया। इसका नाम “एकता की मूर्ति“ (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है। यह मूर्ति “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी“ (93 मीटर) से दुगनी ऊंची बनेगी। इस प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया जारहा है जो केवाड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति होगी तथा यह 5 वर्ष में लगभग 2500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार होनी है। जिसका 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है।
    सरदार पटेल की जयंती के दिन रन फॉर यूनिटी को सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश अपनी-अपनी राजधानियों में राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करेंगे और युवा कार्य तथा खेल मंत्रालय 623 जिलों में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग करेंगे, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय केंद्रीय तथा नवोदय विद्यालय में कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। रेल मंत्रालय 1500 रेलवे स्टेशनों पर कार्यक्रम आयोजित करेंगे वहीं अन्य विविध मंत्रालय एवं राजनैतिक सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होंगें।
     स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार की बागडोर कांग्रेस के अध्यक्ष को मिलनी थी, जो कांग्रेस अध्यक्ष होता वही प्रधानमंत्री बनना था । महात्मा गांधी के जवाहरलाल नेहरू को समर्थन के बावजूद कांग्रेस की 15 स्टेट समितियों में से नेहरू के पक्ष में कोई प्रस्ताव नहीं मिला था, जब कि 12 स्टेट ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नाम प्रस्तावित दिया था । देश के साथ ईमानदारी होती तो सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते । महात्मा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर नेहरू को प्रधानमंत्री बनवाया जिसे आज तक देश वंशवाद एवं कश्मीर समस्या सहित अन्य कई समस्याओं के रूप में भुगत रहा हे। चीन के प्रति सरदार पटेल ने लिखित में नेहरूजी को चेताया था मगर नेहरूजी के पटेल के सुझाव और चेतावनी नजर अंदाज की जो आज भी देश के लिये नासूर बनीं हुई समस्या है।
   सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ। वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे. उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था। उन्होंने प्राइमरी शिक्षा कारमसद में ही प्राप्त की. बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। 1917 में अहमदाबाद मुनिसिपलिटी के काउंसलर चुने गए तथा सिनेटरी व पब्लिक वर्क्स कमिटी के चेयरमेन भी बने, 1923 में चुनाव जीतकर अहमदाबाद नगरपालिका के निर्वाचित अध्यक्ष बने।
   1928 में खेड़ा जिले के किसानों के बारडोली में फसल नहीं होने से टैक्स नहीं देने के “फसल नही ंतो टैक्स नहीं” सत्याग्रह अभियान का सफल नेतृत्व किया , आन्दोलन की सफलता से प्रभावित किसानों ने इनको सरदार की उपाधि दी। 1929 में महाराष्ट्र राजनैतिक सम्मलेन की अध्यक्षता की तथा पूरे महाराष्ट्र में घूमे, 1935 से 1942 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संसदीय बोर्ड के चेयरमैन रहे, 1937-39 आठ सूबों में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों के प्रवेक्षक रहे, चुनावों में उम्मीदवारों के चयन का कार्यभार भी इन्हीं पर था। संविधान सभा में सबसे महत्वपूर्ण सदस्य थे।
    सरदार पटेल अंतरिम सरकार में गृह, सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने. (जिसके मुखिया जवाहरलाल नेहरु वाइसराय की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष थे।) भारत सरकार ने 25 जून, 1947 को रियासतों के लिए सरदार पटेल अधीन एक नया विभाग बनाया गया,  जिसने सफलतापूर्वक 562 देशी रियासतों का विलय भारत में करवाया । सरदार पटेल 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री तथा गृह, स्टेट्स, सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने । सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया, यह अवार्ड उनके पौत्र विपिनभाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया। कुल मिला कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा महान राष्ट्रभक्त सरदार पटेल को वास्तविक श्रद्धांजलि स्वागत योग्य हे। वहीं मन में यह कचोटता है कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला होता तो देश की तस्वीर ही कुछ ओर ही होती ।
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