6 दिसंबर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक स्वाभिमान के पुनरोदय का ऐतिहासिक दिन 6 December
6 दिसंबर : राष्ट्रीय और सांस्कृतिक स्वाभिमान के पुनरोदय का ऐतिहासिक दिन
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर से कथित बाबरी मस्जिद का विवादित अतिक्रमण जनाक्रोश नें हटा दिया । जो भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में है।
यह दिन न केवल भारत के धार्मिक स्थलों के प्रति विध्वंशकारी मानसिकता से पीड़ित, धार्मिक अतिक्रमण से मुक्ति का भी ऐतिहासिक दिन है । बल्कि जनशक्ति द्वारा अपनी वास्तविक सांस्कृतिक विरासत को वास्तविक आजादी प्रदान करने का भी दिन है । हालांकि इस तरह की धर्मस्थल आजादी का शुभारंभ गुजरात में सोमनाथ मंदिर पुनरुद्धार को सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में महात्मा गांधी के आशीर्वाद से सम्पन्न करने के साथ हो चुका था । तब ही वे सारे अतिक्रमण हटाया दिए जाने चाहिए थे जो गुलामी के दौर में किये गए थे । प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी और कांग्रेस इसमें बड़ी रुकावट बने । जिसके कारण आजतक ये हजारों जगह के टकराव बिना बजह बने हुए हैं । जबकि गुलामी के समय किये गए प्रत्येक धार्मिक स्थल अतिक्रमण को अपनी आजादी का पूर्ण अधिकार है ।
6 दिसंबर बाबरी विध्वंश की घटना कांग्रेस सरकारों के द्वारा जबरिया गुलामी के अवशेषों को थोपे रखने के विरुद्ध जन विद्रोह के रूप में जनाक्रोश का प्रगटीकरण था । यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के पुनरोदय का शुभारंभ था । जिसने देश की पूरी राजनैतिक सत्ता को बदल दिया । हिन्दू धर्म स्थलों पर गुलामी के दौर में किये गए जबरिया अतिक्रमणों और विध्वंसों को बनाये रखने की पक्षधर कांग्रेस सत्ता से हटा दी गई और हिन्दू हितों की पक्षधर भाजपा सत्ता रूढ़ होती चली गई उसने तेजी से कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया । यह भारत के जनमानस की जनजागृति है । जो देश के मन सम्मान और स्वाभिमान को समर्पित है ।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि -
इस घटना की जड़ें 1528 में जाती हैं, जब मीरबाकी ने आक्रमणकारी बाबर के आदेश पर श्रीराम जन्मभूमि स्थान को ध्वस्त किया था। यह केवल एक मंदिर का ध्वंस नहीं था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की पहचान पर एक गहरा आघात था। इस प्रकार, 6 दिसंबर 1992 को उसी रामजन्मभूमि पर अतिक्रमण स्वरूप बाबरी ढांचा गिराना, उस अपमान का प्रतिशोध माना जा सकता है, जो पिछली कई शताब्दियों से हिंदू समाज और भारत सहन कर रहा था।
राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक -
इस दिन को “शौर्य दिवस” के रूप में मनाने वाले कई हिंदू संगठनों का मानना है कि यह घटना भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी। इसे एक ऐसे राष्ट्र के जागरण के रूप में देखा गया जो लंबे समय तक विदेशी आक्रमणों और सांस्कृतिक हमलों से पीड़ित रहा।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण-
6 दिसंबर 1992 को हुई घटना ने भारतीय समाज में एक नई चेतना जागृत की। यह केवल धार्मिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक आंदोलन बन गया जिसमें भारत के विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रों और जातियों से लोग एकात्म स्वरूप में शामिल हुए। इसने भारत के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा की, जिससे लोगों ने अपनी पहचान और विरासत पर गर्व महसूस किया।
आजादी के समय की गलती -
देश का विभाजन हिन्दू - मुस्लिम के मध्य अंग्रेजों ने किया था । प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी को चाहिये था कि गुलामी के दौरान किये गए अतिक्रमण और अपमानजनक विध्वंश से देश को तुरन्त मुक्ति दिलाते । किन्तु उन्होंने तब आजादी को सिर्फ अपनी कुर्सी तक सीमित रखा , सत्ता तक सीमित रखा और जमीनीस्तर पर अतिक्रमण के रूप में गुलामी लगातार बनी रही , जिसके कारण उत्पन्न जनविरोध आज अनेकों स्थानों पर हिन्दू धर्मस्थलों पर जबरिया मस्जिदों के रूपमें मौजूद होने होने से बने हुए हैं । जब तक ये जबरिया कब्जाए गए अतिक्रमण रहेंगे तब तक इसके मूलस्वामी अपमानित व तनावग्रस्त रहेंगे ।
आधुनिक संदर्भ
आज भी, 6 दिसंबर की घटनाएँ राजनीतिक और सामाजिक विमर्शों का हिस्सा बनी हुई हैं। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय ने सत्य को स्थापित किया है ।
इस प्रकार, 6 दिसंबर न केवल एक ऐतिहासिक घटना है बल्कि यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक पहचान के पुनरोदय का प्रतीक भी है।
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**************** *शौर्य दिवस* ****************
*(06 दिसम्बर/राष्ट्रीय कलंक का परिमार्जन)*
जब बाबर का शासन था तब उसने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया। स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में ऐसी मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया। इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी विश्वनाथ मन्दिर के सीने पर बनी मस्जिदें, लखनऊ में लक्ष्मण टीला पर शंकर जी के मन्दिर के ऊपर बनी मस्जिद सदा से हिन्दुओं को उद्वेलित करती रही हैं। इनमें से अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के लिए विश्व हिन्दू परिषद् ने देशव्यापी आन्दोलन किया, जिससे 06 दिसम्बर, 1992 को वह विवादित ढाँचा धराशायी हो गया।
श्रीराम मन्दिर को बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में गिराकर वहाँ एक मस्जिद की शक्ल में एक विवादित ढाचा बना दी। इसके बाद से हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा। वह लगातार इस स्थान को पाने के लिए संघर्ष करता रहा। 23 दिसम्बर, 1949 को हिन्दुओं ने वहाँ रामलला की मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया। 'विश्व हिन्दू परिषद्' द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 हमले हिन्दुओं ने किये; जिसमें देश के हर भाग से तीन लाख से अधिक नर नारियों का बलिदान हुआ; पर पूर्ण सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी।
विश्व हिन्दू परिषद ने लोकतान्त्रिक रीति से जन जागृति के लिए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन कर 1984 में श्री राम जानकी रथयात्रा निकाली, जो सीतामढ़ी से प्रारम्भ होकर अयोध्या पहुँची। इसके बाद हिन्दू नेताओं ने शासन से कहा कि श्री रामजन्मभूमि मन्दिर परिसर पर लगे अवैध ताले को खोला जाए। न्यायालय के आदेश से 01 फरवरी, 1986 को ताला खुल गया।
इसके बाद वहाँ भव्य मन्दिर बनाने के लिए 1989 में देश भर से श्रीराम शिलाओं को पूजित कर अयोध्या लाया गया और बड़ी धूमधाम से 09 नवम्बर, 1989 को श्रीराम मन्दिर का शिलान्यास कर दिया गया। जनता के दबाव के आगे प्रदेश और केन्द्र शासन को झुकना पड़ा।
पर मन्दिर निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक वहाँ खड़ा विवादित ढांँचा न हटे। हिन्दू नेताओं ने कहा कि यदि मुसलमानों को इस विवादित ढाँचे से मोह है, तो वैज्ञानिक विधि से इसे स्थानान्तरित कर दिया जाए; पर शासन मुस्लिम वोटों के लालच से बँधा था। वह हर बार न्यायालय की दुहाई देता रहा। विहिप का तर्क था कि आस्था के विषय का निर्णय न्यायालय नहीं कर सकता। शासन की हठधर्मी देखकर हिन्दू समाज ने आन्दोलन और तीव्र कर दिया।
इसके अन्तर्गत 1990 में वहाँ कारसेवा का निर्णय किया गया। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। उन्होेंने घोषणा कर दी कि बाबरी परिसर में एक परिन्दा तक पर नहीं मार सकता; पर हिन्दू युवकों ने शौर्य दिखाते हुए 29 अक्तूबर को गुम्बदों पर भगवा फहरा दिया। बौखला कर दो नवम्बर को मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी, जिसमें कोलकात्ता के दो सगे भाई *राम और शरद कोठारी* सहित सैकड़ों कारसेवकों का बलिदान हुआ।
इसके बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। एक बार फिर 06 दिसम्बर, 1992 को कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी। विहिप की योजना तो केन्द्र शासन पर दबाव बनाने की ही थी; पर युवक आक्रोशित हो उठे। उन्होंने वहाँ लगी तार बाड़ के खम्भों से प्रहार कर विवादित ढाँचे के तीनों गुम्बद गिरा दिये। इसके बाद विधिवत वहाँ श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया।
इस प्रकार वह विवादित ढाचा (बाबरी कलंक) नष्ट हुआ और तुलसी बाबा की यह उक्ति भी प्रमाणित हुई -
*होई हैं सोई, जो राम रचि राखा।*
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