भोपाल गैस नरसंहार के मुख्य अभियुक्त रहे अमेरिकी एण्डरसन पर भी चर्चा हो - अरविन्द सिसोदिया


भोपाल गैस नरसंहार के मुख्य अभियुक्त एण्डरसन और कांग्रेस की मिली भगत पर भी बहस होनी चाहिए .





- भोपाल गैस नरसंहार के मुख्य अभियुक्त एण्डरसन और कांग्रेस की मिली भगत पर भी बहस होनी चाहिए .....

- अडानी को समन जारी करने वाली अमेरिकी अदालत एण्डरसन केस हिस्ट्री भी खोलें

कांग्रेस की आलोचना

कांग्रेस पार्टी पर यह भी आरोप लगाया गया कि एंडरसन को भारत छोड़ने दिया गया और इस मुद्दे पर प्रभावी कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। यह राजनीतिक विवाद आज भी जारी है, क्योंकि कई लोगों का मानना ​​​​है कि कांग्रेस ने इस मामले में पीड़ितों के प्रति न्याय नहीं किया।



वर्तमान में अडानी समूह पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ राजनीतिकयों ने अडानी ग्रुप के खिलाफ आवाज उठाई है, जबकि अन्य इसे राजनीतिक प्रतिशोध मानते हैं। कांग्रेस पार्टी अडानी मुद्दे पर  सवालिया बन गई , जब उनके इतिहास में भोपाल गैस कांड जैसी घटनाओं से लेकर रिकॉर्ड देखा गया।

संक्षेप में

इस प्रकार, भोपाल गैस कांड और उसके बाद की घटना कांग्रेस पार्टी की छवि पर एक धब्बा बनी हुई है। इसलिए कुछ लोग तर्क कर रहे हैं कि कांग्रेस को अडानी मुद्दे पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।



भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन को सज़ा नहीं हुई क्योंकि उसे तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की मदद से रिहा कर दिया गया था: 

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अमेरिकी अदालतों द्वारा एंडरसन के प्रत्यावर्तन से इनकार

अमेरिकी अदालतों ने भोपाल गैस नरसंहार  के मुख्य घटक वॉरेन एंडरसन को भारत में प्रत्यर्पण करने से मना कर दिया, जिससे उन्हें भारतीय अदालत में पेश होने से बचने का मौका मिला। यह मामला 1984 के भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित है, जिसमें यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इस घटना में हजारों लोगों की जान गई और लाखों लोग प्रभावित हुए।

एंडरसन का संदर्भ

वॉरेन एंडरसन उस समय यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष थे और उन्हें इस त्रासदी का मुख्य अभियुक्त माना गया था। भारतीय न्यायालयों में आपराधिक और अन्य आरोप लगाए। हालाँकि, एंडरसन अमेरिका से भाग गए और वहां से भारत में प्रत्यर्पित होकर कभी नहीं आये ।

अमेरिकी अदालतों द्वारा प्रत्यर्पण  अस्वीकार किया गया

1992 में, भारत सरकार ने एंडरसन को अमेरिका से भारत भेजने के लिए प्रत्यावेदन दिया। लेकिन अमेरिकी अदालतों ने प्रत्यर्पण की अनुमति नहीं दी  :-

• कानूनी प्रक्रिया : अमेरिकी न्याय प्रणाली में किसी भी व्यक्ति को उसके देश से बाहर निकालने के लिए ठोस साक्ष्य और कानूनी आधार की आवश्यकता होती है। एंडरसन की सुरक्षा टीम ने तर्क वितर्क के द्वारा प्रत्यर्पण नहीं होने दिया ।


• राजनीतिक कारण : अमेरिका-भारत के आपसी उच्चस्तरीय राजनयिक संबंधों को भी इसका कारण माना जाता ​​है ।   अमेरिका ने अपने नागरिक की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा पर ज़ोर दिया।

• प्रमाणों की कथित कमी : भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य को अमेरिकी न्यायव्यवस्था नें कथितरूप से अपर्याप्त मानते हुये एंडरसन को प्रत्यारोपित नहीं  किया ।

इस प्रकार, अमेरिकी अदालत नें एंडरसन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की , जिससे वह भारत की अदालत में पेश होने से बच गए ।

समाप्ति

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि अमेरिकी अदालतों द्वारा वॉरेन एंडरसन की प्रत्यावेदन में एक जटिल कानूनी प्रक्रिया और आपसी  राजनीतिक संतुलन का परिणाम था, जिसने उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली से बचने का अवसर प्रदान किया था।
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भोपाल गैस कांड और एंडरसन का प्रत्यर्पण

1. भोपाल गैस कांड का संक्षिप्त विवरण

भोपाल गैस कांड, जो 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुआ, एक औद्योगिक नरसंहार /  आपदा थी जिसमें यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के प्लांट से मिथाइल आइसोसायनेट (MIC) जहरीली गैस का रिसाव हुआ। इस घटना में कथिततौर पर लगभग 15,000 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग प्रभावित हुए। यह भारत के सबसे बड़ा  औद्योगिक हादसा था।

2. एंडरसन की भूमिका

इस घटना के समय, यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन थे। वह इस आपदा के बाद भारत में आए लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। इसके बजाय, उन्हें तुरन्त जमानत पर रिहा कर दिया गया और अमेरिका लौटने में सहयोग किया गया । इसके बाद  भारत सरकार ने एंडरसन को गिरफ्तार करने और उन्हें भारत लाने के लिए कई दिखावटी प्रयास किए, लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हो सके। क्योंकि राजनयिक संबंध बिगड़ने के डर से सिर्फ औपचारिकता मात्र की गईं ।

3. प्रत्यर्पण की प्रक्रिया
भारत ने अमेरिका से एंडरसन का प्रत्यर्पण मांगा ताकि उसे न्यायालय में पेश किया जा सके। हालांकि, अमेरिकी न्यायालयों ने इस मामले में नकारात्मक भूमिका निभाई।

• एंडरसन का भारत को प्रत्यर्पण न होना न केवल भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के लिए एक बड़ा झटका था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय कानून और न्याय प्रणाली कितनी जटिल हो सकती है। अमेरिकी न्यायालयों द्वारा नकारात्मक भूमिका निभाने से यह स्पष्ट होता है कि कैसे राष्ट्रीय हित और कानूनी प्रक्रियाएं कभी-कभी मानवाधिकारों और न्याय की मांगों पर हावी हो जाती हैं।
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भोपाल गैस कांड और कांग्रेस की भूमिका

भोपाल गैस कांड, जो 2-3 दिसंबर 1984 की रात को हुआ, एक औद्योगिक आपदा थी जिसमें यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का उत्पादन होता था। गैस रिसाव की  घटना में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग प्रभावित हुए। यह भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक उद्योग नरसंहार माना जाता है।

अमेरिकी कंपनी और एंडरसन की भूमिका

इस कांड में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्रमुख व्यक्ति वॉरेन एंडरसन थे। घटना के बाद, एंडरसन को भारत से अमेरिका भागने में मदद मिली, जिससे तत्कालीन भारत सरकार व मध्यप्रदेश सरकार पर यह आरोप लगा कि मुख्य अभियुक्त एंडरसन को बचाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस पार्टी पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने इस मामले में सही कार्रवाई नहीं की और दोषी को सजा दिलाने  में विफल रही।

कांग्रेस की आलोचना

कांग्रेस पार्टी पर यह भी आरोप लगाया गया कि एंडरसन को भारत छोड़ने दिया गया और इस मुद्दे पर प्रभावी कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। यह राजनीतिक विवाद आज भी जारी है, क्योंकि कई लोगों का मानना ​​​​है कि कांग्रेस ने इस मामले में पीड़ितों के प्रति न्याय नहीं किया।



वर्तमान में अडानी समूह पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाए जा रहे हैं। कुछ राजनीतिकयों ने अडानी ग्रुप के खिलाफ आवाज उठाई है, जबकि अन्य इसे राजनीतिक प्रतिशोध मानते हैं। कांग्रेस पार्टी अडानी मुद्दे पर  सवालिया बन गई , जब उनके इतिहास में भोपाल गैस कांड जैसी घटनाओं से लेकर रिकॉर्ड देखा गया।

संक्षेप में

इस प्रकार, भोपाल गैस कांड और उसके बाद की घटना कांग्रेस पार्टी की छवि पर एक धब्बा बनी हुई है। इसलिए कुछ लोग तर्क कर रहे हैं कि कांग्रेस को अडानी मुद्दे पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।



भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन को सज़ा नहीं हुई क्योंकि उसे तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की मदद से रिहा कर दिया गया था: 



• एंडरसन को गिरफ़्तार करने के बाद, उसे दिल्ली भेजने के लिए विशेष विमान की व्यवस्था की गई थी. 

• एंडरसन को रिहा करने का आदेश, तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को एक फ़ोन कॉल पर मिला था. 

• एंडरसन ने 25,000 रुपये का बॉन्ड जमा किया और कुछ ज़रूरी कागज़ों पर हस्ताक्षर किए. 

• इसके बाद, एंडरसन तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की मदद से दिल्ली और फिर अमेरिका के लिए उड़ गया. 

• 9 फ़रवरी, 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के ख़िलाफ़ गैरज़मानती वारंट जारी किया. 

• 1 फ़रवरी, 1992 को एंडरसन को भगोड़ा घोषित किया गया. 

• 29 सितंबर, 2014 को फ़्लोरिडा के वेरो बीच में स्थित एक नर्सिंग होम में एंडरसन का निधन हो गया. 



भोपाल गैस त्रासदी में करीब 2,000 से 3,000 लोगों की मौत हुई थी और करीब 6 लाख लोगों की आबादी प्रभावित हुई थी. 
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Bhopal Gas Tragedy:

एक फोन कॉल से रिहा हो गया था वारेन एंडरसन, राजीव गांधी पर लगे थे मदद के आरोप!

Bhopal Gas Tragedy

 एक फोन कॉल से रिहा हो गया था वारेन एंडरसन, राजीव गांधी पर लगे थे मदद के आरोप!

भोपाल गैस त्रासदी के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। हालांकि वो इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था


भारत छोड़कर अमेरिका भाग गया था वारेन एंडरसन

Dec 03, 2022,

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 यानी आज से 38 साल पहले एक दर्दनाक हादसा हुआ था। इतिहास में जिसे भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) का नाम दिया गया। ठीक 38 साल पहले भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं। मगर इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन देश छोड़कर भागने में सफल रहा और कभी उसे वापस नहीं लाया जा सका।

भोपाल गैस त्रासदी की 38वीं बरसी पर एक बार फिर लोगों के जेहन में यूनियन कार्बाइड कारखाने के मालिक वारेन एंडरसन की यादें ताजा कर दी हैं। भोपाल गैस त्रासदी के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। हालांकि वो इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था और फिर कभी भारत नहीं लौटा। आखिर क्या है देश की सबसे बड़ी त्रासदी के मुजरिम के भारत से भागने की कहानी। क्यों अभी तक भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को नहीं मिला पूरा न्याय?

तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर लगे वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप-
इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को भगाने में आरोप लगे और चर्चा भी रही कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इशारे पर राज्य के उस वक्त के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को हिरासत से छोड़ने का आदेश दिया था। हालांकि कोर्ट में आरोपी को भगाने के षड्यंत्र का कोई मुकदमा तो नहीं चला, लेकिन जिन धाराओं में चार्जशीट दायर की गई, वह यह बताने के लिए काफी है कि सरकार का नजरिया हजारों मौतों के बाद भी संवेदनशील नहीं था। ये भी कहा गया कि राजीव गांधी को अमेरिका के उच्च अधिकारियों से एंडरसन को छोड़ने के लिए दबाव आ रहा था।

वहीं भोपाल गैस त्रासदी के समय कलेक्टर रहे मोती सिंह ने अपनी किताब भोपाल गैस त्रासदी का सच में उस सच को भी उजागर किया, जिसके चलते वारेन एंडरसन को भोपाल से जमानत देकर भगाया गया। मोती सिंह ने अपनी किताब में पूरे घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि वारेन एंडरसन को अर्जुन सिंह के आदेश पर छोड़ा गया था। वारेन एंडरसन के खिलाफ पहली एफआईआर गैर जमानती धाराओं में दर्ज की गई थी। इसके बाद भी उसे जमानत देकर छोड़ा गया।

कैसे आया और कैसे गया एंडरसन-
घटना के बाद यूनियन कार्बाइड और इसके सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा था। मामले को लेकर 3 दिसंबर की शाम भोपाल के हनुमानगंज पुलिस थाने में केस दर्ज हुआ था। जानकारी के मुताबिक एंडरसन अपने कुछ सहयोगियों के साथ 7 दिसंबर की सुबह 9.30 बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचा। एयरपोर्ट पर तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह ने उसे रिसीव किया। इसके बाद एसपी और डीएम वारेन एंडरसन को यूनियन कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले गए और वहीं उसे हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी गई।

बताया जाता है कि दोपहर में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद दोपहर 3.30 बजे एंडरसन को भोपाल के एसपी स्वराज पुरी स्टेट हेंगर छोड़ने गए, जहां से उसने दिल्ली और फिर अमेरिका के लिए उड़ान भरी। हालांकि अर्जुन सिंह ने बाद में इसको लेकर कहा था कि उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से एंडरसन को छोड़ने के लिए कहा गया था।

2014 में गुमनामी में हुई एंडरसन की मौत-
जानकारी के मुताबिक 9 फरवरी 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था। वहीं उसे 1 फरवरी 1992 को भगोड़ा घोषित किया गया। कई गैर सरकारी संगठनों ने मुआवजे और एंडरसन को वापस लाने के लिए अमेरिका तक लड़ाई लड़ी लेकिन वो कभी वापस नहीं लौटा। 29 सितंबर 2014 को अमेरिका के फ्लोरिडा स्तिथ एक नर्सिंग होम में एंडरसन की मौत हो गई, जिसका एक महीने बाद खुलासा हुआ।

जांच आयोग का हुआ गठन, फिर भी रहस्य बरकरार-
वारेन एंडरसन की रिहाई और दिल्ली के लिए विशेष विमान उपलब्ध कराने की जांच के लिए 2010 में एक सदस्यीय जस्टिस एस.एल.कोचर आयोग का गठन किया गया। आयोग के सामने तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी ने कहा था कि एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए लिखित आदेश था, लेकिन रिहाई का आदेश मौखिक था। यह आदेश वायरलेस सेट पर मिला था। एंडरसन क्यों और कैसे भागा और किसने भगाया ये सिर्फ बयानों और किताबों में दर्ज होकर रह गया।

देखा जाए तो एंडरसन को गिरफ्तार करके वापस हिंदुस्तान लाने की कभी सही तरीके से कोशिश ही नहीं की गई। यहां तक कि गैस कांड के जो जि़म्मेदार हिंदुस्तान में रहते हैं, उन्हे भी बहुत सस्ते में छोड़ दिया गया। सोचिए हजारों मौतों के बदले 2010 में अदालत ने फेक्ट्री के कर्मचारियों को सिर्फ दो साल की सजा दी। उस पर भी मुख्य आरोपी बिना सजा के चला गया, आखिर इसे पूरा इंसाफ कैसे कह सकते हैं?

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