गीता ज्ञान प्रमुख तथ्य ....Geeta - Gyan

*गीता के मूलमंत्र*

*अध्याय १* मोह ही सारे तनाव व विषादों का कारण होता है 💮

*अध्याय २* शरीर नहीं आत्मा को मैं समझो और आत्मा अजन्मा-अमर है 💮

*अध्याय ३* कर्तापन और कर्मफल के विचार को ही छोड़ना है, कर्म को कभी नहीं 💮

*अध्याय ४* सारे कर्मों को ईश्वर को अर्पण करके करना ही कर्म संन्यास है 💮

*अध्याय ५* मैं कर्ता हूँ- यह भाव ही अहंकार है, जिसे त्यागना और सम रहना ही ज्ञान मार्ग है 💮

*अध्याय ६* आत्मसंयम के बिना मन को नहीं जीता जा सकता, बिना मन जीते योग नहीं हो सकता 💮

*अध्याय ७* त्रिकालज्ञ ईश्वर को जानना ही भक्ति का कारण होना चाहिये, यही ज्ञानयोग है 💮

*अध्याय ८* ईश्वर ही ज्ञान और ज्ञेय हैं- ज्ञेय को ध्येय बनाना योगमार्ग का द्वार है 💮

*अध्याय ९* जीव का लक्ष्य स्वर्ग नहीं ईश्वर से मिलन होना चाहिये 💮

*अध्याय १०* परम कृपालु सर्वोत्तम नहीं बल्कि अद्वितीय हैं 💮

*अध्याय ११* यह विश्व भी ईश्वर का स्वरूप है, चिन्ताएँ मिटाने का प्रभुचिन्तन ही उपाय है 💮

*अध्याय १२* अनन्यता और बिना पूर्ण समर्पण भक्ति नहीं हो सकती और बिना भक्ति भगवान नहीं मिल सकते 💮

*अध्याय १३* हर तन में जीवात्मा परमात्मा का अंश है- जिसे परमात्मा का प्रकृति रूप भरमाता है, यही तत्व ज्ञान है 💮

*अध्याय १४* प्रकृति प्रदत्त तीनों गुण बंधन देते हैं, इनसे पार पाकर ही मोक्ष संभव है 💮

*अध्याय १५* काया तथा जीवात्मा दोनों से उत्तम पुरुषोत्तम ही जीव का लक्ष्य हैं 💮

*अध्याय १६* काम-क्रोध-लोभ से छुटकारा पाये बिना जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा नहीं मिल सकता 💮

*अध्याय १७* त्रिगुणी जगत् को देखकर दु:खी नहीं होना चाहिये, बस स्वभाव को सकारात्मक बनाने का प्रयास करना चाहिये 💮

*अध्याय १८* शरणागति और समर्पण ही जीव का धर्म है और यही है गीता का सार 
गीता का ज्ञान स्वामी विवेकानन्द
एक बार एक युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया और उनसे निवेदन करने लगा कि वह उसे गीता का ज्ञान करा दें। स्वामी विवेकानंद ने उस युवक को परामर्श दिया कि पहले छह महीने तो वह फुटबॉल खेले और अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और असहायों की सहायता करे, उसके बाद वह उनके पास आए, तब वह उसे गीता का ज्ञान देंगे। युवक को बहुत आश्चर्य हुआ।

Geeta saar - गीता की इन 10 बातों में छिपी है जीवन जीने की कला, आप भी जानें
भगवत गीता के आदर्शों पर चलकर मानव न केवल स्वयं का भला कर सकता है वरण सम्पूर्ण मनुष्य जाति का कल्याण कर सकता है

खंडवा. श्रीमद्भगवत गीता न केवल धर्म का ज्ञान कराती है, बल्कि जीवन जीने का ढंग भी बताती है। महाभारत के युद्ध के पहले श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद मानव के लिए प्रेरणादायी है। गीता के उपदेशों का अनुसरण कर हम न केवल खुद का बल्कि समाज का भी भला कर सकते हैं। पंडित नारायण शर्मा कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में जब पांडवों और कौरवों की सेना आमने-सामने डटी थी, तो उस समय अर्जुन दुश्मन सेना में अपने बंधु-बांधवों को देखकर अवसादग्रस्त हो जाते हैं। तब अर्जुन (पार्थ) के सारथी बने श्रीकृष्ण (वासुदेव) उन्हें उपदेश देते हैं कि पार्थ तुम दुख का त्याग कर युद्ध करो। वर्तमान में भी जीवन की कठिनाइयों से लडऩे के लिए मानव को गीता में बताए सूत्रों को अपनाना चाहिए। गीता के सूत्रों को अपनाने से व्यक्ति उन्नति पथ की ओर अग्रसर होता है।

सोच में परिवर्तन
जो ज्ञानी पुरुष ज्ञान और कर्म को सम देखता है, उसी की सोच सही है। सही नजरिया रखने वाला व्यक्ति इच्छित फल की प्राप्ति कर लेता है। इसलिए व्यक्ति को ज्ञान और कर्म में समभाव बनाए रखना चाहिए।

मन पर नियंत्रण जरूरी
मन बहुत चंचल होता है और वह सदा यहां से वहां भटकता रहता है। अशांत मन को योग और ध्यान का नियमित अभ्यास कर वश में किया जा सकता है।

क्रोध पर काबू
गीता में लिखा है कि क्रोध भ्रम पैदा करता है और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है। जब बुद्धि का विचलन हो जाता है तो तर्क करने की क्षमता भी क्षीण हो जाती है। जब मनुष्य में तर्क करने की क्षमता नहीं रह जाती तो वह पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। इसलिए क्रोध से बचना चाहिए।

मन पर अंकुश जरूरी
मन बहुत चंचल होता है। इस पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है। जो मनुष्य मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते, ऐसे लोगों का मन उनके दुश्मन की तरह कार्य करता है और धीरे-धीरे मनुष्य गलत राह की ओर अग्रसर हो जाता है।

आत्मचिंतन है आवश्यक
मनुुष्य को हर दिन आत्मचिंतन करना चाहिए। आत्मचिंतन से जो ज्ञान प्राप्त होता है उससे व्यक्ति उसके अंदर छुपे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर सकता है।

कर्म का परिणाम
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे उसी के अनुरूप परिणाम की प्राप्ति होती है। इसलिए जीवन में अच्छे कर्म करने को महत्व देना चाहिए।

विश्वास से सफलता
मनुष्य जो चाहे वह प्राप्त कर सकता है, बस जरूरत होती है तो इच्छित वस्तु को प्राप्त करने लगन के साथ कार्य करने की। ऐसा करके व्यक्ति का सफलता अवश्य मिलती है।

ऐसे पाएं तनाव से मुक्ति
प्रकृति के विपरीत कार्य करके मनुष्य तनाव से ग्रसित हो जाता है। यही तनाव मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। इसलिए तनाव से मुक्त रहने के लिए धर्म और कर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।

सोच से आचरण निर्माण
मनुष्य जिस तरह सोचता है, उसी तरह का आचरण करता है। स्वयं के अंदर के विश्वास को जाग्रत कर सोच में बदलाव ला सकता है, जो उसके जीवन के लिए बेहतर होगा।


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