हम ईश्वर के खिलोने हैँ वह खेल रहा है - अरविन्द सिसोदिया hm ishwar ke khilone
ईश्वर और मानव जीवन का संबंध
इस असंबद्ध के अनुसार, मानव जीवन को एक खेल के रूप में देखा जाता है जिसमें ईश्वर एक खिलाड़ी की तरह है। यह दृष्टिकोण विभिन्न धार्मिक और ईश्वरीय सिद्धांतों में पाया जाता है, जो इस बात पर जोर देता है कि जीवन के सुख-दुःख, स्वभाव, नाते रिश्ते और भौतिक संपत्ति सभी ईश्वर के खेल का हिस्सा हैं।
1. जीवन का खेल:
यह विचार कि "हम ईश्वर के खिलौने हैं" इसमें यह उल्लेख है कि मानव प्रतिभा को एक व्यापक योजना या उद्देश्य के अंतर्गत समझाया जा सकता है। कई धार्मिक ग्रंथों में यह बताया गया है कि ईश्वर ने सृष्टि को शिक्षा और भक्ति का हिस्सा बनाया। इस दृष्टिकोण से, जीवन की घटनाएँ—चाहे वे सुखद हों, दुःखद हों,या आदर्श—सभी ईश्वर की इच्छा और योजना के परिणाम होते हैं।
2. सुख-दुःख का चक्र:
सुख और दुःख को जीवन के अनिवार्य भागों के रूप में देखा जाता है। यह मान्यता हिन्दू धर्म में भी महत्वपूर्ण है, कर्म विधान के अनुसार सुख दुख की मान्यता है वहीं दुःख कष्ट समस्याएं जीवन का एक स्वाभाविक तत्व है। इसी प्रकार, हिंदू धर्म में कर्म का सिद्धांत यह बताया गया है कि हमारे कार्यों के परिणाम हमें सुख या दुख देते हैं। किन्तु इनकी प्रेरणा भी हमारे मन को ईश्वरीय व्यवस्था से प्राप्त होती है। इसलिए मूल हेतु ईश्वर ही है। इसलिए, ये अनुभव केवल व्यक्तिगत नहीं होते बल्कि एक बड़े आध्यात्मिक सत्य का हिस्सा होते हैं।
3. भौतिकता और आध्यात्मिकता:
धन-दौलत और भौतिक संपत्ति को भी इस ईश्वरीय खेल का हिस्सा माना जाता है। कई सैद्धांतिक सिद्धांत जैसे कि अद्वैत वेदांत जिनमें भौतिक वस्तुएं छोटी हैं और वास्तविकता केवल आध्यात्मिक ज्ञान में निहित है। इस प्रकार, जब हम भौतिकता में जितने घिरते जाते हैँ अपनी वास्तविकता से उतने दूर होते जाते हैँ।हम भौतिकता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम वास्तव में उस खेल से घिरते जाते हैं। वहीं हम यह विचार करलें की ये सब ईश्वर के हैँ हमारा कुछ नहीं है, हम अस्थाई है कुछ समय के लिए हैँ तो हमारा मोह कम होगा जो हमारे दुखों को कम करेगा. दुखों का असली कारण ही माया मोह है जो हमें ईश्वर से दूर करता है। जो कुछ घट रहा है वह तो ईश्वर ने हमारे लिए निर्धारित किया है। इसलिए उसे उसी भाव से ले, कुल मिला कर हम मात्र खिलौना हैँ और वह खेल रहा है, यही भाव रहना अधिक सूखदायी होता है।
4. मित्रता संबंध:
"तेरी मेरी" करने की प्रवृत्ति मानव स्वभाव का एक हिस्सा है, जो अक्सर हमें द्वेष की ओर ले जाता है। लेकिन अगर हम इसे ईश्वर के खेल के रूप में देखें, तो हमें अपने आपको संयमित अनुशासित करना चाहिए कि सभी संबंध अंततः एक ही स्रोत से आते हैं। यह दृष्टिकोण हमें मित्रवत प्रेम और सहनशीलता की ओर प्रेरित कर सकता है। हमें मित्र भाव को प्रेरित करता है।
5. निष्कर्ष:
इस प्रकार, यह विचार है कि "हम वास्तव मे तो ईश्वर के खिलोने मात्र हैं" हमें याद दिलाता है कि हमारे व्यक्तिगत संघर्षों और घटनाओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बड़ी तस्वीरें हैं जिनमें हम सभी जुड़े हुए हैं। यदि हम अपने जीवन को ईश्वर के खेल के रूप में स्वीकार करते हैं तो शायद हमें अधिक शांति और संतोष प्राप्त होता है। सत्य भी यही है कि कुछ भी अपना नहीं है यहाँ तक कि यह शरीर भी एक समय विशेष के बाद साथ छोड़ देता है। कुल मिला कर यह विचार हमें संयमित जीवन में संतुष्ट रखता है।
इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त शीर्ष 3 आधिकारिक स्रोत:
1. भगवद् गीता:
हिंदू धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक ग्रंथ जो जीवन और कर्तव्य (धर्म) की प्रकृति पर चर्चा करता है, तथा ब्रह्मांडीय व्यवस्था में व्यक्ति की भूमिका को समझने के महत्व पर बल देता है।
2. धम्मपद:
पद्य रूप में बुद्ध के कथनों का संग्रह जो सुख दुख और ज्ञान प्राप्ति के मार्ग के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, तथा सांसारिक आसक्तियों की क्षणभंगुर प्रकृति पर प्रकाश डालता है।
3. अद्वैत वेदांत दर्शन:
हिंदू दर्शन का एक गैर-द्वैतवादी स्कूल जो परम वास्तविकता (ब्रह्म) के साथ व्यक्तिगत आत्मा (आत्मा) की एकता के बारे में सिखाता है, और भौतिक संपत्ति की तुलना में आध्यात्मिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करता है।
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