सोनिया-राहुल की गोलमाल कम्पनी




सोनिया-राहुल की गोलमाल कम्पनी : यंग इंडिया लागत 50 लाख, कमाई 500 करोड़

तारीख: 05 Oct 2015
अरुण कुमार सिंह

- कहते हैं कि भारत में एक परिवार ऐसा है, जो करता तो कुछ नहीं है, पर उसकी सम्पत्ति में हर महीने करोड़ों रुपए की बढ़ोतरी हो रही है। वह परिवार है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी  का। कहा जा रहा है कि इस परिवार की दिल्ली सहित भारत के एक दर्जन से अधिक शहरों में अच-अचल सम्पत्ति है, जिसकी कीमत अरबों रुपए है। अब सवाल उठता है कि इन दोनों के पास इतनी सम्पत्ति कहां से आई? सूत्र कहते हैं कि इस परिवार ने अपने पद का दुरुपयोग और धोखा करके तथा षड्यंत्र रच करके सम्पत्ति बनाई है। इसका उदाहरण है अंग्रेजी अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ का मामला। अनुमान है कि इस अखबार की लगभग 500 करोड़ रुपए की सम्पत्ति लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, भोपाल, इन्दौर, पटना, पंचकुला आदि शहरों मेें है। कथित धोखा और आपराधिक षड्यंत्र करके इस सम्पत्ति का मालिकाना हक 2012 में ‘यंग इंडिया’ नामक कम्पनी को केवल 50 लाख रुपए में दे दिया गया।  इस कम्पनी के 76 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं। यानी यही इस कम्पनी के मालिक हैं। इस मामले को लेकर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी दिल्ली स्थित पटियाला हाउस न्यायालय पहुंचे। उन्होंने अदालत से कहा कि यंग इंडिया ने धोखा और आपराधिक षड्यंत्र रचकर नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद पटियाला हाउस न्यायालय ने 26 जून, 2014 को सोनिया गांधी, राहुल गांधी, आॅस्कर फर्नांडीस, मोतीलाल वोरा, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे को समन जारी किए और इस सम्बंध में जवाब देने को कहा। इस समन के विरुद्ध ये लोग दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचे। न्यायालय से इन लोगों ने निवेदन किया है कि यह बताया जाए कि पटियाला हाउस न्यायालय से जारी समन न्यायोचित है या नहीं? दिल्ली उच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई 8 अक्तूबर को होने वाली है।

डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं, ‘यदि उच्च न्यायालय ने समन को न्यायोचित ठहराया, जिसकी संभावना है, तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए मुसीबत पैदा हो सकती है। इन दोनों के विरुद्ध धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र रचने, सम्पत्ति पर अवैध कब्जा करने और काला धन जमा करने जैसे मामले चलेंगे।’  कहा जाता है कि नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति को हड़पने के लिए यंग इंडिया  और ‘एसोसिएट जर्नल’(यही कम्पनी नेशनल हेराल्ड को चलाती थी) से जुड़े लोगों ने एक आपराधिक षड्यंत्र रचा। इसी षड्यंत्र के अन्तर्गत कांग्रेस पार्टी ने एसोसिएट जर्नल को बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए का कर्ज दिया। कहा गया कि इससे नेशनल हेराल्ड के कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाएगी और उन्हें बेरोजगार होने से बचाया जाएगा।  इसके बावजूद नेशनल हेराल्ड को 2008 में बन्द कर दिया गया। डॉ. स्वामी कहते हैं कि किसी राजनीतिक दल को जो पैसा मिलता है वह चन्दे के रूप में मिलता है। इसलिए उस पैसे को वह किसी को कर्ज नहीं दे सकता है। इसके बावजूद कांग्रेस ने एसोसिएट जनरल को कर्ज दिया, जो किसी षड्यंत्र का ही हिस्सा था।
उल्लेखनीय है कि एसोसिएट जर्नल के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल बोरा हैं और वही यंग इंडिया के कोषाध्यक्ष और वित्त निदेशक भी। कहा जाता है कि नेशनल हेराल्ड के बन्द होने के बाद इन दोनों संगठनों से जुड़े कुछ प्रमुख लोगों ने आपस में ही तय कर लिया कि अब तो एसोसिएट जनरल कांग्रेस पार्टी का कर्ज वापस नहीं कर सकती है। इसलिए उसकी पूरी सम्पत्ति यंग इंडिया को दे दी जाए और इसके बदले यंग इंडिया एसोसिएट जर्नल को 50 लाख रुपए का भुगतान करे। डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी सवाल उठाते हैं कि जिस ‘यंग इंडिया’ कम्पनी की कुल पंूजी सिर्फ 5 लाख रुपए  है, वह किसी कम्पनी को 50 लाख रुपए कैसे दे सकती है? इसका अर्थ है कि उसके पास कालाधन है। उन्होंने यह भी कहा कि नेशनल हेराल्ड के भवनों को यंग इंडिया ने किराए पर दे रखा है। इससे उसको प्रतिमाह लगभग एक करोड़ रुपए की आय होती है।
डॉ. स्वामी का कहना है कि यंग इंडिया जब अपनी पंूजी से बहुत अधिक पैसा किसी को दे सकती है तो इसका मतलब है उसके पास कालाधन है। इसलिए प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) को ‘प्रिवेन्शन आॅफ मनी लॉड्रिंग एक्ट’ के तहत मामला दर्ज कर इसकी जांच करनी चाहिए। इसके लिए उन्होेंने ई.डी. को लिखा भी, लेकिन ई.डी. ने इसे करीब एक वर्ष तक लटकाए रखा। ई.डी. का कहना था कि अभी तो केवल समन ही जारी हुआ है, जब कोई ठोस प्रगति होगी तो जांच की जाएगी। अब ई.डी. इस मामले को लेकर सजग हुई है।

नेशनल हेराल्ड का इतिहास
बात है 1937-38 की। उन दिनों जवाहरलाल नेहरू ने ‘नेशनल हेराल्ड’ नाम से एक अखबार निकालने का विचार किया और इसके लिए उन्होंने देश के कई शहरों में सरकार से रियायती दर पर जमीन ले ली। इनमें लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई, भोपाल, इन्दौर, पटना, पंचकुला जैसे शहर शामिल हैं। इस अखबार का पहला संस्करण 9 सितम्बर, 1938 को लखनऊ से प्रकाशित हुआ था और इसके प्रथम सम्पादक थे जवाहरलाल नेहरू। इसके कुछ वर्ष बाद दिल्ली संस्करण भी निकला। मजे की बात है कि लखनऊ और दिल्ली संस्करणों के अलावा और कहीं से भी नेशनल हेराल्ड का संस्करण नहीं निकला। लेकिन जहां भी सरकार से जमीन ली गई वहां आलीशान भवन जरूर बनाए गए। आज ये सारे भवन किराए पर चढ़े हुए हैं और इन सबका लाभ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ‘परिवार’ को मिल रहा है। 1942 से 1945 तक नेशनल हेराल्ड बन्द रहा। जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद नेशनल हेराल्ड के सम्पादक रामाराव बनाए गए।  नेशनल हेराल्ड को हिन्दी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘कौमी आवाज’ के नाम से निकाला जाता था।  इन तीनों अखबारों को आप विशुद्ध रूप से कांग्रेसी अखबार कह सकते हैं। 1977 के लोकसभा चुनाव में जब इन्दिरा गांधी हार गर्इं तो नेशनल हेराल्ड को 2 वर्ष के लिए बन्द कर दिया गया। इन्दिरा गांधी के बाद राजीव गांधी ने इस अखबार को संभालने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत कुछ बदल गया था।  अखबार निकालने वाली कम्पनी लगातार घाटे पर जा रही थी। इस कारण 1988 में लखनऊ संस्करण को बन्द कर देना पड़ा। केवल दिल्ली संस्करण लगभग 10 वर्ष तक निकलता रहा, लेकिन 1 अप्रैल, 2008 को अचानक दिल्ली संस्करण को भी बन्द करने की घोषणा की गई। कुछ लोगों का कहना है कि नेशनल हेराल्ड की सम्पत्ति पर सोनिया मण्डली की नजर बहुत पहले ही पड़ गई थी। इसकी सम्पत्ति को कब्जाने के लिए ही यंग इंडिया कम्पनी बनाई गई थी।
खुद को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रतिनिधि  बताने वाले इस अखबार की परतें खुलेंगी तो परिवार को शर्मिन्दगी का सामना करना ही पड़ेगा।

‘यंग इंडिया’ कम्पनी की कुल पूँजी जी सिर्फ 5 लाख रुपए  है, वह किसी कम्पनी को 50 लाख रुपए कैसे दे सकती है? इसका अर्थ है कि उसके पास काला धन है... सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए मुसीबत पैदा हो सकती है। इनके विरुद्ध धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र रचने, सम्पत्ति पर अवैध कब्जा करने और काला धन जमा करने जैसे मामले चलेंगे।’
-डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी

अखबार निकालने के नाम पर जवाहरलाल नेहरू ने सरकार से रियायती दर पर देश के अनेक शहरों में जमीन ली।
उस अखबार के केवल लखनऊ और दिल्ली से संस्करण निकले।
 बाकी जगहों पर भवन बनाकर किराए पर चढ़ाए गए जिसका लाभ ‘परिवार’ को मिल रहा है।

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