ममता की चुनौती से राहुल का एकमात्र विपक्षी पीएम दावेदार होना ध्वस्त soniya-vs-mamata
कांग्रेस की परेशानियों थमनें का नाम नहीं लं रहीं है। लगने लगा है कि अब कांग्रेस पूर्ण समापन की ओर बड रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष तय नहीं हो पा रहा, वरिष्ठ कांग्रेस जन का विरोध थम नहीं रहा, कभी हिन्दू की थीम तो कभी हिन्दुत्व विरोध की थीम। लोकतंत्र में देश के जनमत को ध्यान में रख कर उसकी अगुवाई की जाती है। कांग्रेस विपरीत दिशा में नाव खे रही है। ऊल जलूल हरकतों ने उसे यूं ही पहले ही हांसिये पर ढकेल रखा है। अब ममता की महत्वाकांक्षा उसका नया सिर दर्द बनने जा रही है।
सोनिया-राहुल की नई समस्या ममता-प्रशांतकिशोर
प्रशांत किशोर यूं तो संयुक्त राष्ट्र संघ के लिये काम कर चुके है। समय के साथ अपने आपको बदलते रहना उनकी आदत है। आज वे इस दल में हें तो कल वे कहां होंगे इसका उन्हे भी पता नहीं होता है। क्यों कि वे जनता की नब्ज के हिसाब और अपने फायदे को ध्यान में रख कर काम करते हैं। प्रशांत किशोर यूं तो भाजपा, कांग्रेस, जनता दल यू, अमरिन्दर सिंह, जगन मोहन रेडडी, ममता बनर्जी सहित अनेकों दलों एवं राजनेताओं के लिये काम किया है। यूं तो माना जाता है कि प्रशांत किशोर रणनीति बनाते है। नवाचार करते है। किन्तु मेरा मानना है कि वे यह सब भाजपा से गुजरात चुनाव के दौरान सीखे है। भाजपा में नवाचार नये तौर तरीकों एवं आघुनिकतम संसाधनों पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। वे भाजपा से जो कुछ सीखे उसका उपयोग प्रयोग उन्होने अन्य दलों , राजनेताओं के साथ किया। गुजरात और नरेन्द्र मोदी के साथ रहने से निश्चित ही उनका नाम बहुत बडा हो गया , सो उन्हे काम मिलता रहा है। वे सोनिया एवं राहुल गांधी के सम्पर्क में भी थे , किन्तु अचानक ही वे ममता बनर्जी से जुड गये और उनके लिये काम कर रहे है।
लोकसभा चुनाव 2024 यूं तो दूर है किन्तु उसका सेमी फाईनल यूपी चुनाव को माना जा रहा है। किन्तु यूपी चुनाव का प्रभाव 2024 को प्रभावित करता है। यह मानना सही नहीं होगा । हर चुनाव का अपना अपना अलग बजूद होता है। किन्तु यह सोचना पडेगा कि प्रशांत किशोर केप्टन अमरिन्दर सिंह की विपरीत परस्थिती में साथ नहीं हैं। वे सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के साथ भी नहीं है। वे नरेन्द्र मादी जी के साथ भी नहीं है। वे 2024 तक ममता जी के साथ रहेंगे कि नहीं यह भी पता नहीं है।
किन्तु उन्होने यूपी चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस को बडे संकट में डाल दिया है क्यों कि कांग्रेस यूपी चुनाव से पुनः अपनी जमीन खडी करना चाहती थी। जिस पर पहले तो सलमान खुर्शीद और राहुल गांधी ने हिन्दुत्व विरोध के द्वारा फिर मनीष तिवारी ने मुम्बई आतंकी हमले पर कार्यवाही न करने के आरोप के द्वारा और अब ममता और प्रशांतकिशोर ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल कर पानी फेर दिया है। निश्चित रूप से इसका फायदा सपा को मिलने वाला है।
कुछ बातें बहुत साफ भी हैं और सच भी हैं । जैसे :-
1- कांग्रेस 2014 की स्थिती में 2017 & 2019 में बहुत अधिक सुधार नहीं कर पाई । बल्कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष परम्परागत सीट से हार गया ।
2- कांग्रेस का लगभग राहुल गांधी उदय से चुनाव लडनें और टिकिट वितरण की रणनीति आत्मघाती हो गई है।
3- कांग्रेस मानसिकरूप से हिन्दुत्व विरोधी तो हो ही गई किन्तु उसे वह अनावश्यक उजागर करती रहती है। जबकि देश हिन्दू बहुल है और रहेगा ।
4- कांग्रेस हिन्दू दिखनें के लिये जो भी काम करती है उसे वो ही अगले कुछ समय में समाप्त कर देती है। जिससे हिन्दूओं में उसकी विश्वसनीयता समाप्त हो गई है।
5- कांग्रेस ने गत 12 - 13 वर्षो में उसने ज्यादातर चुनाव खोये है। पंजाब कांग्रेस के पास सुनिश्चित रूप से था और आ भी रहा था। किन्तु गंभीरतम गैर जिम्मेवारीपूर्ण उठापटक से पंजाब को कांग्रेस खतरे में डाल चुकी है। संभवतः अब पंजाब कांग्रेस के हाथ से बाहर हो चुका है।
6- कांग्रेस द्वारा कभी आम आदमी पार्टी तो कभी तृण मूल कांग्रेस को अपरोक्षरूप से जितवाना आत्मघाती हो गया । अभी भी वह यूपी में सही तरीके से उतर ही नहीं पाई। लोकतंत्र में चाहे 18 सीटें हों मगर सीटें होना जरूरी होता है।
7- यह भी सच है कि कांग्रेस अचानक उग्र,आक्रमक और भयंकरतम गिरे हई शब्दावली के साथ उफनती है और फिर अचानक शांत नदी की तरह गायब हो जाती है। उसके ही पुरानें कांग्रेसी सवाल उठा रहे है। असन्तुष्टों का जी 23 बना हुआ है। वे कभी कांग्रेस नेतृत्व को कोसते हैं तो कभी सवाल उठाते है। तो कभी पूजा अर्चना करते है। वहीं अब पार्ट टाइम राजनीती का तगमा भी लग गया ।
8- हलांकी राहुल गांधी या ममता बनर्जी ही नहीं शरद पंवार,लालूप्रसाद यादव और नितिश कुमार भी प्रधानमंत्री की कुर्सी को निहार रहे हैं। मगर यह तभी संभव है जब त्रिशंकु स्थिती बनें। जिसके आसार लगभग नहीं हैं।
9- ममता की चुनौती से राहुल की एकमात्र पीएम दावेदार होना पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। क्यों कि ममता , राहुल से कहीं बहुत अधिक स्ट्रांग और जुझारू होनें के साथ पूर्ण हिन्दू की बात कह सकती है।
10- कांग्रेस का नेतृत्व विदेशी है। वोटर स्वदेशी है। कांग्रेस को विदेशी हितों के साथ खडे होनें से बचना चाहिये था। किन्तु वह पाकिस्तान और चीन के साथ खडी नजर आई।
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