भक्त प्रहलाद : Bhagat Prhlad
भक्त प्रहलाद जी : Bhagat Prhlad
आदिकाल में दैत्य तथा देवता भारतवर्ष में नवास करते थ, उत्तराखण्ड में श्री राम चन्द्र के अवतार से पूर्व भक्त प्रहलाद का जन्म अत्याचारी दैत्य राजा हिरनाक्श के शासनकाल में हुआ , इस भक्त की महिमा अपरंपार है. गुरुबाणी में अनेक ऐसी तुकें हैं जिनमें भक्त प्रहलाद का नाम विद्यमान है| वह राम नाम का सिमरन करता था| उस समय 'राम' का अर्थ-ईश्वर सर्व शक्तिमान है, से जाना जाता था जिसकी महिमा वेद भी गाते हैं|
प्रहलाद की कथा जिसका वर्णन पुराणों में भी आता है, उसका वर्णन इस तरह है-एक कश्यप नाम ऋषि था| वह घोर तपस्या करता था| घने जंगलों में तपस्या करने के बाद उसका मन जंगल छोड़कर मानव जीवन की तृष्णाओं की ओर आकर्षित हुआ| सामजिक बंधनों की लालसा में घूमते हुए उसका मन 'दिती' नाम की सुन्दर और नव-यौवन कन्या को देखकर डोल गया| उसने दिती से विवाह करने का प्रस्ताव रखा, जिसे दिती ने स्वीकार कर लिया| अपने माता-पिता की स्वीकृति से दिती ने कश्यप ऋषि से विवाह रचा लिया|
कुछ समय के बाद दिती के गर्भ से दो पुत्रों और एक पुत्री का जन्म हुआ| पुत्रों का नाम हिरण्यकशिप तथा हिरनाक्श और पुत्री का नाम होलिका था| बड़े होने पर दोनों पुत्रों ने तीनों लोकों में हाहाकार मचाकर राज कायम कर लिया| एक दिन हिरण्यकशिप के अत्याचार को देखकर श्री विष्णु भगवान ने विराट रूप में हिरण्यकशिप का वध कर दिया| उसकी मृत्यु से डरकर उसके भाई हिरनाक्श ने सोचा कि विराट भगवान कहीं उसका भी वध न कर दें, इसलिए वह काफी भयभीत हो गया| विराट क्योंकि देवता तथा हिरनाक्श दैत्य था, देवताओं से मुकाबला करना बड़ा कठिन था लेकिन अपने भाई हिरण्यकशिप के वध का प्रतिशोध लेने के लिए हिरनाक्श क्रोधित होकर मार्ग ढूंढने लगा| अन्त में उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके वर प्राप्ति के लिए घोर तप आरम्भ कर दिया| आंधी, वर्षा, बर्फ, गर्मी आदि सहन करते हुए तप भी इतना कठिन किया कि इन्द्र जैसे देवता घबरा गए|
इन्द्र ने हिरनाक्श की राजधानी पर हमला करके लूटमार मचा दी, जिनमें अनेक दैत्य मारे गए और हिरनाक्श की गर्भवती पत्नी किआधू को लेकर इन्द्र देवता स्वर्ग लोक चल पड़ा| जब इन्द्र हिरनाक्श की पत्नी किआधू को लेकर जा रहा था तो मार्ग में नारद मुनि जी उसको मिल गए| नारद मुनि जी त्रिकालदर्शी थे, उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा कि किआधू ऐसे बालक की मां बनने वाली है जिसका सितारा बहुत ही उज्ज्वल है और वह भक्त बनेगा| नारद मुनि ने इन्द्र को कहा-हे देवराज! लड़ाई तो पुरुषों से होती है, स्त्री पर हाथ उठाना उचित नहीं है| यह स्त्री निर्दोष है, निर्दोष स्त्री को कष्ट देना भगवान का अपमान करना है, इसलिए तुम इसको छोड़ दो|
पहले तो इन्द्र बेकार की बातें करने लगा, फिर उसको नारद मुनि की महिमा और दिव्य दृष्टि का ध्यान आया तो उसने हिरनाक्श की पत्नी किआधू को छोड़ दिया| नारद मुनि किआधू को अपने आश्रम में ले गए और अपनी पुत्री की तरह उसकी देखभाल की|
दैत्य कन्या और हिरनाक्श दैत्य की पत्नी किआधू नारद मुनि के आश्रम में रही तो उसका जीवन आचरण बिल्कुल ही बदल गया, वह भक्ति और हरिनाम का जाप करने लगी| नारद मुनि भी उसको ज्ञान की बातें सुनाया करते थे| नारद मुनि के ज्ञान का प्रभाव हिरनाक्श की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ा| कुछ दिनों के बाद किआधू ने नारद मुनि के आश्रम में ही एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया| जिसका नाम प्रहलाद रखा गया| इस बारे भाई गुरदास जी फरमाते हैं :-
घरि हरणाखस दैत दे कलरि कवलु भगतु प्रहिलादु |
पढ़न पठाइआ चाटसाल पांधे चित होआ अहिलादु |
सिमरै मन विचि राम नाम गावै सबदु अनाहदु नादु |
भगति करनि सभ चाटढ़ै पांधे होइ रहे विसमादु |
राजे पासि रुआइआ दोखी दैति वधाइआ वादु
जल अगनी विचि घतिआ जलै न डुबै गुर परसादि |
कढ़ि खड़गु सदि पुछिआ कउणु सु तेरा है |
थंम पाड़ परगटिआ नर सिंघ रूप अनूप अनादि|
बेमुख पकड़ि पछाड़िअनु संत सहाई आदि जुगादि|
जै जै कार करनि ब्रहमादी |२|
भाई गुरदास जी के वचन अनुसार वीराने में कंवल का फूल खिला, दैत्य के घर भक्त पैदा हुआ|
हिरनाक्श दैत्य ने घोर तप किया तो उसके घोर तप को देखकर ब्रह्मा जी प्रगट हुए और उसके कान में कहा-'तप प्रवान' मांग लो जो वार मांगना है|
यह सुनकर हिरनाक्श ने अपनी आंखें खोलीं और ब्रह्मा जी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-'प्रभु! मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर मरूं, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूब कर मरूं, सदैव जीवित रहूं|'
ब्रह्मा, हिरनाक्श दैत्य की यह बात सुनकर बड़े आश्चर्यचकित हुए| उन्होंने सोचा कि यह दैत्य है इसको अगर ऐसा वर दे दिया तो यह विपरीत बुद्धि वाला बड़ी ही खलबली मचाएगा| पर अब क्या करें? वचन किया था और उसका तप भी पूरा हो गया है| इसलिए उन्हें वर देना ही पड़ा| 'तथास्तु' कह कर ब्रह्मा जी अन्तर्ध्यान हो गए| हिरनाक्श उठकर खड़ा हो गया, उसे अहंकार हो गया| उसके अहंकार से सारा देव लोक घबरा गया|
वार प्राप्त करके हिरनाक्श अपनी राजधानी में पहुंचा| उसी समय नारद मुनि जी भी उसकी पत्नी किआधू और पुत्र प्रहलाद को लेकर वहां पहुंचे| नारद मुनि ने हिरनाक्श को सारी बात बताई कि इन्द्र देव ने उसकी राजधानी पर हमला करके लूट मार की है और उसको तहस-नहस कर दिया है| नारद मुनि की बात सुनकर हिरनाक्श को बहुत क्रोध आ गया| उसने अपने सारे दैत्यों को जो छिपे हुए थे एकत्रित किया और उनको अपने तप की कथा सुनाई| हिरनाक्श से यह सुनकर दैत्यों का साहसबढ़ गया| हिरनाक्श ने कहा-चलो! हम सब दैत्य एकत्रित होकर देवताओं से बदला लेंगे| तुम में से जो भी मर जाएगा वह मेरी तप शक्ति से जीवित हो जाएगा|
तब हिरनाक्श ने अपने सब दैत्यों को लेकर देव लोक पर अपनी सेना लेकर देव लोक पर अपनी सेना लेकर देवताओं की पुरियों पर हमला कर दिया| सबसे बड़ा हमला इन्द्रपुरी पर किया गया| इन्द्र देव हिरनाक्श का मुकाबला न कर सका और अपनी रानियों तथा देव दासियों सहित ब्रह्म लोक की तरफ भाग गया| हिरनाक्श ने सारी इन्द्रपुरी उजाड़ दी| देवताओं की ऐसी मार-काट की, जैसी कि किसी ने देखा न हो| अनेक देवताओं को अंगहीन कर दिया गया| इन्द्र की सेना को नष्ट करके, इन्द्र पुरी को लूट कर, अनेक अप्सराओं को अपने कब्जे में करके हिरनाक्श अपनी राजधानी में लौट आया| उसने आते ही अपने राजधानी में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कोई भी स्त्री-पुरुष किसी देवता या भगवान का नाम न ले - बस केवल यहीं जाप किया जाए कि - "जले हिरनाक्श! हरे हिरनाक्श! थले हिरनाक्श! सब शक्तियों के मालिक हिरनाक्श ही हिरनाक्श!"
सभी देवता घबरा कर भयभीत हो गए| उनकी बर्बादी का समय आ गया| सारे प्रमुख देवता भगवान विष्णु जी के पास फरियाद लेकर गए और जा कर पुकार की-हे प्रभु! आपकी महिमा तो अलोप हो रही है| सभी देवी-देवताओं का नाम मिटाया जा रहा है| विचार कीजिए इस तरह धर्म और नेकी अलोप हो जाएगी तथा अधर्म, पाप और शैतानी शक्तियां प्रबल हो जाएंगी| कोई उपाय सोचो| दैत्य हिरनाक्श को वर देकर ब्रह्मा जी ने ठीक नहीं किया | सभी देवता मारे जाएंगे|'
विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को बुलाया और पूछा कि आप ने हिरनाक्श को ऐसा वर क्यों दिया? सभी देवता भयभीत हैं| तब ब्रह्मा जी ने कहा-'हिरनाक्श ने कठोर तप करके मुझ से ऐसा वर प्राप्त किया है| अब उसकी मृत्यु का कोई उपाय भगवान ही बताएं|'
बहुत सोच-विचार कर विष्णु जी ने कहा, हे देवताओं! घबराओ मत, धर्म ही प्राय: राज करता है, अधर्म की शक्ति राज नहीं करती| हिरनाक्श की मृत्यु का कारण उसका अधर्म तथा अहंकार होगा| हिरनाक्श के घर प्रहलाद नाम का पुत्र हुआ है, उस बालक के हृदय में राम-नाम का प्रकाश होगा| यही विधि हिरनाक्श की मृत्यु का कारण बनेगी, चिंता मत करो| धर्म और अधर्म की लड़ाई आरम्भ हो जाएगी|' यह सुनकर सभी देवता प्रसन्न हो गए| वह अपने-अपने स्थानों की ओर चले गए| उनके जीवन का अंधकार दूर हो रहा था|
विष्णु भगवान ने हिरनाक्श को मारने के लिए अपने प्रयत्न आरम्भ कर दिए| उन्होंने बालक प्रहलाद के हृदय में ज्ञान और भक्ति के दैवी गुण प्रगट कर दिए| जब प्रहलाद छ: वर्ष का हुआ तो उसे पाठशाला पढ़ने के लिए भेजा गया| उस पाठशाला में और भी बहुत से लड़के पढ़ते थे|
पाठशाला के मुख्य अध्यापक प्रसन्न हुआ कि राजपुत्र प्रहलाद के पढ़ने आने के कारण उसकी बहुत शोभा होगी, उसको बहुत कुछ मिला करेगा तथा उसके जन्म-जन्मांतर की भूख दूर हो जाएगी| उसने बड़ी खुशी-खुशी प्रहलाद को पढ़ाना शुरू किया | आरम्भिक शिक्षा शुरू की | बुनियादी अक्षर पढ़ाने से पहले अध्यापक ने सब बालकों से कहा - सभी कहो कि हिरनाक्श महाराज की जय|
सब ने कहा - 'हिरनाक्श महाराज की जय|'
परन्तु बालक प्रहलाद खड़ा देखता ही रहा| वह चुप रहा| इस तरह कुछ दिन बीत गए| प्रहलाद के अध्यापक ने देखा कि प्रहलाद हिरनाक्श का नाम नहीं लेता| वह नाम लेने के समय चुप कर जाता है| यह सब विष्णु भगवान की ही प्रेरणा थी, उसने लीला खेलनी थी, सो खेलने लग पड़ा|
अध्यापक ने प्रहलाद से प्रेम से कहा-प्रहलाद बेटा! श्री हिरनाक्श महाराज जी का नाम लो|
प्रहलाद बोला गुरु जी! हिरनाक्श तो मेरे पिता जी का नाम है| भला मैं अपने पिता जी का नाम कैसे ले सकता हूं? ऐसा कैसे हो सकता है?
अध्यापक ने कहा - 'यह ठीक है कि वह तुम्हारे पिता हैं, तुम बड़ी तकदीर वाले हो| पर उन्होंने तपस्या के बल पर सभी देवी-देवताओं को जीत लिया है, वह अमर हो गए हैं और कभी मर नहीं सकते| यह उनका ही आदेश है कि भगवान का नाम न लेकर उनका ही नाम लिया जाए - 'श्री हिरनाक्श-जले थले हिरनाक्श|'
यह सुनकर प्रहलाद मुस्करा दिया| विष्णु जी की कृपा से उसकी आत्मा एक वृद्ध ऋषि की तरह ज्ञान प्रकाशमान हो गई| उसको सच्चे धर्म का ज्ञान हो गया और उसकी जुबान पर एक ही नाम आया - "राम नाम......जले थले अग्नि हवा सब में राम-राम......भगवान राम|"
'गुरु जी! देवताओं से ऊपर भी एक भगवान है.....राम को पिता जी ने विजय नहीं किया| इसलिए सब का दाता राम है|' प्रहलाद के मुख से यह बातें सुनकर अध्यापक की आत्मा डर गई, उसने जान लिया कि यह अवश्य ही कोई अवतारी बालक है, भला छ: सात वर्ष का बालक और बातें करे आत्मिक ज्ञान की?
अध्यापक ने प्रहलाद को समझाने का बहुत यत्न किया, मगर प्रहलाद न माना| वह राम नाम जपता रहा| उसने पाठशाला के दूसरे लड़कों को भी राम नाम में लगा दिया| जोर-जोर से राम नाम जपने की धुनें गाई जाने लगीं| प्रभु ने ऐसी लीला रची जिससे हिरनाक्श राजा का ऐसा अपमान हुआ कि अध्यापक डर के मारे तड़प उठा, उसका शरीर थर-थर कांपने लग गया| वह हिरनाक्श दैत्य के क्रोध से डरता था| उसने हिरनाक्श का क्रोध देखा हुआ था, वह किसी की जान तक नहीं बक्शता| उसे पूछने वाला कोई नहीं था| प्रहलाद उसका कहना नहीं मानता था, अध्यापक ने प्रहलाद को मारा-पीटा और डराया-धमकाया, बातों के साथ बहुत समझाया| अंत में एक गुस्से-भरी आवाज़ जो किसी मर्द की लगती थी उसमें अध्यापक को उत्तर मिला-गुरु जी! कुछ भी हो सब राम ही राम है, राम से बड़ा कोई ओर नहीं, राम ने ही दैत्यों को मारना है|
अध्यापक सिर पर पैर रख कर तेज़ी के साथ भाग गया| हिरनाक्श के दरबार में पहुंच कर झुककर प्रणाम करके उसने हाथ जोड़कर कहा, 'महाराज! मैं विवश हूं कहने के लिए, छोटा मुंह और बड़ी बात है, आपका राजपुत्र आपका नाम नहीं लेता, वह तो राम-राम कहता है|'
भगवान की ऐसी लीला हुई कि उस समय अध्यापक के मुंह से निकला 'राम' शब्द हिरनाक्श के दरबार में इतना गूंजा कि उसे अपने कानों में उंगली डालनी पड़ी| उसे क्रोध आ गया| वह क्रोधित हो कर बोला - 'यह नहीं हो सकता......कोई भी मेरे नाम के अतिरिक्त किसी और का नाम न जपे| यदि ऐसा हुआ तो वह जीवित नहीं रहेगा| प्रहलाद से मैं स्वयं पूछूंगा|'
हिरनाक्श के इन शब्दों के साथ दरबार गूंज पड़ा| सब दरबारी और सेवक डर गए और डर से कांप उठे| उनको ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भूचाल आया था और दरबार हिल गया| हिरनाक्श ने अपने पुत्र प्रहलाद को बुलाया| उस समय क्रोध से उसका मुंह लाल सुर्ख हुआ पड़ा था| प्रहलाद! तुम्हारे अध्यापक ने शिकायत की है कि तुम मेरा नाम नहीं लेते? हिरनाक्श ने अपने पुत्र प्रहलाद से पूछा|
प्रहलाद ने उत्तर दिया-'आप मेरे पिता हो, पिता जी आप का नाम लेता क्या मुझे शोभा देता है? पिता जी का तो आदर करना चाहिए|' प्रहलाद मुस्कराता हुआ बोलता जा रहा था| वह निर्भय था| वास्तव में प्रहलाद के माध्यम से जगत की महान शक्ति भगवान विष्णु मुस्करा रहे थे|
'यह बात नहीं|' हिरनाक्श बोला|
'और कौन-सी बात है पिता जी?' प्रहलाद ने फिर प्रश्न किया| उसकी छोटी-छोटी आंखों ने दैत्य की मलीन आत्मा की तरफ देखा, काली आत्मा क्रोध और अहंकार से भरी हुई थी|
हिरनाक्श ने फिर कहा - 'राम नाम मत लो| मेरा नाम लो, हिरनाक्श के नाम की माला फेरो|'
यह सुनकर प्रहलाद हंस पड़ा| इतनी जोर से हंसा जैसे कोई बड़ा पुरुष हंसता है, जिसे त्रिलोक का ज्ञान होता है| वह बोला - 'हे राजन! यह आपका अहंकार है| आपने घोर तप करके भगवान से वर लिया है, जिससे आप ने वर लिया है, वही तो मेरे भगवान राम हैं| जिन्हें तीनों लोकों का ज्ञान है|'
'यह नाम मत लो| मैं तुम्हें मार दूंगा|' हिरनाक्श बोला| उसके शरीर को जैसे झटका लगा हो| उसकी जुबान से बड़ी मुश्किल से ही 'राम' शब्द निकल रहा था| पर प्रहलाद खुश था उसके मन में मृत्यु का बिल्कुल भी भय नहीं था| वह प्रसन्नचित खड़ा रहा|
प्रहलाद ने कहा - 'मैं राम का नाम क्यों न लूं! नारद मुनि के आश्रम में ही मैंने यह शिक्षा ली थी, उस समय मैं अपनी माता के गर्भ में था| राम का नाम तो मेरे रोम रोम में बसा हुआ है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता| राम ही सर्वोपरि हैं मेरे लिए|'
'ले जाओ! इसे यहां से ले जाओ| दरिया में डूबा कर मार दो!' हिरनाक्श ने आदेश दिया| अपने ही पुत्र को हिरनाक्श ने शत्रु समझ लिया था|
जब प्रहलाद को हिरनाक्श के दरबारियों ने पकड़ा तो उसका दरबार डोल गया| सभी दरबारी बड़े हैरान हुए| प्रहलाद की मां ने बहुत प्रार्थना की, मगर हिरनाक्श ने उसकी एक भी न सुनी| सारे दरबार में सन्नाटा छा गया, गम की लहर सब ओर फैल गई, मगर प्रहलाद फिर भी मुस्करा रहा था, उसके नेत्रों में अनोखी चमक आ गई|
दैत्य प्रहलाद को पकड़ कर चल पड़े| लेकिन हिरनाक्श के भय से कोई ऊंची सांस भी नहीं लेता था, मगर सबका दिल रो रहा था, क्योंकि मासूम प्रहलाद सबको प्रिय था| वह प्यारी-प्यारी बातें करके सबको अपनी तरफ आकर्षित करता था|
नदी, जिसे आजकल सतलुज दरिया कहा जाता है, उस समय मुलतान शहर के पास से ही गुजरती थी, मुलतान ही हिरनाक्श का शहर था| वह आधे पंजाब का राजा था|
हाथ-पांव बांधे बिना ही दैत्यों ने प्रहलाद को नदी में फैंक दिया| ऐसे फैंका जैसे कोई भारी पत्थर फैंका हो|
मगर धन्य है प्रभु! प्रहलाद का राम जो अदृश्य है, सर्वशक्तिमान हैं, सर्वव्यापक हैं, वह पहले ही वहां पहुंच गए| उन्होंने अपने भक्त को हाथों में उठा लिया और उसके प्राणों की रक्षा की|
'जुग जुग भक्त उपाइआ, पैज रखता आया राम राजे|'
प्रहलाद बच गया और किनारे पर आ गया| प्रहलाद को किनारे पर आया देखकर दैत्य उसकी तरफ दौड़े| प्रहलाद मुस्कराया| दुष्ट हिरनाक्श को मारने के लिए ही भगवान ने यह कौतुक रचा|
मासूम बालक समझ कर दैत्यों ने सर्व शक्तिमान भगवान को फिर पकड़ लिया| उसके शरीर से भारी पत्थर बांध कर फिर दरिया में डुबोया| प्रहलाद पहले नीचे गया, फिर तुरन्त ही ऊपर आ गया, उस समय उसके शरीर के साथ कोई पत्थर नहीं था| वह टूट कर नीचे ही रह गया| दैत्य हैरान हो गए| वह भयभीत हो गए| वे समझ गए कि यह सब किसी मायावी शक्ति का खेल है| उनको कुछ ऐसा ही दिखाई दिया जैसे अनोखी शक्तियां उन्हें डरा रही थीं| वह प्रहलाद को छोड़ कर भाग गए| हिरनाक्श को जाकर सारी बात बताई कि - वह पानी में नहीं डूब रहा, पत्थर से भी तैर जाता है| राम! राम! बोलता जाता है|
हिरनाक्श ने दैत्यों को बहुत डांटा तथा दूसरे दैत्यों को आदेश दिया कि जाओ इसे उंचे पर्वत से नीचे गिरा दो| मैं तुम्हें शक्ति देता हूं| उसे उठा कर ले जाओ|
उन दैत्यों ने ऐसा ही किया| वह उसे उठा कर पर्वत पर ले गए| जब उसे पर्वत की चोटी से नीचे गिराने लगे तो प्रहलाद ने 'राम' कहा| 'राम' का नाम लेते ही प्रहलाद को ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे वह हवा में झूल रहा हो| वह धीरे-धीरे नीचे आया और धरती से ऊपर अपने पैरों के बल खड़ा हो गया| उसे तनिक भी चोट न आई| राम ने अपने भक्त की फिर से लाज रख ली|
पर्वत में ऐसी बिजली की शक्ति उत्पन्न हुई कि वहां पर खड़े दैत्य वहीं पर गिर कर राख हो गए| राम का प्यारा भक्त प्रहलाद अपने पांव पर चलता हुआ अपनी राजधानी में आ गया| वह फिर राम नाम का गुणगान करने लगा| अब तो वह और भी ऊंचे स्वर में गाता| सारा शहर, पशु-पक्षी और वहां की ईमारतें भी 'राम नाम' का गुणगान करने लगी| हिरनाक्श अब भयभीत हो गया| उसने क्रोध में आ कर प्रहलाद को पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया| पर प्रहलाद मुस्कराता रहा| उसको तनिक भी क्रोध न आया, न ही उसे कोई दर्द हुआ|
'होलिका' हिरनाक्श की बहन थी| उसे वर प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकेगी| उसको मायावी शक्ति देकर हिरनाक्श ने कहा - 'इस बालक को गोद में लेकर चिता में बैठ जाओ, चिता में आग लगेगी और प्रहलाद जल जाएगा, मगर तुम मायावी शक्ति के कारण नहीं जलोगी| ऐसी औलाद से तो बे-औलाद होना अच्छा है|'
होलिका ने ऐसा ही किया| वह प्रहलाद को गोद में लेकर चिता में बैठ गई| जब चिता को आग लगाई गई तो आग ने उल्टा उसे ही पकड़ लिया| होलिका अग्नि की लपटों से चिल्लाने लगी| प्रहलाद पर अग्नि का कोई प्रभाव न पड़ा और वह हंसता रहा| वह जैसे-जैसे हंसता गया वैसे-वैसे ही अग्नि की लपटें तेज होती गईं| जैसे-जैसे अग्नि तेज होती गई होलिका आग में चिल्लाती रही| जलती आग से वह बाहर न आ सकी| होलिका अग्नि में जल कर राख हो गई| दैत्य और देवता सब हैरान हो गए| धर्म का ऐसा खेल देखकर भक्त अत्यंत प्रसन्न हुए| प्रहलाद आग की लपटों में से बचकर कुशलपूर्वक निकल आया|
कढि खड़ग सद पुछिआ कउण सु तेरा है उस्ताद||
थंम पाड़ प्रगटिआ नरसिंघ रूप अनूप अनाद||
दैत्य हिरनाक्श अपनी बहन होलिका के जलने पर बड़ा दुखी हुआ और उसकी कोई पेश न चल सकी| पापी, दुष्ट, अहंकारी हिरनाक्श ने आग बबूला होकर राम के भक्त प्रहलाद को लोहे के तपते हुए खम्भे के साथ बांध दिया| तपते खम्भे से भक्त प्रहलाद पर कोई असर न हुआ और वह मुस्कराने लगा| गुस्से से हिरनाक्श लाल-पीला हो गया, उसी तरह जैसे डूबता सूर्य लाल होता है| उसका अंतिम समय आ चुका था|
'बताओ तुम्हारा कौन रक्षक है?' हिरनाक्श ने प्रहलाद से पूछा|
'मेरा रक्षक राम है' प्रहलाद ने उत्तर दिया|
कहां है?
'मेरे पास, मेरे साथ, वह सदा रहता है.....घाट-घाट में बसता है| जरा होश करो, तुम्हारी मृत्यु आई है|'
'मेरी मृत्यु नहीं! तुम्हारी मृत्यु.....आई है! यह कह कर हिरनाक्श तलवार उठाने ही लगा था कि खम्भा फट गया| उस खम्भे में से विष्णु भगवान नरसिंघ का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का तथा धड़ मनुष्य का था, प्रगट हुए| भगवान नरसिंघ अत्याचारी दैत्य हिरनाक्श को पकड़ कर हिरनाक्श का पेट चीर कर उसकी आंतड़ियां बाहर निकाल दीं|
भगवान नरसिंघ ने कहा-अहंकारी दैत्य! तुम्हारे पापों का घड़ा भर चुका है| देख तू न दिन को मर रहा है और न ही रात को| इस समय दिन अन्दर बाहर है| धरती के ऊपर भी नहीं मर रहा| प्रभु ने कहा-न तू किसी अस्त्र-शस्त्र से मर रहा है| हाथों पर उठा कर घुटनों के ऊपर रखा हुआ है| नरसिंघ भगवान ने यह कह कर हिरनाक्श की इहलीला समाप्त कर दी| हिरनाक्श के वध पर प्रहलाद एवं अन्य भक्त जन भगवान नरसिंघ का क्रोध जब शांत हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु के रूप में दर्शन देकर भक्तों को कृतार्थ कर दिया| उन्होंने भक्त प्रहलाद की भक्ति पर प्रसन्न होकर राज पाठ प्रदान किया और धर्म का राज करने का उपदेश दिया| सारे ब्रह्माण्ड में जै जैकार होने लगी|
हे जिज्ञासु जनों! जो भी मनुष्य इस धरती रूपी ब्रह्माण्ड में जन्म लेता है, यदि वह प्रभु का सिमरन एवं भक्ति करता है तो अपना जन्म सफल करके मोक्ष प्राप्त करता है|
जैसा कि सतिगुरु जी महाराज फरमाते हैं :-
जपि मन माधो मधुसूदनु हरि श्री रंगो परमेसरो सति परमेसरोप्रभु अंतरजामी||
सभ दूखन को हंता सभ सूखन को दाता हरि प्रतिम गुन गाओ||२|| रहाउ ||
Nice post
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