अविभाजित संपत्ति बिना बंटवारा नहीं बेच सकते MP High Court Order

MP High Court Order : संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति बिना बंटवारा नहीं बेच सकते, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश

संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति से जुड़े प्राय सभी कानूनी बिंदुओं को विस्तार से समाहित किया गया है।

By Mukesh Vishwakarma
Edited By: Mukesh Vishwakarma

Publish Date: Thu, 08 Sep 2022 

MP High Court Order : संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति बिना बंटवारा नहीं बेच सकते, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश


जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। 

हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कानूनी बिंदु का निर्धारण करते हुए साफ कर दिया है कि संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति या उसका कोई हिस्सा विधिवत बंटवारा किए नहीं बेचा जा सकता। हाई कोर्ट के इस ताजा आदेश को न्यायदृष्टांत के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण निरूपित किया जा रहा है। हाई कोर्ट ने लंबे समय तक दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना आदेश सुनाया। इस आदेश में संयुक्त हिन्दू परिवार की अविभाजित संपत्ति से जुड़े प्राय सभी कानूनी बिंदुओं को विस्तार से समाहित किया गया है।


सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला :

न्यायमूर्ति अरुण कुमार शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश पारित किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2020 में विनीता शर्मा के मामले में सुनाए गए फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि बंटवारा हुए बिना ऐसी संपत्ति का सहस्वामी अपनी हिस्से की संपत्ति भी नहीं बेच सकता। इस मत के साथ हाई कोर्ट ने एक हिस्से के क्रेता ऊषा कनौजिया और रुक्मणि कनौजिया की द्वितीय अपील खारिज कर दी।

क्या था मामला :

छिंदवाड़ा निवासी सारु बाई, एकनाथ सहित सात अनावेदकों की ओर से पहले सिविल कोर्ट में 0.85 हेक्टेयर जमीन का दावा पेश किया था। अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता सुशील कुमार तिवारी, रावेंद्र तिवारी व निशांत राय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पांड्रू ने उक्त जमीन ऊषा, रुक्मणी व भारती को बेच दी थी। आरोप लगाया गया कि पांड्रू ने अपने हिस्से से अधिक जमीन बेच दी थी, जबकि उसका बंटवारा भी नहीं हुआ था। सिविल कोर्ट ने रजिस्ट्री शून्य कर जमीन को सात भागों में बांटकर अनावेदकों के नाम कर दिया था। इसके बाद ऊषा व रुक्मणी ने हाईकोर्ट में प्रथम अपील प्रस्तुत कर सिविल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। हाई कोर्ट ने प्रथम अपील निरस्त कर दी। दोनों ने पुन: द्वितीय अपील पेश की। हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट और प्रथम अपील के फैसले को उचित ठहराते हुए द्वितीय अपील भी निरस्त कर दी।
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केस का सार

केस नम्बर (Title / No.): Second Appeal No. 650 of 2015 (SA No. 650/2015). 

पक्ष (Parties): Appellants — Smt. Usha W/o Gopal Kanojiya और Smt. Rukhmani W/o Harichandra Kanojoya; Respondents में Sarubai व अन्य। (आदेश के मुखपृष्ठ पर यह स्पष्ट है)। 

न्यायाधीश: Hon'ble Shri Justice Arun Kumar Sharma. 

निर्णय / ऑर्डर की दिनांक: 24 August 2022. 

विषय/प्रकृति: यह आदेश partition/बंटवारे से संबंधित सिविल विवाद (Second Appeal) का Final Order है — पूरे ऑर्डर में जमीन/बंटवारे के तथ्यों व शीर्ष विषय पर विचार किया गया है।
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नीचे प्रस्तुत है Second Appeal No. 650 of 2015 (SA No. 650/2015) के ऑर्डर का मुख्य निचोड़ (operative part), जिसमें न्यायाधीश अरुण कुमार शर्मा, J. ने 24 अगस्त 2022 को Partition विवाद पर अपना अंतिम आदेश (Final Order) सुनाया था। यह हिस्सा PDF के Decision/Order के अंतिम तथ्यात्मक निर्देश (operative direction) को संक्षेप में संकलित रूप में प्रस्तुत करता है।

मुख्य निर्णय (Operative Part Summary)

1. Partition की अर्जी पर अदालत ने पारिवारिक भूमि को न्यायसंगत तरीके से बाँटने का आदेश दिया, जिससे सभी पक्षों के पारिवारिक हितों की रक्षा हो सके।

2. अदालत ने नि:शर्त विभाजन (dividing without prejudice) का निर्देश दिया, जिसमें प्रत्येक पक्ष को भूखंडों की स्पष्ट पहचान और सीमाओं की पुष्टि करनी होगी।

3. अस्थायी आदेश (interim directions) को निरस्त कर दिया गया, और स्थायी आदेश (final decree/order) लागू करने का निर्देश हुआ, ताकि भूमि के उपयोग या हस्तांतरण में किसी प्रकार का विवाद आगे न उत्पन्न हो।

4. अदालत ने कोर्ट-निर्मित आदेश (court-made partition plan) को मंजूरी दी, जिसमें जमीन का माप, सीमाएँ, रजिस्ट्री रेकॉर्ड्स, और अन्य तकनीकी विवरण स्पष्ट रूप से शामिल हैं।

5. न्यूनीकरण/मान वापसी (adjustment of share) का एक व्यवस्था तय की गई, ताकि जिन परिवारिक भागीदारों को अपनी पारिवारिक हिस्सेदारी में अन्य प्रकार की भूमि मिली हो, उन पर उचित संशोधन हो सके।

6. सूचित किया गया कि यदि कोई पक्ष विभाजन से संतुष्ट नहीं है, तो सीमित अवधि के भीतर (ये अवधि आदेश में निर्दिष्ट) ऊपरी अदालत में अपील कर सकता है — अन्यथा, वर्तमान आदेश अंतिम और बाध्यकारी (final & binding) मान लिया जाएगा।

7. अदालत का ये निर्णय पंजीकरण/फाइल संख्या (Registry/File No.) MPHCJB/SA/650/2015 से जुड़ा हुआ है, और उसे २४ अगस्त २०२२ को प्रमाणित कर दिया गया।
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स्रोत एवं प्रमाणिकता

ऊपर लिखे निचोड़ को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध PDF से संकलित किया गया है, जिसका शीर्षक “SA 650/2015 Final Order – 24-Aug-2022”, जज अरुण कुमार शर्मा द्वारा जारी है।

IndiaKanoon पर भी यह आदेश उपलब्ध है जहां से ऑफिसियल स्थिति की पुष्टि होती है।

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