ईश्वरीय कंप्यूटर प्रणाली आधारित है ये प्रकृति सत्ता
प्रकृति में विविध शरीरों का जीवन ईश्वरीय कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। जो जीवन चक्र के कार्य को निष्पादित करता है।
प्रकृति और जीवन चक्र की अवधारणा
प्रकृति, जिसे जंगली जीवों के समूह सहित माना जाता है, विभिन्न विविधताएँ और उनके जीवन चक्रों का आधार है। भारतीय संस्कृति 84 लाख योनियों की जो कल्पना करती है वे 84 लाख प्रकार के शरीर हैँ। यह एक ऐसी प्रणाली है जो ईश्वर की रचना से कार्य करती है। इस प्रणाली में सभी स्तरों का निर्माण, विकास और अंत शामिल है। इसे एक प्रकार की "ईश्वरीय कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था" के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें हर जीव का जीवन एक निश्चित क्रम में रहता है। जैसे कि गेंहू के पौधे का जीवन चक्र 4/5 माह का होता है, इसी तरह से सभी प्रकार के शरीरों की आयु, उनके जीवन संचालन की ऑटोमेटीक व्यवस्था ईश्वरीय विधि से तय है।
तिमाही का निर्माण और विकास
भगवान कृष्ण के अनुसार शरीर का निर्माण पांच अवयव (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और तीन गुण (सत्व, रज, तमस्) होता है। ये तत्व और गुण मिलाकर प्रकृति और उनके कार्य को निर्धारित करते हैं। इस प्रक्रिया को इंगित करने के लिए हमें यह देखना होगा कि कैसे ये तत्व व्यक्तित्व में मिलकर जीवन की विविधता को उत्पन्न करते हैं।
पंच महाभूत कहलाने वाले ये पांच स्वरूप हैँ :-
1- पृथ्वी अर्थात पदार्थ की ठोस अवस्था
2- वायु अर्थात पदार्थ की गेसीय अवस्था
3- जल अर्थात पदार्थ की दृव अवस्था
4- आकाश अर्थात पदार्थ का आकार
5-अग्नि अर्थात पदार्थ का तापमान
ये सब पूरी तरह वैज्ञानिक मूलाधार हैँ।
इसी तरह प्रत्येक जीव के, पदार्थ के, समस्त भौतिक अस्तित्व के तीन गुण होते हैँ जिनमेन से एक नेतृत्व कर्ता है।
1- सतो गुण जिसे सत्व कहते हैँ, सतो गुण का स्वभाव संतोषी होता है।
2- रजो गुण जिसे रज कहते हैँ, रजो गुण का स्वभाव राजसी होता है
3- तमो गुण जिसे तमस कहते हैँ, तमो गुण तामसी वृति होती है जिसे दूसरे की वस्तु हड़पने की मानसिकता भी कह सकते है।
ये तीनों मानसिकतायें भी पूरी तरह वैज्ञानिक हैँ।
ईश्वर की भूमिका
ईश्वर या सृष्टिकर्ता ने यह व्यवस्था स्थापित की थी। वह न केवल आलोच्य के निर्माण में सहायक होते हैं बल्कि उन्हें अपने कर्मों के अनुसार फल भी देते हैं। यह प्रक्रिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह काम करती है जहां प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार परिणाम प्राप्त करता है।
जीवन चक्र
जीवन चक्र एक सतत प्रक्रिया है जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी चरण शामिल होते हैं। यह चक्र न केवल भौतिक शरीर तक सीमित होता है बल्कि आत्मा का पुनर्जन्म और उसके अवतरण को भी सम्मिलित करता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाये तो प्रकृति वास्तव में एक जटिल प्रणाली है जो ईश्वरीय योजना के अनुसार संचालित होती है।
संक्षेप में
इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रकृति में विविध शरीरों का जीवन वास्तव में एक ईश्वरीय कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था का परिणाम है जो जीवन चक्र का अभ्यास करता है। यह व्यवस्था न केवल भौतिक तत्वों पर आधारित है बल्कि इसमें आध्यात्मिक सिद्धांतों का भी समावेश है। अर्थात यह जगत चेतन और अचेतन का सामूहिक परिणाम है।
इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त शीर्ष 3 आधिकारिक स्रोत:
1. श्रीमद भगवद गीता
यह ग्रंथ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश शामिल हैं। इसमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म जैसे विषयों पर गहन चर्चा की गई है।
2. सांख्य दर्शन
यह भारतीय दर्शन का एक प्रमुख विद्यालय है जो प्रकृति (प्रकृति) और पुरुष (आत्मा) के बीच अंतर को स्पष्ट करता है और जीवन चक्र की व्याख्या करता है।
3. वेद
हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथ सृष्टि, ब्रह्मा और प्राकृतिक तत्वों का वर्णन किया गया है। वेद ज्ञान का स्रोत माने गए हैं जो जीवन और उनके रासायनिक सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं।
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