नव संवत्सर 2077 : 25 मार्च 2020से
नव संवत्सर 2077 : 25 मार्च २०२० से शुरू होगा
वर्ष का शुभारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से होता है क्योंकि इस दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना शुरू की थी. नव वर्ष विक्रम संवत सर 2077 का शुभारंभ 25 मार्च 2020 चैत्र नवरात्र के प्रथम से होगी. वर्ष के पहले दिन का सूर्योदय 6.27 बजे होगा। इस दिन बुधवार होने से ज्योतिषियों का मत है कि नया वर्ष देश में सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भरपूर रहेगा।
ज्योतिष के जानकार रघुनाथ प्रसाद शास्त्री ने बताया कि किसी भी नए संवत्सर में राजा का चयन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के वार के अनुसार होता है,अर्थात इस दिन जो वार होता है उस वार के स्वामी को संवत का राजा माना जाता है। नए वर्ष का नाम प्रमादी है। रघुनाथ शास्त्री के अनुसार नए वर्ष के पहले दिन वेद में दिए गए संवत्सर सुक्त का पाठ करना चाहिए। ध्वज और कलश पूजन करना चाहिए।
रघुनाथ शास्त्री ने बताया नए वर्ष की शुरुआत बुधवार से हो रही है, जो शुभता का प्रतीक हैं। बुध राजा ,चंद्र मंत्री रहेंगे। बुध के राज्य में जल, धन, धान्य, में समृद्धि आएगी। और विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं के सम्मान व प्रभाव में बढ़ोतरी होगी। यह भी माना जाता है ।बुध के राजा रहते धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में विस्तार व लोगों का इसमें जुड़ाव बढ़ेगा, लेकिन राजनीति की हालात संतोषजनक नहीं रहेगी। युवाओं के लिए शुरू होंगे रोजगार के अवसर। बुध का संबंध पर्यावरण से भी है। इस कारण पर्यावरण के क्षेत्र में सुधार लाने के प्रयासों में तेजी आयेगी। पहले दिन कुंभ का चंद्रमा होने से कृषक परिवारों में धन-धान्य की आवक में बढ़ोतरी होगी।
सम्वत मंत्री चंद्रमा
चंद्रमा के मंत्री होने के कारण भौतिक सुख सुविधाओं का बोलबाला होगा। लोगों का ध्यान भी इस ओर अधिक रह सकता है। वर्षा अच्छी होने की उम्मिद भी की जा सकती है। दूध और सफेद वस्तुओं का उत्पादन भी अच्छा होगा। रस और अनाज में वृद्धि होगी। बाजार में मूल्यों में उतार-चढा़व जल्दी दिखाई देगा। कोई भी स्थिति लम्बे समय तक नहीं रह पाए। असंतोष और दुविधा आम व्यक्ति के मन में बहुत अधिक रहने वाली है।अपराधों में कमी आएगी। अनाज, दूध, घी, दाल, धातुओं में मन्दी बनी रह सकती हैं। इस सम्वत का मंत्री चन्द्रमा होने से कर्मचारी वर्ग,महिला वर्ग के साथ साथ बुद्दिजीवी वर्ग की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा
सस्येश (फसलों) का स्वामी गुरु
इस समय सस्येश गुरु का प्रभाव होने से रस और दूध और फलों की वृद्धि अच्छी होगी। फसलों की पैदावार में बढ़ोत्तरी होगी। इस समय वेद और धर्म के मार्ग पर जीवन जीने से लोगों का कल्याण होता है। इस वर्ष का सस्येश देवगुरु वृहस्पति है इसके फलस्वरूप व्यर्थ के विवाद शान्त होंगें। षड्यंत्रकारी ताकते कमजोर होगीं। रोगों से मुक्ति मिलेगी, कमी आएगी। शासन द्वारा जनहित में कानून व्यवस्था में आपेक्षित सुधार सम्भव होंगें।
नीरसेश गुरु का प्रभाव
नीरसेश अर्थात ठोस धातुओं का स्वामी. इनका स्वामी गुरु है. गुरु के प्रभाव से तांबा, सोना या अन्य पीले रंग की वस्तुओं के प्रति लोगों का झुकाव और अधिक बढ़ सकता है. इनकी मांग बढ़ सकती है। कृषि के क्षेत्र में अच्छा रुख दिखाई दे सकता है. पशुओं से लाभ मिलने की उम्मीद भी दिखाई देती है. खेती से जुड़े व्यापारियों को भी लाभ मिलने की अच्छी उम्मिद दिखाई देती है।
धान्येश मंगल का प्रभाव
धान्येश अर्थात अनाज और धान्य जो हैं उनके स्वामी मंगल होंगे. मंगल के प्रभाव से गेहूं,ज्वर, बाजरा, गन्ना,तिल्ली, अलसी,मसूर, मूंगफली,चना, सरसों आदि के मूल्य में वृद्धि देखने को मिल सकती है. तेल जैसे पदार्थों में तेजी आएगी ये वस्तुएं महंगी हो सकती है।धार्मिक एवम शुभ उत्सव जैसे आयोजनों वृद्धि होगी।
मेघश सूर्य का प्रभाव
इस वर्ष का मेघेश सूर्य होने से वर्षा में कमी सम्भावित। मेघेश यानी के वर्षा का स्वामी. इस वर्ष सूर्य मेघेश होंगे. सूर्य के प्रभाव गेहूं, जौ, चने, बाजरा की पैदावार अच्छी होगी. दूध, गुड़ भी अच्छे होंगे, उत्पादन में वृद्धि होगी. सूर्य का प्रभाव कई स्थानों पर वर्षा में कमी ला सकता है. नदी और तालाब जल्द सूख भी सकते हैं। अकाल की सम्भवना बनती हैं। आम लोगों में क्रोध की अधिकता बढ़ेगी। वहीं दुर्घटनाओं में वृध्दि के साथ साथ प्राकृतिक आपदाओं की सम्भवना बनती हैं। श्री शास्त्री के अनुसार मसालों के बाजार भावों में वृद्धि सम्भावित। फलों, फूलों, सब्जियों और औषधियों की उपज अच्छी होंगी।व्यापारी वर्ग तथा जनता सुख का अनुभव करेगी।
फलेश सूर्य का प्रभाव
फलेश अर्थात फलों का स्वामी. सूर्य के फलों का स्वामी होने के कारण इस समय वृक्षों पर फल बहुत अच्छी मात्रा में रहेंगे. फल और फूलों की अच्छी पैदावार भी होगी ओर उत्पादन भी बढ़ेगा. पर कुछ स्थान पर इसमें विरोधाभास भी दिखाई देगा जैसे की कही अच्छा होना और कहीं अचानक से कम हो जाना.
रसेश शनि का प्रभाव
रसेश अर्थात रसों का स्वामी, रस का स्वामी शनि होने के कारण भूमी का जलस्तर कम हो सकता है. वर्षा होने पर भी जल का संचय भूमि पर नहीं हो पाए।प्रशासन बलवान होगा। जनता जनार्दन जागरूक बनेगी।बेमौसमी और प्रतिकूल वर्षा के कारण अनेक रोग उत्पन्न हो सकते हैं. कुछ ऎसे रोग भी बढ़ सकते हैं जो लम्बे चलें और आसानी से ठीक न हो पाएं। इस वर्ष का रसेश शनि होने से भौतिक सुख सुविधाओं का विस्तार होगा।
धनेश बुध का प्रभाव
धनेश अर्थात धन का स्वामी राज्य के कोश का स्वामी. बुध के धनेश होने के कारण वस्तुओं का संग्रह अच्छे से हो सकता है. व्यापार से भी लाभ मिलेगा और सरकारी खजाने में धन आएगा. धार्मिक कार्य कलापों से भी धन की अच्छी प्राप्ति होगी.चीनी,चावल,गुड़,गेहूं ,चना, मूंग,उड़द,सरसों, बाजरा एवम तिल्ली की फसल अच्छी होगी।
दुर्गेश सूर्य का प्रभाव
दुर्गेश अर्थात सेना का स्वामी. सूर्य के दुर्गेश होने से सैन्य कार्य अच्छे से हो सकेंगे. न्याय पालन करने में लोगों का असहयोग रहेगा. पर कई मामलों में कुछ लोग निड़र होकर कई प्रकार के खतरनाक हथियारों का निर्माण करने में भी लगे रह सकते हैं. सरकारी तंत्र से जुड़े लोग नियमों को अधिक न मानें और अपनी मन मर्जी ज्यादा कर सकते हैं।
रोहिणी का निवास
इस "प्रमादी" नामक संवतसर में रोहिणी का निवास समुद्र तट पर होने से समय का वास, वैश्य के घर होने से मध्यम वर्षा के योग बनते हैं। बाजार भाव तेज। रहेंगें। अनाज की कमी सम्भावित। कृषक, जनता और पशु पक्षी वर्ग परेशान होंगें। राजनीतिक उथल पुथल रहेगी। इस वर्ष चतुरमेघों में "आवर्त" नामक मेघ हैं जिसके कारण वर्षा माध्यम होगी। खण्ड वृष्टि की सम्भवना। तेज हवा, ओलावर्ष्टि तथा कम वर्षा से फसलों को नुकसान सम्भव। जन धन की हानि के योग भी बनते हैं। समुद्र तटों पर तूफान एवम चक्रवात जैसी विभिशिकाएँ पैदा होने की सम्भवना बनती हैं।
नए वर्ष में बुध-चंद्रमा की स्थिति का इन राशियों पर रहेगा असर
मेष- स्वास्थ्य में गिरावट होगी, वृष- मानसिक कष्ट हो सकता है, मिथुन- कार्यों में विलंब होगा,
कर्क- संपत्ति लाभ होगा, सिंह- खर्च बढ़ेंगे, कन्या- रोग कष्ट,
तुला-भूमि लाभ होगा, वृश्चिक- वाहन संभलकर चलाएं धनु- हानि,
मकर- कार्यों में बाधा, कुंभ- वाहन, भूमि लाभ, मीन- सुख-संतोष।
चंद्र-बुध पिता-पुत्र ही हैं। दोनोें प्रमुख पद एक ही परिवार में हैं। सूर्य-शनि भी पिता-पुत्र हैं जो मंत्रिमंडल में हैं। इस वर्ष में 21 जून को सूर्यग्रहण हैं जो सुबह 10.11 बजे शुरू होगा और दोपहर 1.41 बजे समाप्त होगा। 15 अगस्त को देश का 74 वां स्वतंत्रता दिवस होगा।
इस वर्ष अधिक मास अश्विन है
जो 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्तूबर तक चलेगा। इसके कारण व्रत-पर्वों में 15 दिन का अंतर आ रहा है। यानी जनवरी से अगस्त तक आने वाले त्योहार करीब 10 दिन पहले और सितंबर से दिसंबर तक होने वाले त्योहार 10 से 15 दिन की देरी से आएंगे।
इसलिए कहते है इसे पुरुषोत्तम मास
इस अधिमास का कोई स्वामी न होने से देवताओं ने इसे अशुद्ध माना और इसमें कोई भी मांगलिक कार्य कैसे करें, इस संशय में पड़ गए। तब वे भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने कहा कि आज से मैं इस अधिमास को अपना नाम देता हूं। जब से पुरुषोत्तम मास के दौरान जप, तप, दान से पुण्य प्राप्ति होते हैं। श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन व विष्णु की उपासना की जाती है। कथा पढ़ने-सुनने से भी लाभ होता है। इस मास में जमीन पर शयन, एक ही समय भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होते हैं। रघुनाथ शास्त्री के अनुसार 19 वर्ष बाद अश्विन का अधिक मास आया है। इसके पहले विक्रम संवत 2058 में अश्विन का अधिकमास था। इसके बाद 2096 में अश्विन का अधिक मास आएगा
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