My Gov पूर्ण न्याय सिद्धांत



पूर्ण न्याय सिद्धांत अधिनियम,........

इस अधिनियम का उद्देश्य समाज को अपराधमुक्त बनाना और प्रत्येक अपराधी को हर हाल में दंडित करना है। अपराध घटित होते ही पुलिस उस अपराध का पूर्ण विवरण दर्ज करेगी, जिसमें अपराधी का पूर्व आपराधिक इतिहास, अपराध कार्य से जुड़े संभावित अपराधियों की सूची तथा गवाहों के प्रमाणित बयान शामिल होंगे। गवाहों के बयान तुरंत दर्ज कर लिये जाएंगे, ताकि उन्हें बदलने का अवसर न मिल सके। यदि अपराधी फरार है तब भी बयान दर्ज होंगे और जहाँ आवश्यकता होगी वहाँ न्यायालय स्वयं प्रश्न पूछकर उन बयानों को पूर्ण करेगा।

अपराधी को दंड से किसी भी दशा में छूट नहीं मिलेगी। अपराध सिद्ध होने पर दंड के साथ-साथ अपराधी का सार्वजनिक जलूस कम से कम तीन बार उसी क्षेत्र में निकाला जाएगा जहाँ अपराध हुआ है, ताकि समाज में यह सन्देश पहुँचे कि अपराध का परिणाम लज्जा और कठोर दंड है। क़ानून व्यवस्था का धर्म है कि प्रजा को अपराध और अपराधियों से सुरक्षित रखे।

जमानत प्रावधानों को कठोर बनाया जाएगा। यदि किसी पर एक अपराध दर्ज है तो जमानत सामान्य होगी, यदि दो अपराध दर्ज हैं तो तीसरे अपराध पर न्यूनतम छह माह तक जमानत संभव नहीं होगी। चौथे अपराध के बाद जमानत का अधिकार समाप्त हो जाएगा। जमानत के लिए पाँच व्यक्तियों की जमानत आवश्यक होगी, जिसमें से कम से कम एक निकट संबंधी होना अनिवार्य है। प्रत्येक अपराध और जमानत को आधारकार्ड से जोड़ा जाएगा और जब भी अदालत में सुनवाई होगी तब यह रिकार्ड अनिवार्य रूप से प्रस्तुत किया जाएगा।

यदि कोई व्यक्ति संज्ञेय अपराध करता है तो उसका नाम घटना वाले थाने तथा निवास वाले थाने दोनों की अपराधियों की सूची में लिखा जाएगा और यह सूची सार्वजनिक रूप से थाने के बाहर बोर्ड पर प्रदर्शित होगी।

लोकसेवकों के लिए दंड का प्रावधान और भी कठोर होगा। यदि पुलिसकर्मी, अधिवक्ता, न्यायाधीश, विधायक, सांसद अथवा अन्य कोई लोकसेवक अपराध करता है तो उसे न्यूनतम दो गुना दंड मिलेगा और न्यायालय आवश्यकता अनुसार अधिकतम दंड भी सुना सकेगा। वही सार्वजनिक या सामूहिक आपराधों पर सौ गुणा दंड दिया जा सकेगा।

यह अधिनियम देश के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में लागू होगा। किसी अन्य कानून से यदि इसका कोई प्रावधान विरोधाभासी होगा तो यह अधिनियम प्रधान माना जाएगा। सरकार समय-समय पर अपराध नियंत्रण और न्याय प्रक्रिया की कठोरता बनाए रखने हेतु विशेष नियमावली बना सकेगी।
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पूर्ण न्याय सिद्धांत अधिनियम, 20XX

प्रस्तावना

भारत की संसद द्वारा यह अधिनियम इस उद्देश्य से पारित किया जाता है कि देश में अपराधमुक्त समाज की स्थापना हो, प्रत्येक अपराधी को दंडित करना अनिवार्य हो, तथा न्याय व्यवस्था में कठोरता और पारदर्शिता स्थापित की जा सके।

अध्याय 1 : संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ

धारा 1. इस अधिनियम को पूर्ण न्याय सिद्धांत अधिनियम, 20XX कहा जाएगा।
धारा 2. यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होगा।
धारा 3. यह अधिनियम भारत सरकार द्वारा राजपत्र में प्रकाशित तिथि से प्रभावी होगा।
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अध्याय 2 : अपराध पंजीकरण एवं जांच

धारा 4. प्रत्येक अपराध का पूर्ण विवरण अनिवार्यतः दर्ज किया जाएगा।
धारा 5. अपराधी का आपराधिक इतिहास, संभावित सह-अपराधियों की सूची तथा अपराध से संबंधित गवाहों के बयान तत्काल लिखित रूप में सुरक्षित किए जाएंगे।
धारा 6. गवाहों के बयान बदलने का कोई अवसर नहीं दिया जाएगा।
धारा 7. यदि अपराधी फरार है तो भी गवाहों के बयान दर्ज होंगे।
धारा 8. न्यायालय आवश्यकता पड़ने पर स्वयं प्रश्न पूछकर गवाही को पूर्ण करेगा।
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अध्याय 3 : दंड प्रावधान

धारा 9. अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को दंड से किसी भी दशा में छूट नहीं मिलेगी।
धारा 10. अपराधी का सार्वजनिक जलूस कम से कम तीन बार उसी क्षेत्र में निकाला जाएगा जहाँ अपराध हुआ है।
धारा 11. न्यायालय को यह अधिकार होगा कि वह अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड बढ़ा सके।
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अध्याय 4 : जमानत प्रावधान

धारा 12. पहले अपराध पर सामान्य जमानत दी जा सकेगी।
धारा 13. दूसरे अपराध के पश्चात, तीसरे अपराध में न्यूनतम छह माह तक जमानत निषिद्ध होगी।
धारा 14. चौथे अपराध के पश्चात अपराधी का जमानत का अधिकार समाप्त हो जाएगा।
धारा 15. जमानत के लिए न्यूनतम पाँच व्यक्तियों की जमानत आवश्यक होगी, जिनमें से कम से कम एक निकट संबंधी होना अनिवार्य है।
धारा 16. प्रत्येक अपराध और जमानत को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा और न्यायालय में सुनवाई के समय संबंधित रिकार्ड प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।
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अध्याय 5 : अपराधियों की सार्वजनिक पहचान

धारा 17. यदि कोई व्यक्ति संज्ञेय अपराध करता है तो उसका नाम घटना वाले थाने तथा निवास वाले थाने की अपराधी सूची में दर्ज होगा।
धारा 18. यह सूची थानों में सार्वजनिक बोर्ड पर प्रदर्शित की जाएगी।
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अध्याय 6 : लोकसेवकों पर विशेष प्रावधान

धारा 19. यदि पुलिसकर्मी, अधिवक्ता, न्यायाधीश, विधायक, सांसद या अन्य कोई लोकसेवक अपराध करता है तो उसे न्यूनतम दो गुनी सजा मिलेगी।
धारा 20. न्यायालय आवश्यकता अनुसार अपराध की गंभीरता देखते हुए अधिकतम दंड भी सुना सकेगा।
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अध्याय 7 : सामूहिक प्रभाव अपराध (Mass-Impact Offences)

धारा 21. परिभाषाएँ
(क) “प्रसारण माध्यम” में सार्वजनिक भाषण, टीवी-शो, रेडियो, सोशल मीडिया, यूट्यूब या अन्य डिजिटल एवं पारंपरिक संचार माध्यम सम्मिलित होंगे।
(ख) “प्रेषण (Reach)” का आशय है वह संख्या जिन तक अपराधजन्य सामग्री पहुँच चुकी है या पहुँचने की पर्याप्त क्षमता रखती है, जिसका प्रमाण डिजिटल फोरेंसिक अथवा प्लेटफॉर्म-डेटा से किया जाएगा।
(ग) “मानहानि/गलत बयानी/झूठे तथ्य” से आशय है ऐसे कथन जो जानबूझकर या लापरवाही से प्रकाशित हों और जिनसे किसी व्यक्ति/समुदाय/सार्वजनिक व्यवस्था को वास्तविक क्षति पहुँचे।
(घ) “सार्वजनिक-हित/सत्यता रक्षा” से आशय है वे वक्तव्य जो सत्य, जनहित में या न्यायसंगत टिप्पणी की श्रेणी में आते हों।

धारा 22. विशेष दंड
यदि कोई अपराध किया जाता है और उसका प्रभाव (Reach) प्रमाणिक रूप से एक करोड़ या उससे अधिक व्यक्तियों तक पहुँचता है, तो उस अपराध हेतु निर्धारित मूल दंड का न्यूनतम 100 गुणा दंड लगाया जाएगा।

धारा 23. अन्य परिस्थितियाँ
यदि Reach एक करोड़ प्रमाणित न हो सके, किन्तु न्यायालय संतुष्ट हो कि अपराध का प्रभाव व्यापक रूप से देशव्यापी था, तो न्यायालय उपयुक्त बहुगुणक दंड निर्धारित कर सकेगा।

धारा 24. प्रमाणन
Reach की गणना हेतु प्लेटफॉर्म-analytics, सर्वर-लॉग्स, डिजिटल फोरेंसिक रिपोर्ट या अन्य स्वीकार्य प्रमाण न्यायालय द्वारा परखा जाएगा।

धारा 25. अपवाद
(क) यह प्रावधान सत्य, सार्वजनिक-हित में दी गई सूचना या न्यायसंगत टिप्पणी पर लागू नहीं होगा।
(ख) दंड निर्धारण से पूर्व न्यायालय आरोपी के इरादे (mens rea) का परीक्षण करेगा।

धारा 26. अंतरराष्ट्रीय प्रसार
यदि अपराध का प्रसार सीमा-पार हुआ है, तो न्यायालय अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रक्रिया द्वारा आवश्यक प्रमाण जुटा सकेगा।

धारा 27. नियमावली
भारत सरकार इस अध्याय के क्रियान्वयन हेतु विशेष तकनीकी दिशानिर्देश और नियम बनाएगी।
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अध्याय 8 : प्रधानता एवं नियम बनाने का अधिकार

धारा 28. इस अधिनियम का कोई भी प्रावधान अन्य किसी कानून से विरोधाभासी होने पर यह अधिनियम प्रधान होगा।
धारा 29. भारत सरकार समय-समय पर अपराध नियंत्रण और न्याय प्रक्रिया को सुदृढ़ करने हेतु नियमावली बना सकेगी।


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