ताशकंद में शास्त्रीजी के संदिग्ध निधन पर सवाल तो रूस पर भी है - अरविन्द सिसौदिया
ताशकंद में शास्त्रीजी के संदिग्ध निधन पर सवाल तो रूस पर भी है - अरविन्द सिसौदिया
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साम्यवादी विचारधारा के चलते साम्यवादी देशों पर यथा सोवियत संघ और चीन पर विश्वास किया मगर दोनों ही देशों ने भारत को सही समय पर साथ नहीं दिया । चीन ने धोके से आक्रमण किया तब सोवियत संघ हमारी मदद को खडा नहीं हुआ । वहीं जब हम पाकिस्तान से लालबहादुर शास्त्री जी के नेतृत्व में विजयी हुये तब समझौते के लिये अमरीका से मिल कर दबाव बनाया और भारत द्वारा जीती जमीन वापस देनें को मजबूर किया।
सोवियत संघ द्वारा समझौते के लिये दबाव बनाये और सहयोग के समय पीठ दिखाने से भी शास्त्री जी को बहुत धक्का पहुंचा होगा यह तो सहज ही महसूस किया जा सकता है।
मृत्यु जहर से हुई या हार्ड अटैक से दोनों के लिये जिम्मेवार तो साम्यवादी सोवियत संघ अर्थात रूस है ही । उसे बरी तो नहीं किया जा सकता और आगे सावधान भी रहना होगा ।
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षडयंत्र की बू इस तरह से आती है कि गिरफ्तार किये गये जान मोहम्मद को तो राष्ट्रपति भवन में नौकरी मिलती है। और जो लोग षडयंत्र की सुगबुगाहट जानते थे उनकी दुर्घटनात्म मृत्यु हो जाती है। जैसे कि लाल बहादुर शास्त्री के साथ गए ताशकंद डॉ चुघ और उनके पूरे परिवार का 1977 में एक ट्रक एक्सीडेंट हो गया तिसमें उनकी मृत्यु होगई । वहीं शास्त्री जी के निजी सहायक रामनाथ का भी कुछ समय बाद कार एक्सीडेंट हो गया जिसमें उनके पैर काटने पड़े और बाद में उनकी याददाश्त चली गई।
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शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु पर बेहद सटीक रिपोर्ट टी वी 9 भारत की यहां साभार प्रस्तुत है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी रहस्यमयी बनी हुई है.
भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री की मौत किसी दूसरे देश में संदिग्ध रूप से हो जाती है और उसका पोस्टमार्टम भी नहीं कराया जाता है, यह बहुत अचरज वाली बात है. जब लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का शव भारत आया तो उनकी पत्नी का कहना था कि उनके शव का रंग नीला पड़ चुका था और शरीर पर सफेद धब्बे थे.
सुष्मित सिन्हा
Updated On - 7:04 pm, Fri, 1 October 2021
तारीख 11 जनवरी 1966 उस दिन हिंदुस्तान ने अपना एक ऐसा वीर सपूत खोया जिसने पूरी दुनिया को बता दिया था कि भारत अपने दुश्मनों का मुकाबला किस हौसले से करता है. पतला-दुबला, छोटे कद का एक विराट व्यक्तित्व वाला आदमी, जिसने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. वह विशालकाय व्यक्तित्व का आदमी जमीन पर बेसुध पड़ा था. हम बात कर रहे हैं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की, जिनके मौत की गुत्थी आज तक नहीं सुलझी. लोग ताशकंद में हुए शास्त्री जी की मौत के रहस्यों को आज भी जानना चाहते हैं. लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद ही लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत उन कुछ मौतों में शामिल है जिन पर हमेशा सवालिया निशान लगे रहे. सरकारें आईं और गईं लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की मौत का सीधा और सटीक जवाब किसी के पास नहीं था. आधिकारिक तौर पर उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक को बताया जाता है, लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री का मानना था कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी. वहीं इन सब कहानियों के बीच कहीं दबी एक और कहानी थी, हाजी पीर और ठिथवाल की कहानी. जिसने लाल बहादुर शास्त्री को अंदर तक हिला दिया था.
क्या है हाजी पीर और ठिथवाल की कहानी
1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच अप्रैल से 23 सितंबर तक लगभग 6 महीने तक युद्ध हुआ. इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को बता दिया कि वह किसी भी मामले में अपनी अखंडता और संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा और अपने दुश्मन को करारा जवाब देने के लिए हिंदुस्तान हमेशा तैयार है. भारत युद्ध तो जरूर जीत गया था, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के ऊपर एक दबाव था. जिसने उन्हें परेशान कर दिया था. दबाव था पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल का इलाका वापस करना, जिसे हिंदुस्तान ने जीत लिया था. युद्ध के लगभग 4 महीने बाद जनवरी 1966 में पाकिस्तान और हिंदुस्तान के शीर्ष नेता रूस के ताशकंद में शांति समझौते के लिए पहुंचे.
ताशकंद समझौता.
भारत से जहां देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री गए थे. वहीं पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान गए थे. 10 जनवरी को दोनों देशों के बीच शांति समझौता हुआ और समझौते के अनुसार भारत ने पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल का इलाका वापस कर दिया. कहा जाता है कि लाल बहादुर शास्त्री ने यह फैसला स्वयं लिया था. इसलिए उनकी देश में आलोचना भी खूब हो रही थी. लाल बहादुर शास्त्री ने जब अपने सचिव वेंकटरमन को फोन कर भारत से आ रही इस मामले पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वेंकटरमन ने बताया कि अब तक राजनीतिक रूप से अटल बिहारी वाजपेई और कृष्ण मेनन का बयान आया है, जिन्होंने पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल का इलाका देने पर उनकी आलोचना की है. यहां तक कि उनकी खुद की पत्नी ललिता शास्त्री भी इस बात से उनसे बहुत नाराज थीं.
जी का जंजाल बन गया था पाकिस्तान के साथ समझौता
लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के साथ 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में शांति समझौता तो जरूर कर लिया था लेकिन इस समझौते ने उनके मन की शांति को कहीं ना कहीं भंग कर दिया था. क्योंकि इस समझौते के कारण देश में जहां उनकी खूब आलोचना हो रही थी, वहीं उनका खुद का परिवार भी उनके साथ खड़ा नहीं दिखाई दे रहा था. कहा जाता है कि इस समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री बहुत परेशान थे और उन्हें परेशानी की ही हालत में उनके कमरे में टहलते देखा गया था. ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी बनकर कुलदीप नैय्यर गए थे.
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कुलदीप नैय्यर ने बताया था, ‘पाकिस्तान से समझौते के बाद उस रात जब लाल बहादुर शास्त्री ने अपने घर पर फोन मिलाया तो उनकी बड़ी बेटी ने फोन उठाया. शास्त्री जी ने कहा अम्मा को फोन दो, लेकिन उनकी बड़ी बेटी ने कहा कि अम्मा फोन पर नहीं आएंगी. जब लाल बहादुर शास्त्री ने पूछा क्यों? उधर से जवाब आया क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को वापस दे दिया है. इससे अम्मा बहुत नाराज हैं.’
लाल बहादुर शास्त्री भारत में हो रही अपनी आलोचना से इतने परेशान नहीं थे, जितना उन्हें इस जवाब ने परेशान कर दिया था. हालांकि यहां यह समझने की जरूरत है कि उस वक्त भारत पर रूस और अमेरिका दोनों तरफ से दबाव था, कि पाकिस्तान को यह इलाके वापस कर दिए जाएं. और परिस्थिति ऐसी थी कि लाल बहादुर शास्त्री को यह फैसला ना चाहते हुए भी लेना पड़ा.
खाने में जहर और जान मोहम्मद का नाम
लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर एक दावा जो और किया जाता है, वह यह है कि उनके खाने में शायद जहर मिला दिया गया था. जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई थी. कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब ‘बियॉन्ड द लाइन’ में लिखा है, ‘दरवाजा खटखटाये जाने से मेरी आंख खुली. कॉरीडोर में खड़ी महिला ने मुझसे कहा, ‘तुम्हारे प्रधानमंत्री मौत का सामना कर रहे हैं.’ मैंने जल्दी से कपड़े बदले और एक भारतीय अधिकारी के साथ थोड़ी दूर स्थित रूस की देहाती शैली में बनी उस आरामगाह की ओर चल पड़ा जिसमें शास्त्री जी आराम कर रहे थे. मैंने देखा सोवियत संघ प्रमुख अलेक्सी कोसीगिन बरामदे में ही खड़े हैं उन्होंने हमें देख दूर से ही हाथ हिला कर जता दिया कि शास्त्री जी की मृत्यु हो चुकी है. कमरे की कारपेट वाले फर्श पर शास्त्री जी की चप्पल बिल्कुल सलीके से रखी हुई थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसे उन्होंने पहनी ही नहीं थी. कमरे के एक कोने में स्थित ड्रेसिंग टेबल पर एक थर्मस उल्टा पड़ा था, जिसे देखकर लग रहा था कि शास्त्री जी ने उसे खोलने की खूब कोशिश की थी.
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की डेड बॉडी.
कुलदीप नैय्यर लिखते हैं कि शास्त्री जी की मौत की सूचना भेजकर मैं वापस उनके सहयोगियों की कमरे में पहुंचा ताकि उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर विस्तार से बात हो सके. इधर उधर से जुटाई गई सभी जानकारियों में जो सामने आया वह यह था कि स्वागत समारोह से शास्त्री जी लगभग रात 10 बजे अपने विश्राम स्थली पहुंचे. उन्होंने वहां अपने निजी सहायक रामनाथ से खाना मांगा जो भारतीय राजदूत पीएन कॉल के घर से तैयार होकर आया था और उस खाने को बनाया था कॉल के बावर्ची जान मोहम्मद ने. जबकि इससे पहले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के खाने का इंतजाम उनके निजी सहायक रामनाथ ही किया करते थे.
हालांकि यहां यह भी जानने लायक बात है कि सोते समय शास्त्री जी को दूध पीने की आदत थी. उन्होंने अपने सहायक रामनाथ से दूध मांगा और दूध पिया. फिर रामनाथ से ही पानी मांगा और रामनाथ ने ड्रेसिंग टेबल पर रखे थर्मस फ्लास्क में से उन्हें पानी दिया और फिर उस थर्मस फ्लास्क को बंद कर दिया. रात के तकरीबन 1 बज कर 20 मिनट पर लाल बहादुर शास्त्री रामनाथ के दरवाजे पर आए. उन्होंने रामनाथ का दरवाजा खटखटाया और पूछा डॉक्टर साहब किधर हैं? इस बीच लाल बहादुर शास्त्री बुरी तरह से खास रहे थे और उनका पूरा शरीर कंपकंपा रहा था जिसके बाद रामनाथ ने उन्हें थामा और जल्दी से उनके कमरे में ले जाकर उन्हें बिस्तर पर लेटा दिया.
जान मोहम्मद को राष्ट्रपति भवन में नौकरी और शास्त्री जी के डॉक्टर चुघ के परिवार की मौत
लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद रूस के अफसरों ने संदेह के आधार पर रूस के कुक अहमद सत्तारोव समेत तीन लोगों को पकड़ लिया था. जिनमें जान मोहम्मद भी शामिल था. हालांकि इसके कुछ समय बाद जान मोहम्मद को राष्ट्रपति भवन में नौकरी मिल गई थी और दूसरी ओर लाल बहादुर शास्त्री के साथ गए ताशकंद डॉ चुघ और उनके पूरे परिवार का 1977 में एक ट्रक एक्सीडेंट हो गया, जिसमें सिर्फ उनकी एक बेटी बची जो अपाहिज हो गई और पूरे परिवार की मौत हो गई. वहीं शास्त्री जी के निजी सहायक रामनाथ का भी कुछ समय बाद कार एक्सीडेंट हो गया जिसमें उनके पैर काटने पड़े और बाद में उन्होंने अपनी याददाश्त खो दी. लल्लनटॉप में छपी एक खबर के मुताबिक लाल बहादुर शास्त्री के परिवार का कहना था कि रामनाथ ने कार एक्सीडेंट से पहले शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री से कहा था, ‘अम्मा बहुत दिन का बोझ था, आज सब बता देंगे.’
पोस्टमार्टम ना होना भी कई शक पैदा करता है
भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री की मौत किसी दूसरे देश में संदिग्ध रूप से हो जाती है और उसका पोस्टमार्टम भी नहीं कराया जाता है, यह बहुत अचरज वाली बात है. जब लाल बहादुर शास्त्री का शव भारत आया तो उनकी पत्नी का कहना था कि उनके शव का रंग नीला पड़ चुका था और शरीर पर सफेद धब्बे थे. उनका कहना था कि अगर मौत हार्ट अटैक से हुई होती तो शव का रंग नीला कैसे पड़ता. वहीं दूसरी और कहा जाता है कि लाल बहादुर शास्त्री की बॉडी पर कट के निशान थे. जबकि उनका तो पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था और पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं था तो आखिर उनकी बॉडी पर कट के निशान क्यों थे. इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. हालांकि कुलदीप नैय्यर अपनी किताब में लिखते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री पाकिस्तान के साथ समझौते से प्रेशर में थे और उन्हें इससे पहले भी दो हार्ट अटैक आ चुके थे. इतनी परेशानी की स्थिति में तीसरा हार्टअटैक आना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी.
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