सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

बालपन से 'आप कौन से राजपूत हैं 'का जवाब 'मैं सेंगर राजपूत हूँ 'कहते हैं तब मन में जिज्ञासा होती है कि सेंगर, राजपूत कौन हैं । जिनके हम वंशज हैं।

मेरे मामाजी सेंगर हैं सो ....

 फिर मैंने राजपूतों विशेषकर सेंगर राजपूतों के उद्भव, विस्तार और वर्तमान को उपलब्ध साक्ष्यों, परम्पराओं, कुलधर्मिता, श्रुतियों, पौराणिक कथाओं और राजपूतों के उपलब्ध इतिहास को देखा, सुना,पढ़ा। 

फलतः मैंने इस राजवंश को त्रेतायुगीन श्रृंगी ऋषि से प्रारम्भ होकर आज सम्पूर्ण अविभाजित भारत व श्रीलंका तक विस्तारित पाया। चूँकि कोई क्रमबद्ध इतिहास सुलभ नहीं है अतः टूटी कड़ियों को जोड़ कर 'निश्चित रूप से ऐसा ही था 'वाला इतिहास नहीं बनाया जा सकता। लेकिन मुझे अपने प्रयास से बहुत ही आत्मसंतुष्टि मिली कि हमारी वंश परम्परा कुछ ऐसे ही यहाँ तक पहुँची है। आइए चलते हैं इस वंश यात्रा पर विहंगम दृष्टि डालने।

क्षत्रिय कौन, फिर सेंगर क्षत्रिय कौन --
हमारे सनातन धर्म या जीवन पद्धति में स्वभावज गुणों से प्रेरित कर्मों के आधार पर मानव समाज को चार वर्णों; अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र; में विभाजित किया गया है। श्री मद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय में अर्जुन के वर्ण विषयक शंका का समाधान करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट किया कि क्षत्रिय कौन है।

यथा -
शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनं। दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजं। (१८/४३ )

जिनका बहादुरी ,तेज ,धैर्य ,दक्षता ,युद्ध से अपलायन ,दान तथा ईश्वरभाव से सबका पालन करना स्वाभाविक कर्म है, वे क्षत्रिय हैं। । ए ही क्षत्रिय आगे विस्तार पाते हुए छत्तीस उपजातियों में विभाजित हुए।

 यथा -
[+दस रवि से दस चंद्र से ,बारह ऋषिज प्रमान।**

चार हुतासन सों भयो ,कुल छत्तीस वंश प्रमाण। ]

इन्ही बारह ऋषि वंशजों में सेंगर राजपूत प्रथम वरीयता क्रम में आते हैं। सेंगर अपनी आध्यात्मिक रूझान , संघर्षशक्ति एवँ बहादुरी के अतिरिक्त अपने संस्कार और सभ्यता के लिए सम्पूर्ण राजपूतों में आदरणीय रहे हैं। क्षत्रिओं के श्रृंगार कुल होने के कारण भी इन्हें सेंगर कहते हैं।इन ऋषिवंशी राजपूतों का गोत्र गौतम ,वेद यजुर्वेद ,गुरु विश्वामित्र व कुलदेवी विंध्यवासिनी हैं।इनका पहचान ध्वज लाल होता है तथा पूज्य नदी सेंगर है। बलिया संभाग के राजपूतों के कुलदेवता श्रीनाथ जी रसरा बलिया हैं। ए राजपूत दशहरे के दिन कटार की पूजा करते हैं।

सेंगरों की वंश परम्परा- रामायणकालीन साक्ष्य एवँ वर्तमान तीर्थस्थल :- श्री राम की बड़ी बहन शान्ता थीं जिनकों ग्रहीय प्रतिकूलता के कारण श्री दसरथ जी एवँ माता कौशल्या ने अंगदेश के राजा रोमपद व रानी वर्षिणी को पालन हेतु गोद दे दिया। रानी वर्षिणी और कौशल्या जी सगी बहनें थीं। इस प्रकार शान्ता की परवरिश उनकी मौसी और मौसा ने किया। एक समय जब अंगदेश में बहुत भीषण अकाल पड़ा तब राजा ने महर्षि विभाण्डक के युवा तपश्वी पुत्र श्रृंगी ऋषि को बुला कर इन्द्र पूजन का अनुष्ठान करवाया जिससे अंगदेश में खूब वर्षा हुई और सर्वत्र खुशहाली की लहर दौड़ पड़ी।

राजा और रानी अति प्रसन्न होकर शान्ता का हाथ श्रृंगी ऋषि को सौंप दिए। इस दम्पति को दो संतानें हुई 1. अर्गल से गौतम वंश और 2. पदम से सेंगर वंश चला।

 चूँकि पौराणिक काल से अंग देश बिहार के पूर्वी भाग व बंग के पड़ोस में स्थित रहा है अतः सेंगरों की वंश परंपरा वर्तमान में बिहार के लखीसराय (अंग देश) से ही प्रारम्भ होती प्रतीत होती है। यहाँ आज भी श्रृंगी ऋषि धाम नामक एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि यहीं पर श्रृंगी ऋषि और शान्ता की जीवन यात्रा से ऋषि वंश सेंगरों की उत्पत्ति हुई थी और यहीं आश्रम में श्री राम तथा उनके भाइयों का मुंडन संस्कार भी संपन्न हुआ था। परन्तु यह भी सत्य है कि रामायण काल में आगरा क्षेत्र में रुनकता के पास यमुना किनारे सिंगला गांव में श्रृंगी ऋषि की एक तपोस्थली थी जहाँ पर पूर्व वर्णित इनकी दोनों पुत्र संतानें पैदा हुई थीं। यह आज भी एक दर्शनीय स्थल है। वर्तमान में सेंगरों की सर्वाधिक बसाहट का आगरा से चल कर मैनपुरी, इटावा, जालौन, कन्नौज, कानपुर और रीवाँ के आसपास होना आगरे से आरम्भ इस वंश यात्रा की पुरजोर पुष्टि करता है।


ब्रह्मपुराण :-
एक दूसरे मत डॉक्‍टर ईश्वर सिंह मडाड रचित राजपूत वंशावली के अनुसार ब्रह्मपुराण में वर्णन आया है कि चंद्रवंशीय राजा महामना के पुत्र तितिक्षु ने भारत के पूर्वी भाग में एक राज्य स्थापित किया। इनके पुत्र बलि के पाँच पुत्र हुए जिन्हे बालेय कहा गया। इनके नाम थे अंग ,बंग ,सहय ,कलिंग और पुण्ड्रक। अंग की बींसवीं पीढ़ी में विकर्ण के सौ पुत्र हुए। सौ पुत्रों के पिता होने के कारण उन्हें शतकर्णि नाम से प्रसिद्धि मिली। इन्हीं के वंशज एक बड़े राज्य की स्थापना करते हुए पूर्वोत्तर एवँ बंग होते हुए आंध्र पहुँचे। फिर राज्य का विस्तार मालवा, विदर्भ से नर्मदा तक किया। कालान्तर में इन्हीं के वंशज सिंहबाहु के पुत्र विजय ने सन 543 में समुद्र मार्ग से जाकर लंका विजय किया और पिता के नाम पर सिंघल राजवंश स्थापित किया। इसी कारण लंका को पूर्व में सिंघल द्धीप के नाम से जाना जाता था। शातकर्णी से ही सेंगर, सिंगर, सेंगरी इत्यादि नामों से जाने जाने लगे।

कनार से जगमन पुर की यात्रा:-
ग्यारहवीं शताब्दी तक सेंगर चेदि, डाहर, मालवा, कर्णावती (रीवाँ ) व आस पास कई प्रांतों तक फैलाव ले चुके थे। जब अन्य प्रांतों में पराभव की ओर बढे, रीवाँ के मऊगंज को अपने राज्य का केंद्र बनाया। उनके द्वारा निर्मित गढ़ी जैसे नईगढ़ी, मऊगंज, मनगवां इत्यादि आज भी उनकी उत्कर्ष गाथा हैं। कालांतर में मुगलों से हाथ मिला बघेलों ने इन्हें चुनौती दिया और ये रीवाँ रियासत के अधीन हो गए। कर्णावती उदय से पहले ही सेंगरों ने जालौन, कन्नौज, इटावा, मैनपुरी में अपना दबदबा स्थापित कर लिया था।

जालौन के राजा विसुख देव ने कनार को अपनी राजधानी बनाया। इनकी शादी कन्नौज के गहरवार राजा जयचन्द की बेटी देवकली से हुई। अपनी रानी के नाम पर उन्होंने देवकली नाम का नगर बसाया और बसीन्द (बसेढ़) नदी का नाम बदलकर सेंगर नदी कर दिया। सेंगर नदी आज भी मैनपुरी, इटावा, कानपुर होकर बहती है। विसुखदेव के वंशज जगमन शाह को जब बाबर ने पराजित कर कनार को तहसनहस कर दिया तब जगमन शाह के नेतृत्व में सेंगरों ने जालौन के दूसरे भूभाग पर जगमनपुर नाम की राजधानी की नींव डाली और पुनः एक शक्तिशाली राज्य स्थापित किया। जगमनपुर के राजा आज भी सेंगरों के प्रमुख माने जाते हैं। और इस क्षेत्र के पचासों गांव में सेंगर बसते हैं जो अपने को कनारधनी कहते हैं। इन्हीं के वंशज रेलिचंददेव ने भरेह में अपनी राजधानी बनाई। इनके दसवें वंशज भगवंतदेव ने नीलकण्ठ भट्ट से भगवंत भाष्कर ग्रन्थ की रचना कराई थी। इसके बारह मयूख (अध्याय ) हैं और यह आज भी हिन्दू लॉ का प्रमुख सन्दर्भ ग्रंथ है।

वर्तमान में सेंगर राजपूतों की प्रमुख शाखाएँ चुरू, कदम्ब, बराही (बिहार,बंगाल,असम ),डहलिया आदि हैं। वर्तमान में सेंगर मध्य प्रदेश के रीवाँ और पड़ोस के उत्तर प्रदेश से जुड़े क्षेत्र जालौन,अलीगढ, फतेहपुर,कानपुर, औरैया, इटावा के भरेह, फफूंद, मैनपुरी, वाराणसी, बलिया तथा बिहार के छपरा, पूर्णिया आदि ज़िलों में पाए जाते हैं।
भरेह ,फफूँद (इटावा )से रसरा बलिया:-
कनार काल के दौरान ही तेरहवीँ शताब्दी मे भरेह , फफूंद (इटावा ) के कुछ सेंगर राजपूतों का साहसिक दल हरी (सूर) शाह और बीर शाह नाम के दो भाइयों के नेतृत्व में पूर्वांचल की ओर बढ़ा और गंगा घाघरा के बीच अपना राज्य स्थापित करने का उपक्रम किया। घने जंगल और एकान्त की स्थिति के कारण इन्हें सामरिक लाभ मिला।परिणामस्वरूप सेंगरों ने न केवल इस बड़े भूभाग को राजभरों के अधिपत्य से मुक्त कर सम्पूर्ण लखनेसर परगना पर अधिकार किया बल्कि इसके बैभव को पुनर्स्थापित किया। 

लखनेसर को शिव आराधना का महत्वपूर्ण केंद्र बनाया। इसके विशाल प्रांगण में लक्ष्मी नारायण और राधा कृष्ण मंदिर भी पूजित थे। हरी(सूर ) शाह के भाई बीर शाह के वंशज पास के सिकंदरपुर और जहानाबाद परगना तक फ़ैल गए जिन्हे आज बिरहिया राजपूत कहते हैं। रसड़ा बलिया इनके सत्ता का केंद्र रहा और यहीँ इनके पूज्य कुल देवता श्री नाथ जी की समाधि बनाई गई जो एक तीर्थ के रूप में पूजित है। यह राज्य अट्ठारहवीं शताब्दी तक एक सुगठित लोकतंत्रात्मक शासन के रूप में अनेकानेक आक्रमणों के बावजूद अविजित रहा। सेंगरों में कोई राजा नहीं, बल्कि संगठन व सामूहिक फैसले सत्ता सँभालती थी। ब्रिटिश काल में इन्होंने बनारस राज्य के राजा बलवंत सिंह व अंग्रेजों को जबरदस्त टक्कर दिया।


इन्हीं बसाहटों में रसड़ा से पंद्रह किलोमीटर दूर तमसा नदी के तट पर नगपुरा और टीका देऊरी गाँव हैं। नगपुरा गाँव से बाहर तमसा तट पर श्रीनाथ जी ( पर्याय बाबा अमरदेव, बाबा सत्य प्रकाश राव) की पाँच में से दूसरी समाधि स्थित है। श्रीनाथ जी दैवी शक्ति संपन्न सेंगर वंशीय बिभूति थे जो वहाँ सेंगरों के पथ प्रदर्शक एवं पूज्य होने के कारण उनके कुल देवता के रूप में पूजित हुए। श्रीनाथ जी शिव की आराधना करते थे और शैव मतावलम्बी थे। जिनको सेंगरों की परम्परा से परिचय पाना हो उन्हें रसरा के श्रीनाथ की समाधि पर होने वाले चक्रमणीय पञ्च वर्षीय मेले को देखना चाहिए जब बाबा को 151 क्विंटल गेहूँ का रोट चढ़ता है और देश विदेश से सेंगरों का जन शैलाब उमड़ पड़ता है। रसड़ा का श्री नाथ धाम एवं उसके चहुँ ओर फैले तालाब ,भींटे,भवन, मैदान व ,जनश्रुतियाँ हर आगंतुक को सेंगरों की गणतांत्रिक समृद्ध शासन व्यवस्था से परिचित कराते हैं।

अंततः टिका देउरी(नगपुरा ) से भदिवाँ :-
अब हम बढ़ते हैं भदिवाँ की यात्रा पर जब अट्ठारहवीं उन्नीसवीं सदी के सन्धि काल में बनारस के बरथरा (चौबेपुर ) निवासी एक रघुवंशी राजपूत ने अपनी पुत्री का विवाह टिकदेउरी के सेंगर परिवार में किया और अपने गाँव के निकट अमौली गाँव की अस्सी बीघा जमीन अपनी पुत्री और दामाद को उपहार में भेंट किया। बाद में यह दम्पति इसी जमीन पर आ बसी जहाँ भदिवाँ नाम की एक बसाहट आकार ले रही थी। धीरे धीरे इस बस्ती में ब्राह्मण, अन्य राजपूत, अहीर, सुनार, तेली, लुहार, गड़ेरी, पासी, राजभर , हेला (मुस्लिम ) इत्यादि आ बसे और यह एक पूर्ण गाँव का आकर ले लिया।आज भी यह गाँव अमौली राजस्व गाँव का उपगाँव है तथा वाराणसी के पहड़िया -बलुआ मार्ग पर दायीं ओर शहर से बारह किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जाल्हूपुर, विशुनपुरा, उकथी, सिरिस्ती, भगतुआ, अमौली और अम्बा इसके पड़ोसी गाँव हैं। वर्तमान वर्ष 2021 की स्थिति यह है कि अन्य गाँवों की भाँति इस गाँव की चहल पहल भी कहीं खो गई है और रोजगार, नौकरी के कारण परिवारों का पलायन जारी है। यहाँ से आगे भदिवां में सेंगरों की यात्रा व यथासंभव वंशावली विवरण अंकित करने का प्रयास होगा। क्रमशः----

टिप्पणियाँ

  1. शायद आपको पता हो कि सेंगर गोत्र जाटों में भी पाया जाता है।सेंगर ही क्यूँ तोमर, चौहान, सोलंकी,सिकरवार,परिहार आदि अनेक गोत्र जाटों और राजपूतों में समान रूप से पाये जाते हैं।सभी प्रबुद्ध और प्रतिष्ठित इतिहासकार इस बात पर एक मत हैं कि जाटों से ही राजपूत बने हैं।क्योंकि सातवीं सदी से राजपूत शब्द जाति के रूप में इतिहास में नहीं मिलता है।हर्षवर्धन साम्राज्य के विघटन के बाद ही जाटों में से एक हिस्सा राजपूत बना होगा।विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारे विश्वविद्यालयों को नष्ट करने और जलाने से इतिहास की कड़ियाँ टूटी हैं।इस विषय पर शोध किये जाने की आवश्यकता है।आप इतिहास प्रेमी और लेखक हैं।इसलिए आप भी प्रयास कर सकते हैं।इससे शायद सेंगर क्षत्रियों के कुछ और अध्याय खुल सकें।

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    1. Main sengar rajput hu , roroo ,jaggamanpur thikana se , kripya Hume khudse mat jode , sengar rajput Hote hain , dimag ka ilaz achhe doctor se karwayen

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    2. Main sengar rajput hu , roroo ,jaggamanpur thikana se , kripya Hume khudse mat jode , sengar rajput Hote hain , dimag ka ilaz achhe doctor se karwayen

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  2. ओर जाट गुर्जर मीना क्षत्रिय मेहर मेर जाति से निकले हैं 6 टी शताब्दी से 9 वीं शताब्दी में उत्पति है

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