दीवान टोडरमल के समर्पण शौर्य पर हिन्दुत्व का सीना गर्व से चौंडा हो जाता है - अरविन्द सिसौदिया Diwan-Todar-Mal

 



गुरु पुत्रों का धर्म रक्षार्थ बलिदान व टोडरमल जी का उस बलिदान के प्रति समर्पण अमर रहे।

 इतिहास में जब भी दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी की शहादत की चर्चा होगी तो भाई मोतीराम मेहरा की शहादत तथा दीवान टोडरमल की गुरु घर के प्रति निष्ठा तथा समर्पण का जिक्र किए बगैर इतिहास आगे नहीं बढ़ेगा। छोटे साहिबजादों के शहीदी दिवस के बारे में जानकारी देते हुए इतिहासकार एवं शोधकर्ता सुरेंद्र कोछड़ ने पत्रकारों को बताया कि जब गुरु परिवार पर आई संकट और विपदा की घड़ी में मुगलों के डर से हर कोई गुरु परिवार का साथ देने से पीछे हट रहा था तो उस समय भाई मोती राम मेहरा तथा दीवान टोडर मल ने अपना फर्ज निभाते हुए गुरु साहिब के प्रति जो वफादारी दिखाई, उसने उन्हें सिख इतिहास में सदा-सदा के लिए अमर कर दिया।

कोछड़ के अनुसार गुरु साहिब के परिवार के आनंदपुर साहिब त्यागने के बाद सरसा नदी के किनारे आपस में बिछुड़ जाने पर माता गुजरी जी व छोटे साहिबजादों को वहा से गुरु घर का चाकर गंगू मोरिंडा के पास अपने गाव खेड़ी ले गया। वहा पहुंचने पर गंगू ने माता जी के तकिए के नीचे रखी पैसों और जेवरों की थैली चोरी करने के पश्चात सरकार से मिलने वाले इनाम के लालच में गुरु परिवार के उसके घर में होने की खबर मोरिंडा के हाकम के पास पहुंचा दी। इसके चलते माता जी तथा साहिबजादों को बंदी बना कर सरहिंद के नवाब वजीर खा की कचहरी में पेश किया गया। फिर नवाब ने कड़कती सर्दी में वृद्ध माता जी तथा साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में कैद करने का हुक्म सुना दिया।

कोछड़ के अनुसार भाई मोती राम मेहरा जिन्हें सरहिंद के नवाब द्वारा हिंदू कैदियों को भोजन कराने के लिए नियुक्त किया गया था, उन्हें जब माता जी तथा साहिबजादों के ठंडे बुर्ज में कैद होने की खबर मिली तो वह कोरे बर्तन में गर्म दूध भरकर ठंडे बुर्ज में पहुंच गया। उन्हें पता था कि बुर्ज के पहरेदार गर्म दूध का बर्तन किसी भी सूरत में बुर्ज के अंदर नहीं पहुंचने देंगे, इसलिए वह जाते समय पहरेदारों को रिश्वत देने के लिए अपनी पत्नी तथा मा के जेवर तथा कुछ पैसे साथ ले गया। मोती राम मेहरा लगातार तीन रात तक पहरेदारों को रिश्वत देकर माता जी तथा साहिबजादों को गर्म दूध पिलाने के लिए ठंडे बुर्ज में जाते रहे। बाद में जब नवाब को इस बात की जानकारी मिली तो उसने हुक्म जारी करके मोती राम मेहरा तथा उसकी वृद्ध मा, पत्नी व इकलौते पुत्र को कोहलू में डालकर कर शहीद कर दिया।

उन्होंने बताया कि जब साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने के बाद बेरहमी से शहीद करके माता गुजरी जी के पार्थिव शरीर सहित मौजूदा गुरुद्वारा फतहगढ़ साहिब के पीछे जंगल में रखा गया। इसी क्षेत्र के धनी तथा मुगल दरबार के कर्मचारी दीवान टोडरमल ने नवाब से पार्थिव शरीर लेकर उनका अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी। इस पर नवाब द्वारा रखी शर्त के अनुसार अंतिम संस्कार के लिए स्वर्ण मोहरें बिछा कर भूमि प्राप्त की। गुरु परिवार के प्रति इस वफादारी के बदले बाद में नवाब सरहिंद ने दीवान टोडरमल की हवेली तथा उनकी शेष संपत्ति नष्ट करवा दी। किन्तु न तो सत्य नष्ट होता है न ही त्याग बलिदान और समर्पण ।

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 Dhan Bhai Diwan Todar Mal Ji

World's Most Costliest Piece of Land- Fatehgarh Sahib!

The Costliest Land on earth till date is where bodies of younger sons of Guru Gobind Singh Ji Maharaj were cremated!

Diwan Todar mal purchased this land by laying 78000 gold coins on that ground. According to today's value of gold, the estimated value of that 4 sq.m area would be 250 crores. This contribution shall hold the highest regards in the Sikh History.

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भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था दीवान टोडरमल…
विश्व में आज तक की सबसे महंगी ज़मीन भारत में है

विश्व में आज तक की सबसे महंगी ज़मीन भारत में है

पूस का 13वां दिन… नवाब वजीर खां ने पूछा बोलो इस्लाम कबूल करते हो ?
6 साल के छोटे साहिबजादे फ़तेह सिंह ने नवाब से पूछा…अगर मुसलमाँ हो गए तो फिर कभी नहीं मरेंगे  ?
तो साहिबजादे ने जवाब दिया कि जब मुसलमाँ हो के भी मरना ही है , तो अपने धर्म में ही अपने धर्म की खातिर क्यों न मरें ?
दोनों साहिबजादों को ज़िंदा दीवार में चिनवाने का आदेश हुआ ।
दीवार चिनी जाने लगी ।
जब दीवार 6 वर्षीय फ़तेह सिंह की गर्दन तक आ गयी तो 8 वर्षीय जोरावर सिंह रोने लगा lफ़तेह ने पूछा, जोरावर रोता क्यों है ?
जोरावर बोला, रो इसलिए रहा हूँ कि आया मैं पहले था पर कौम के लिए शहीद तू पहले हो रहा है l उसी रात माता गूजरी ने भी ठन्डे बुर्ज में प्राण त्याग दिए । गुरु साहब का पूरा परिवार 6 पूस से 13 पूस… इस एक सप्ताह में कौम के लिए धर्म के लिए राष्ट्र के लिए शहीद हो गया । दोनों बड़े साहिबजादों, अजीत सिंह और जुझार सिंह जी का शहीदी दिवस… 21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक इन्हीं 7 दिनों में गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था।

पहले यहाँ पंजाब में इस हफ्ते सब लोग ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गूजरी ने 25 दिसम्बर की वो रात दोनों छोटे साहिबजादों के साथ नवाब वजीर ख़ाँ की गिरफ्त में सरहिन्द के किले में ठंडी बुर्ज़ में गुजारी थी और 26 दिसम्बर को  दोनो बच्चे शहीद हो गये थे ।  27 तारीख को माता ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे।

यह सप्ताह भारत के इतिहास में 'शोक  सप्ताह' होता है, शौर्य का सप्ताह होता है ।

लेकिन, अंग्रेजों की देखा-देखी  पगलाए हुए हम भारतीयों ने
गुरु गोविंद सिंह जी की कुर्बानियों को  सिर्फ 300 साल में भुला दिया ।
कितनी जल्दी भुला दिया हमने इस शहादत को?

विश्व में आज तक किसी एक भूमि के टुकड़े का सबसे अधिक दाम चुकाया गया है  हमारे भारत में ही  पंजाब में स्थित  सिरहिन्द में और विश्व की इस सबसे महंगी भूमि को ख़रीदने वाले महान व्यक्ति का नाम था दीवान टोडरमल l गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे-छोटे साहिबज़ादों बाबा फ़तह सिंह और बाबा ज़ोरावर सिंह की शहादत की दास्तान शायद आप सबने कभी ना कभी कहीं ना कहीं से सुनी होगी......यहीं सिरहिन्द के फ़तहगढ़ साहिब में मुग़लों के तत्कालीन फ़ौजदार वज़ीर खान ने दोनो साहिबज़ादों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था l

दीवान टोडर मल जो कि इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार थे उन्होंने वज़ीर खान से साहिबज़ादों के पार्थिव शरीर की माँग की और वह भूमि जहाँ वह शहीद हुए थे वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की l  वज़ीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित माँग रखी l  वज़ीर खान ने माँग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आएँगी वही इस भूमि का दाम होगा l

दीवान टोडर मल के अपने सब भंडार ख़ाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वज़ीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जाएँगी ताकि अधिक से अधिक मोहरें वसूली जाकें l ख़ैर दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें  देकर चार गज़ भूमि को ख़रीदा ताकि गुरु जी के साहिबज़ादों का अंतिम संस्कार वहाँ किया जा सके l

विश्व के इतिहास में ना तो ऐसे त्याग की कहीं कोई और मिसाल मिलती है ना ही कहीं पर किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया l जब बाद में गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा की वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इस त्याग के बदले में कुछ माँगने को कहा.

ज़रा सोचिए दीवान टोडर मल ने क्या माँगा होगा गुरु जी से ?

दीवान जी ने गुरु जी से जो माँगा  उसकी कल्पना करना भी असम्भव है l दीवान टोडर मल जी ने गुरु जी से कहा की यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए l

इस अप्रत्याशित माँग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए l गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत माँग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे l

दीवान टोडर मल ने उत्तर दिया कि गुरु जी, यह जो भूमि इतना महंगा दाम देकर ख़रीदी गयी और आपके चरणों में न्योछावर की गयी मैं नहीं चाहता की कल को मेरे वंश आने वाली नस्लों में से कोई कहे की  यह भूमि मेरे पुरखों ने ख़रीदी थी l

यह थी निस्वार्थ त्याग और भक्ति की आज तक की सबसे बड़ी मिसाल है l आज किसी धार्मिक स्थल पर  चार ईंटे लगवाने पर भी लोग अपने नाम की पट्टी पहले लगवाते हैं l एक पंखा तक लगवाने पर उसके परों पर अपने नाम छपवाते हैं l

हमारे पुरखे जो जो बलिदान देकर गए हैं वह अभूतपूर्व है और इन्ही बलिदानों के कारण ही हम लोगों का अस्तित्व अभी तक है l हमारी इतनी औक़ात नहीं कि हम इस बलिदान के हज़ारवें भाग का भी ऋण उतार सकें l
आइए, उन सभी ज्ञात-अज्ञात महावीर-बलिदानियों को याद करें जिनके कारण आज सनातन संस्कृति बची हुई है...

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