बाबा साहब अम्बेडकर विभाजन के सख्त खिलाफ थे
14 April अप्रेल जयन्ति
6 December दिसम्बर पुण्यतिथि
भारत के प्रथम कानून मंत्री रहे बाबा साहब अम्बेडकर विभाजन से पहले , विभाजन के सख्त खिलाफ थे और उन्होने महात्मा गांधी को लताडा भी था। वे पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर बहुत चिन्तित थे।
वे कभी कांग्रेस में नहीं रहे, उन्हे योग्यता के आधार पर ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस आदि ने अनेको काम दिय। वे कांग्रेस की नीतियों के प्रबल विरोधी थे। वे लगातार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उनके बड़े नेताओं महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू की गलत और सही नीतियों की आलोचना कर रहे थे। यहां तक कि मुसिलम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना को भी उन्होंने नहीं बख्शा था। वैसे तो अंबेडकर की इन तीनों ही नेताओं से कई मुद्दों पर विरोध और असहमति थी, लेकिन सबसे बड़ा और अहम विरोध था भारत के विभाजन का।
दरअसल, अंबेडकर का भारत को देखने का बिल्कुल ही अलग नजरिया था। वे पूरे देश को अखंड देखना चाहते थे, इसिलए वे भारत के टुकड़े करने वालों की नीतियों के जबर्दस्त आलोचक रहे। भारत को दो टुकड़ों में बांटने की ब्रिटिश हुकूमत की साजिश और अंग्रेजों की हां में हां मिला रहे इन तीनों ही भारतीय नेताओं से वे इतने नाराज थे कि उन्होंने बाकायदा पाकिस्तान के विभाजन को लेकर एक पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ लिखी जो बहुत ही चर्चा में आई।
खास बात यह है कि विभाजन पर उनका विरोध विशेष रूप से जिन्ना से सबसे ज्यादा निशाने पर थे। अम्बेडकर का मानना था कि देश को दो भागों में बांटना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है और ऐसे विभाजन से राष्ट्र से ज्यादा मनुष्यता का नुकसान होगा। बड़े पैमाने पर हिंसा होगी, जो यकीनन विभाजन के दौरान हुई। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए ऐसा कदम उठा रही है। अपनी 1941 में आई पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान में उन्होंने पूरी कांग्रेस और मुस्लिम लीग को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
यही नहीं अम्बेडकर राष्ट्र के ’जियो कल्चरल कंसेप्ट’ पर विश्वास करते थे। यानी की बाबा साहेब भारत को लेकर यह मानते थे कि भारत को प्रकृति ने ही एक एकल भौगौलिक ईकाई के रूप में बनाया है, लिहाजा उसे दो भागों में नहीं बांटा जाना चाहिए। यकीनन राष्ट्र को लेकर अंबेडकर के विचार बेहद क्रांतिकारी तो थे ही, बल्कि वे पूर्ण और अखंड भारत की कल्पना करते थे। पाकिस्तान विभाजन को लेकर उनकी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान बेहद महत्वपूर्ण रही है।
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भारतीय जनसंघ के नेता बलराज मधोक के हवाले से एक रिपोर्ट उपलब्ध है जिसमें यह लिखा हुआ है ‘डॉ. आंबेडकर ने शेख़ अब्दुल्ला से साफ शब्दों में कह दिया था, ‘आप चाहते हो कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, वह आपके क्षेत्र में सड़कें बनाए, वह आपको खाद्य सामग्री दे, और कश्मीर का वही दर्ज़ा हो जो भारत का है! लेकिन भारत सरकार के पास केवल सीमित अधिकार हों और भारत के लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं हों। ऐसे प्रस्ताव को मंज़ूरी देना भारत के हितों से दग़ाबाज़ी करने जैसा होगा और मैं भारत का कानून मंत्री होते हुए ऐसा कभी नहीं करूंगा।’
तब शेख़ अब्दुल्ला जवाहरलाल नेहरू से मिले जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी आयंगर के पास भेज दिया। आयंगर सरदार पटेल से मिले और उनसे कहा कि वह इस मामले में कुछ करें क्योंकि नेहरू ने शेख़ अब्दुल्ला से इस बात का वादा किया था और अब यह उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ गया है। पटेल ने नेहरू के विदेश यात्रा के दौरान इसे पारित करवा दिया। जिस दिन यह अनुच्छेद चर्चा के लिए पेश किया गया, डॉ. आंबेडकर ने इससे संबंधित एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया जबकि दूसरे अनुच्छेद पर हुई चर्चा में उन्होंने भाग लिया। अर्थात कश्मीर को विशेष दर्जा देने संबंधी सारी दलीलें आयंगर की तरफ से आईं।’
बाबा साहब अम्बेडकर मानने थे कि विभाजन हो तो सारे हिन्दू भारत आयें एवं सारे मुस्लमान पाकिस्तान जायें। तभी समस्या का हल होगा।
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