शरीर की मृत्यु, नई दुनिया में नया जन्म भी है - अरविन्द सिसोदिया mrtyu sharir ki hoti he, aatmaa ki nahin
Arvind Sisodia
9414180151
मृत्यु सिर्फ निष्काम हो चुके शरीर को छोड़ना है, उससे आगे भी और दुनियायें हैँ।
विचार :-
बहुत ही गहरा और विचारोत्तेजक विचार ! यह विचार हमें मृत्यु के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि मृत्यु सिर्फ शरीर की मृत्यु नहीं है, बल्कि यह एक नई यात्रा की शुरुआत भी है। यह सनातन हिन्दू सोच के सत्य अनुसंधान को ही आगे बढ़ाता हैँ।
हिंदू धर्म में यह विश्वास युगों युगों से प्रमुखता से पाया जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है और एक नई यात्रा शुरू करती है। यह विश्वास हमें मृत्यु के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि मृत्यु सिर्फ एक अंत नहीं है, बल्कि यह एक नई शुरुआत भी है। श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैँ कि येशा कोई समय नहीं था ज़ब तुम और में नहीं हों, शरीर बदलता रहता है, आत्मा अमर रहती है।
मृत्यु सिर्फ निष्काम हो चुके शरीर को छोड़ना है, उससे आगे भी और दुनियाएँ हैं, हमें यह समझने के लिए प्रेरित करती है कि मृत्यु के बाद भी नये तरीके के जीवन की एक नई यात्रा शुरूआत है।
यह विचार हमें मृत्यु के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि मृत्यु सिर्फ एक अंत नहीं है, बल्कि यह एक नई शुरुआत भी है।
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मृत्यु और जीवन के बाद की धारणा
शरीर की मृत्यु एक ऐसा विषय है जिसे इंसान ने सदियों से सत्य जानने की कोशिश कर रहा है। यह केवल शारीरिक शरीर का निष्क्रमण नहीं है, बल्कि इसे एक नई यात्रा के रूप में देखा जा सकता है। विभिन्न धार्मिक धर्मशास्त्रों में मृत्यु के बाद के जीवन को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। किन्तु हिन्दू सनातन का अनुसंधान आत्मा के सूक्ष्म शरीर की भी कल्पना करता है। जो भौतिक शरीर में मूलतः अमर आत्मा के निवास को मानता है। इस आत्मा के रहते जीवन है और इस आत्मा के शरीर से चले जाने को मृत्यु कहते हैँ। किन्तु आत्मा का सूक्ष्म शरीर जीवित रहता है और वही सूक्ष्म शरीर अन्य शरीर के माध्यम से पुनर्जन्म लेता है। इस तरह के कोरोड़ों जन्म हो चुके हैँ और भविष्य में भी अरबों जन्म यह सूक्ष्म आत्माएँ जन्म लेंगी।
1. मृत्यु का अर्थ
मृत्यु को बार-बार अंत के रूप में देखा जाता है, लेकिन कई धार्मिक और सैद्धांतिक सिद्धांत इसे एक संक्रमण काल के रूप में देखते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में पुनर्जन्म का सिद्धांत है, जो यह दर्शाता है कि आत्मा एक शरीर को समाप्त करके दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। इसी प्रकार, हिन्दू बौद्ध धर्म भी पुनर्जन्म की अवधारणा पर जोर देता है, जिसमें आत्मा या अस्वीकरण का निरंतर चक्र होता है। इसीलिए हिंदुत्व में आत्मा की अमरता कही गईं हैँ।
2. जीवन के पीछे की धारणा
कई चित्रों में मृत्यु के बाद जीवन की धारणा को सकारात्मक रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि मृत्यु केवल शारीरिक अनुभव का अंत है और आत्मा या अस्वीकरण एक नया अनुभव है। इस दृष्टिकोण से, मृत्यु को एक नए अध्याय की शुरुआत माना जाता है, जहां आत्मा अपने पिछले लक्ष्यों से प्रशिक्षित होकर आगे बढ़ती है।
3. आध्यात्म और जागरूकता
आध्यात्मिकता का यह विचार और भी गहरा है कि मृत्यु केवल एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया है। कई लोग इसे आत्मा की विकास यात्रा के रूप में देखते हैं। जब हम मृत्यु को एक अंत के बजाय एक नए आरंभ के रूप में स्वीकार करते हैं, तो यह हमें जीवन को अधिक गहराई से जीने और हर क्षण का मूल्य समझने के लिए प्रेरित करता है।
4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मूलतः विज्ञान ईश्वर की व्यवस्थाएं हैँ और इसे जानने समझने और खोजने की प्रक्रिया में मानववृति अरबों करोड़ों वर्षों से ही लगी हुई है। ईश्वर की व्यवस्थाओं के विशुद्धज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है। किन्तु मानव सभ्यता ईश्वर के ज्ञान को व्यवस्थाओं को पूरी तरह समझ नहीं पाते हैँ। हमेशा ही कुछ न कुछ अधूरा ही रहता है, इसी कारण विज्ञान अभी तक आत्मा के अज्ञात स्वरूप को प्रमाणित रूप में नहीं समझ सका है।
विज्ञान ने भी मृत्यु पर ध्यान केन्द्रित किया है, पुनर्जन्मों पर भी अध्ययन किये हैँ। हलाँकि विज्ञान को अभी तक आत्मा का व्यक्तिगत प्रमाणन का प्रमाण नहीं मिला है। लेकिन वह मानव विज्ञान और उसके कार्यों पर शोध कर रहा है। कुछ वैज्ञानिकों ने यह सुझाव दिया है कि मृत्यु से पहले कुछ लोग "मृत्यु के निकट अनुभव" का सामना कर अभिव्यक्ति देते हैँ। जो उन्हें जीवन और मृत्यु की प्रकृति पर नए दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। किन्तु हिन्दू अनुसंधान ईश्वर, आत्मा, सूक्ष्म शरीर और पुनर्जन्म पर व्यापक शोध प्रस्तुत करता है। जिस सामाजिक समर्थन प्राप्त है।
5. निष्कर्ष
इस प्रकार, मृत्यु केवल शरीर को छोड़ने की प्रक्रिया नहीं बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत है। यह हमें अपने जीवन को बेहतर ढंग से जीने और अपनी आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है। यह विचार इसलिए भी लाभकारी है की मानव व्यर्थ के मोह से मुक्त होता है।
1. तिब्बती मृतकों की पुस्तक
यह प्राचीन ग्रन्थ मृत्यु और पुनर्जन्म पर बौद्ध दृष्टिकोण की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, तथा भौतिक अस्तित्व से परे चेतना की निरंतरता पर बल देता है।
2. श्रीमद भगवद् गीता
हिंदू धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक ग्रन्थ जो जीवन और मृत्यु की प्रकृति पर चर्चा करता है, जिसमें आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म की अवधारणाएं भी शामिल हैं।
3. साइंटिफिक अमेरिकन
तंत्रिका विज्ञान और निकट-मृत्यु अनुभवों से संबंधित विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधान और चर्चा के लिए एक प्रतिष्ठित स्रोत, जो मृत्यु के संबंध में विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
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