valmiki : श्रीराम , महर्षि बाल्मीकी एवं राम सेतु एक ही समय के

श्रीराम , महर्षि बाल्मीकी एवं राम सेतु एक ही समय के
भगवान श्रीराम के काल का एक प्रमाणिक अनुमान सेतु बंध की घटना है। नासा के एक अनुमान के अनुसार लगभग 17.5 लाख वर्ष पूर्व श्रीराम सेतु का निर्माण हुआ है। श्रीराम अवतरण अत्यंत प्राचीन है। एवं बाल्मिकी जी वह संत है। जिन्होनें अपने जीवन में श्रीराम को देखा है। श्रीराम की पत्नि एवं पुत्र मातां सीता , लव एवं कुश का पालन पोषण महर्शि बाल्मिकी के आश्रम में ही हुआ था। वे उन्हे लेकर श्रीराम दरबार में भी गये थे।  इस तरह से श्रीराम , महर्षि बाल्मीकी एवं राम सेतु एक ही समय के है। इनमें कोई भेद नहीं है। 


valmiki jayanti महर्षि वाल्मीकि

महाकवि महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श मूल्यों की स्थापना करने का पवित्र कार्य किया है। रामायण के रचनाकार, दिव्यदृष्टा महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर सादर नमन।।

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ 'रामायण' को संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य कहा जाता है । यह महाकाव्य बालकांड, अयोध्याकांड, आदि (जैसा श्री तुलसीदासकृत 'रामचरितमानस' में है) में विभक्त है, और हर कांड सर्गों में बंटा है । ग्रंथ के आरंभ में, वस्तुतः सर्ग दो में, निम्नलिखित श्लोक का उल्लेख है:

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५)

हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है । (शब्दकोश के अनुसार क्रौंच सारस की अथवा बगुला की प्रजाति का पक्षी बताया जाता है। किसी अन्य शब्दकोश में चकवा या चकोर भी देखने को मिला है ।)

यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से एक बहेलिए के प्रति अनायास निकला शाप है कि वह कभी भी प्रतिष्ठा न पा सके । रामायण ग्रंथ के पहले सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद महर्षि बाल्मीकि के तमसा नदी तट पर अवस्थित आश्रम पर पधारते हैं और उन्हें रामकथा का संक्षिप्त परिचय देते हैं । देवर्षि के चले जाने के बाद महर्षि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी तट पर स्नानार्थ जाते हैं । तभी वे अपने वस्त्रादि अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को सौंप पेड़-पौधों से हरे-भरे निकट के वन में भ्रमणार्थ चले जाते हैं । उस वन में एक स्थान पर उन की दृष्टि क्रौंच पक्षियों के रतिक्रिया में लिप्त एक असावधान जोड़े पर पड़ती है । कुछ ही क्षणों के बाद वे देखते हैं कि उस जोड़े का एक सदस्य चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमींन पर गिर पड़ता है । और दूसरा उसके शोक में चित्कार मचाते हुए एक शाखा से दूसरे पर भटकने लगता है । उस समय अनायास ही उक्त निंदात्मक वचन उनके मुख से निकल पड़ते हैं ।

महर्षि के मुख से निकले उक्त छंदबद्ध वचन उनके किसी प्रयास के परिणाम नहीं थे । घटना के बाद महर्षि इस विचार में खो गये कि उनके मुख से वे शब्द क्यों निकले होंगे । वे सोचने लगे कि क्यों उनके मुख से बहेलिए के प्रति शाप-वचन निकले । इसी प्रकार के विचारों में खोकर वे नदी तट पर लौट आये ।  तमसा नदी पर स्नानादि कर्म संपन्न करने के पश्चात् महर्षि आश्रम लौट आये और आसनस्थ होकर विभिन्न विचारों में खो गये । तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिये और देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनाये गये रामकथा का स्मरण कराया । उन्होंने महर्षि को प्रेरित किया कि वे पुरुषोत्तम राम की कथा को काव्यबद्ध करें । रामायण के इन दो श्लोकों में इस प्रेरणा का उल्लेख हैः

रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ।।
वृत्तं कथय धीरस्य यथा ते नारदाच्छ्रुतम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं तस्य धीमतः ।।
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक ३२ एवं ३३)

हे ऋषिश्रेष्ठ, तुम श्रीराम के समस्त चरित्र का काव्यात्मक वर्णन करो, उन भगवान् राम का जो धर्मात्मा हैं, धैर्यवान् हैं, बुद्धिमान् हैं । देवर्षि नारद के मुख से जैसा सुना है वैसा उस धीर पुरुष के जीवनवृत्त का बखान करो; उस बुद्धिमान् पुरुष के साथ प्रकाशित (ज्ञात रूप में) तथा अप्रकाशित (अज्ञात तौर पर) में जो कुछ घटित हुआ उसकी चर्चा करो । सृष्टिकर्ता ने उन्हें आश्वस्त किया कि अंतर्दृष्टि के द्वारा उन्हें श्रीराम के जीवन की घटनाओं का ज्ञान हो जायेगा, चाहे उनकी चर्चा आम जन में होती आ रही हो या न ।

और तब आरंभ हुआ रामायण ग्रंथ की रचना श्लोकों में निबद्ध होकर । देवर्षि नारद द्वारा कथित बातें, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की प्रेरणा, और रामकथा की पृष्ठभूमि आदि का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं अपने ग्रंथ के आरंभ में किया है । पूरा ग्रंथ 'श्लोक' नामक छंदों में लिखित है । मैंने अभी रामायण का अध्ययन आरंभ ही किया है, लेकिन सरसरी निगाह डालने पर मैंने पाया कि ग्रंथ की भाषा काफी सरल है, और श्लोकों को समझना संस्कृत के सामान्य ज्ञान वाले व्यक्ति के लिए भी संभव है ।

🚩जय सियाराम 🚩
 
रामायण हिन्दू रघुवंश के राजा राम की गाथा है। । यह आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य, स्मृति का वह अंग है। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के छः अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं, इसके 24,000 श्लोक हैं। 

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वाल्मीकि रामायण

विवरण 'रामायण' लगभग चौबीस हज़ार श्लोकों का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसके माध्यम से रघु वंश के राजा राम की गाथा कही गयी है।

रचनाकार     महर्षि वाल्मीकि
रचनाकाल     त्रेता युग

भाषा   संस्कृत
मुख्य पात्र    राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, मेघनाद, विभीषण, कुम्भकर्ण और रावण।
सात काण्ड    बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड), उत्तराकाण्ड।


अन्य जानकारी रामायण के सात काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है, जो 24,000 से 560 श्लोक कम है।

रामायण वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है, जिसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके 24,000 श्लोक हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं, जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे 'वाल्मीकि रामायण' या 'बाल्मीकि रामायण' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं, जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।


हिन्दू कालगणना के अनुसार रचनाकाल
रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। भारतीय कालगणना के अनुसार समय को चार युगों में बाँटा गया है-
सतयुग
त्रेतायुग
द्वापर युग
कलियुग

एक कलियुग 4,32,000 वर्ष का, द्वापर 8,64,000 वर्ष का, त्रेता युग 12,96,000 वर्ष का तथा सतयुग 17,28,000 वर्ष का होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष (वर्तमान कलियुग के 5,250 वर्ष + बीते द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष) सिद्ध होता है। बहुत से विद्वान इसका तात्पर्य ई.पू. 8,000 से लगाते हैं जो आधारहीन है। अन्य विद्वान इसे इससे भी पुराना मानते हैं।

वाल्मीकि द्वारा श्लोकबद्ध

वाल्मीकि

सनातन धर्म के धार्मिक लेखक तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनायी थी। जहाँ पर भगवान शंकर पार्वती को भगवान श्रीराम की कथा सुना रहे थे, वहाँ कागा (कौवा) का एक घोसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को नींद आ गई, पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुंडी के रूप में हुआ। काकभुशुंडी ने यह कथा गरुड़ को सुनाई। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा 'अध्यात्म रामायण' के नाम से प्रख्यात है। 'अध्यात्म रामायण' को ही विश्व का सर्वप्रथम रामायण माना जाता है। हृदय परिवर्तन हो जाने के कारण एक दस्यु से ऋषि बन जाने तथा ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकि ने भगवान श्रीराम के इसी वृतान्त को पुनः श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान श्रीराम की कथा को 'वाल्मीकि रामायण' के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है तथा वाल्मीकि रामायण को 'आदि रामायण' के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में विदेशियों की सत्ता हो जाने के बाद संस्कृत का ह्रास हो गया और भारतीय लोग उचित ज्ञान के अभाव तथा विदेशी सत्ता के प्रभाव के कारण अपनी ही संस्कृति को भूलने लग गये। ऐसी स्थिति को अत्यन्त विकट जानकर जनजागरण के लिये महाज्ञानी सन्त तुलसीदास ने एक बार फिर से श्रीराम की पवित्र कथा को देसी भाषा में लिपिबद्ध किया। सन्त तुलसीदास ने अपने द्वारा लिखित भगवान राम की कल्याणकारी कथा से परिपूर्ण इस ग्रंथ का नाम 'रामचरितमानस' रखा। सामान्य रूप से 'रामचरितमानस' को 'तुलसी रामायण' के नाम से जाना जाता है। कालान्तर में भगवान श्रीराम की कथा को अनेक विद्वानों ने अपने अपने बुद्धि, ज्ञान तथा मतानुसार अनेक बार लिखा है। इस तरह से अनेकों रामायणों की रचनाएँ हुई हैं।

काण्ड
धनुष भंग करते राम, द्वारा - राजा रवि वर्मा

रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।
बालकाण्ड
अयोध्याकाण्ड
अरण्यकाण्ड
किष्किन्धाकाण्ड
सुन्दरकाण्ड
युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड)
उत्तराकाण्ड

सर्ग तथा श्लोक
इस प्रकार सात काण्डों में वाल्मीकि ने रामायण को निबद्ध किया है। उपर्युक्त काण्डों में कथित सर्गों की गणना करने पर सम्पूर्ण रामायण में 645 सर्ग मिलते हैं। सर्गानुसार श्लोकों की संख्या 23,440 आती है जो 24,000 से 560 श्लोक कम है।




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