अमेरिकन अंग्रेजों की “फूट डालो-राज करो” नीति नहीं चलेगी - अरविन्द सिसोदिया
अमेरिकन अंग्रेजों की “फूट डालो-राज करो” नीति अब भारत में नहीं चलेगी - अरविन्द सिसोदिया
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के मानसिक अवसाद से पूरा विश्व त्रस्त है, अमेरिका स्वयं भी त्रस्त है, भारत पर उनका बेवजह किया गया आर्थिक हमला पूरी तरह नाजायज है। इस बदली परिस्थितियों में विश्व की अन्य महाशक्तियों का आपस में नजदीक आना समसामायिक आवश्यकता ही थी और इसीक्रम में चीन की धरती पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिंनपिंग का मिलना और आपस में एक राय होना, निश्चित ही अमेरिका के अहंकार को चुनौती देना है तथा उसे रोक देना है। इस परिस्थिति में अमेरिकी तिलमिलाहट सामने आनी ही थी, जो ट्रंप के आर्थिक सलाहकार पीटर नावरो के बेसिरपैर के बयान के रूप में सामने आई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के वरिष्ठ व्यापार सलाहकार पीटर नावरो ने भारत पर सीधा हमला बोला है। उन्होंने यह बेहूदा दावा किया कि “रूस से भारत द्वारा खरीदे गए सस्ते तेल का लाभ ब्राह्मण समाज को मिल रहा है।” यह बयान न केवल झूठ है, बल्कि भारत की सामाजिक एकता को तोड़ने की घिनौनी साजिश का हिस्सा है। अमेरिका के सबसे गिरे हुये स्तर का परिचय भी है।
नावरो ने इतना ही नहीं, भारत को “क्रेमलिन का लॉन्ड्रोमैट” कहकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर बदनाम करने की नाकाम कोशिश भी की। जब कि अमेरिका को खुद अपनी गिरेवान में झाँक लेना चाहिए, वह रूस से सस्ता उर्वरक जीरो टेरीफ पर आयात करता है और भारत को सस्ता तेल खरीदने से रोकने का ज्ञान देता है।
इससे पूर्व में स्वयं ट्रंप ने भारतीय अर्थव्यवस्था का मजाक उड़ाया था। भारत के शत्रु जो रोटी रोटी को मौहताज है को बगल में बिठा कर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की,यह तब जब भारत विश्व राजनीति में एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभर रहा है और वैश्विक मानवता का नेतृत्व दे रहा है।
आर्थिक औपनिवेशवाद अस्वीकार
पीटर नावरो का बयान हमें अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” नीति की याद दिलाता है। ब्रिटिश अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम को लड़ाया, जातियों के बीच दीवारें खड़ी कीं और जाते-जाते देश का विभाजन कर गये । अपने गिरे हुये चरित्र का जो उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किया था, आज वही गिरी हुई रणनीति अमेरिकी अंग्रेज़ दोहरा रहे हैं। किन्तु अब विश्व उस दौर में हैँ जहां आर्थिक औपनिवेशवाद कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अमेरिका की धरती से भारत को जातियों में बाँटने का षड्यंत्र रचकर वे हमारी एकता और अखंडता को कमजोर करना चाहते हैं। जिसे भारत के सभी नागरिक भली प्रकार से समझ रहे हैँ। यह अमेरिकी सोच की भयंकर भूल है। अब भारत 21वीं सदी का भारत है,जाग्रत, संगठित और आत्मनिर्भर भारत।
ऊर्जा नीति पर अमेरिकी बकवास अस्वीकार्य
भारत एक संप्रभु राष्ट्र है,अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए हम वहीं से तेल खरीदेंगे जहाँ से हमें लाभ होगा। रूस से सस्ता तेल खरीदना भारत की जनता के हित में लिया गया निर्णय है। इससे किसानों को, मजदूरों को, उद्योगों को और उपभोक्ताओं को राहत मिलती है। वहीं देश को अतिरिक्त भार से मुक्ती मिलती है।
यह लाभ किसी एक जाति का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र का है। इसे “ब्राह्मणों का फायदा” बताना भारत में अमेरिका की वर्ग संघर्ष खड़ा करने की बदनीयत का उजागर होना ही है और इस सफ़ेद झूठ के लिए उसे माफ़ी मांगनी चाहिए। इस तरह का नेरेटिव परोसना अमेरिका की अनैतिकता और मानसिक दिवालियापन को उजागर करता है।
अमेरिका का मानसिक पतन
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप चुनाव जीतने के बाद अचानक मानसिक संतुलन खो बैठे हैँ उनकी हरकते अजीब और समझ से परे है। वे अपने रणनीतिक सह भागीदार भारत पर दुश्मन की तरह टूट पढ़े, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने अपने आपको अंतर्राष्ट्रीय बादशाह समझ लिया। जबकि स्वयं अमेरिका की अदालते, अमेरिका के बुद्धिजीवी उनके निर्णयों के खिलाफ हैँ। उन्होंने जर्मनी के हिटलर की याद ताज़ा करदी है।
नावरो जैसे बयानों के पीछे उद्देश्य
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था को कमतर दिखाने की ट्रंपनीति अपने आपमें खुद से धोखा है। वहीं लंबे समय से अमेरिकी धरती से हिंदुत्व विरोधी अभियान जारी हैँ, वहाँ से हिन्दुओं को नुकसान पहुंचाने की कोशिशेँ हो रहीं हैँ। अमेरिका की धरती से " डिसमेंटल ग्लोबल हिंदुत्व" अभियान चला, हिंदू उद्योगपती अडानी और उनके शेयरधारकों को बड़ा आर्थिक नुकसान अमेरिका की झूठी रिसर्च कंपनी हिड्नेवर्ग नें पहुंचाया। अमेरिकी पूंजीपति जॉर्ज सोरस भारत के करोड़ों लोगों द्वारा चुनी हुई मोदी सरकार को गिराने की सार्वजनिक घोषणाएँ करते रहते हैँ। अब ट्रंप और उनके सलाहकार सीधे ही झूठी बयानबाजी से भारत की आंतरिक सामाजिक एकता को तोड़ना चाहते हैँ। ट्रंप की भारत नीति के पीछे गहरे और छिपे हुये उद्देश्य भी समझने होंगे,लेकिन अब भारत पुराने ज़माने का गुलाम भारत नहीं है। अब किसी विदेशी प्रोपेगेंडा से डरने वाले नहीं।
नया भारत, अडिग भारत
आज का भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। जी 20 की अध्यक्षता कर चुका भारत पूरे विश्व को “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” का संदेश दे रहा है। भारत ने प्रधानमंत्री मोदीजी के नेतृत्व में अपनी सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक शक्ति से यह साबित कर दिया है कि वह वैश्विक नेतृत्व करने में सक्षम है।
जब भारत तेजी से उभरती नई ताकत बन रहा है, तो उसे बाधित करने के लिए विदेशी ताकतें भिन्न भिन्न टूलकिटों और जाति व धर्म के नाम पर भारत को तोड़ना चाहती हैं। लेकिन भारत उनकी चाल को पहचान चुका है। भारत का मूल मंत्र है, स्वदेशी, स्वाभिमान और संकल्प।
अमेरिका की दादागिरी नहीं चलेगी
भारत की जनता स्पष्ट संदेश देती है कि वह अमेरिका की इस तरह की नश्लवादी,जातिवादी और दादागिरी भरी राजनीति अस्वीकार्य करती है। हमारे निर्णय हमारी संप्रभुता पर आधारित हैं। कोई विदेशी सलाहकार हमें यह नहीं बताएगा कि किससे तेल खरीदें और किसे लाभ पहुँचाएँ।
एक ही आवाज़ – एक ही संकल्प
मोदीजी के साथ, मोदीजी का विश्वास
भारत अब वह देश नहीं है जिसे विदेशी ताकतें अपनी चालों से बाँटकर काबू कर लें। यह नया भारत है, एक जुट भारत है। न बंटेंगे न कटेंगे वाला भारत है। आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और अडिग भारत है। जिसे अपने प्रधानमंत्री मोदीजी पर पूरा पूरा विश्वास है।
अमेरिकी अंग्रेजों को यह समझना होगा कि उनकी “फूट डालो-राज करो” की नीति अब भारत में नहीं चलेगी। भारत की जनता जातिगत, धार्मिक या सामाजिक आधार पर बँटने वाली नहीं है।
आज हर भारतीय की आवाज़ है
“भारत की संप्रभुता पर आंच नहीं आने देंगे और किसी विदेशी षड्यंत्र को सफल नहीं होने देंगे।” यही आवाज भारत के प्रत्येक भारतवासी की है।
समाप्त
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नोट - ये लेखक के निजी और स्वतंत्र विचार हैँ। - अरविन्द सिसोदिया
भवदीय,
अरविन्द सिसोदिया
राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल, शिक्षा प्रोत्साहन प्रन्यासी, जयपुर।
प्रदेश सह-संयोजक, प्रदेश मीडिया संपर्क विभाग
भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान
9414180151
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