श्री गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज के अवदान
श्री गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज के अवदान
1. श्री महाविष्णु के अवतार श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी की प्रार्थना पर श्री महाशिव ने सतयुग में योग मार्ग के प्रचार के लिए शिव गोरक्ष का रूप धारण किया और भोगवाद में लिप्त देवों को योग मार्ग का अनुसरण कराया |
2. श्री भगवान् शिव तो गुरुओं के गुरु हैं, उन्होने ही गुरु परम्परा को प्रारम्भ किया | श्री 'गुरु गीता' नामक ग्रन्थ उन्होंने ही लिखा है | जो श्री शिव महा पुराण में दिया गया है | शिवस्वरूप होने के कारण श्री गोरक्ष नाथ जी महाराज तो स्वभावतः गुरुओं क्र गुरु हैं | तो भी गुरु परम्परा के निर्वहन के लिए ही उन्होंने श्री महाविष्णु के अवतार श्री मत्स्येन्द्र नाथ जी महाराज को अपना गुरु बनाया | इस प्रकार उन्होंने त्रिदेवों के भेद को भी मिटाया और छोटे बड़े के भाव को भी समाप्त किया |
3. स्वयं को गुरु की आवश्यकता नहीं थी तो भी गुरु बना कर जैसा कहो वैसा स्वयं करो भी की परम्परा का श्री गणेश श्री गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज ने किया | यही सच्चे गुरु का चिह्न है | श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने खालसा पन्थ का निर्माण किया तो उन्होंने ही उन पञ्च प्यारों से सब से पहले अमृत छका और खालसा बने जिन्हें स्वयं गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ने अमृत छकाया था |
4. श्री विष्णु अवतार को गुरु बना कर उन्होंने श्री विष्णु एवं श्री शिव के भेद को समाप्त किया और हरिहर की मान्यता की पुष्टि की |
5. ब्रह्मावातार श्री सत्यनाथ जी महाराज को नवनाथों में सम्मिलित कर उन्होंने त्रिदेवों के एकत्व और अभेद को सिद्ध किया |
6. श्री गणेश जी के अवतार श्री गजकर्णस्थल नाथ जी को नवनाथों में सम्मिलित कर श्री गणेश जी की प्रथम पूज्यता को यथावत् रखा |
7. त्रेता में श्री रामजी, श्री लक्ष्मणजी एवं श्री हनुमान जी को योगमार्ग में दीक्षा देकर उन तीनों के ब्रह्म ह्त्या के दोष से मुक्त किया और दोषी के दोष का निवारण हो सकता है, इस सनातन मान्यता को परिपुष्ट किया |
8. श्री रामजी, श्री लक्ष्मणजी एवं श्री हनुमानजी के द्वारा प्रवर्तित पन्थ क्रमशः राम पन्थ, लक्ष्मण पन्थ अर्थात् नाटेश्वरी पन्थ, और ध्वज पन्थ नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख बारह पन्थों में स्थान देकर राम कथा के प्रमुख पात्रों का मान बढाया |
9. द्वापर युग में श्री रुकमनी जी के विवाह में अड़चन आ गयी थी | श्री रुक्मिणी जी के भाई के रूप में कार्य करने योग्य कोई भी मण्डप में नहीं था | समस्त देवता श्री रुक्मिणी जी के तेज के सामने बौने पद रहे थे | तब गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज वहां प्रकट हुए और उन्होंने भाई के दायित्व का निर्वाह किया | तब से समस्त नाथ लक्ष्मी माता के भाई माने जाते हैं | सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ |
10. कलियुग में दिए अवदान तो सब को ज्ञात ही हैं, फिर भी कुछ प्रमुख अवदानों का आगे उल्लेख किया जा रहा है –
11. मध्यकाल में विविध पन्थों के योगमार्ग में आयी यौनाचार विकृति से नाथ पन्थ को बचाए रखने के लिए अवधूत गण बिना स्त्री के रहेंगे, इस सतयुगीन अवधारणा को दृढ़ता पूर्वक लागू रखा |
12. कथनी, करनी और रहनी में सच्चे होने पर बल देकर आपने श्री गीता जी के इस उद्घोष को समर्थित किया –
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः |
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ||3.21||
13. किस से क्या काम लेना है ? इस योजकता को श्री गुरु महाराज ने अतिविचित्र प्रकार से प्रयुक्त किया | उदाहरणार्थ भर्तृहरि जी को राजा से रंक बना दिया तो बप्पा रावल को रंक से राजा बनाया |
14. श्री भर्तृहरि जी की कथा से प्रमाणित होता है कि गुरु महाराज ने समाज को भोगवाद से दूर कर त्याग की ओर प्रवृत्त किया |
15. इसी कथा से सिद्ध होता है कि उन्होंने जीव हत्या को अपराध बताया, उन्होंने एक अनुत्तर प्रश्न जनता के सामने उपस्थित किया कि जो प्राण दे नहीं सकता, उसे प्राण लेने का क्या अधिकार है ?
16. ज्वाला माता के मन्दिर की उनकी कथा कहती है कि मन्दिरों में अभक्ष्य पदार्थ चढ़ाना वर्जित होना चाहिए |
17. गोरखपुर की खिचडी की कथा कहती है कि सात्विक भोजन ही योगियों और जनसाधारण के लिए भी फलदायी है |
18. मृगस्थाली नेपाल की घटना कहती है कि काल तो योगियों के वश में रहता है |
19. यह कथा यह भी कहती है कि साधुओं का तिरस्कार नहीं करना चाहिए |
20. संस्कृत के साथ साथ लोकभाषा में भी उन्होंने जनता को शिक्षा दी ताकि आम जनता को भी ज्ञान पर अधिकार रहे |
21. उन्होंने संस्कृत में रचना कर अपना पाण्डित्य सिद्ध किया तो लोक भाषा में रचना कर जन सामान्य को भी उन्होंने ज्ञान उपलब्ध कराया |
22. श्री गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज हिन्दी भाषा के प्रथम कवि हैं | लोग भूल से पद्मावत के कवि मालिक मोहम्मद जायसी को हिन्दी का प्रथम कवि बताते हैं, जो कि अशुद्ध है, क्यों कि जायसी से तो सैकड़ों वर्ष पूर्व गुरु महाराज ने हिन्दी में उपदेश दिया |
23. बलपूर्वक मुसलमान बनाए गए हिन्दुओं को बप्पारावल द्वारा फिर से हिन्दू बनवाया |
24. घर वापसी के इस कार्य को हम लोग आगे बढाते रहते तो देश का विभाजन नहीं होता |
25. गुरु महाराज के इस कार्य से सिद्ध होता है कि हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है |
26. अन्याय का प्रतिकार जिस प्रकार श्री गीता जी सिखाती है, उसी प्रकार पाबू जी महाराज पर किये गए अपकार का प्रतिकार रूपनाथ जी द्वारा कराने की घटना भी जैसे को तैसा व्यवहार की ओर उन्मुख कराती है |
27. पन्थ और समाज में व्याप्त बुराइयों पर लिखी उनकी वाणियां उनको समाझ सुधारक बनाती हैं |
28. बप्पारावल, गोगाजी, अजयपालदेवजी, महाराणा प्रताप के द्वारा आपने हिन्दुत्व की रक्षा करवायी | इससे एक बात तो यह सिद्ध हुई कि यह देश हिन्दू राष्ट्र है | इस राष्ट्र की रक्षा करने का अर्थ है हिन्दुत्व की रक्षा करना |
29. हिन्दुत्व भारत राष्ट्र की आत्मा है |
30. दूसरी बात इस संघर्ष प्रेरणा से यह सिद्ध हुई कि क्षत्रियत्व किसी भी राष्ट्र की रक्षा के लिए आवश्यक है |
31. भाषा, जाति, सम्प्रदाय, प्रान्त, रूप, रंग, आदि के भेद और त्रास से भयभीत सभी जनों को नाथ पन्थ में समाविष्ट कर आपने हिन्दू एकता की रक्षा भी की और हिन्दुत्व को सर्वमान्य भी बनाया |
32. योगमार्ग में फ़ैल रहे वामाचार से आपने योग को बचाया |
33. योग और समाज में फ़ैल रहे पाखण्ड से आपने देश और समाज कि रक्षा की |
34. शारीरिक व्यायाम को ही योग समझने वालों को भी श्री गुरु महाराज की प्रेरणा है कि परमात्मा से जीवित ही मिलने को योग कहते हैं |
35. समस्त जीव मात्र में परमात्मा को देखने की प्रेरणा आपने अपनी वाणी, योग और अपने कार्यों से दी |
36. अरब से लेकर सारे भारत में आप घूमे और अभी भी इसी क्षेत्र में आप घूमते रहते हैं, इससे निम्न बातें सिद्ध होती हैं –
क. इतनी सम्पूर्ण भारत भूमि है
ख. यह इतनी पुण्यभूमि है
ग. सत्कर्म यहीं पर फलदायी होते हैं
घ. संसार की अन्य भूमियाँ भोगभूमियाँ हैं
ङ. स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि यदि किसी को मोक्ष प्राप्त करना है तो उसे एक बार भारत भूमि में जन्म लेना होगा, तभी उसे मोक्ष मिलेगा, अन्यथा नहीं | यही बात श्री गुरु गोरक्षनाथ जी महाराज के कार्य व्यवहार से सिद्ध होती है कि यह भारत भूमि ही पुण्यभूमि और कर्मभूमि है अन्य सब भोगभूमियाँ हैं |
च. और इसीलिए गुरु महाराज इस भूमि के बाहर नहीं गए तो इससे सिद्ध होता है कि गुरु महाराज स्वदेशी विचार धारा के समर्थक थे
छ. और यह भी ज्ञान होता है कि गुरु महाराज इस स्वदेशी धारा को क्यों अनुप्राणित करना चाहते हैं क्यों कि यही भूमि कर्म, पुण्य और अध्यात्म की भूमि है |
ज. इस भारत भूमि को अखण्ड बनाने की प्रेरणा भी गुरु महाराज के कार्यों से मिलती है कि पुण्य क्षेत्र पापकर्माओं के अधिकार में न जाना चाहिए, न रहना चाहिए |
झ. उनका मानना था कि यदि भारत सुधर जाएगा तो सारा संसार सुधर जाएगा | अर्थात्
ञ. 'भारत माता मानवता की प्रयोग शाला है' |
- बाबा निरंजन नाथ अवधूत
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