टाटा केंसर हॉस्पिटल : प्रेम का अविस्मरणीय पुण्य tata-cancer-hospital

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हमें जो जानना चाहिए ...

मेहरबाई टाटा (1879~1931) जमशेदजी टाटा की बहू और बडे बेटे दोराबजी टाटा की पत्नी थी और नारी शक्ति की प्रतीक थी! तस्वीर मे इन्होंने गले मे पति दोराबजी द्वारा भेंट किया गया 245 कैरेट का प्रसिद्ध जुबली डायमंड जो की वजन मे कोहिनूर से दोगुना था, पहना है! 

इनकी कैंसर से असमय मृत्यु के बाद यह हीरा बेचकर ही दोराबजी टाटा ने टाटा मेमोरियल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की थी!

प्रेम के लिये बनाया गया यह स्मारक मानवता के लिये एक उपहार है! विडम्बना देखिये हम प्रेम स्मारक के रुप मे कब्रों को महिमामंडित करते रहते हैं और जो हमें जीवन प्रदान करता है, उसके बारे मे जानते तक नहीं!
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जमशेदपुर में जिस मेहरबाई टाटा के नाम पर कैंसर का अस्पताल है, आप उन्हें कितना जानते हैं

सर दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई के बारे में यह कहा जाता है कि वह अपने समय से काफी आगे सोच रखने वाली व्यक्तित्व थी। महिला सशक्तीकरण का मामला हो या लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा मेहरबाई ने हर मुद्दों पर खुलकर विचार रख समाज को नई राह दिखाई।

जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर में मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल है, जो पूर्वी भारत में कैंसर के सबसे अच्छे अस्पताल के रूप में जाना जाता है। इसके बावजूद अधिकतर लोग उस महिला मेहरबाई टाटा के बारे में ज्यादा नहीं जानते। उन्होंने टाटा स्टील कंपनी की स्थापना में क्या योगदान दिया था, अधिकांश लोग नहीं जानते।

भारत में नारीवाद का प्रतीक रही लेडी मेहरबाई

लेडी मेहरबाई टाटा को आमतौर पर पहली भारतीय नारीवादी प्रतीकों में से एक माना जाता है, जिन्होंने अपने कर्मों से इसे साबित किया था। वह बाल विवाह के उन्मूलन, महिला मताधिकार, लड़कियों की शिक्षा और पर्दा प्रथा को हटाने में अपनी भूमिका के लिए जानी जाती हैं। इन सबसे हटकर उन्हें देश के सबसे बड़े स्टील निर्माताओं में से एक टाटा स्टील को बचाने में उनके योगदान के लिए भी जाना जाता है।
मेहरबाई का कोहिनूर ने टाटा स्टील को संकट से उबारा

नवीनतम पुस्तक टाटा स्टोरीस में हरीश भट बताते हैं कि कैसे लेडी मेहरबाई टाटा ने स्टील की दिग्गज कंपनी को बचाया था। जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा ने अपनी पत्नी मेहरबाई को उपहार देने के लिए लंदन में एक व्यापारी से 245.35 कैरेट का हीरा खरीदा था, जो कोहिनूर (105.6 कैरेट, कट) से दोगुना बड़ा था। 1900 के आसपास इसकी कीमत लगभग एक लाख पाउंड थी।

लेडी मेहरबाई ने इसे खास मौकों पर पहनने के लिए रखा था। इसी बीच 1924 में टाटा स्टील के सामने संकट की स्थिति आ गई। कंपनी के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं बचे थे। ऐसे समय में मेहरबाई आगे आईं और अपने पति सर दोराबजी टाटा की सहमति से इस जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दी, ताकि टाटा स्टील के लिए पैसा जुटा सकें। कुछ ही समय बाद कंपनी को मुनाफा होना शुरू हुआ और स्थिति सुधरने लगी। किताब में लेखक ने कहा कि गहन संघर्ष के उस समय में भी किसी कर्मचारी की छंटनी नहीं की गई थी।

टाटा समूह के अनुसार सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की स्थापना के लिए सर दोराबजी टाटा की मृत्यु के बाद जयंती हीरा बेचा गया था।

नारी सशक्तीकरण की प्रबल समर्थक

मेहरबाई टाटा उन लोगों में से एक थीं, जिनसे 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के लिए परामर्श किया गया था। उन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों में भी इसके लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया। वह राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा थीं। 29 नवंबर 1927 को मेहरबाई ने मिशिगन में हिंदू विवाह विधेयक के लिए एक प्रस्ताव बनाया।

उन्होंने 1930 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में महिलाओं के लिए समान राजनीतिक स्थिति की मांग की।

लंदन में अंतरराष्ट्रीय महिला मताधिकार समाचार ने 1921 में बम्बई की विधान परिषद द्वारा महिलाओं के मताधिकार का प्रस्ताव पारित करने की सूचना दी। महिला मताधिकार के पक्ष में एक बड़ी जनसभा विल्सन कॉलेज हॉल, बॉम्बे में लेडी टाटा की अध्यक्षता में आयोजित की गई थी, और बॉम्बे की महिलाओं को मताधिकार देने के लिए विधान परिषद को बुलाने वाला एक प्रस्ताव पारित किया गया था और प्रत्येक सदस्य को विधान परिषद भेजा गया था।

उन्होंने 1924 में वेम्बली में महिला सप्ताह के दौरान भारतीय सम्मेलन के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह भारत में भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसीडेंसी महिला परिषद की संस्थापकों में से एक थीं। लेडी मेहरबाई के नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में शामिल किया गया था।

 
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