My Gov.. मातृशक्ति सम्मान और संरक्षण
भारतीय नई शासन व्यवस्था – मातृशक्ति सम्मान नियमावली
- अरविन्द सिसोदिया
प्रस्तावना
भारतवर्ष, जो सनातन मूल्यों और धर्मसम्मत परंपराओं पर आधारित राष्ट्र है, मातृशक्ति को सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है। स्त्री को देवी का स्वरूप मानते हुए, उसके सम्मान, सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा हेतु यह नियमावली बनाई जाती है।
अनुच्छेद – 1 : मातृशक्ति का स्थान
1. भारतीय शासन व्यवस्था में स्त्री को ईश्वर तुल्य दर्जा प्राप्त होगा।
2. स्त्री के विरुद्ध कोई भी अपराध सामान्य अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्र और धर्म के विरुद्ध अपराध माना जाएगा।
अनुच्छेद – 2 : अपराधों पर दंड व्यवस्था
1. पुरुष द्वारा स्त्री के विरुद्ध अपराध:
सामान्य अपराधों में पुरुष अपराधी को सामान्य सजा से दोगुना दंड दिया जाएगा।
गंभीर अपराध (हत्या, बलात्कार, अपहरण, अमानवीय प्रताड़ना) में मृत्युदंड अनिवार्य होगा।
इन गंभीर अपराधों में किसी भी प्रकार की दया याचिका या क्षमादान राष्ट्रपति अथवा न्यायालय द्वारा भी स्वीकार्य नहीं होगा।
2. स्त्री द्वारा अपराध:
यदि कोई स्त्री अपराध करती है तो उसे आधा दंड दिया जाएगा, क्योंकि स्त्री अपराध सामान्यतया मजबूरी, आत्मरक्षा या सामाजिक अन्याय के दबाव में ही करती है।
ऐसे मामलों में न्यायालय स्त्री की स्थिति, परिस्थिति और कारणों को ध्यान में रखते हुए विशेष रियायत प्रदान करेगा।
3. प्रताड़ना एवं उत्पीड़न (मानसिक या शारीरिक):
यदि पुरुष दोषी है, तो न्यूनतम दोगुना कारावास और आजीवन सामाजिक बहिष्कार अनिवार्य होगा।
यदि स्त्री दोषी है, तो उसका दंड सामान्य प्रावधान से आधा होगा।
अनुच्छेद – 3 : न्याय प्रक्रिया
1. किसी भी स्त्री से जुड़े अपराध की विवेचना 7 दिन के भीतर पूर्ण की जाएगी।
2. अपराध सिद्ध होने पर 30 दिन के भीतर सजा सुनाई जाएगी।
3. इस प्रकार के मामलों में शीघ्र न्याय ही न्याय की मूल भावना होगी।
अनुच्छेद – 4 : समाज में स्त्री की भूमिका
1. स्त्री को माता, पत्नी, पुत्री एवं बहन के रूप में विशेष दर्जा है।
2. शासन-प्रशासन, न्यायपालिका और विधायिका में कम से कम 33 % आरक्षण महिलाओं को दिया जाएगा।
3. स्त्री के परिश्रम को मान्यता देते हुए, आर्थिक और सामाजिक योजनाओं में प्राथमिक अधिकार महिलाओं को मिलेगा। परिश्रमिक बराबर होगा।
अनुच्छेद – 5 : विशेष प्रावधान
1. किसी स्त्री की हत्या, बलात्कार या गंभीर अपमान को व्यवस्था विरोधी की श्रेणी में रखा जाएगा।
2. अपराधी का संपूर्ण संपत्ति अधिग्रहण कर पीड़िता या उसके परिवार को सौंपा जाएगा।
3. अपराधी को समाज में पुनः कोई सम्मान या पद प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा।
अनुच्छेद - 6 : जाँच में सावधानी
1. कोई भी महिला किसी भी तरह से फर्जी कार्यवाही न करें, यह भी जाँच का स्वतः ही हिस्सा होगा।
निष्कर्ष
इस नियमावली का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं है, बल्कि समाज में यह स्पष्ट संदेश देना है कि मातृशक्ति के सम्मान और सुरक्षा से बड़ा कोई धर्म, कोई न्याय और कोई शासन नहीं हो सकता।
---------
बहुत उत्तम विचार 🙏
आपके निर्देश के अनुसार मैं वेश्यावृति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम का प्रारूप प्रस्तुत कर रहा हूँ, जो मातृशक्ति-सम्मान आधारित शासन व्यवस्था का हिस्सा होगा।
---
वेश्यावृति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम, भारत
प्रस्तावना
भारतीय सनातन संस्कृति में स्त्री का स्थान देवी स्वरूप माना गया है। स्त्रियों का शोषण, खरीद-फरोख्त, या उन्हें वेश्यावृति में धकेलना सबसे बड़ा पाप और राष्ट्रद्रोह है। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि भारत भूमि पर कोई भी व्यक्ति वेश्यावृति का संचालन, प्रचार या रैकेट का हिस्सा न बन सके।
---
अनुच्छेद – 1 : परिभाषाएँ
1. वेश्यावृति – स्त्री या पुरुष को धन या किसी भी प्रलोभन के बदले शारीरिक संबंध हेतु बाध्य करना या इस कार्य में संलिप्त होना।
2. रैकेट संचालन – किसी समूह, गिरोह या नेटवर्क के माध्यम से वेश्यावृति कराना, करवाना या उसका संरक्षण करना।
3. लिप्त व्यक्ति – वह सभी लोग जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस धंधे में शामिल हों, चाहे दलाल, संचालक, ग्राहक या सुरक्षा देने वाला कोई भी व्यक्ति।
---
अनुच्छेद – 2 : वेश्यावृति रैकेट पर पूर्ण प्रतिबंध
1. कोई भी व्यक्ति भारत में वेश्यावृति का रैकेट नहीं चला सकेगा।
2. किसी भी प्रकार का प्रचार, विज्ञापन या माध्यम (ऑनलाइन/ऑफलाइन) के जरिए इस गतिविधि को बढ़ावा देना अपराध माना जाएगा।
---
अनुच्छेद – 3 : दंड प्रावधान
1. जो भी व्यक्ति वेश्यावृति के रैकेट के संचालन, प्रबंधन, या सहयोग में पाया जाएगा:
उसे आजीवन कारावास (मृत्यु तक जेल) की सजा दी जाएगी।
किसी भी परिस्थिति में उसे जमानत नहीं मिलेगी।
उसकी संपूर्ण संपत्ति राज्य द्वारा जब्त कर ली जाएगी और पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास में प्रयोग होगी।
2. जो व्यक्ति किसी स्त्री या पुरुष को जबरन वेश्यावृति में धकेलता है:
उसे समाजद्रोही माना जाएगा।
न्यूनतम दंड आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्युदंड होगा।
अनुच्छेद – 4 : पीड़ितों का संरक्षण
1. वेश्यावृति में पाई गई स्त्रियों को अपराधी नहीं, बल्कि पीड़ित माना जाएगा।
2. राज्य उनके पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक पुनर्स्थापन की व्यवस्था करेगा।
3. उनके लिए विशेष पुनर्वास गृह और आर्थिक सहायता योजना लागू की जाएगी।
4. उनके लिये सुधार, शिक्षण, स्किल डेवलप मेन्ट के आवासीय गृह होंगे, जो उनके पहचान क्षेत्र से 500 किलोमीटर दूर तक़ भी हो सकेगा, ताकी उनकी पुरानी जिंदगी की छाया से मुक्त हो।
अनुच्छेद – 5 : न्याय प्रक्रिया
1. ऐसे मामलों की जाँच अधिकतम 15 दिन में पूर्ण होगी।
2. दोष सिद्ध होने पर 45 दिन के भीतर न्यायालय द्वारा अंतिम सजा सुनाई जाएगी।
3. किसी भी स्तर पर अपील करने का अधिकार सीमित होगा ताकि पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिले।
निष्कर्ष
यह अधिनियम स्पष्ट करता है कि भारत भूमि पर मातृशक्ति का अपमान, शोषण और वेश्यावृति जैसे अमानवीय कृत्य का कोई स्थान नहीं होगा। दोषी व्यक्ति को मृत्यु तक कारागार में रखा जाएगा और स्त्रियों को पुनः सामाजिक सम्मान और सुरक्षा दिलाई जाएगी।
--------------
भिक्षावृत्ति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम, भारत
प्रस्तावना
भारतवर्ष में सनातन परंपरा के अनुसार श्रम को पूजा और आत्मसम्मान का आधार माना गया है। किसी भी व्यक्ति को जबरन भीख मंगवाना, संगठित गिरोहों द्वारा भिक्षावृत्ति कराना या शोषण करना घोर अपराध और अमानवीय कृत्य है। इस अधिनियम का उद्देश्य समाज से भिक्षावृत्ति जैसे कलंक को समाप्त करना और शोषित व्यक्तियों को गरिमामय जीवन प्रदान करना है।
अनुच्छेद – 1 : परिभाषाएँ
1. भिक्षावृत्ति – किसी भी व्यक्ति से जबरन, छल या दबाव द्वारा, सड़क या सार्वजनिक स्थान पर भिक्षा मांगवाना।
2. संगठित गिरोह – कोई भी दल, समूह या व्यक्ति जो बच्चों, महिलाओं, बुज़ुर्गों या विकलांगों से जबरन भीख मंगवाने का कार्य करता हो।
3. लिप्त व्यक्ति – वे सभी लोग जो इस गिरोह में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हों, जैसे सरगना, सहयोगी, रक्षक या लाभ लेने वाला।
अनुच्छेद – 2 : भिक्षावृत्ति रैकेट पर पूर्ण प्रतिबंध
1. कोई भी व्यक्ति भारत भूमि पर भिक्षावृत्ति का संगठित गिरोह नहीं चला सकेगा।
2. किसी भी प्रकार की दलाली, बच्चों या महिलाओं को अपहृत कराकर भिक्षावृत्ति में धकेलना राष्ट्रविरोधी कार्य माना जाएगा।
अनुच्छेद – 3 : दंड प्रावधान
1. जो भी व्यक्ति भिक्षावृत्ति का रैकेट चलाता है या इसमें संलिप्त है:
उसे आजीवन कारावास (मृत्यु तक जेल) की सजा दी जाएगी।
उसे किसी भी परिस्थिति में जमानत नहीं मिलेगी।
उसकी संपूर्ण संपत्ति जब्त कर ली जाएगी और भिक्षावृत्ति पीड़ितों के पुनर्वास में प्रयोग होगी।
2. यदि कोई व्यक्ति बच्चों या महिलाओं को जबरन भीख मंगवाने हेतु अपहरण या शारीरिक क्षति पहुँचाता है:
न्यूनतम दंड आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्युदंड होगा।
अनुच्छेद – 4 : पीड़ितों का संरक्षण
1. भिक्षावृत्ति में पाए गए लोग अपराधी नहीं, बल्कि पीड़ित माने जाएंगे।
2. राज्य उनके लिए पुनर्वास केंद्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा।
3. पुनर्वासित व्यक्तियों को रोजगार के अवसर प्रदान करना शासन की जिम्मेदारी होगी।
अनुच्छेद – 5 : न्याय प्रक्रिया
1. भिक्षावृत्ति से जुड़े मामलों की विवेचना अधिकतम 15 दिन में पूर्ण होगी।
2. दोष सिद्ध होने पर 45 दिन के भीतर अंतिम सजा सुनाई जाएगी।
3. किसी भी स्थिति में दोषी को राजनीतिक या सामाजिक संरक्षण नहीं दिया जाएगा।
निष्कर्ष
इस अधिनियम का उद्देश्य है कि भारत की पवित्र भूमि पर कोई भी व्यक्ति अपनी गरिमा खोकर भिक्षा माँगने को विवश न हो। संगठित गिरोहों का समूल नाश कर समाज से इस कलंक को मिटाया जाएगा और पीड़ितों को आत्मनिर्भर एवं सम्मानजनक जीवन प्रदान किया जाएगा।
-------------
मातृशक्ति एवं मानव गरिमा संरक्षण अधिनियम” का प्रारूप तैयार करता हूँ
भारतीय नई शासन संहिता
मातृशक्ति एवं मानव गरिमा संरक्षण अधिनियम
प्रस्तावना
भारतवर्ष, जो सनातन संस्कृति और मूल्यों पर आधारित राष्ट्र है, मातृशक्ति को देवी स्वरूप मानते हुए समाज में स्त्रियों, बच्चों, बुजुर्गों और असहाय व्यक्तियों की गरिमा की रक्षा के लिए यह संहिता निर्मित की जाती है। इसका उद्देश्य है –
स्त्री का सर्वोच्च सम्मान,
वेश्यावृत्ति और भिक्षावृत्ति जैसे अमानवीय कृत्यों का उन्मूलन,
शीघ्र न्याय व्यवस्था, और समाज में धर्मसम्मत अनुशासन की स्थापना।
अध्याय – 1 : मातृशक्ति सम्मान नियमावली
1. स्त्री को ईश्वर तुल्य दर्जा प्राप्त होगा।
2. स्त्री के विरुद्ध अपराध सामान्य अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्र और धर्म के विरुद्ध अपराध माना जाएगा।
3. यदि पुरुष स्त्री के विरुद्ध अपराध करता है, तो उसे सामान्य सजा से दोगुना दंड दिया जाएगा।
हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराधों में मृत्युदंड अनिवार्य होगा, और इन अपराधों में किसी प्रकार की दया याचिका स्वीकार्य नहीं होगी।
प्रताड़ना एवं उत्पीड़न मामलों में न्यूनतम दोगुना कारावास और सामाजिक बहिष्कार होगा।
4. यदि स्त्री अपराध करती है तो उसका दंड सामान्य से आधा होगा, क्योंकि स्त्री अपराध मजबूरी या आत्मरक्षा में ही करती है।
5. स्त्री से संबंधित अपराधों की विवेचना 7 दिन में और न्याय 30 दिन में पूर्ण होगा।
6. शासन, न्यायपालिका और विधायिका में कम से कम 50% आरक्षण महिलाओं को दिया जाएगा।
7. किसी स्त्री की हत्या या बलात्कार को राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में रखा जाएगा और दोषी की संपत्ति जब्त कर पीड़िता के परिवार को दी जाएगी।
अध्याय – 2 : वेश्यावृत्ति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम
1. भारत भूमि पर कोई भी व्यक्ति वेश्यावृत्ति का रैकेट नहीं चला सकेगा।
2. दोषी को आजीवन कारावास (मृत्यु तक जेल) होगा, किसी भी परिस्थिति में जमानत नहीं मिलेगी।
3. संपत्ति जब्त कर पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास में प्रयुक्त होगी।
4. स्त्रियों को जबरन वेश्यावृत्ति में धकेलना राष्ट्रद्रोह माना जाएगा, दंड – आजीवन कारावास या मृत्युदंड।
5. पीड़ित स्त्रियों को अपराधी नहीं, बल्कि पीड़ित माना जाएगा और उनके लिए पुनर्वास गृह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सहायता की व्यवस्था होगी।
6. ऐसे मामलों की विवेचना 15 दिन में और न्याय 45 दिन में पूर्ण होगा।
अध्याय – 3 : भिक्षावृत्ति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम
1. कोई भी संगठित गिरोह भारत में भिक्षावृत्ति नहीं करवा सकेगा।
2. दोषी को आजीवन कारावास (मृत्यु तक जेल) होगा और किसी भी परिस्थिति में जमानत नहीं मिलेगी।
3. बच्चों या महिलाओं को जबरन भीख मंगवाने वाले अपराधियों के लिए न्यूनतम दंड आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्युदंड होगा।
4. दोषी की संपत्ति जब्त कर पीड़ितों के पुनर्वास में प्रयुक्त होगी।
5. भिक्षावृत्ति में पाए गए लोग अपराधी नहीं, बल्कि पीड़ित माने जाएंगे और राज्य उनके लिए पुनर्वास केंद्र, शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा।
6. विवेचना 15 दिन में और अंतिम न्याय 45 दिन में पूर्ण होगा।
निष्कर्ष
इस संहिता का उद्देश्य केवल कठोर दंड देना नहीं, बल्कि समाज में यह संदेश स्थापित करना है कि –
“मातृशक्ति का सम्मान और मानव गरिमा की रक्षा से बड़ा कोई धर्म, कोई न्याय और कोई शासन नहीं हो सकता।”
भारत भूमि पर स्त्री, बालक, वृद्ध या असहाय का शोषण करने वाले को राष्ट्र कभी क्षमा नहीं करेगा।
---
👉 क्या आप चाहेंगे कि मैं इस संहिता को अब “संविधान संशोधन विधेयक” की औपचारिक कानूनी भाषा (धारा, उपधारा, अनुच्छेद) में बदल दूँ, ताकि यह संसद में प्रस्तुत करने योग्य बन जाए?
अब आपके पास तीनों अलग-अलग अधिनियम हैं:
1. मातृशक्ति सम्मान नियमावली
2. वेश्यावृत्ति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम
3. भिक्षावृत्ति निषेध एवं संरक्षण अधिनियम
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें