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दुर्गा के नौ स्वरुप : नवरात्र की पूजा

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नव दुर्गा की आराधना जिस प्रकार सृष्टि या संसार का सृजन ब्रह्मांड के गहन अंधकार के गर्भ से नवग्रहों के रूप में हुआ , उसी प्रकार मनुष्य जीवन का सृजन भी माता के गर्भ में ही नौ महीने के अन्तराल में होता है। मानव योनि के लिए गर्भ के यह नौ महीने नव रात्रों के समान होते हैं , जिसमें आत्मा मानव शरीर धारण करती है। नवरात्र का अर्थ शिव और शक्ति के उस नौ दुर्गाओं के स्वरूप से भी है , जिन्होंने आदिकाल से ही इस संसार को जीवन प्रदायिनी ऊर्जा प्रदान की है और प्रकृति तथा सृष्टि के निर्माण में मातृशक्ति और स्त्री शक्ति की प्रधानता को सिद्ध किया है। दुर्गा माता स्वयं सिंह वाहिनी होकर अपने शरीर में नव दुर्गाओं के अलग-अलग स्वरूप को समाहित किए हुए है। शारदीय एवं चैत्र नवरात्र में इन सभी नव दुर्गाओं को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक पूजा जाता है। इन नव दुर्गाओं के स्वरूप की चर्चा महर्षि मार्कण्डेय को ब्रह्मा जी द्वारा इस क्रम के अनुसार संबोधित किया है। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च । सप्तमं कालरात...

नवरात्रि साधना : मनुष्य में देवत्व के उदय का उद़भव Navratri Sadhana

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  नवरात्रि साधना : मनुष्य में देवत्व के उदय का उद़भव   Navratri Sadhana / meditation : The emergence of the rise of divinity in man         नवरात्रि की अनुष्ठान साधना का अत्यधिक महत्व माना गया है। इसमें पूजा अर्चाना की निर्धारित विधि व्यवस्था का अपना महत्व हैं और ऋतु सन्धि के अवसर पर इस बेला की समयपरक विशेषता है। इतने पर भी इस रहस्य को भली प्रकार हृदयंगम किया जाना चाहिए कि आत्मिक प्रगति के साथ जुड़ी रहने वाली सिद्धियों की दृष्टि से इन अनुष्ठानों का मर्म उस अवसर पर पालन किये जाने वाले अनुबन्ध, अनुशासनों के साथ जुड़ा हुआ है। वे नियम सामान्य व्यवहार में कुछ कठिन तो पड़ते है, पर ऐसे नहीं है जिन्हें सच्ची इच्छा के रहते व्यस्त समझे जाने वाले व्यक्ति भी पालन न कर सकें। समझे जाने योग्य तय यह है कि इन अनुशासनों का इन दिनों अभ्यास करने के उपरान्त जीवन दर्शन में स्थायी रुप सम्मिलित करने की जो प्रेरणा है उसी को अपनाने पर प्रगति एवं सिद्धि का समस्त आधार केन्द्रीभूत हैं । नवरात्रि साधना को प्रखर बनाने और साधक की निष्ठा परिपक्व करने के लिए अनुष्ठानों में जो अनुब...

नवदुर्गा महोत्सव का संदेशा शक्ति ही सर्वोपरी

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  -  अरविन्द सिसौदिया मो0 9414180151 मां भगवती के तीन प्रमुख स्वरूप दुर्गा, सरस्वती एवं लक्ष्मी अत्यंत विख्यात है। ये शक्ति, बुद्धि एवं सम्पन्नता का प्रतिनिधित्व करती है। देवी के अन्य स्वरूपों में गायत्री सर्वाधिक प्रसिद्ध है। नवदुर्गा महोत्सव में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, यह भी देवीयों के सामर्थ्य का संदेश है।। इसके अतिरिक्त लगभग सभी देवत्व कार्यों एवं क्रियाओं में देवीयां मौजूद है। हिन्दू धर्म की अन्वेषण तथा अनुसंधान यात्रा सत्य पर आधारित है। इसी कारण धनात्मक शक्तियों के साथ ऋणात्मक शक्तियों को पूरा पूरा स्थान मिला है। उनकी उपस्थिती दर्ज की गई है। विश्व की अन्य तमाम मान्यताओं में इस तथ्य को नजर अंदाज किया गया है। जबकि विज्ञान ने हमेशा ही यह संकेत दिये है। कि सृष्टि सन्तुलन हेतु जो कुछ भी सामनें है उसका निगेटिव भी है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हिन्दू जीवन पद्यती में सभी देवी देवताओं नें अपने भक्त जनों को अथवा मानव सभ्यता को, मानव संस्कृति को आगाह किया है, कि सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जीवन की सुरक्षा है। इसके लिये शस्त्रों की आवश्यकता है। संहारक शस्त्र ही सुरक्षा की ...