राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS की शाखा में जाने के लाभ

 
 
आरएसएस ( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) की शाखा स्वंय सेवकों को अनुशासन में रहना सिखाती है। शाखा के माध्यम से स्वयंसेवकों का मानसिक, शारीरिक व बौद्धिक विकास कराया जाता है। स्वयंसेवकों को बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के भू-भाग को भारत माता मानता है एवं संपूर्ण विश्व को वसुधैव कटुंबकम् के रुप में देखता है। संघ का मुख्य उद्देश्य सेवा कार्य है एवं संघ राष्ट्रभक्ति की कार्यशाला है। स्वयंसेवकों को राष्ट्र के प्रति समर्पित एवं सर्वस्पर्शी बनाने में तत्पर रुप से लगा हुआ है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाने के 10 लाभ:

1. सुबह 5 बजे उठने की आदत पड़ती है और सूर्योदय देखने का अवसर प्राप्त होता है।

2. शारीरिक मानसिक व्यायाम करने का अवसर मिलता है जिससे तनाव और अवसाद दूर होता है

3. नए लोगों से संपर्क होता है फलस्वरूप बौद्विक स्तर बढ़ता है और बातचीत की शैली अच्छी होती है।

4. हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और मानवीय मूल्यों का विकास होता है।

5. जातिवाद भाषावाद क्षेत्रवाद की भावना समाप्त होती है और राष्ट्रवाद की भावना बढ़ती हैं।

6. सनातन धर्म और सनातन संस्कृति का ज्ञान तथा सनातन संस्कार प्राप्त होता है फलस्वरूप निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।

7. समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव महसूस होता है। सभी प्रकार के नशे और व्यसन से मुक्ति मिलती है और अच्छी आदतें पड़ती हैं।

8. आज्ञाकारी और निर्मल स्वभाव बनता है तथा वाणी मधुर और स्वभाव में आत्ममियता बढ़ती हैं।

9. जनसेवा, समाजसेवा और राष्ट्रसेवा की प्रेरणा मिलती हैं तथा सामाजिक दायित्व निभाने की शक्ति प्राप्त होती हैं।

10. माता, पिता, परिवार और समाज के प्रति सन्मान बढ़ता है और नेतृत्व का विकास होता हैं।
 
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संघ की प्रार्थना संस्कृत में है। प्रार्थना की आखरी पंक्ति हिंदी में हैः

   मातृशक्ति की शाखा ,  राष्ट्र सेविका समिति और विदेशों में लगने वाली शाखा, हिन्दू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना अलग है। संघ की शाखा या अन्य कार्यक्रमों में इस प्रार्थना को अनिवार्यत: गाया जाता है और ध्वज के सम्मुख नमन किया जाता है।

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम् ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।।१।।

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत् ।।२।।

समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम् ।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम् ।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।।३।।

।। भारत माता की जय ।।

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प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ

हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।

हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।

ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।

भारत माता की जय।

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हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके, सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो, स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर, और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण ह्र्दय में जगे ध्येय, निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये, ऐसा उपजे मन में विचार।।

#राष्ट्रीयस्वयंसेवकसंघ #संघप्रार्थना #RSS
 

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