ईश्वर ही सर्वज्ञ है और मानव अल्पज्ञ है, मानव स्वयं को सर्वज्ञ मानने से ही दुःखी रहता है

Arvind Sisodia:-
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ईश्वर  ही सर्वज्ञ है और मानव उसके समनें बहुत ही अल्पज्ञ है, इसी कारण मानव दुःख सुख में फँसा रहता है।

विचार :-

बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक विचार! यह विचार हमें ईश्वर और मानव के बीच के अंतर को समझने के लिए प्रेरित करता है।

ईश्वर को सर्वज्ञ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वह सब कुछ जानता है और उसके पास सभी ज्ञान है। वह सृष्टि, सृजन और संचलन का कर्ता है। दूसरी ओर, मानव अल्पज्ञ है, जिसका अर्थ है कि उसका ज्ञान अत्यंत सीमित है, उसकी क्षमतायें सीमित हैँ और वह सब कुछ नहीं जान सकता।

इस अंतर के कारण, मानव दुःख और सुख में फँसा रहता है। मानव की सीमित ज्ञान के कारण, वह अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार नहीं होता। इससे वह दुःख और सुख के चक्र में फँस जाता है।

यह विचार हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि हमें अपनी सीमित ज्ञान को स्वीकार करना चाहिए और ईश्वर की सर्वज्ञता पर भरोसा करना चाहिए। इससे हम अपने जीवन में अधिक शांति और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं। 

आपके द्वारा उल्लिखित बात कि ईश्वर सर्वज्ञ है और मानव अल्पज्ञ है, इसी कारण मानव दुःख सुख में फँसा रहता है, हमें यह समझने के लिए प्रेरित करती है कि हमें अपनी सीमित ज्ञान को स्वीकार करना चाहिए और ईश्वर की सर्वज्ञता पर भरोसा करना चाहिए।
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ईश्वर सर्वज्ञ है और मानव अल्पज्ञ है, इसी कारण मानव दुःख सुख में फँसा रहता है
ईश्वर की सर्वज्ञता
ईश्वर को सर्वज्ञ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वह सब कुछ देखता है। उसके ज्ञान की सीमा अनंत है, और वह सभी क्रियाओं , नियमों,विचारों और भावनाओं का ज्ञाता है। इसी सर्वज्ञता से ईश्वर सृष्टि का निर्माण, संचालन और प्रलय करता है। ईश्वर का ज्ञान केवल भौतिक या वैज्ञानिक ज्ञान तक सीमित नहीं है; इसमें ज्ञान की अनंत विधाएँ हैँ ,  जिसमें आध्यात्मिक, सैद्धान्तिक और वैज्ञानिक विचारधारायें भी शामिल है।

मानव की अल्पज्ञता
इसके विपरीत, मानव को अल्पज्ञ इसलिए कहा जाता है, उसकी क्षमतायें बहुत कम होती हैँ, हलांकि वह इस पृथ्वी के अन्य प्राणियों और चेतन शरीर धारियों से करोड़ों गुणा अधिक बुद्धिमान है फिर भी वह ईश्वरीय व्यवस्था के सामने राई जितना भी नहीं है। इसलिए मनुष्य का ज्ञान सीमित होता है; वह अपने संसाधनों और शिक्षा के आधार पर ही विद्ववत्ता को प्राप्त करता है। मानव अपनी इन्द्रियों के माध्यम से ही जानकारी प्राप्त कर सकता है, जो उसे केवल उसकी वस्तुस्थिति तक सीमित रखती है। इस प्रकार, मनुष्य न तो सभी घटनाओं का ज्ञान रख सकता है और न ही भविष्य की घटनाओं को जान समझ सकता है।

दुःख-सुख में फँसा हुआ
इस सर्वज्ञता और अल्पज्ञता के बीच का अंतर मानव जीवन में दुःख और सुख का मुख्य कारण बनता है। जब मनुष्य अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का सही समाधान नहीं कर पाता, तो वह दुःख में फँस जाता है। ज़ब वह सर्वज्ञ शक्ति को निशक्त समझ लेता है तब अंधकार में फंस कर पाप मार्ग पर चल देता है जो अंततः दुखों का आमंत्रण है।

निर्णय लेने में मुख्य बात : जब भी मनुष्य किसी समस्या का सामना करता है, तो उसके पास सीमित जानकारी होती है, जिससे वह निर्णय नहीं ले पाता। किन्तु वह समस्या को साझा करे सुझाव जो आएं उन पर विवेक से विचार करे, अपना मन जिस विचार पर विश्वास करे उस पर आगे बढ़े....

अज्ञानता : लोग अपने कर्मों के नतीजों से अनभिज्ञ होते हैं, जिस कारण वे गलत निर्णय ले लेते हैं, जो अंततः उन्हें दुःख देते हैं। इसलिए पाप मार्ग पर चलने से धर्म रोकता है। हम दूसरे का बुरा करेंगे तो जो ईश्वर हम पर नजर रखे है वह हमें भी दंडित करेगा।

धार्मिक दिशा की कमी : ईश्वर की सर्वज्ञता पर विश्वास करने वाले लोग अक्सर अपनी समस्याओं का समाधान ईश्वर छोड़ देते हैं। परन्तु  ईश्वर नें यह शरीर ही समस्याओं से सामना करने दिया है, ईश्वरीय व्यवस्था में हमें स्वयं ही अपने समाधान खोजने हैँ।

यदि हम अपने कर्तव्य को अपने पुरषार्थ को किये बिना ही समाधान ईश्वर पर छोड़ेंगे तो विफल होंगे।ईश्वर नें हमें कर्म शक्ति दी है वह चाहता है कि हम उसका उपयोग करें। अन्यथा अपने जीवन में संतोष और सुख प्राप्त नहीं कर पाएंगे ।

समापन 
इस प्रकार, ईश्वर की सर्वज्ञता और मानव की अल्पज्ञता एक महत्वपूर्ण विषय है जो मानव जीवन को दुःख-सुख से प्रभावित करती है। जब मनुष्य अपनी सीमित स्थिति को समझ लेता है, स्वीकार कर लेता है और अपने कर्म को ईमानदारी से करते हुये, बहुत अधिक की इच्छा त्याग देता है, जो है उसे ईश्वर का प्रसाद मान लेता है तब वह अधिक शांति और संतोष को प्राप्त कर सकता है।

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