लखीमपुर हत्याकांड की पृष्ठभूमि...तथ्यात्मक सवाल की जांच होनी चाहिए

लखीमपुर हत्याकांड की पृष्ठभूमि... इस पर गंभीर जांच होनी चाहिये 


योगी बाबा ने सांपों के बिल में तेज़ाब डाल दिया है। अतः सांप अब बिलबिलाते फुफकारते हुए बाहर निकल रहे हैं...

धीरे धीरे ही सही, लेकिन एक तथ्यात्मक सवाल की चर्चा तो अब शुरू हो गयी है कि 1947 के बाद पाकिस्तान से आए हुए जिन सिक्ख शरणार्थियों को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने सहानुभूति दर्शाते हुए उत्तरप्रदेश के तराई इलाके में खाली पड़ी सरकारी जमीन में से 12.5 एकड़ (50 बीघा) जमीन प्रति परिवार प्रदान की थी। आज वो 12.5 एकड़ जमीन के टुकड़े 120 से 1250 एकड़ तक बड़े कैसे हो गए हैं.?
जमींदारी उन्मूलन कानून के बाद उत्तरप्रदेश में 1961 में लैंड सीलिंग एक्ट बनाकर 12.5 एकड़ से अधिक जमीन रखने पर कानूनी रोक भी लग गई थी। लेकिन इसके बावजूद तराई के इलाकों में 12.5 एकड़ की जमीन के टुकड़े 125 से 1250 एकड़ तक का फार्म कैसे बन गए.?

इस सवाल का जवाब खून से रंगे हुए हादसों का वह खतरनाक शर्मनाक इतिहास है जिसकी एक झलक को लखीमपुर में 3 अक्टूबर को लाठी डंडों तलवारों से पीट पीटकर मौत के घाट उतारे गए 4 लोगों की मौत के वीडियो के माध्यम से पूरे देश ने देखा है और आज भी देख रहा है। लेकिन लखीमपुर की हिंसा को TRP की मंडी में जमकर बेंच रहे न्यूजचैनल इस सच को दिखाना बताना तो दूर, इसकीं चर्चा तक नहीं कर रहे हैं। जबकि लखीमपुर हिंसा इसी सवाल के जवाब में ही छुपी हुई हैं।
उत्तरप्रदेश के भूराजस्व विभाग के दस्तावेजों में दर्ज आंकड़ें यह बताते हैं कि 1947 में उत्तरप्रदेश के इस तराई इलाके में थारू और बुक्सा जनजाति का बाहुल्य था। इलाके की लगभग ढाई लाख एकड़ से अधिक जमीन के मालिक थारू और बुक्सा जनजाति के लोग ही थे। आज यह आंकड़ा घटकर लगभग 15 हजार एकड़ से भी कम हो चुका है। 

तराई की इस उपजाऊ जमीन पर मालिकाना हक के समीकरण को पूरी तरह बदल देने के लिए अनपढ़ अनजान थारू और बुक्सा जनजाति के लोगों पर कैसा कहर बरसाया गया। इसके बहुत दर्दनाक हजारों किस्से इस इलाके के जर्रे जर्रे में दर्ज हैं। 60 और 70 के दशक में अज्ञात हत्यारों द्वारा दोनों जनजातियों के लोगों की नृशंस हत्याओं की ऐसी आंधी इस इलाके में चली थी कि उन्होंने जान बचाकर भागने में ही भलाई समझी थी। कानूनी लड़ाई लड़ने लायक धन और समझ उन अनपढ़ निर्धन थारुओं के पास थी ही नहीं। थारू बुक्सा जनजाति के अनपढ़ ग्रामीणों वनवासियों को एक बोतल शराब देकर उनकी एक एकड़ भूमि का सौदा किस तरह किया गया, इसकी अनेक कहानियां  उत्तरप्रदेश के तराई इलाके के लखीमपुर, पीलीभीत, उधमसिंह नगर के वरिष्ठ नागरिकों से सुनी जा सकती हैं। सदियों से उनके पास रही उनके पुरखों की भूमि उस दौरान किस दरिंदगी के साथ कैसे कब्जा की जा रही है, यह सच्चाई जब सामने आने लगी तो 1981 में उत्तरप्रदेश सरकार ने कानून बनाकर गैर जनजाति के लोगों द्वारा थारू और बुक्सा जनजाति की जमीन खरीदने पर रोक लगा दी थी। अतीत में हुए ऐसे सौदों को भी रद्द करने की घोषणा की थी। लेकिन 1981-82 में भड़क चुकी खालिस्तानी आतंकवाद की आग से सहमी सरकार अकाली दल के हंगामे और हुड़दंग के दबाव में आ गयी थी। फलस्वरूप उत्तरप्रदेश में यह कानून कभी लागू ही नहीं हो सका। लगभग यही स्थिति लैंड सीलिंग एक्ट की रही। दोनों कानून केवल कागजों तक सीमित रहे। आश्चर्य की बात यह है कि इन दोनों कानूनों का विरोध उत्तरप्रदेश के राजनीतिक दलों के बजाए पंजाब का अकाली दल कर रहा था।  

इसी तरह वन विभाग की हजारों हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा कर के बनाए गए 100, 200, 500, हजार, दो हजार एकड़ तक के आलीशान फार्म हाउस उत्तरप्रदेश में 12.5 एकड़ की लैंड सीलिंग वाले एक्ट की धज्जियां उड़ाते हुए तराई के इन जिलों में दिख जाएंगे। फर्जी नामों वाले फर्जी सदस्यों के ट्रस्ट बना के सीलिंग एक्ट को धता बताने का गोरखधंधा भी तराई के इस इलाके में जमकर प्रचलन में है। पंजाब के बादल परिवार, उसके परिजनों परिचितों समेत अकाली दल व पंजाब कांग्रेस के कई विधायकों सांसदों  मंत्रियों के फार्म हाऊस भी  यहां मौजूद हैं। फर्जी नामों और कंपनियों वाले आलीशान विशाल बेनामी फार्म हाउसों की बहुत बड़ी संख्या भी इस क्षेत्र में है। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने 1998 में इन अवैध कब्जों पर सरकारी शिकंजा कसने की कोशिश की थी। तब केंद्र की अटल सरकार को निर्णायक समर्थन दे रहा अकाली दल उस कार्रवाई के विरोध में खुलकर सामने आ गया था। परिणामस्वरूप कार्रवाई कागजों तक ही सीमित रही। लेकिन इसका एक लाभ अवश्य हुआ है। जमीन पर नजर आने वाले सैकड़ों हजारों एकड़ वाले आलीशान फार्म हाउसों का आकार सरकारी दस्तावेजों में कई गुना छोटा है। यह कहानी बहुत लंबी है। लेकिन यह कहानी अब अपने सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। 
जनजातियों की जमीन की खरीद पर रोक के कानून और लैंड सीलिंग एक्ट को धता बताकर तथा वन विभाग की हजारों हेक्टेयर भूमि पर कब्जा कर के बने हजारों फार्महाउसों, फर्जी ट्रस्टों पर मुख्यमंत्री योगी ने सरकारी शिकंजा कसना शुरू किया है। उनको नोटिस भेज दिए गए हैं। 12.5 एकड़ से अधिक जमीन पर खेती पर रोक लगा दी है। वन विभाग की हजारों हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा कर के बने आलीशान फाइवस्टार फार्महाउसों पर बुलडोजर चलवा के जमीन वापस लेने की मुहिम शुरू हो रही है। मुख्यमंत्री योगी की इस कार्रवाई से तराई के इस इलाके से ज्यादा हड़कंप पंजाब के राजनीतिक गिरोहों के बड़े बड़े अड्डों में मच गया है। ये गिरोह खुलकर इस कार्रवाई का विरोध कर नहीं सकते। वो अगर ऐसा करेंगे तो जनता के सामने पूरी तरह नंगे हो जाएंगे। राजनेता के बजाए गरीब थारुओं और वन विभाग की सरकारी जमीन लूटने वाले भूमाफिया डकैत का उनका चेहरा और चरित्र पूरी तरह बेनकाब हो जाएगा। इसलिए तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर खालिस्तानी गुंडे खूनी हत्यारे अपराधियों को बुलाकर लखीमपुर में खून की होली खेली गयी है ताकि मुख्यमंत्री योगी और उनकी सरकार पर दबाव डाल कर उन्हें ब्लैकमेल किया जा सके। 

अतः यह समझने की आवश्यकता है कि लखीमपुर में जो हुआ है उसका किसानों से कोई लेनादेना नहीं है। लखीमपुर हिंसा का उद्देश्य मुख्यमंत्री योगी पर दबाब बनाकर रोकना है, जो गरीब थारुओं और उनकी जमीन डस चुके, वन विभाग की जमीन हड़प चुके जहरीले भूमाफिया सांपों के बिल में सरकारी कार्रवाई का तेज़ाब डाल रहे हैं।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

सफलता के लिए प्रयासों की निरंतरता आवश्यक - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

जागो तो एक बार, हिंदु जागो तो !

11 days are simply missing from the month:Interesting History of September 1752