हिंदुओं के कर्तव्य पथ "हिंदुत्व" का ज्ञान है गीता - अरविंद सिसोदिया Geeta-Jayanti

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश उस समय दिया जब अर्जुन धर्म की रक्षा अर्थात कर्तव्य के मार्ग को छोड़कर, विचिलित होकर , भावनात्मक भ्रम में अपने कर्तव्य पथ को खो बैठा था । तब ईश्वर रूपी श्री कृष्ण ने अर्जुन को सीख के माध्यम से धर्म की रक्षा के कर्तव्य का स्मरण मानव सभ्यता को कराया था । 

 अथार्त हम हिंदुओं के हिंदुत्व का मार्ग गीता के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने हमको पुनः स्मरण कराया है ।

जबकि इससे पूर्व धर्म की रक्षा और कर्तव्य बोध को भगवान विष्णु जी ने स्वयं अनेकों बार , उनके अवतारी श्रीराम ने भी अपने धनुष बाणों से , उस समय अधर्म मार्गियों का विनाश करके यही संदेश दिया था ।

 यही तथ्य हमारे आदि देव भगवान शंकर जी ने,  अग्र पूज्य श्री गणेश जी ने,  हनुमान जी महाराज ने, तमाम हमारे देवी एवं देवताओं ने समय-समय पर समाज को इस कर्तव्य बोध के पथ पर अग्रसर रहनें की शिक्षा के रूप में ही दिया है । बहुत स्पष्ट बात है धर्म यानी मानवता की रक्षा करना ही धर्म पथ होता।

धर्म पथ अनुगामियीं अर्थात मानवता से जीवन जिनेवालों पर आक्रमण करने वाला व्यक्ति किसी भी पंथ, विचारधारा का हो वह अधर्मी हुई होता है और उसके अधर्म को नष्ट करना , समाप्त करना, पराजित करना, उससे रक्षा करना धर्म पथ पर चलने वालों का कर्तव्य होता है। यही भाव हमारी गीता का है ।

 हिंदुओं के भगवान श्री राम ने अधर्म का नाश अपने बाणों से, भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से , यही भाव हनुमान जी की गदा का है और यही भाव देवी दुर्गा के त्रिशूल का है।

याद रखिए कि प्रत्येक हिंदू को अपने हिंदुत्व का संवर्धन करना, उसे स्वच्छ रखना और उस पर होने वाले आक्रमणों का प्रतिकार करना कर्तव्य है। धर्म पथ है और यही हिंदू का हिंदुत्व है। हिन्दू पुरुषर्थी हो, पराजित होनें वाला न यही हमारे पुरुखों का संदेश है। यही महाराणा प्रताप का, यही गुरु गोविंद सिंह का, यही शिवाजी का, यही दुर्गावती का यही लक्ष्मी बाई का कर्तव्य पथ रहा है ।

गीता जयंती हम सभी को मानवता की सदमार्ग की, लोक कल्याण की रक्षा करनें के दायित्व का स्मरण कराती है और इसलिए युगा अनुकूल वर्तमान समय में हमें लोकतंत्र के जरिये  हिंदुत्व को मजबूत करके एवं  इसकी रक्षा करनें के कर्तव्य को करना है।

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-- माननीय  सुरेश जी (भय्याजी) जोशी, 
(गीता जयंती कार्यक्रम, दिसंबर 2015)

गीता में प्रारंभ का शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मर्म है. हम सब एक ही चैतन्य से निकले हैं, तो फिर संघर्ष क्यों? गीता के इसी तत्व के आधार में विश्व को एक मंच पर लाने की ताकत है, जो विश्व में शांति का आधार बनेगा. श्रीमद्भगवत गीता के तत्व को समझने वालों की संख्या पर्याप्त है, परंतु उसका अनुसरण करने वालों की संख्या बढ़ानी होगी. अतः गीता को आत्मसात करना ही जीवन है.

महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म इन दो शक्तियों के बीच का संघर्ष था. इसी युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना दायित्व बोध करवाने का काम किया है. आज पूरी दुनिया अर्जुन रूपी विशाद रोग से ग्रस्त है और उस रोग से मुक्ति का रास्ता कृष्ण उपचार यानि श्रीमद्भागवत गीता है. आज जिस तरह से दुनिया में निराशा व विषाद का माहौल है, ऐसे में श्रीमदभागवत गीता के तत्व ज्ञान की आवश्यकता है. गीता में मनुष्य के मन बुद्धि में से निराशा निकालने का सामर्थ्य है. श्रीमद्भागवतगीता विश्व का मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है. 

भारत दुनिया में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाए, इसके लिए गीता को प्रत्येक व्यक्ति को अपने आचरण में अपनाना जरूरी है. श्रीमद्भागवत गीता हमें प्रेरणा देती है. एक आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रेरित करती है. आत्मज्ञान पैदा करती है और एक दूसरे से जुड़़ना सिखाती है. इस सद्भाव व समरसता से ही हम दुनिया को सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और विश्व को एक मंच पर ला सकते हैं.

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