संघ के स्थापना दिवस पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का नागपुर में उद्बोधन

 

श्री विजयादशमी पर्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का नागपुर में उद्बोधन

नमस्कार, श्री विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

श्री विजयादशमी पर्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का नागपुर में एक उद्बोधन हुआ. इस सन्दर्भ में उन्होंने सामाजिक समरसता, स्वतंत्रता एवं एकात्मकता, कुटुंब प्रबोधन, कोरोना से संघर्ष, आर्थिक चिंतन, हिन्दू मंदिरों पर प्रश्न, संगठित हिन्दू समाज, जैसे महत्वपूर्ण विषय सामने रखे. इस दौरान उन्होंने भारत की जनसँख्या में असंतुलन एवं प्रजनन दर के मुद्दे पर भी विचार प्रकट किये.

डॉ. भागवत जी के उद्बोधन सम्बन्धी लिंक इस प्रकार है :
सम्पूर्ण उद्बोधन (हिंदी) 

 सम्पूर्ण उद्बोधन (हिंदी) 

 https://www.rss.org/hindi//Encyc/2021/10/15/Vijaya-Dashami-2021-Full-Speech.html


सम्पूर्ण उद्बोधन (अंग्रेजी) - https://www.rss.org//Encyc/2021/10/15/VijayaDashami2021-Full-Speech.html

 https://www.rss.org//EnVijayaDashami.2021-Full-Speech.html

 

 कार्यक्रम का यूट्यूब पर प्रसारण
कार्यक्रम का यूट्यूब पर प्रसारण - https://www.youtube.com/watch?v=N504aconLCo
 
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने जनसँख्या के सन्दर्भ में जिन विषयों की चर्चा की है, उससे सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए इस मेल में एक डॉक्यूमेंट अटैच्ड है, जिसका सार निम्नलिखित है :
 
भारत में जनसंख्या नीति के लिए एक व्यवस्थित कानून का मांग कोई नयी नहीं है बल्कि यह दशकों से लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है. साल 1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एम.एल. फोतेदार ने संविधान का 79वां संशोधन विधेयक पेश किया. इसके अंतर्गत संसद एवं सभी राज्यों की विधानसभाओं में जिन निर्वाचित प्रतिनिधियों के दो से अधिक बच्चें थे उनके चुनाव को अयोग्य ठहराने का प्रस्ताव पेश किया था. इसके बाद देश की जनसँख्या पर एक नीति बनाने के लिए चर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया और साल 1992 से वर्तमान तक लगभग 22 निजी विधयेक पेश किये जा चुके है. गौर करने वाली बात यह है कि सबसे पहले अप्रैल 1992 में राष्ट्रीय जनसँख्या नीति विधेयक को प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने पेश किया था. यह सर्व-विदित है कि प्रतिभा देवी सिंह पाटिल आगे चलकर देश की 12वीं राष्ट्रपति बनी.

राष्ट्रीय जनसँख्या नीति विधेयक पर निजी विधेयक पेश करने वालों में भाजपा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, तेलगू देशम पार्टी, बीजू जनता दल, और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसे दलों के सांसद शामिल रहे है. यानि जनसँख्या पर नीति की मांग सिर्फ एक दल की नहीं बल्कि देश के राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों प्रकार के दलों की तरफ से समय-समय पर होती रही है. साल 2010 में भी जनसँख्या को लेकर लोकसभा में एक बहस हो चुकी है. उस दौरान कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद देश के परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्री थे और उन्होंने जनसँख्या के नियमन को लेकर अपनी स्वीकार्यता दी थी. इस विषय पर लगभग सभी दलों के 45 सदस्यों ने अपने मत रखे थे.  विधायिका के इतर जनसँख्या असंतुलन के कारकों पर भी ध्यान देने की जरुरत है. भारत की 1950 में कुल प्रजनन दर 5.9 प्रतिशत थी और 1960 की तक इस स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया, लेकिन 1970 में मामूली गिरावट के साथ यह 5.72 हो गयी. इसके बाद प्रजनन दर में 1990 के बाद से लेकर 2010 के बीच तेजी से कमी आनी शुरू हुई और 2020 में यह अपने न्यूनतम स्तर 2.24 पर है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कुल प्रजनन दर के मामले में देश ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. लेकिन अभी जनसँख्या को लेकर ऐसे कई महत्वपूर्ण विषय है जिनपर अब विचार करना होगा.

जैसे पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है. यह जिला पश्चिम बंगाल का सबसे अधिक मुस्लिम बहुल है. यहाँ प्रश्न सिर्फ मुस्लिम आबादी का नहीं है बल्कि लड़कियों के विवाह को लेकर है. साल 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार मुर्शिदाबाद में 18 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों के विवाह का प्रतिशत 55.4 है, जोकि देश में सबसे अधिकतम है. यही नहीं जिले में सर्वेक्षण के दौरान 15-19 वर्ष की लड़कियां जो पहले से ही मां अथवा गर्भवती थीं, उनका प्रतिशत 20.6 है. लगभग यही कहानी असम के धुबरी जिले की है, जहाँ मुस्लिम आबादी 79.67 है. साल 2019-20 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार धुबरी में 18 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों के विवाह का प्रतिशत 50.8 है. साथ ही जिले में सर्वेक्षण के दौरान 15-19 वर्ष की लड़कियां जो पहले से ही मां अथवा गर्भवती थीं, उनका प्रतिशत 22.4 है.

यह देश के सिर्फ दो जिलों की दुर्दशा नहीं है, जहाँ न सिर्फ समय से पहले लड़कियों के विवाह बड़े पैमाने पर हो रहे है, साथ ही साथ बेहद कम उम्र में वे मां बन चुकी है अथवा गर्भवती है. इस दिशा में रोकथाम के लिए सरकारों ने कई प्रयास किये है लेकिन वह ज्यादा प्रभावी नहीं रहे है. इसलिए देश के कई हिस्सों में जरुरत से ज्यादा असंतुलन पैदा हो रहा है अथवा हो चुका है. विवाह की न्यूनतम आयु से संबंधित कानून के प्रचार-प्रसार एवं प्रवर्तन के प्रयास को लेकर देश में सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान ही एक सम्बंधित प्रस्ताव शामिल किया गया था. इसके बाद अथवा इससे पहले कोई ठोस व्यवस्था इस सन्दर्भ में नहीं की गयी है.

दरअसल, कम उम्र में विवाह होना और मां बनने से जनसँख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ असंतुलन भी पैदा हो जाता है. यही नहीं इससे लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ता है. अतः अब इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है. भारत में जनसँख्या पर अंकुश लगाने के साल 1951 से प्रयास जारी है. इस दौरान केंद्र सरकारों और राज्य सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर कई योजनाएं, कार्यक्रम, जागरूक अभियान और कानून बनाये है. इससे भारत की एक बड़ी आबादी पर तो इसका सकारात्मक असर दिखाई देता है लेकिन मुर्शिदाबाद और धुबरी जिलों के जैसे अन्य कई जिलों में कुल प्रजनन दर अधिक बनी हुई है. अतः अब जनसँख्या को लेकर एक ऐसी समग्र नीति की आवश्यकता है जोकि सम्पूर्ण देश के को लाभान्वित कर सके. यह तो तय है कि जनसँख्या नीति को लेकर सभी दलों की एक राय है. कुछ गतिरोध है जिन्हें संसद में सर्वदलीय समिति का गठन अथवा आपसी समझ के माध्यम से दूर किया जा सकता है.

धन्यवाद 
--
डॉ. प्रमोद सैनी
संयोजक

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