नवदुर्गा महोत्सव का संदेशा शक्ति ही सर्वोपरी
- अरविन्द सिसौदिया
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मां भगवती के तीन प्रमुख स्वरूप
दुर्गा, सरस्वती एवं लक्ष्मी अत्यंत विख्यात है।
ये शक्ति, बुद्धि एवं सम्पन्नता का प्रतिनिधित्व करती है।
देवी के अन्य स्वरूपों में गायत्री सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
नवदुर्गा महोत्सव में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, यह भी देवीयों के सामर्थ्य का संदेश है।।
इसके अतिरिक्त लगभग सभी देवत्व कार्यों एवं क्रियाओं में देवीयां मौजूद है। हिन्दू धर्म की अन्वेषण तथा अनुसंधान यात्रा सत्य पर आधारित है। इसी कारण धनात्मक शक्तियों के साथ ऋणात्मक शक्तियों को पूरा पूरा स्थान मिला है। उनकी उपस्थिती दर्ज की गई है। विश्व की अन्य तमाम मान्यताओं में इस तथ्य को नजर अंदाज किया गया है। जबकि विज्ञान ने हमेशा ही यह संकेत दिये है। कि सृष्टि सन्तुलन हेतु जो कुछ भी सामनें है उसका निगेटिव भी है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हिन्दू जीवन पद्यती में सभी देवी देवताओं नें अपने भक्त जनों को अथवा मानव सभ्यता को, मानव संस्कृति को आगाह किया है, कि सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जीवन की सुरक्षा है। इसके लिये शस्त्रों की आवश्यकता है। संहारक शस्त्र ही सुरक्षा की गारंटी हैं। अधिकांश हिन्दू देवी देवताओं के हाथों में शस्त्र सुसज्जित है।
एक राजा को 20 भुजी माता जी ने आव्हान किया था कि हमारी सभी भुजाओं में अस्त्र शस्त्र होनें चाहिये,अर्थात 20 प्रकार के अस्त्र शस्त्र होनें चाहिये, किन्तु उस राजा ने देवी के वचनों की उपेक्षा की और बाद में हुये युद्ध में वह हार गया ।
जीवन के अस्तित्व की रक्षा ही जीवन की आयु होती हैं। धर्म नीति और ज्ञान की सुरक्षा होती है।
अतः समस्त हिन्दू संस्कृति में विश्वास रखने वालों से आग्रह है कि वे शस्त्र पूजा अवश्य करें एवं अपनी रक्षा के तमाम उपायों को सीखें एवं उनसे समृद्ध रहें। यही देवी की सच्ची आराधना एवं भक्ति है। नवदुर्गा महोत्सव का संदेशा शक्ति ही सर्वोपरी ।
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