शरद पूर्णिमा : देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस
शरद पूर्णिमा : चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने में एक पूर्णिमा तिथि होती है और साल में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि अपने आप में अलग महत्व रखती है और हर पूर्णिमा तिथि में अलग ढंग से पूजन करने का विधान है। इसी प्रकार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा कहते हैं.शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है.
इस पूर्णिमा तिथि का महत्व इसलिए और ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और चंद्रमा की रोशनी सभी दिशाओं में फैली हुई होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन चंद्रमा को भोग में खीर अर्पित की जाती है और इसे खुले आकाश के नीचे रखा जाता है जिससे खीर में भी चद्रमा की रोशनी पड़े और इसमें भी अमृत का प्रभाव हो सके। शरद पूर्णिमा की तिथिहिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी पूरे मनोयोग से की जाती है जिससे उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे।
रात में इस खीर को खुले आसमान के नीचे जरूर रखना चाहिए:
पौराणिक मान्यता है कि इस खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है. इसलिए स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन खीर जरूर बनानी चाहिए और रात में इस खीर को खुले आसमान के नीचे जरूर रखना चाहिए.
इसी के साथ आर्थिक संपदा के लिए शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है. को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी. इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. इसलिए जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन पर देवी की असीम कृपा होती है. इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है. जो लोग धन एवं सुख-शांति की कामना रखते हैं वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन कर सकते हैं.
शरद पूर्णिमा : चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने में एक पूर्णिमा तिथि होती है और साल में 12 पूर्णिमा तिथियां होती हैं। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि अपने आप में अलग महत्व रखती है और हर पूर्णिमा तिथि में अलग ढंग से पूजन करने का विधान है। इसी प्रकार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास में आती है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा कहते हैं.शरद पूर्णिमा का एक विशेष धार्मिक महत्व होता है. इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है.
इस पूर्णिमा तिथि का महत्व इसलिए और ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस रात चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और चंद्रमा की रोशनी सभी दिशाओं में फैली हुई होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन चंद्रमा को भोग में खीर अर्पित की जाती है और इसे खुले आकाश के नीचे रखा जाता है जिससे खीर में भी चद्रमा की रोशनी पड़े और इसमें भी अमृत का प्रभाव हो सके। शरद पूर्णिमा की तिथिहिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी पूरे मनोयोग से की जाती है जिससे उनकी कृपा दृष्टि बनी रहे।
रात में इस खीर को खुले आसमान के नीचे जरूर रखना चाहिए:
पौराणिक मान्यता है कि इस खीर में अमृत का अंश होता है, जो आरोग्य सुख प्रदान करता है. इसलिए स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन खीर जरूर बनानी चाहिए और रात में इस खीर को खुले आसमान के नीचे जरूर रखना चाहिए.
इसी के साथ आर्थिक संपदा के लिए शरद पूर्णिमा को रात्रि जागरण का विधान शास्त्रों में बताया गया है. यही कारण है कि इस रात को, को-जागृति यानी कोजागरा की रात भी कहा गया है. को-जागृति और कोजागरा का अर्थ होता है कि कौन जाग रहा है. कहते हैं कि इस रात देवी लक्ष्मी सागर मंथन से प्रगट हुईं थी. इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का जन्मदिवस भी कहते हैं. अपने जन्मदिन के अवसर पर देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. इसलिए जो इस रात देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं उन पर देवी की असीम कृपा होती है. इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा कौड़ी से करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है. जो लोग धन एवं सुख-शांति की कामना रखते हैं वह इस अवसर पर सत्यनारायण भगवान की पूजा का आयोजन कर सकते हैं.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें