भोपाल गैस त्रासदी, चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी बात

   














भोपाल गैस त्रासदी, चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी बात है। ,स्वतंत्र भारत के राजनेतिक कर्णधारों को ,संवेधानिक व्यवस्था को, लगता नही इस  सरकार में कोई शर्म बाकीं हे , एक अपमानजनक  फेसले के 24 घंटे गुजर जाने के बाद भी कोई ठीक प्रतिक्रिया केंद्र सरकार क़ी और से नही आई , लगता भी नही क़ी सरकार कोई कदम उठाएगी,क्यों क़ी उसने तो यह मामला दवाया ही था ,

मुआवजे की बात पर, दिल्ली के उपहार अग्निकांड का उदाहरण हैं कि इस घटना में मृतकों के परिजनों को 15 लाख मुआवजे की राशि के साथ 9 फीसदी की दर से ब्याज भी दिया गया। लेकिन क्या भोपाल गैस पीड़ितों के जीवन की कीमत महज 25 हजार रूपये है? जबकि प्रभावित लोगों की भावी पीढ़ियों को भी अभी तक जहरीले रसायनों का दंश झेलना पड़ रहा है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बीमार लोग काम नहीं कर सकते, उस पर ईलाज का खर्च गरीब लोगों की कमर तोड़ देता है। ऐसे में भरण पोषण कैसे हो, यह एक बड़ा सवाल है।     
    जानकारों की मानें तों 24 साल के बाद भी पीड़ितों की पहचान उनके रोगों के आधार पर नहीं की जा सकी है। 1980 से लेकर 1996 तक मुआवजे के नाम पर 14,400 रुपये अंतरिम राहत के तौर पर प्राप्त हुए हैं। इसके बाद मुआवजा वितरण में 10,600 रुपये प्राप्त हुए थे। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 25 हजार रुपये 2004 से 2006 के दौरान वितरित किये गए। 1990 से लेकर 2006 के बीच 16 वर्षों की अवधि के दौरान पीड़ितों को एक तरह से किस्तों में कुल 50 हजार रुपये ही मिल पाये हैं। ऐसे में दवाई का खर्च उठाना भी लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है।
1992-93 तक तो गैस-जनित बीमारियों से मरने वालों को भी मृतकों की सूची में ही रखा गया, लेकिन बाद में  बीमारियों से मरने वाले लोगों का पंजीकरण बंद कर दिया गया। तब तक 15 हजार 274 मृतकों के परिजनों को मुआवजा दिये जाने की बात हैं। जबकि 5 लाख 74 हजार प्रभावित लोगों को मुआवजा दिये जाने की बात कही जा रही है। इन 24 सालों में लगभग एक लाख गैस पीड़ितों के स्थाई रूप से अपंग होने और करीब 3 लाख लोगों के जटिल बीमारियों से ग्रसित होने की बात कही जा रही है।
फेक्ट फाइल 
- 2/3 दिसम्बर 1984 को रात्रि में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड क़ी फेक्ट्री में से भरी मात्र में जहरीली गेस हवा में फेल गई , यह गेस संसार के सबसे जहरीले पदार्थ सायनाइड के युग्म क़ी थी जो सर्वाधिक घातक होती हे, असर भी घातक ही हुआ , लोग उसी तरह मरे जिस तरह फसलों पर कीट नाशक छिडकने पर कीट पतंगे मर जाते हें.लगभग 25,0000 लोग मरे गये हें जिनमें से कई के कोई नही बचा ,लाखों को इस तरह क़ी बीमारिया हुई क़ी वे ता उम्र अपंग हें,
- 4 दिसंबर 1984 को एम् पी पुलिस ने कम्पनी चेयरमेन वारेन एंडर्सन को गिरिफ्तार   कर लिया और जमानत पर छोड़ दिया ,     ,
- दुर्घटना के समय तो हत्या का ही आरोप इस कम्पनी  पर लगाया गया था , मगर बाद में उच्चतम न्यायलय ने धरा को अत्यंत हल्का कर दिया , जो क़ी गलत था , माना जाता हे क़ी यह सब कही न कही तत्कालीन केद्र सरकार के दवाव से हुआ था , तर्क यह था क़ी बड़ा भारी मामला बनाया तो , बहुराष्ट्री कंपनिया नही आयेंगी , मगर मूल बात अमरीकी दवाव ही माना जाना चाहिए , सी बी आई के एक अधिकारी ने तो स्वीकार ही किया हे , मंत्रालय का दवाव था.
- 1985 में भारत सरकार ने अमेरिका क़ी अदालत में यूनियन कार्बाइड  से 3.3 अरब डालर क़ी मांग क़ी , मगर न जाने किस दबाव के कारन 1989 में 47 करोड़ डालर में ही समझोता कर लिया .   .
-  सी बी आई और न्यायालयों पर कितना दवाव रहा क़ी , 2 दिसम्बर 1984 क़ी देर रात को हुई   , घटना का आरोप पत्र , 1 दिसम्बर 1987 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के ए सीसोदिया क़ी अदालत में प्रस्तुत हुआ , उन सहित 18 न्यायाधिसों से होता हुआ, 19वे न्यायाधीस ने फेसला सुनाया , इस कछुआ चल में 24 / 25 वर्ष लग  गये , विदेशी प्रभुत्व और भारतीय   पूजीवाद का कितना गहरा असर था ,
- सरकार ने यूनियन कार्बाइड  से 1895 में 3,300 करोड़ डालर मांगे थे ,
- सरकार ने अदालत के बहार मामला कथित तोर पर सुलझाया ,
- 1992 में सरकार और कम्पनी क़ी और से कथित तोर पर 47 करोड़ डालर बाँटने क़ी बात तय हुई , 1992 में कुछ रकम बटी भी  ,
- 2001 में यूनियन कार्बाइड में दुर्घटना क़ी कोई भी जिम्मेवारी लेने से माना किया ,
- 2004  में न्यायलय ने 47 करोड़ डालर में से शेष रकम बाँटने का आदेस दिया , ,    
- 2010 में भोपाल क़ी एक अदालत ने इस  कंपनी के ,8 भारतीय शीर्ष अधिकारियो को न मामूली सी सजा सुना कर परोक्ष बरी कर दिया ,
- इस मुक़दमे के फेसले से इतना तो निश्चित हो गया , क़ी भारत क़ी सरकार , प्रशासन और मिडिया से रास्ट्रीय हित क़ी बात आब तो सोचना ही बेकार हे . 
- मामला फिर से उठाना चाहिए और हानी क़ी व्यापकता को सामने रख कर होनी चाहिए , पूरी पूरी भर पाई लेनी चाहिए ,पीड़ित जान का पूरा पूरा भला करना चाहिए  ।

अरविन्द सीसोदिया
राधाकृष्ण मंदिर रोड ,
डडवाडा , कोटा जन. 2
राजस्थान .  

2010 
,   

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