देशहित में किसानों को अब राकेश टिकैत के षडयंत्रों से बाहर निकलना चाहिये - अरविन्द सिसौदिया
किसान भारत का, आंदोलन विदेश में क्यों
राष्ट्रभक्त किसानों को, राकेश टिकैत के विदेशी टूलकिट से बाहर निकलना चाहिये
राकेश
टिकैत एक राजनीतिक व्यक्ति है। वे जनता के द्वारा हराये जा चुके है। वे
अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की भटकती आत्मा हैं। उन्हे यू पी का चुनाव,
देश का चुनाव इस आंदोलन से प्रभावित करना है। आम किसानों को , देशभक्त
किसानों को उनके मकसद का टूल नहीं बनना चाहिये।
भारत
के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा देशहित में तीनों किसान कानून
वापस ले लिये गये है। पीएम मोदी ने किसानों से “अपने परिवारों के पास घर
लौटने और नए सिरे से शुरुआत करने“ का भी आग्रह किया।
क्यों कि इन
तीनों कानूनो से किसानों को मिलने वाले फायदे को, कुछ किसान संगठनों की मदद
से कांग्रेस और कुछ विदेशी ताकतों ने इतना अधिक भ्रमित कर दिया कि उनकी
वास्तविकता दब कर रह गई है। देश विरोधी ताकतें इस भ्रम का फादया उठा कर
भारत में अराजकता उत्पन्न करने का षड्यंत्र कर रहीं है। यह लम्बे समय से
महसूस किया जा रहा था। संभवतः इसी षड्यंत्र को विफल करने हेतु केन्द्र सरकार
ने अच्छे कानूनों को भी वापस ले लिया है। ये कानून हैं - किसान उत्पाद
व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, किसान (सशक्तिकरण और
संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम का समझौता, और आवश्यक वस्तु
(संशोधन) अधिनियम।
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विदेशी टूल किट ....
मूलतः
यह कृषि आन्दोलन एक विदेशी टूलकिट के तहत चल रहा है, जिसका मूल उद्देश्य
किसानों की भलाई नहीं बल्कि किसानों को एकत्र कर भारत में अराजकता तथा
अस्थिरता उत्पन्न करवाना है। किसान आंदोलन की कवरेज और उसके प्रभाव को लेकर
भारत से कई गुणा अधिक बडा चडा कर विदेशों में प्रस्तुत किया गया है।
सेलीब्रटीज से अघोषित विज्ञापन करवाये गये, विक्कीपीडिया पर भी लम्बी चौडी
रिपोर्ट दर्ज करवाई गई। विदेशों में कौन धन खर्च कर रहा है। किनके क्या हित
है। इन पर बहुत कुछ परोक्ष अपरोक्ष सामने भी आया है।
ये वे देश
हैं जो कई दशकों से भारत को डराते धमकाते रहते है। भारत के प्रति शत्रुता
रखते है। भविष्य में भारत को निगल जानें की मानसिकता रखते है तथा ये अपने
षड्यंत्रों में कई दशकों से लगातार सफल भी रहे है। किन्तु 2014 से भारत का
नेतृत्व करने वाली राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही राष्ट्रहित चिंतक हो
गईं है।
सदन में भी शुद्ध राष्ट्रवादी बहूमत आ गया है। अब इन बदनियत देशों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार रास्ते में, मकसद में बडी रूकावट दिखनें लगी है। इसे अस्थिर कर अपने हित साधनें के लिए यह आन्दोलन विश्व की तमाम अन्य साम्यवादी संगठनों तथा हिन्दू विरोधी तत्वों को साथ लेकर परोक्ष अपरोक्ष संपादित की जा रही है।संभवतः प्रधानमंत्री मोदी जी ने इसे समझ लिया है। इन्हे सफल नहीं होने देनें के लिये ही उन्होंने कृषि कानूनों को वापस ले लिया एवं एम एस पी के लिये कमेटी बनाने के लिये नाम मांगें है।
भारत में राजनीतिक दलों में भी कुछ की फंडिंग में परोक्ष अपरोक्ष अन्य देशों की भागेदारी रहती है। कांग्रेस के पास स्वदेशी नेतृत्व ही नहीं है। विदेशों में धन जमा होनें के आंकड़े बड़ी स्पष्टता से प्रकाशित होते रहते है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के तहत वे नाम छुपे रहते है। मगर अंदाज सब लगता है कि कौन क्या कर रहा है। कांग्रेस हमेशा ही भारत में रह कर विदेशों के हित की राजनीति करती है। जो अपरोक्ष साक्ष्य तो है ही ।
आंदोलन
में सम्मिलित किसानों को , अब राष्ट्रहित में यह आंदोलन पूरी तरह समाप्त
कर देना चाहिये एवं अपने अपने घर सम्मानपूर्वक प्रस्थान करना चाहिये ।
क्यों कि उनका प्रधानमंत्री उनके सामने झुका है उनकी बात मानी है। उनसे
मॉफी तक मानी है। यह उनका था बडप्पन है। कुल मिला कर राकेश टिकैत के
षडयंत्रों से बाहर निकलें और राष्ट्रभाव के साथ खड़े हों।
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Kisan Andolan :
क्या
किसान आंदोलन खत्म होने जा रहा है? क्या 4 दिसंबर को धरना दे रहे सभी
किसान अपने-अपने घरों को लौट जाएंगे? यह कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं,
क्योंकि किसान संगठन 4 दिसंबर को अहम बैठक करने जा रहे हैं और माना जा रहा
है कि सरकार द्वारा उनकी अधिकांश मांगे मान लिए जाने के बाद अब आंदोलन खत्म
कर दिया जाएगा। इस बीच, पंजाब के 40 किसान संगठनों की सिंघु बॉर्डर पर
बुधवार को होने वाली बैठक रद्द कर दी गई है। अब ये किसान संगठन भी संयुक्त
किसान मोर्चा की अगुवाई में 4 दिसंबर को होने वाली बैठक में अपने विचार
रखेंगे। बैठक रद्द होने के बारे में किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने कहा,
बुधवार को 32 किसान संगठन और वे लोग जो सरकार के साथ बातचीत के लिए जाते
थे, उनकी बैठक बुलाई गई है। गलती से घोषणा हो गई कि संयुक्त किसान मोर्चे
की बैठक है। हमारे लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों, MSP की कमेटी के मुद्दे पर
चर्चा होगी। वैसे किसानों का एक बड़ा धड़ा आंदोलन खत्म करने पर राजी है।
वहीं भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत आंदोलन जारी रखने पर अड़े
हैं।
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